पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में तलवारकांड: न्यायालय की गरिमा पर हमला और सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल
भारत का न्यायालय केवल न्याय वितरण की संस्था ही नहीं है, बल्कि लोकतंत्र के स्तंभों में से एक है। जब न्यायालय परिसर की शांति और सुरक्षा को चुनौती दी जाती है, तो यह केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं होता, बल्कि न्याय व्यवस्था और उसकी गरिमा पर भी आघात माना जाता है। हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट, चंडीगढ़ में हुई घटना इसी गंभीरता को दर्शाती है, जहाँ अधिवक्ता पलक देव पर तलवार से जानलेवा हमला हुआ। इस प्रकरण ने न केवल पूरे अधिवक्ता समाज को झकझोर दिया बल्कि न्यायालय की सुरक्षा व्यवस्था और अनुशासन पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए।
घटना का संक्षिप्त विवरण
सोमवार दोपहर, लगभग 12:30 बजे, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की लाइब्रेरी के पास अधिवक्ता पलक देव (35 वर्ष, निवासी मोहाली), जो पिछले 12 वर्षों से वकालत कर रही हैं, गुजर रही थीं। उसी समय, रवनीत कौर नाम की एक महिला, जो स्वयं को अधिवक्ता बता रही थी, लाइब्रेरी स्टाफ से झगड़ा कर रही थी। जब पलक देव ने बीच-बचाव करने और माहौल शांत कराने का प्रयास किया, तो रवनीत कौर ने उनके साथ भी गाली-गलौज शुरू कर दी।
इसी बीच एक व्यक्ति, सिमरनजीत सिंह ब्लासी, निहंग वेशभूषा में होने के बावजूद वकील की ड्रेस पहने हुए वहाँ पहुँचा। उसके हाथ में तलवार थी और उसने भी अभद्रता करना शुरू कर दिया।
घटना यहीं तक सीमित नहीं रही। लगभग 2 बजे, माननीय मुख्य न्यायाधीश की अदालत में सुनवाई के दौरान भी रवनीत कौर और सिमरनजीत सिंह ने बार-बार बेतुके तर्क रखे और न्यायालय की कार्यवाही में व्यवधान उत्पन्न किया। अदालत से बाहर निकलने के बाद दोनों ने पलक देव और अन्य अधिवक्ताओं को घेरकर गालियाँ दीं और जान से मारने की धमकी दी।
यही नहीं, सिमरनजीत सिंह ने अचानक अपनी तलवार से पलक देव पर वार कर दिया। सौभाग्य से अधिवक्ता सतिक्षण शर्मा ने साहस दिखाते हुए पलक देव को खींच लिया। इस कारण तलवार का वार उनकी गर्दन पर नहीं लगा, बल्कि सतिक्षण शर्मा की बायीं बाँह और दाहिने हाथ की ऊँगली पर गंभीर चोट पहुँची। यदि वह बचाव न करते तो पलक देव की जान जा सकती थी।
इस घटना के तुरंत बाद थाना-03 चंडीगढ़ पुलिस ने पलक देव की शिकायत के आधार पर सिमरनजीत सिंह ब्लासी और रवनीत कौर के खिलाफ मामला दर्ज किया।
कानूनी दृष्टिकोण से मामला
- हत्या का प्रयास (IPC धारा 307 / BNS धारा 109)
तलवार से जानलेवा हमला करना हत्या के प्रयास के अंतर्गत आता है। पलक देव पर सीधा वार उनकी जान लेने की नीयत को दर्शाता है। - गंभीर चोट पहुँचाना (IPC धारा 325 / BNS धारा 117(2))
अधिवक्ता सतिक्षण शर्मा को लगी चोट इस धारा के अंतर्गत आती है। - अदालत की अवमानना (Contempt of Court)
न्यायालय कक्ष में बार-बार व्यवधान डालना और झूठे तर्क देना, अदालत की गरिमा का अपमान माना जाएगा। - सार्वजनिक शांति भंग करना (IPC धारा 504, 506 / BNS धारा 351, 352)
गाली-गलौज करना, धमकी देना और भय का वातावरण पैदा करना भी दंडनीय है।
न्यायालय परिसर की सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न
इस घटना ने हाईकोर्ट की सुरक्षा व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
- तलवार जैसे हथियार का न्यायालय परिसर में पहुँचना सुरक्षा की विफलता को दर्शाता है।
- न्यायालय की कार्यवाही में बाधा डालना न्याय की मूल भावना के विरुद्ध है।
- अधिवक्ता समाज, जो न्यायालय का अभिन्न हिस्सा है, यदि स्वयं असुरक्षित महसूस करने लगे तो न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है।
अधिवक्ता समुदाय की प्रतिक्रिया
इस घटना के बाद अधिवक्ताओं में रोष व्याप्त है। उन्होंने न केवल दोषियों की कड़ी सज़ा की माँग की है, बल्कि न्यायालय परिसर की सुरक्षा को मज़बूत करने की भी मांग की है। अधिवक्ता संगठनों ने स्पष्ट कहा है कि यदि ऐसे तत्वों पर सख़्त कार्रवाई नहीं की गई, तो यह न्यायालय की गरिमा और पेशे की पवित्रता दोनों पर गहरा आघात होगा।
न्यायपालिका की गरिमा और अनुशासन की आवश्यकता
न्यायालय लोकतंत्र का वह मंदिर है जहाँ लोग न्याय पाने आते हैं। वहाँ पर वकील की ड्रेस पहनकर हथियार लेकर जाना, न केवल कानून का मज़ाक है बल्कि पेशे की गरिमा के साथ खिलवाड़ भी है।
अदालत परिसर में होने वाली किसी भी हिंसक घटना को केवल “व्यक्तिगत विवाद” नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसका असर व्यापक होता है। यह आम नागरिकों के विश्वास को कमजोर करता है और अपराधियों का हौसला बढ़ाता है।
भविष्य के लिए सुझाव
- सख्त सुरक्षा जाँच
हाईकोर्ट और जिला अदालतों में एयरपोर्ट जैसी सुरक्षा व्यवस्था लागू होनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति को हथियार या खतरनाक वस्तु के साथ अंदर प्रवेश न मिले। - अधिवक्ताओं की पहचान सत्यापन
कई लोग वकील की ड्रेस पहनकर अवैध गतिविधियाँ करते हैं। इसके लिए डिजिटल आईडी कार्ड और बायोमैट्रिक सत्यापन आवश्यक है। - कानूनी पेशे में अनुशासन
बार काउंसिल और अधिवक्ता संघ को ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए जो पेशे की छवि खराब करते हैं। - न्यायालय परिसर में त्वरित प्रतिक्रिया दल (Quick Response Team)
किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए पुलिस और सुरक्षा बल की विशेष टीम तैनात होनी चाहिए। - कठोर दंड
ऐसे मामलों में अभियुक्तों को सख्त से सख्त सज़ा दी जानी चाहिए ताकि भविष्य में कोई इस तरह का दुस्साहस करने की हिम्मत न कर सके।
निष्कर्ष
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में हुई यह घटना केवल एक अधिवक्ता पर हमला नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र पर हमला है। वकील, न्यायाधीश और आम नागरिक सभी न्यायालय पर भरोसा करते हैं। यदि अदालत परिसर ही सुरक्षित न रहे, तो न्याय प्रणाली की पवित्रता खतरे में पड़ जाएगी।
सिमरनजीत सिंह ब्लासी और रवनीत कौर के खिलाफ दर्ज मामला न केवल अपराध की कार्यवाही है, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा का प्रतीक भी है। इस प्रकरण से यह सीख मिलती है कि कानून और व्यवस्था को लेकर किसी भी प्रकार की ढिलाई लोकतंत्र की नींव को हिला सकती है। इसलिए आवश्यक है कि दोषियों को कठोर सज़ा दी जाए और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएँ।