सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित संपत्ति की नीलामी के बाद कर्जदार के साथ समझौता करने पर PNB को लगाई फटकार
प्रस्तावना
भारत में बैंकिंग व्यवस्था और वसूली प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए कई कानून लागू हैं, जिनमें SARFAESI Act (सिक्योरिटाइज़ेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एन्फोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट, 2002) प्रमुख है। इस कानून के तहत बैंकों को अधिकार दिया गया है कि वे डिफॉल्टर ग्राहकों की संपत्ति की नीलामी कर कर्ज की वसूली करें। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब नेशनल बैंक (PNB) को फटकार लगाई क्योंकि बैंक ने पहले संपत्ति की नीलामी की, फिर बाद में कर्जदार के साथ समझौता कर लिया। कोर्ट ने इसे बैंकिंग प्रक्रिया के मूल सिद्धांतों और नैतिकता के खिलाफ बताया। यह मामला न केवल बैंकिंग तंत्र के लिए चेतावनी है, बल्कि पूरे वित्तीय अनुशासन पर विचार करने का अवसर भी प्रदान करता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला उस समय सामने आया जब PNB ने SARFAESI Act के तहत कर्जदार के खिलाफ वसूली की प्रक्रिया शुरू की। कर्जदार ने इसे चुनौती देते हुए ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT), देहरादून में आवेदन दायर किया। इसी दौरान बैंक ने संपत्ति की नीलामी कर दी और नीलामी में एक खरीदार ने ₹42 लाख की राशि RTGS के माध्यम से जमा कर दी। बैंक का दावा था कि उसे इस जमा राशि की जानकारी नहीं थी, और जानकारी मिलने के बाद उसने रकम वापस कर दी।
इसके बावजूद, बाद में DRT के समक्ष राष्ट्रीय लोक अदालत में कर्जदार और बैंक के बीच समझौता हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नीलामी के बाद समझौता करना नियमों का उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी कहा कि नीलामी प्रक्रिया में खरीदार की भूमिका अनिवार्य है और उसे शामिल किए बिना समझौता करना “मिलीभगत” जैसा प्रतीत होता है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने इस मामले में कठोर टिप्पणियाँ कीं। कोर्ट ने कहा:
“अगर आप समझौता करना ही चाहते हैं तो क्या आपको नीलामी क्रेता को लोक अदालत की कार्यवाही में पक्ष नहीं बनाना चाहिए? यह मिलीभगत है।”
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि बैंक की भूमिका निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए। नीलामी प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसी संपत्ति पर समझौता करना, अन्य पक्षों के अधिकारों का हनन है।
नीलामी क्रेता का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि नीलामी क्रेता को अंतिम बिक्री प्रमाणपत्र जारी किया जाए। यह इस बात का संकेत है कि नीलामी में शामिल पक्ष का हित संरक्षित होना चाहिए। बैंक द्वारा समझौता कर देने के बावजूद नीलामी में हिस्सा लेने वाले व्यक्ति का अधिकार समाप्त नहीं हो सकता।
SARFAESI Act का उद्देश्य
SARFAESI Act, 2002 का उद्देश्य बैंकों और वित्तीय संस्थानों को समय पर ऋण वसूली की शक्ति देना है ताकि डिफॉल्टर कर्जदारों से संपत्ति बेचकर कर्ज वसूला जा सके। इसके मुख्य उद्देश्य हैं:
- कर्ज की शीघ्र वसूली।
- बिना अदालत की लंबी प्रक्रिया के संपत्ति पर कब्जा और नीलामी।
- वित्तीय अनुशासन बनाए रखना।
- बैंकों के हितों की रक्षा करना।
लेकिन इस मामले में बैंक ने प्रक्रिया का पालन नहीं किया, जिससे नीलामी की विश्वसनीयता पर सवाल उठे।
लोक अदालत में समझौता – क्या उचित है?
लोक अदालत का उद्देश्य विवादों का निपटारा संवाद और सहमति के आधार पर करना है। परंतु जब मामला पहले ही कानूनी प्रक्रिया से गुजर चुका हो और नीलामी पूरी हो चुकी हो, तब उसमें नए सिरे से समझौता करना अन्य पक्षों के अधिकारों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने यही बिंदु उजागर किया कि नीलामी के बाद समझौता पारदर्शिता के सिद्धांतों के खिलाफ है।
नैतिक और कानूनी दृष्टि से प्रभाव
- नीलामी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल
नीलामी में शामिल खरीदारों का विश्वास बैंकिंग प्रणाली में सबसे बड़ा स्तंभ होता है। अगर बैंक नीलामी के बाद समझौता कर ले तो भविष्य में कोई खरीदार भाग नहीं लेना चाहेगा। - मिलीभगत और भ्रष्टाचार का खतरा
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नीलामी के बाद समझौता करना ‘मिलीभगत’ जैसा है, जिससे भ्रष्टाचार और पक्षपात को बढ़ावा मिल सकता है। - संपत्ति के अधिकारों का उल्लंघन
नीलामी में हिस्सा लेने वाले क्रेता के अधिकारों को नज़रअंदाज़ करना अन्यायपूर्ण है और बैंकिंग व्यवस्था की न्यायिकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
बैंक की जिम्मेदारी और नीति
सुप्रीम कोर्ट ने PNB से कहा कि वह जल्द से जल्द नीतिगत फैसला ले ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। यह आवश्यक है कि:
- नीलामी पूरी हो जाने के बाद किसी भी समझौते से पहले सभी पक्षों को शामिल किया जाए।
- नीलामी प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष हो।
- बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों को SARFAESI Act के तहत प्रक्रियाओं का प्रशिक्षण दिया जाए।
- ऐसे मामलों की समीक्षा कर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
व्यापक प्रभाव
यह निर्णय सिर्फ PNB तक सीमित नहीं है। यह पूरे बैंकिंग क्षेत्र के लिए एक मिसाल है कि:
- संपत्ति की नीलामी के बाद प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।
- सभी पक्षों के अधिकारों की रक्षा करनी होगी।
- बैंक की भूमिका निष्पक्ष, पारदर्शी और नियमों के अनुरूप होनी चाहिए।
- लोक अदालत और न्यायिक प्रक्रियाओं का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बैंकिंग प्रणाली के लिए चेतावनी है कि प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करना अनिवार्य है। नीलामी के बाद समझौता करना, भले ही किसी एक पक्ष को लाभ पहुँचाए, परंतु यह अन्य पक्षों के अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि नीलामी क्रेता का अधिकार सर्वोपरि है और बैंक को जल्द से जल्द नीति बनाकर ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकनी होगी। SARFAESI Act का उद्देश्य तभी सफल होगा जब बैंक नियमों का पालन करें, न कि व्यक्तिगत लाभ या मिलीभगत से प्रक्रिया को प्रभावित करें।
यह निर्णय बैंकिंग क्षेत्र में अनुशासन, पारदर्शिता और न्याय का नया मानक स्थापित करेगा।
1. सुप्रीम कोर्ट ने PNB को क्यों फटकारा?
सुप्रीम कोर्ट ने PNB को इसलिए फटकारा क्योंकि बैंक ने पहले कर्जदार की संपत्ति की नीलामी कर दी और बाद में उसी कर्जदार के साथ समझौता कर लिया। कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया अन्य पक्षों के अधिकारों का उल्लंघन है और पारदर्शिता के सिद्धांतों के खिलाफ है।
2. नीलामी क्रेता के अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ा?
नीलामी क्रेता ने ₹42 लाख जमा किए थे, लेकिन बैंक ने समझौते के चलते उसकी हिस्सेदारी की अनदेखी कर दी। कोर्ट ने कहा कि नीलामी में शामिल पक्ष का अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए और उसे अंतिम बिक्री प्रमाणपत्र दिया जाए।
3. लोक अदालत में समझौते को लेकर कोर्ट की क्या टिप्पणी थी?
कोर्ट ने कहा कि यदि बैंक समझौता करना चाहता है तो नीलामी में शामिल क्रेता को भी पक्ष बनाना चाहिए। अन्यथा यह मिलीभगत जैसा प्रतीत होता है और प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
4. SARFAESI Act का उद्देश्य क्या है?
SARFAESI Act का उद्देश्य बैंकों को समय पर कर्ज की वसूली का अधिकार देना है ताकि वे बिना लंबी अदालत प्रक्रिया के संपत्ति बेचकर कर्ज वसूल सकें और वित्तीय अनुशासन बनाए रखें।
5. कोर्ट ने बैंक से क्या निर्देश दिया?
सुप्रीम कोर्ट ने PNB को निर्देश दिया कि नीलामी क्रेता को अंतिम बिक्री प्रमाणपत्र जारी करे और बैंक जल्द से जल्द नीतिगत निर्णय ले ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं।
6. यह मामला बैंकिंग व्यवस्था के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
यह मामला बैंकिंग व्यवस्था में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। नीलामी प्रक्रिया में सभी पक्षों के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए ताकि प्रणाली पर भरोसा बना रहे।
7. मिलीभगत से क्या खतरा होता है?
मिलीभगत से भ्रष्टाचार बढ़ता है और प्रक्रिया की निष्पक्षता खत्म हो जाती है। इससे खरीदारों का विश्वास कम होता है और बैंकिंग प्रणाली की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
8. लोक अदालत का उद्देश्य क्या है?
लोक अदालत का उद्देश्य विवादों का समाधान आपसी सहमति से करना है। लेकिन जब नीलामी पूरी हो चुकी हो, तब नए समझौते अन्य पक्षों के अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं।
9. बैंक की नीति में क्या बदलाव जरूरी हैं?
बैंक को स्पष्ट नीति बनानी चाहिए कि नीलामी पूरी होने के बाद समझौता नहीं किया जाएगा। सभी पक्षों को शामिल कर पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जाएगी ताकि विवाद और भ्रम न पैदा हो।
10. कोर्ट का यह निर्णय भविष्य के लिए क्या संदेश देता है?
यह निर्णय बताता है कि बैंकिंग प्रणाली में नियमों का पालन अनिवार्य है। प्रक्रिया में पारदर्शिता, न्याय और निष्पक्षता बनाए रखना हर संस्था की जिम्मेदारी है ताकि वित्तीय अनुशासन कायम रहे।