उत्तर प्रदेश राज्य आन्दोलन 2006 : ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और सामाजिक-राजनीतिक विमर्श
प्रस्तावना
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है, जिसकी सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ हमेशा राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण रही हैं। वर्ष 2006 का समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में अत्यंत संवेदनशील माना जाता है। इस दौरान राज्य में विकास, प्रशासनिक दक्षता, जातीय समीकरण, कानून-व्यवस्था और क्षेत्रीय असमानताओं को लेकर अनेक बहसें सामने आईं। विशेषकर बुंदेलखंड, पूर्वांचल और हरित प्रदेश (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) जैसे अलग-अलग क्षेत्रों में ‘छोटे राज्य’ बनाने की मांग प्रबल हुई। 2006 का यह दौर केवल राजनीतिक उतार-चढ़ाव का नहीं था, बल्कि यह राज्य के सामाजिक ताने-बाने, आर्थिक परिस्थितियों और भविष्य की दिशा तय करने का भी महत्वपूर्ण समय था।
उत्तर प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य (2006)
2006 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी, जिसके मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे। यह वह दौर था जब राज्य में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर थी। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस – चारों ही बड़े दल सत्ता की राजनीति में सक्रिय थे।
- सपा सरकार पर भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था की कमजोरी के आरोप लगते रहे।
- मायावती की बहुजन समाज पार्टी दलित-पिछड़ा गठजोड़ को मज़बूत कर रही थी।
- भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश को हिंदुत्व की राजनीति का केंद्र बनाए रखा।
- कांग्रेस राज्य में पुनरुत्थान की कोशिश कर रही थी।
क्षेत्रीय असमानताओं का प्रश्न
2006 में उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में विकास को लेकर गहरी असमानताएँ दिख रही थीं।
- पूर्वांचल: गरीबी, बेरोजगारी और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली यहाँ की प्रमुख समस्या थी।
- बुंदेलखंड: सूखा, किसान आत्महत्या और जल संकट यहाँ के लोगों की तकलीफें थीं।
- हरित प्रदेश (पश्चिमी उत्तर प्रदेश): औद्योगिक और कृषि संसाधनों से सम्पन्न होने के बावजूद राजनीतिक रूप से उपेक्षित महसूस करता रहा।
इन्हीं असमानताओं ने छोटे राज्यों की मांग को जन्म दिया।
छोटे राज्यों की मांग और आंदोलन
2006 में उत्तर प्रदेश में तीन प्रमुख क्षेत्रीय आंदोलनों पर चर्चा हुई—
- पूर्वांचल राज्य : यहाँ के लोगों का मानना था कि सरकार उनकी समस्याओं को नजरअंदाज करती है।
- बुंदेलखंड राज्य : जल संकट और कृषि संकट को लेकर यहाँ अलग राज्य की मांग सबसे प्रबल थी।
- हरित प्रदेश : पश्चिमी उत्तर प्रदेश, खासकर मेरठ, सहारनपुर और आसपास के क्षेत्रों में अलग राज्य की आवाज़ उठी।
इन आंदोलनों ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया और यह प्रश्न उठा कि क्या इतने बड़े राज्य का प्रशासनिक संचालन प्रभावी ढंग से संभव है।
सामाजिक-आर्थिक मुद्दे
2006 में उत्तर प्रदेश जिन प्रमुख सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा था, वे थीं—
- शिक्षा : सरकारी शिक्षा प्रणाली बदहाल थी, निजीकरण तेजी से बढ़ रहा था।
- कृषि संकट : गन्ना किसानों का बकाया, खाद की कमी और सिंचाई की समस्याएँ।
- औद्योगिक पिछड़ापन : पश्चिमी यूपी को छोड़कर बाकी प्रदेश में बड़े उद्योग नहीं थे।
- स्वास्थ्य सेवाएँ : ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं का भारी अभाव था।
- जातीय राजनीति : दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज के बीच प्रतिनिधित्व और अधिकारों को लेकर लगातार खींचतान थी।
कानून-व्यवस्था और प्रशासन
मुलायम सिंह सरकार पर कानून-व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल उठे। अपराध, विशेषकर महिला उत्पीड़न और अपहरण की घटनाएँ चर्चा में रहीं। विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार अपराधियों को संरक्षण देती है। यही कारण था कि राज्य की छवि ‘गुंडाराज’ के रूप में प्रचारित की गई।
मीडिया और जनमत
2006 में मीडिया ने उत्तर प्रदेश की राजनीति और सामाजिक समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुखता दी। समाचार पत्रों और चैनलों में विकास की कमी, अपराध और क्षेत्रीय असमानताओं पर रिपोर्टें लगातार प्रकाशित होती रहीं। मीडिया ने छोटे राज्यों की मांग को भी बल दिया।
राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव
उत्तर प्रदेश की राजनीति हमेशा केंद्र की राजनीति पर गहरा असर डालती रही है। 2006 का दौर भी अपवाद नहीं था।
- यूपीए सरकार (कांग्रेस नेतृत्व) केंद्र में थी और उसका ध्यान उत्तर प्रदेश पर बढ़ते राजनीतिक दबाव को कम करने पर था।
- एनडीए (भाजपा नेतृत्व) भी उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें मजबूत करने की कोशिश में थी।
- समाजवादी पार्टी ने अपने गठबंधन और विरोध दोनों ही स्तरों पर केंद्र की राजनीति को प्रभावित किया।
परिणाम और भविष्य की दिशा
2006 में उठी क्षेत्रीय असमानताओं और अलग राज्य की मांगों ने आगे चलकर बड़े राजनीतिक विमर्श को जन्म दिया। 2007 में जब मायावती की सरकार आई तो उसने प्रशासनिक पुनर्गठन और दलित-पिछड़ा समीकरण को नए ढंग से प्रस्तुत किया। हालांकि, अलग राज्य की मांगें आगे भी बनी रहीं और 2010 के बाद ये आंदोलन और तेज हुए।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश राज्य का 2006 का परिदृश्य केवल राजनीतिक बदलाव का वर्ष नहीं था, बल्कि यह राज्य की सामाजिक-आर्थिक असमानताओं, क्षेत्रीय असंतुलन और प्रशासनिक चुनौतियों को उजागर करने वाला कालखंड था। यह वह समय था जब जनता ने सरकार से केवल सत्ता परिवर्तन नहीं बल्कि ठोस विकास और न्याय की अपेक्षा की। इस दौर ने भविष्य की राजनीति और राज्य के पुनर्गठन की बहस को गहरा किया।