सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई तमिलनाडु सरकार की अपील: मंदिर निधियों से विवाह हॉल निर्माण पर रोक कायम
प्रस्तावना
भारत में मंदिर केवल पूजा-अर्चना का केंद्र नहीं बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक हैं। भक्तजन मंदिरों में चढ़ावे और दान देकर इस उम्मीद से योगदान करते हैं कि उनका धन धार्मिक अनुष्ठानों, देवसेवा, परोपकार और समाजहित के लिए खर्च होगा। ऐसे में जब तमिलनाडु सरकार ने यह निर्णय लिया कि मंदिरों की अधिशेष निधियों का उपयोग विवाह हॉल बनाने के लिए किया जाए, तो इसने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया।
मद्रास उच्च न्यायालय ने सरकार के इस निर्णय को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि मंदिर निधियों का उपयोग धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों तक सीमित होना चाहिए और विवाह हॉल जैसी वाणिज्यिक गतिविधि इसमें शामिल नहीं है। तमिलनाडु सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुँची और स्थगन आदेश (stay) मांगा, किंतु सुप्रीम कोर्ट ने उसे ठुकरा दिया। यह फैसला केवल कानूनी दृष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक, धार्मिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
विवाद की पृष्ठभूमि
सरकार का निर्णय
तमिलनाडु सरकार ने घोषणा की थी कि वह राज्य के 27 प्रमुख मंदिरों की अधिशेष निधियों से लगभग 80 करोड़ रुपये खर्च करके विवाह हॉल (Kalyana Mandapam) बनवाएगी। तर्क यह दिया गया कि—
- विवाह संस्कार हिंदू धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा है।
- गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को सस्ते दरों पर विवाह स्थल उपलब्ध होंगे।
- मंदिर परिसरों में विवाह हॉल बनने से श्रद्धालुओं को सुविधा मिलेगी।
उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप
मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने अगस्त 2025 में इस निर्णय को रद्द कर दिया। न्यायालय ने कहा कि मंदिर निधियाँ भक्तों के दान से आती हैं और उनका उपयोग केवल धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए होना चाहिए। विवाह हॉल, जो किराये पर दिए जाएंगे, वस्तुतः वाणिज्यिक उपक्रम है, और इसे “धार्मिक प्रयोजन” की परिभाषा में नहीं रखा जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही
सरकार के तर्क
सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार ने दलील दी कि—
- विवाह संस्कार धार्मिक अनुष्ठान है, अतः विवाह हॉल निर्माण धार्मिक प्रयोजन से जुड़ा हुआ है।
- गरीब वर्ग को सस्ते हॉल उपलब्ध कराना सामाजिक कल्याण (public purpose) है।
- मंदिरों के पास अधिशेष निधि है, उसका प्रयोग समाजहित में होना चाहिए।
न्यायालय की आपत्तियाँ
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कई तीखे सवाल उठाए:
- क्या भक्त मंदिर में दान इस उम्मीद से करते हैं कि उसका उपयोग विवाह हॉल बनाने और किराये पर देने में होगा?
- यदि विवाह हॉल में संगीत, नृत्य या शराब जैसी गतिविधियाँ हों तो क्या मंदिर की पवित्रता बनी रहेगी?
- क्या मंदिर निधियों का बेहतर उपयोग शिक्षा, अस्पताल, धर्मशालाएँ या धार्मिक कार्यों में नहीं हो सकता?
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका पर स्थगन देने से इनकार कर दिया। अर्थात, उच्च न्यायालय द्वारा मंदिर निधियों से विवाह हॉल निर्माण पर रोक का आदेश तत्काल प्रभाव से लागू रहेगा। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि—
- भक्तों के दान का आशय धार्मिक और धर्मार्थ कार्यों के लिए होता है।
- वाणिज्यिक गतिविधियाँ मंदिर निधियों से संचालित नहीं की जा सकतीं।
- अंतिम सुनवाई आगे होगी, किंतु तब तक मंदिर निधियों का उपयोग विवाह हॉल के लिए नहीं किया जा सकता।
कानूनी और संवैधानिक पहलू
- हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ दान अधिनियम, 1959 (HR&CE Act)
इस अधिनियम के तहत मंदिरों की निधियों का उपयोग धार्मिक, पूजा-पाठ, देवसेवा और समाजोपयोगी कार्यों के लिए होना चाहिए। अदालत ने माना कि विवाह हॉल इस श्रेणी में नहीं आता। - भक्तों की मंशा (Donor’s Intention)
न्यायालय ने जोर दिया कि दान देने वाले भक्त यह आशा रखते हैं कि उनका पैसा भगवान और मंदिर सेवा के लिए उपयोग होगा, न कि किराये के हॉल या वाणिज्यिक गतिविधियों में। - धर्म और राज्य का संतुलन
संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार देते हैं। लेकिन राज्य का नियंत्रण तभी उचित है जब वह धार्मिक उद्देश्यों के अनुरूप हो।
सामाजिक और धार्मिक प्रभाव
- मंदिर की पवित्रता
विवाह हॉल वाणिज्यिक दृष्टि से चलने पर मंदिर की पवित्रता पर असर पड़ सकता है। शोर-शराबा, भव्य आयोजन या अनुचित गतिविधियाँ मंदिर परिसर की गरिमा से मेल नहीं खातीं। - भक्तों का विश्वास
यदि भक्तों को लगे कि उनका दान सरकार द्वारा अन्य उद्देश्यों में मोड़ा जा रहा है, तो उनका मंदिरों पर विश्वास डगमगा सकता है। - सामाजिक कल्याण के अन्य साधन
अदालत ने संकेत दिया कि मंदिर निधियों का उपयोग शिक्षा संस्थान, अस्पताल, धर्मशाला या गरीबों की सेवा जैसे सीधे धर्मार्थ कार्यों में होना चाहिए।
तुलनात्मक दृष्टिकोण
भारत में पहले भी मंदिर निधियों के उपयोग को लेकर विवाद हुए हैं।
- आंध्र प्रदेश में तिरुपति तिरुमला देवस्थानम (TTD) की अधिशेष निधि पर सरकारी नियंत्रण को लेकर प्रश्न उठे।
- कई बार अदालतों ने स्पष्ट किया कि मंदिर निधियों का उपयोग धार्मिक और समाजोपयोगी कार्यों तक ही सीमित रहना चाहिए।
यह मामला भी उसी परंपरा में आता है, जहाँ अदालतें भक्तों की आस्था की रक्षा करती हैं।
आलोचना और समर्थन
- सरकार का पक्ष: विवाह हॉल निर्माण से गरीबों को लाभ, विवाह खर्च में कमी और मंदिर परिसरों का उपयोग बढ़ेगा।
- आलोचक पक्ष: मंदिर निधियों का यह उपयोग भक्तों की मंशा और कानून के विरुद्ध है। इससे मंदिर वाणिज्यिक संस्था बन जाएगा।
भविष्य की संभावनाएँ
- तमिलनाडु सरकार चाहे तो इस मामले में संशोधित योजना पेश कर सकती है, जैसे—
- निधि का उपयोग धर्मार्थ अस्पताल, शिक्षा संस्थानों या धर्मशालाओं में।
- विवाह हॉल को पूरी तरह मुफ्त या गैर-वाणिज्यिक स्वरूप में बनाना।
- सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई के बाद यह तय होगा कि विवाह हॉल धार्मिक प्रयोजन की परिभाषा में आते हैं या नहीं।
- यह निर्णय अन्य राज्यों में भी नजीर बनेगा जहाँ मंदिर निधियों का उपयोग विवादास्पद परियोजनाओं में किया जाता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश केवल कानूनी व्याख्या नहीं बल्कि भक्तों की आस्था और धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता की रक्षा का प्रतीक है। अदालत ने साफ कर दिया कि मंदिर निधियाँ भक्तों के विश्वास की अमानत हैं और उनका प्रयोग केवल धर्म और समाजोपयोगी कार्यों के लिए ही किया जाना चाहिए।
तमिलनाडु सरकार की योजना भले ही सामाजिक दृष्टि से उपयोगी प्रतीत होती हो, लेकिन कानूनी और धार्मिक दृष्टि से वह भक्तों की भावना और कानून की परिभाषा से मेल नहीं खाती। यह निर्णय आने वाले समय में राज्य और धार्मिक संस्थानों के बीच संतुलन बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
1. सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार किस आदेश के खिलाफ पहुँची थी?
तमिलनाडु सरकार ने मंदिर निधियों से विवाह हॉल बनाने का निर्णय लिया था। इस पर मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने अगस्त 2025 में रोक लगाई और सरकारी आदेश (GO) को रद्द कर दिया। सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुँची और स्थगन (stay) चाहा ताकि विवाह हॉल निर्माण की योजना जारी रख सके। सुप्रीम कोर्ट ने स्थगन देने से इनकार कर दिया और उच्च न्यायालय का आदेश लागू रखा।
2. तमिलनाडु सरकार ने विवाह हॉल निर्माण के लिए कौन-सी निधि का उपयोग प्रस्तावित किया था?
सरकार ने राज्य के 27 मंदिरों की अधिशेष निधियों (surplus temple funds) का उपयोग करने की घोषणा की थी। इस योजना के तहत लगभग ₹80 करोड़ रुपये खर्च कर विवाह हॉल बनाए जाने थे। सरकार का तर्क था कि यह सामाजिक कल्याण और धार्मिक आवश्यकता दोनों है क्योंकि विवाह संस्कार धार्मिक अनुष्ठान है।
3. मद्रास उच्च न्यायालय ने मंदिर निधियों से विवाह हॉल निर्माण पर क्या निर्णय दिया?
मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि मंदिर निधियों का उपयोग केवल धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों तक सीमित होना चाहिए। विवाह हॉल किराये पर दिए जाएंगे, इसलिए यह एक वाणिज्यिक गतिविधि है, जिसे धार्मिक प्रयोजन की परिभाषा में शामिल नहीं किया जा सकता। इसलिए सरकार का आदेश अवैध है और उसे रद्द किया जाता है।
4. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका पर क्या टिप्पणी की?
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या भक्त दान इस उम्मीद से करते हैं कि उनका पैसा विवाह हॉल बनाने और किराये पर देने में लगाया जाएगा? अदालत ने यह भी सवाल किया कि यदि विवाह हॉल में शोर-शराबा, संगीत या शराब परोसी गई तो मंदिर की पवित्रता कैसे बनी रहेगी?
5. भक्तों के दान के उपयोग को लेकर अदालत ने क्या सिद्धांत स्थापित किया?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भक्तों का दान धार्मिक और धर्मार्थ कार्यों के लिए होता है। इसे वाणिज्यिक या लाभकारी गतिविधियों के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता। भक्तों की आस्था और विश्वास को सुरक्षित रखना सरकार और मंदिर प्रबंधन दोनों की जिम्मेदारी है।
6. तमिलनाडु सरकार ने विवाह हॉल निर्माण के समर्थन में कौन-से तर्क दिए?
सरकार का तर्क था कि विवाह संस्कार धार्मिक अनुष्ठान है, इसलिए विवाह हॉल निर्माण धार्मिक उद्देश्य से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों को सस्ते दरों पर विवाह स्थल उपलब्ध होंगे। यह योजना सामाजिक कल्याण का हिस्सा है और अधिशेष निधि का उपयोग जनहित में होना चाहिए।
7. अदालत ने सरकार के तर्कों को क्यों अस्वीकार किया?
अदालत ने कहा कि विवाह संस्कार भले ही धार्मिक हो, लेकिन विवाह हॉल बनाना और उसे किराये पर देना वाणिज्यिक गतिविधि है। यह मंदिर निधियों के दायरे में नहीं आता। भक्तों ने दान मंदिर की सेवा और धार्मिक गतिविधियों के लिए दिया है, न कि ऐसे हॉल बनाने के लिए जिनसे आय प्राप्त हो।
8. मंदिर निधियों के बेहतर उपयोग को लेकर अदालत ने क्या सुझाव दिया?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि सरकार मंदिर निधियों का उपयोग करना ही चाहती है तो उसका प्रयोग शिक्षा, अस्पताल, धर्मशालाओं और सीधे धर्मार्थ कार्यों में होना चाहिए। ऐसे कार्य समाज और भक्तों दोनों के लिए लाभकारी होंगे और दान की मूल भावना के अनुरूप भी होंगे।
9. इस निर्णय का सामाजिक और धार्मिक महत्व क्या है?
यह निर्णय मंदिरों की पवित्रता और भक्तों के विश्वास की रक्षा करता है। यदि निधियाँ गलत दिशा में प्रयोग होंगी तो भक्तों का आस्था पर से विश्वास डगमगा सकता है। यह फैसला संदेश देता है कि धार्मिक संस्थानों की निधियाँ केवल धर्म और धर्मार्थ प्रयोजनों के लिए ही हों, वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए नहीं।
10. इस मामले से अन्य राज्यों को क्या सीख मिलती है?
यह निर्णय नजीर (precedent) बनेगा कि मंदिर निधियों का उपयोग केवल धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों तक सीमित होना चाहिए। अन्य राज्य सरकारें भी अब मंदिर निधियों को वाणिज्यिक परियोजनाओं में लगाने से पहले सावधान रहेंगी। भक्तों की आस्था और निधियों की पवित्रता सर्वोपरि है।