1. मोटरयान अधिनियम, 1988 का उद्देश्य
मोटरयान अधिनियम, 1988 का मुख्य उद्देश्य सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करना, चालकों एवं वाहनों का पंजीकरण नियंत्रित करना और सड़क दुर्घटनाओं से पीड़ित व्यक्तियों को त्वरित मुआवज़ा उपलब्ध कराना है। यह अधिनियम पहले के 1939 के अधिनियम को प्रतिस्थापित करता है और आधुनिक यातायात आवश्यकताओं के अनुरूप नियमों को अद्यतन करता है। इसमें वाहनों के बीमा, परमिट प्रणाली, चालकों की योग्यता, और यातायात नियमों का उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान किया गया है। 2019 में इसमें व्यापक संशोधन हुआ, जिसके अंतर्गत भारी जुर्माने, इलेक्ट्रॉनिक निगरानी, सड़क सुरक्षा परिषद और दुर्घटना पीड़ितों को बढ़ा हुआ मुआवज़ा प्रदान करने की व्यवस्था की गई। इस प्रकार यह अधिनियम सड़क परिवहन व्यवस्था को अधिक सुरक्षित और व्यवस्थित बनाने का प्रयास करता है।
2. चालक अनुज्ञापत्र (Driving License) संबंधी प्रावधान
मोटरयान अधिनियम, 1988 के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को वाहन चलाने के लिए वैध ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य है। बिना लाइसेंस वाहन चलाना दंडनीय अपराध है। 16 वर्ष की आयु पूरी करने पर हल्के, बिना गियर के दोपहिया वाहन हेतु लाइसेंस दिया जा सकता है, जबकि सामान्य मोटर वाहन हेतु न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित है। वाणिज्यिक वाहन चलाने के लिए 20 वर्ष की आयु आवश्यक है। पहले चरण में शिक्षार्थी अनुज्ञापत्र (Learner’s License) दिया जाता है, जिसके बाद व्यावहारिक व सैद्धांतिक परीक्षा पास करने पर स्थायी लाइसेंस जारी किया जाता है। 2019 संशोधन अधिनियम ने लाइसेंस से संबंधित प्रक्रियाओं को ऑनलाइन किया और अवैध तरीके से लाइसेंस प्राप्त करने पर कड़े दंड का प्रावधान किया। इस प्रकार अधिनियम चालक की योग्यता और सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
3. वाहन पंजीकरण की अनिवार्यता
मोटरयान अधिनियम, 1988 की धारा 39 के अनुसार, कोई भी वाहन सार्वजनिक स्थल पर तब तक नहीं चलाया जा सकता जब तक उसका विधिवत पंजीकरण न हो। पंजीकरण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वाहन की पहचान स्पष्ट हो और उसके स्वामी की जानकारी उपलब्ध रहे। पंजीकरण प्रमाणपत्र (RC) में वाहन का चेसिस नंबर, इंजन नंबर, स्वामी का नाम, पते और वाहन का वर्ग अंकित होता है। बिना पंजीकरण के वाहन चलाना दंडनीय अपराध है। 2019 संशोधन अधिनियम ने यह प्रावधान किया कि स्थायी पंजीकरण केवल प्रदूषण मानकों और सुरक्षा परीक्षण पास करने के बाद ही किया जाएगा। साथ ही अब वाहन पंजीकरण प्रक्रियाओं को डिजिटलीकृत कर दिया गया है ताकि फर्जी पंजीकरण रोका जा सके। यह प्रावधान सड़क सुरक्षा, अपराध नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
4. वाहन बीमा की आवश्यकता
मोटरयान अधिनियम, 1988 की धारा 146 में यह प्रावधान किया गया है कि सार्वजनिक स्थल पर चलने वाले प्रत्येक वाहन का तृतीय पक्ष बीमा (Third Party Insurance) होना अनिवार्य है। इसका उद्देश्य यह है कि सड़क दुर्घटना में तृतीय पक्ष को होने वाले नुकसान या मृत्यु के लिए वाहन स्वामी क्षतिपूर्ति दे सके। बिना बीमा के वाहन चलाना अपराध है और इसके लिए भारी जुर्माना तथा दंड निर्धारित है। बीमा कंपनियाँ दुर्घटना पीड़ितों को मुआवज़ा देती हैं जिससे पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा होती है। 2019 संशोधन अधिनियम ने न्यूनतम मुआवज़ा राशि बढ़ाई है – मृत्यु की स्थिति में 5 लाख रुपए और स्थायी चोट की स्थिति में 2.5 लाख रुपए अनिवार्य कर दिए गए हैं। इस प्रकार बीमा व्यवस्था सामाजिक न्याय और सुरक्षा का महत्वपूर्ण साधन है।
5. यातायात नियम उल्लंघन एवं दंड
मोटरयान अधिनियम, 1988 में यातायात नियमों का उल्लंघन करने पर विभिन्न दंड का प्रावधान किया गया है। पहले दंड राशि बहुत कम थी जिससे लोग नियमों को गंभीरता से नहीं लेते थे। लेकिन 2019 संशोधन के बाद जुर्माने में भारी वृद्धि की गई। उदाहरण के लिए, बिना हेलमेट वाहन चलाने पर ₹1000 और लाइसेंस न होने पर ₹5000 तक जुर्माना लगाया जाता है। नशे की हालत में गाड़ी चलाने पर ₹10,000 तक का दंड और कारावास भी हो सकता है। तेज गति, सीट बेल्ट न पहनना, मोबाइल पर बात करना आदि पर भी कड़े दंड निर्धारित हैं। इन प्रावधानों का उद्देश्य चालकों में अनुशासन लाना और सड़क दुर्घटनाओं की संख्या कम करना है।
6. वाहन परमिट व्यवस्था
मोटरयान अधिनियम, 1988 के अंतर्गत परिवहन वाहनों को चलाने के लिए परमिट प्राप्त करना आवश्यक है। यह प्रावधान इसलिए किया गया है ताकि सार्वजनिक परिवहन सुव्यवस्थित ढंग से संचालित हो और अवैध वाहनों पर नियंत्रण रखा जा सके। परमिट के विभिन्न प्रकार हैं – जैसे स्टेज कैरिज परमिट, गुड्स कैरिज परमिट, राष्ट्रीय परमिट और ऑल इंडिया टूरिस्ट परमिट। प्रत्येक परमिट एक निश्चित क्षेत्र और समय अवधि के लिए मान्य होता है। बिना परमिट परिवहन वाहन चलाना अपराध है और इसके लिए दंड का प्रावधान है। 2019 संशोधन ने परमिट प्राप्ति प्रक्रिया को सरल और ऑनलाइन कर दिया, जिससे पारदर्शिता बढ़ी है। इस व्यवस्था से सार्वजनिक परिवहन का नियमन, यातायात का संतुलन और सड़क सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
7. सड़क दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT)
मोटरयान अधिनियम, 1988 की धारा 165 के अंतर्गत प्रत्येक राज्य में मोटर वाहन दुर्घटना दावा अधिकरण (Motor Accident Claims Tribunal – MACT) की स्थापना की जाती है। इसका उद्देश्य सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों या उनके परिजनों को त्वरित और सरल न्याय उपलब्ध कराना है। पीड़ित व्यक्ति मुआवज़े की मांग सीधे अधिकरण में कर सकता है। अधिकरण दीवानी प्रक्रिया संहिता की अपेक्षा सरल और त्वरित प्रक्रिया अपनाता है। इसमें मृत्यु, स्थायी या अस्थायी चोट और संपत्ति हानि के मामलों में मुआवज़ा दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने समय-समय पर न्यायपूर्ण मुआवज़े की अवधारणा को विकसित किया है। 2019 संशोधन अधिनियम ने मुआवज़े की न्यूनतम राशि बढ़ाई और अधिकरण को अधिक अधिकार दिए।
8. नाबालिग द्वारा वाहन चलाना
मोटरयान अधिनियम, 1988 में नाबालिगों द्वारा वाहन चलाने पर विशेष प्रावधान हैं। धारा 4 के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति सामान्य मोटर वाहन नहीं चला सकता। यदि नाबालिग वाहन चलाते हुए पकड़ा जाता है तो उसके अभिभावक या वाहन स्वामी पर जिम्मेदारी डाली जाती है। 2019 संशोधन अधिनियम ने ऐसे मामलों में कठोर दंड का प्रावधान किया है। नाबालिग द्वारा दुर्घटना करने पर ₹25,000 तक का जुर्माना, तीन वर्ष तक वाहन पंजीकरण का निलंबन और अभिभावक के खिलाफ आपराधिक मामला चलाया जा सकता है। इसका उद्देश्य यह है कि सड़क पर केवल परिपक्व और प्रशिक्षित चालक ही वाहन चलाएँ और सड़क सुरक्षा सुनिश्चित हो।
9. प्रदूषण नियंत्रण एवं फिटनेस प्रमाणपत्र
मोटरयान अधिनियम, 1988 में यह प्रावधान है कि प्रत्येक वाहन का प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र (PUC) होना अनिवार्य है। साथ ही, वाणिज्यिक वाहनों के लिए फिटनेस प्रमाणपत्र आवश्यक है, जो यह प्रमाणित करता है कि वाहन सड़क पर चलने योग्य और सुरक्षित है। बिना फिटनेस प्रमाणपत्र वाहन चलाना अपराध है। यह प्रावधान पर्यावरण संरक्षण और सड़क सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। 2019 संशोधन ने इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से फिटनेस प्रमाणपत्र और प्रदूषण जाँच की सुविधा प्रदान की है। साथ ही, पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति भी दी गई है।
10. सड़क सुरक्षा परिषद और उपाय
मोटरयान अधिनियम, 1988 के अंतर्गत केंद्र और राज्य स्तर पर सड़क सुरक्षा परिषद गठित की गई है। इसका उद्देश्य सड़क दुर्घटनाओं की संख्या कम करना और जन-जागरूकता अभियान चलाना है। यह परिषद यातायात नियमों के पालन, सड़क संकेतक, वाहन रख-रखाव और चालकों के प्रशिक्षण से संबंधित नीतियाँ तैयार करती है। 2019 संशोधन ने राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड का गठन करने का प्रावधान किया, जो सड़क सुरक्षा मानकों को तय करता है और विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करता है। सड़क सुरक्षा परिषद द्वारा “सेफ्टी वीक”, “हेलमेट अवेयरनेस” और “नो स्पीडिंग” जैसे अभियान चलाए जाते हैं।
11. इलेक्ट्रॉनिक निगरानी एवं प्रवर्तन
2019 संशोधन अधिनियम ने यातायात नियमों के उल्लंघन की पहचान के लिए इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली (CCTV कैमरे, स्पीड गन, रेड लाइट कैमरा आदि) के उपयोग का प्रावधान किया। इसका उद्देश्य मानव हस्तक्षेप कम करना और पारदर्शिता बढ़ाना है। यातायात चालान अब ई-चालान प्रणाली से जारी किए जाते हैं। इससे भ्रष्टाचार में कमी आती है और चालकों में नियमों के प्रति अनुशासन बढ़ता है। इलेक्ट्रॉनिक निगरानी से सड़क पर वाहनों की गति, ट्रैफिक सिग्नल उल्लंघन और ओवरलोडिंग पर नियंत्रण पाया जाता है। यह आधुनिक तकनीक सड़क सुरक्षा को मजबूत बनाती है।
12. हिट एंड रन मामलों में मुआवज़ा
मोटरयान अधिनियम, 1988 की धारा 161 के अंतर्गत हिट एंड रन मामलों में पीड़ितों को मुआवज़ा प्रदान करने का प्रावधान है। यदि किसी अज्ञात वाहन द्वारा दुर्घटना होती है और चालक फरार हो जाता है, तो पीड़ित या उसके परिजनों को सॉलटियम फंड से मुआवज़ा दिया जाता है। वर्तमान में मृत्यु की स्थिति में ₹2 लाख और गंभीर चोट की स्थिति में ₹50,000 मुआवज़ा दिया जाता है। 2019 संशोधन अधिनियम ने यह प्रावधान किया कि केंद्र सरकार दुर्घटना पीड़ितों के लिए बीमा योजना तैयार करेगी और समय-समय पर मुआवज़े की राशि बढ़ाई जाएगी। यह प्रावधान पीड़ितों को न्यूनतम राहत सुनिश्चित करता है।
13. ओवरलोडिंग और वाहन सुरक्षा
अधिनियम में यह स्पष्ट प्रावधान है कि वाहन में निर्धारित भार और यात्रियों की संख्या से अधिक भार लादना अपराध है। ओवरलोडिंग से सड़क दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ता है और सड़क व पुलों को भी नुकसान पहुँचता है। 2019 संशोधन अधिनियम ने ओवरलोडिंग पर भारी दंड का प्रावधान किया है। अब ओवरलोडिंग पर ₹20,000 तक का जुर्माना और अतिरिक्त भार पर प्रति टन ₹2000 तक दंड लगाया जाता है। इसके अलावा, वाहन मालिक और चालक का लाइसेंस निलंबित किया जा सकता है। इस प्रकार यह प्रावधान सड़क सुरक्षा और संरचना की रक्षा करता है।
14. मोटर वाहन चालक का दायित्व
मोटरयान अधिनियम, 1988 चालक पर अनेक दायित्व डालता है। उसे वाहन चलाते समय यातायात संकेतों का पालन करना, सुरक्षा उपकरण जैसे हेलमेट और सीट बेल्ट का उपयोग करना और वाहन की स्थिति सही रखना आवश्यक है। दुर्घटना होने पर चालक को पीड़ित को नज़दीकी अस्पताल तक पहुँचाने का कर्तव्य भी दिया गया है। 2019 संशोधन अधिनियम ने ‘गुड सेमेरिटन’ की अवधारणा जोड़ी, जिसके अंतर्गत दुर्घटना पीड़ित की सहायता करने वाले व्यक्ति को कोई कानूनी परेशानी नहीं होगी। चालक का यह दायित्व समाज में सुरक्षा और संवेदनशीलता को बढ़ावा देता है।
15. मोटरयान अधिनियम, 2019 का महत्व
2019 में मोटरयान अधिनियम में व्यापक संशोधन किया गया जिसने भारतीय सड़क सुरक्षा व्यवस्था में बड़ा परिवर्तन किया। इस संशोधन के अंतर्गत जुर्माने कई गुना बढ़ाए गए, लाइसेंस और पंजीकरण की प्रक्रियाएँ ऑनलाइन की गईं, सड़क सुरक्षा बोर्ड गठित किया गया, और दुर्घटना पीड़ितों के मुआवज़े में वृद्धि की गई। साथ ही, इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्तन, नाबालिग चालकों पर कड़े दंड, और प्रदूषण नियंत्रण जैसे प्रावधान शामिल किए गए। इस संशोधन ने अधिनियम को आधुनिक यातायात आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला और सड़क दुर्घटनाओं को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाए। यह भारतीय परिवहन व्यवस्था को सुरक्षित और अनुशासित बनाने की दिशा में ऐतिहासिक सुधार माना जाता है।
16. धारा 130-132 के अंतर्गत पुलिस के अधिकार
मोटरयान अधिनियम, 1988 की धारा 130 से 132 पुलिस अधिकारियों को विशेष अधिकार प्रदान करती है। पुलिस चालक से लाइसेंस, पंजीकरण प्रमाणपत्र, बीमा और प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र दिखाने की मांग कर सकती है। यदि चालक इन दस्तावेजों को तुरंत प्रस्तुत नहीं कर पाता, तो उसे सात दिन के भीतर नज़दीकी पुलिस स्टेशन में जमा करना होता है। धारा 132 पुलिस को यह अधिकार देती है कि यदि चालक खतरनाक ढंग से वाहन चला रहा है या कानून का उल्लंघन कर रहा है तो उसे रोककर जाँच करे। ये प्रावधान सड़क सुरक्षा और यातायात अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं।
17. धारा 185 – नशे की हालत में वाहन चलाना
मोटरयान अधिनियम की धारा 185 में शराब या नशीले पदार्थ के प्रभाव में वाहन चलाना अपराध माना गया है। यदि चालक के रक्त में 100 मिलीलीटर पर 30 मिलीग्राम से अधिक अल्कोहल पाया जाता है या वह नशे के कारण वाहन नियंत्रित नहीं कर पाता, तो उसे छह माह तक की कैद या ₹10,000 तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। पुनरावृत्ति होने पर सज़ा बढ़कर दो वर्ष तक कैद या ₹15,000 जुर्माना हो सकता है। यह प्रावधान सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में बड़ी संख्या में दुर्घटनाएँ नशे में गाड़ी चलाने के कारण होती हैं।
18. धारा 184 – लापरवाह एवं खतरनाक ड्राइविंग
धारा 184 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति तेज गति, खतरनाक मोड़ों पर लापरवाही से वाहन चलाता है या जानबूझकर दूसरे व्यक्तियों की सुरक्षा को खतरे में डालता है, तो वह दंडनीय अपराध है। इसके लिए ₹5000 तक का जुर्माना और छह माह तक की कैद का प्रावधान है। यदि ऐसी लापरवाही से चोट या मृत्यु होती है तो अन्य आपराधिक धाराएँ भी लग सकती हैं। 2019 संशोधन अधिनियम ने इस धारा के तहत दंड को और कड़ा किया ताकि चालक यातायात नियमों का पालन करें और सड़क पर अनुशासन बना रहे।
19. धारा 206 – लाइसेंस का निलंबन
मोटरयान अधिनियम, 1988 की धारा 206 के अंतर्गत यदि चालक गंभीर अपराध करता है, जैसे नशे में ड्राइविंग, खतरनाक ड्राइविंग या बार-बार उल्लंघन करता है, तो पुलिस अधिकारी उसका लाइसेंस अस्थायी रूप से ज़ब्त कर सकते हैं। इसके बाद संबंधित प्राधिकरण लाइसेंस को कुछ समय के लिए निलंबित या स्थायी रूप से रद्द कर सकता है। यह प्रावधान सड़क पर अनुशासन बनाए रखने और बार-बार अपराध करने वाले चालकों पर नियंत्रण के लिए आवश्यक है।
20. धारा 134 – दुर्घटना के समय चालक का कर्तव्य
धारा 134 के अनुसार, यदि किसी वाहन चालक के कारण दुर्घटना होती है, तो उसका कर्तव्य है कि वह पीड़ित को तुरंत नज़दीकी अस्पताल पहुँचाए। साथ ही, उसे दुर्घटना की सूचना नज़दीकी पुलिस स्टेशन को देनी चाहिए और बीमा कंपनी को भी जानकारी देनी चाहिए। ऐसा न करने पर चालक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि दुर्घटना पीड़ितों को समय पर उपचार मिले और उनकी जान बचाई जा सके।
21. धारा 140 – नो फॉल्ट लायबिलिटी
मोटरयान अधिनियम, 1988 की धारा 140 के अंतर्गत ‘नो फॉल्ट लायबिलिटी’ की अवधारणा दी गई है। इसके अनुसार, यदि किसी सड़क दुर्घटना में मृत्यु या स्थायी विकलांगता होती है, तो वाहन स्वामी या बीमा कंपनी को दोष साबित किए बिना ही मुआवज़ा देना होगा। मृत्यु की स्थिति में ₹50,000 और स्थायी विकलांगता की स्थिति में ₹25,000 राशि देय है। यह व्यवस्था पीड़ित को शीघ्र राहत दिलाने के लिए की गई है।
22. धारा 163A – संरचित फार्मूला मुआवज़ा
धारा 163A के अंतर्गत संरचित फार्मूला (Structured Formula) के आधार पर मुआवज़ा दिया जाता है। इसमें पीड़ित की आयु और आय को ध्यान में रखकर मुआवज़े की राशि तय की जाती है। इस धारा का उद्देश्य लंबी मुकदमेबाजी से बचना और पीड़ित को त्वरित राहत देना है। यह धारा सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम मानी जाती है।
23. धारा 177 – सामान्य अपराध एवं दंड
मोटरयान अधिनियम की धारा 177 के अंतर्गत सामान्य अपराध जैसे – हेलमेट न पहनना, सिग्नल तोड़ना, कागज़ात न दिखाना आदि के लिए दंड का प्रावधान है। पहले इस पर ₹100 जुर्माना था, लेकिन 2019 संशोधन ने इसे ₹500 या अधिक कर दिया। यह प्रावधान चालकों को छोटे-छोटे नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है जिससे बड़ी दुर्घटनाओं को रोका जा सके।
24. धारा 200 – कम्पाउंडेबल अपराध
धारा 200 में यह व्यवस्था है कि कुछ अपराधों को कम्पाउंड किया जा सकता है यानी पुलिस अधिकारी मौके पर ही जुर्माना लेकर मामला समाप्त कर सकता है। जैसे – बिना हेलमेट वाहन चलाना, दस्तावेज़ न रखना आदि। इसका उद्देश्य छोटे मामलों में अदालत का बोझ कम करना और त्वरित न्याय देना है।
25. मोटरयान अधिनियम का सामाजिक महत्व
मोटरयान अधिनियम, 1988 केवल यातायात नियंत्रण का कानून नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय का भी साधन है। यह अधिनियम सड़क पर अनुशासन लाता है, दुर्घटना पीड़ितों को मुआवज़ा दिलाता है, नाबालिग चालकों पर नियंत्रण करता है, प्रदूषण कम करने का प्रयास करता है और सड़क सुरक्षा अभियान चलाता है। 2019 के संशोधन ने इसे और सशक्त बनाया। इस अधिनियम के बिना आधुनिक भारत में परिवहन व्यवस्था को नियंत्रित करना संभव नहीं होता।