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नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन कानून (Civil Protection & Disaster Management Law)

नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन कानून (Civil Protection & Disaster Management Law)

प्रस्तावना

मानव समाज के विकास के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की आपदाएँ – प्राकृतिक तथा मानव निर्मित – निरंतर सामने आती रही हैं। भूकंप, बाढ़, चक्रवात, महामारी, औद्योगिक दुर्घटनाएँ, आग, युद्ध या आतंकवादी हमले जैसी परिस्थितियाँ समाज और राष्ट्र दोनों की सुरक्षा के लिए चुनौती बनती हैं। इन्हीं परिस्थितियों से निपटने, नागरिकों की रक्षा करने तथा आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में राहत एवं पुनर्वास के लिए नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन कानून (Civil Protection & Disaster Management Law) का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है।

भारत जैसे विशाल और विविध भौगोलिक परिस्थितियों वाले देश में आपदा प्रबंधन कानूनों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि यहाँ हर वर्ष लाखों लोग प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होते हैं। इस लेख में हम नागरिक सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन कानून की संकल्पना, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, संवैधानिक आधार, विधिक प्रावधानों, संस्थागत ढाँचे और व्यावहारिक चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।


नागरिक सुरक्षा (Civil Protection) की संकल्पना

नागरिक सुरक्षा का तात्पर्य उन उपायों से है जिनका उद्देश्य युद्ध, बाहरी आक्रमण, आतंकवादी हमला या आपदा जैसी स्थिति में आम नागरिकों की रक्षा करना होता है। इसमें नागरिकों के जीवन, संपत्ति और बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के साथ-साथ राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण कार्य सम्मिलित होते हैं।

भारत में नागरिक सुरक्षा का कानूनी आधार नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968 (Civil Defence Act, 1968) से मिलता है, जो देश की सुरक्षा और नागरिकों की रक्षा के लिए व्यापक ढाँचा प्रदान करता है।


आपदा प्रबंधन (Disaster Management) की संकल्पना

आपदा प्रबंधन का अर्थ है – किसी आपदा के घटित होने से पहले, उसके दौरान और उसके बाद उठाए जाने वाले सभी कदम। इसमें चार मुख्य चरण माने जाते हैं:

  1. प्रतिकार (Mitigation) – आपदा की संभावना और जोखिम को कम करने के उपाय।
  2. तैयारी (Preparedness) – संभावित आपदा के लिए पूर्व योजना और प्रशिक्षण।
  3. प्रतिक्रिया (Response) – आपदा के दौरान राहत और बचाव कार्य।
  4. पुनर्वास (Recovery & Rehabilitation) – आपदा प्रभावित क्षेत्र का पुनर्निर्माण और समाज को सामान्य स्थिति में लाना।

भारत में आपदा प्रबंधन की विधिक व्यवस्था आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (Disaster Management Act, 2005) से संचालित होती है।


संवैधानिक आधार

भारत के संविधान में नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन से संबंधित कई प्रावधान मिलते हैं:

  • अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार; राज्य का दायित्व है कि वह नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
  • अनुच्छेद 38 और 39 – राज्य को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं, जिसमें आपदा से प्रभावित नागरिकों की रक्षा भी सम्मिलित है।
  • अनुच्छेद 51A(d) – प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह देश की रक्षा करे और राष्ट्रीय सेवा में योगदान दे।
  • सूची VII (सातवीं अनुसूची)
    • संघ सूची में रक्षा, आंतरिक सुरक्षा और राष्ट्रीय महत्व की आपदाएँ आती हैं।
    • राज्य सूची में पुलिस, लोक-व्यवस्था और राहत कार्य।
    • समवर्ती सूची में आपदा प्रबंधन और स्वास्थ्य संबंधी विषय आते हैं।

प्रमुख कानून और नीतियाँ

1. नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968

  • नागरिकों को युद्ध या आपदा जैसी परिस्थितियों में सुरक्षा प्रदान करने के लिए यह कानून बनाया गया।
  • इसमें नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों की नियुक्ति और प्रशिक्षण का प्रावधान है।
  • केंद्रीय और राज्य सरकारों को नागरिक सुरक्षा योजनाएँ बनाने और लागू करने का अधिकार है।

2. आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005

  • इस अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापना हुई।
  • प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं।
  • राज्य स्तर पर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) तथा जिला स्तर पर जिला आपदा प्राधिकरण (DDMA) गठित हैं।
  • अधिनियम में आपदा प्रबंधन नीति, योजना, आपातकालीन राहत, पुनर्वास और फंड के प्रावधान हैं।
  • इसमें राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और विशेष बलों की स्थापना की गई।

3. पर्यावरण एवं औद्योगिक कानून

  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 – औद्योगिक आपदाओं की रोकथाम के लिए।
  • फैक्टरी अधिनियम, 1948 – औद्योगिक सुरक्षा प्रावधान।
  • पब्लिक लाइबिलिटी इंश्योरेंस एक्ट, 1991 – औद्योगिक दुर्घटना में पीड़ितों को मुआवजा।

संस्थागत ढाँचा

  1. राष्ट्रीय स्तर पर – NDMA, NDRF, गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, भारतीय मौसम विभाग, और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया केंद्र।
  2. राज्य स्तर पर – SDMA, राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल, स्वास्थ्य एवं पुलिस विभाग।
  3. जिला स्तर पर – जिला मजिस्ट्रेट/DDMA, स्थानीय निकाय, पंचायत और नगर निगम।
  4. अन्य संगठन – रेड क्रॉस, NGOs, स्वयंसेवी संस्थाएँ और समुदाय आधारित संगठन।

आपदा प्रबंधन चक्र

  1. पूर्व-आपदा चरण – खतरे की पहचान, जोखिम आकलन, आपदा प्रबंधन योजना बनाना।
  2. आपदा घटित होने पर – बचाव कार्य, राहत सामग्री, स्वास्थ्य सेवा, आपातकालीन आश्रय।
  3. पश्च-आपदा चरण – पुनर्वास, मनोवैज्ञानिक सहायता, पुनर्निर्माण और पुनः रोजगार उपलब्ध कराना।

भारत में आपदा प्रबंधन का विकास

भारत ने कई बड़ी आपदाओं का सामना किया है –

  • 1999 का ओडिशा सुपर साइक्लोन
  • 2001 का भुज (गुजरात) भूकंप
  • 2004 की सुनामी
  • 2013 की उत्तराखंड बाढ़ त्रासदी
  • 2020 की कोविड-19 महामारी

इन घटनाओं से सीख लेकर भारत ने आधुनिक आपदा प्रबंधन प्रणाली विकसित की। कोविड-19 महामारी के दौरान आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 का व्यापक उपयोग किया गया और लॉकडाउन, स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार तथा राहत कार्य इसी कानून के अंतर्गत हुए।


नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन का परस्पर संबंध

  • नागरिक सुरक्षा युद्ध या आतंकवादी हमले जैसी परिस्थितियों में नागरिकों की रक्षा करती है, जबकि आपदा प्रबंधन प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों प्रकार की आपदाओं में राहत और पुनर्वास पर केंद्रित है।
  • दोनों ही व्यवस्थाओं का उद्देश्य मानव जीवन, संपत्ति और राष्ट्रीय संसाधनों की रक्षा करना है।
  • दोनों के लिए प्रशिक्षण, जागरूकता और सामुदायिक सहभागिता आवश्यक है।

चुनौतियाँ

  1. आपदा प्रबंधन योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन न होना।
  2. स्थानीय स्तर पर संसाधनों की कमी।
  3. समुदाय में जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी।
  4. तकनीकी साधनों का अभाव।
  5. राजनीतिक और प्रशासनिक समन्वय की समस्या।

समाधान और सुधार के सुझाव

  • स्थानीय समुदाय और पंचायत स्तर पर आपदा प्रबंधन समितियों की सक्रिय भूमिका।
  • विद्यालयों और कॉलेजों में नागरिक सुरक्षा एवं आपदा प्रबंधन शिक्षा।
  • आधुनिक तकनीक – सैटेलाइट, ड्रोन, जीआईएस आधारित आपदा पूर्वानुमान प्रणाली।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल द्वारा संसाधन जुटाना।
  • आपदा बीमा और मुआवजा व्यवस्था को सरल और पारदर्शी बनाना।

निष्कर्ष

नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन कानून समाज और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। भारत जैसे विशाल देश में जहां विविध भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियाँ हैं, वहाँ आपदा प्रबंधन को एक मजबूत कानूनी और संस्थागत ढाँचे की आवश्यकता है। नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 इस दिशा में मजबूत आधार प्रदान करते हैं।

यदि केंद्र और राज्य सरकारें, स्थानीय निकाय, नागरिक समाज और आम जनता मिलकर कार्य करें, तो किसी भी आपदा या संकट की स्थिति में नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा प्रभावी ढंग से की जा सकती है। नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन केवल कानून का विषय नहीं बल्कि राष्ट्रीय जिम्मेदारी है।


1. नागरिक सुरक्षा (Civil Protection) से आप क्या समझते हैं?

नागरिक सुरक्षा का अर्थ है – किसी भी युद्ध, बाहरी आक्रमण, आतंकवादी हमला, औद्योगिक दुर्घटना या आपदा जैसी परिस्थितियों में आम नागरिकों की रक्षा और सुरक्षा करना। इसका मुख्य उद्देश्य है लोगों के जीवन, संपत्ति और राष्ट्रीय संसाधनों को सुरक्षित रखना। भारत में नागरिक सुरक्षा का कानूनी आधार नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968 है। इस अधिनियम के अंतर्गत नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों की नियुक्ति, प्रशिक्षण और तैनाती की जाती है। इन स्वयंसेवकों को आपातकालीन स्थिति में राहत, बचाव और पुनर्वास कार्यों में लगाया जाता है। नागरिक सुरक्षा केवल युद्धकालीन व्यवस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं और मानव निर्मित संकटों में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह एक सामुदायिक जिम्मेदारी है जिसमें आम जनता की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है।


2. आपदा प्रबंधन (Disaster Management) की परिभाषा और महत्व बताइए।

आपदा प्रबंधन वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत आपदा घटित होने से पहले, उसके दौरान और उसके बाद उठाए जाने वाले कदम सम्मिलित होते हैं। इसका उद्देश्य है – मानव जीवन की रक्षा करना, संपत्ति की हानि को कम करना तथा समाज को जल्द से जल्द सामान्य स्थिति में लाना। आपदा प्रबंधन के चार चरण माने जाते हैं – प्रतिकार (Mitigation), तैयारी (Preparedness), प्रतिक्रिया (Response) और पुनर्वास (Recovery)। भारत में आपदा प्रबंधन का कानूनी आधार आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 है। इस अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), राज्य आपदा प्राधिकरण (SDMA) तथा जिला आपदा प्राधिकरण (DDMA) गठित किए गए हैं। आपदा प्रबंधन का महत्व इस तथ्य से और बढ़ जाता है कि भारत हर वर्ष बाढ़, भूकंप, चक्रवात और महामारी जैसी आपदाओं का सामना करता है।


3. नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968 नागरिकों की सुरक्षा और रक्षा हेतु बनाए गए सबसे महत्वपूर्ण कानूनों में से एक है। इसके अंतर्गत नागरिक सुरक्षा की परिभाषा, उद्देश्यों और कार्यप्रणाली निर्धारित की गई है। अधिनियम में नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों की नियुक्ति और उनके प्रशिक्षण का प्रावधान है ताकि किसी आपातकालीन स्थिति जैसे युद्ध, बाहरी आक्रमण, आतंकवादी हमला, औद्योगिक दुर्घटना या प्राकृतिक आपदा में नागरिकों को सुरक्षित किया जा सके। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों को नागरिक सुरक्षा योजनाएँ बनाने और लागू करने का अधिकार दिया गया है। अधिनियम में नागरिक सुरक्षा बलों को विशेष शक्तियाँ प्रदान की गई हैं ताकि वे आपातकाल में राहत और बचाव कार्य प्रभावी ढंग से कर सकें। साथ ही, इस अधिनियम में दंडात्मक प्रावधान भी हैं जिससे नागरिक सुरक्षा कार्यों में बाधा डालने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।


4. आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की विशेषताएँ बताइए।

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 भारत में आपदा प्रबंधन की सबसे व्यापक व्यवस्था है। इस अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापना की गई, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। राज्य स्तर पर SDMA तथा जिला स्तर पर DDMA का गठन किया गया। अधिनियम में आपदा प्रबंधन नीतियाँ और योजनाएँ बनाने का प्रावधान है। इसमें राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की स्थापना की गई, जो आपदा के समय राहत और बचाव कार्य करता है। अधिनियम के अंतर्गत आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राहत, पुनर्वास, पुनर्निर्माण और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार सुनिश्चित किया गया। कोविड-19 महामारी के दौरान इस अधिनियम का उपयोग लॉकडाउन लागू करने, क्वारंटाइन व्यवस्था और आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं के संचालन में किया गया। इस प्रकार, यह अधिनियम भारत में आपदा प्रबंधन का आधार स्तंभ है।


5. आपदा प्रबंधन के चार मुख्य चरणों को समझाइए।

आपदा प्रबंधन चार मुख्य चरणों में विभाजित है:

  1. प्रतिकार (Mitigation): इसमें आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए दीर्घकालिक नीतियाँ और संरचनात्मक उपाय किए जाते हैं। जैसे – बाढ़ नियंत्रण बाँध।
  2. तैयारी (Preparedness): इसमें आपदा आने से पहले की जाने वाली योजनाएँ, अभ्यास और प्रशिक्षण शामिल होते हैं।
  3. प्रतिक्रिया (Response): आपदा घटित होने पर बचाव, राहत और आपातकालीन सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
  4. पुनर्वास (Recovery): आपदा के बाद प्रभावित क्षेत्रों का पुनर्निर्माण और नागरिकों को सामान्य जीवन की ओर लौटाना।
    ये चारों चरण एक चक्र के रूप में कार्य करते हैं और आपदा प्रबंधन प्रणाली को प्रभावी बनाते हैं।

6. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका स्पष्ट कीजिए।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापना आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत की गई। इसके अध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री होते हैं। NDMA का मुख्य कार्य आपदा प्रबंधन से संबंधित नीतियाँ और दिशानिर्देश तैयार करना है। यह विभिन्न मंत्रालयों, राज्यों और जिलों के साथ समन्वय स्थापित करता है। NDMA आपदा पूर्वानुमान, जोखिम आकलन, प्रशिक्षण, जन-जागरूकता और राहत कार्यों के लिए योजनाएँ बनाता है। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) कार्य करता है, जो प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों प्रकार की आपदाओं में राहत और बचाव का कार्य करता है। NDMA ने भूकंप, बाढ़, चक्रवात, रासायनिक दुर्घटनाएँ, जैविक आपदाएँ और महामारी से निपटने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं। कोविड-19 महामारी के समय NDMA की भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण रही।


7. भारत में आपदा प्रबंधन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।

भारत ने अतीत में कई विनाशकारी आपदाओं का सामना किया है। 1999 का ओडिशा सुपर साइक्लोन, 2001 का गुजरात भूकंप, 2004 की सुनामी और 2013 की उत्तराखंड बाढ़ ने लाखों लोगों का जीवन प्रभावित किया। इन आपदाओं से यह स्पष्ट हुआ कि भारत में आपदा प्रबंधन के लिए केवल राहत और बचाव कार्य पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि एक मजबूत विधिक और संस्थागत ढाँचे की आवश्यकता है। इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 बनाया गया। इसके पूर्व भी नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 जैसे कानून मौजूद थे, लेकिन व्यापक ढाँचे का अभाव था। आज भारत आपदा प्रबंधन में आधुनिक तकनीक जैसे सैटेलाइट पूर्वानुमान, जीआईएस मैपिंग और ड्रोन का उपयोग करता है।


8. नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन में अंतर बताइए।

नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन दोनों का उद्देश्य नागरिकों की रक्षा करना है, लेकिन इनमें कुछ मूलभूत अंतर हैं।

  • नागरिक सुरक्षा मुख्यतः युद्ध, बाहरी आक्रमण या आतंकवादी हमले जैसी परिस्थितियों में नागरिकों की रक्षा करती है।
  • आपदा प्रबंधन प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों प्रकार की आपदाओं से निपटने पर केंद्रित है।
  • नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968 इसका आधार है, जबकि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 आपदा प्रबंधन का कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • नागरिक सुरक्षा में स्वयंसेवकों और रक्षा तंत्र की भूमिका अधिक होती है, जबकि आपदा प्रबंधन में NDMA, NDRF, राज्य और जिला स्तर की संस्थाएँ कार्य करती हैं।
    दोनों व्यवस्थाएँ परस्पर पूरक हैं और मिलकर नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं।

9. आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

भारत में आपदा प्रबंधन के सामने कई चुनौतियाँ हैं। सबसे पहले, योजनाओं का जमीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पाता। ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में संसाधनों की कमी रहती है। स्थानीय समुदायों में जागरूकता और प्रशिक्षण का अभाव है। राजनीतिक और प्रशासनिक समन्वय की कमी के कारण आपदा प्रबंधन योजनाएँ कमजोर हो जाती हैं। तकनीकी साधन जैसे आधुनिक चेतावनी प्रणाली, जीआईएस, ड्रोन आदि अभी पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा, आपदा राहत फंड का सही और पारदर्शी उपयोग भी एक बड़ी चुनौती है। जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता लगातार बढ़ रही है, जिससे प्रबंधन और भी कठिन हो गया है।


10. आपदा प्रबंधन को सशक्त बनाने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए?

भारत में आपदा प्रबंधन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कई कदम उठाए जाने चाहिए। सबसे पहले, स्थानीय स्तर पर पंचायत और नगर निकायों को आपदा प्रबंधन में सक्रिय भूमिका दी जानी चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए। आधुनिक तकनीक जैसे सैटेलाइट पूर्वानुमान, ड्रोन सर्विलांस और जीआईएस आधारित आपदा मैपिंग का व्यापक उपयोग होना चाहिए। सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल द्वारा संसाधन जुटाए जा सकते हैं। आपदा बीमा और मुआवजा व्यवस्था को सरल और पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। स्वयंसेवी संस्थाओं और NGOs को भी आपदा प्रबंधन में शामिल किया जाना चाहिए। यदि सरकार, प्रशासन और नागरिक समाज मिलकर कार्य करें तो आपदा प्रबंधन अधिक सशक्त और प्रभावी हो सकता है।