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Stages in a Criminal Case under BNSS 2023 – भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNSS) के तहत आपराधिक मुकदमे के चरण A Detailed Explanation 

Stages in a Criminal Case under BNSS 2023 – भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNSS) के तहत आपराधिक मुकदमे के चरण A Detailed Explanation 

भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अपराध करने वाले व्यक्तियों को न्यायालय द्वारा उचित प्रक्रिया के तहत दंडित किया जाए तथा निर्दोषों को सुरक्षा प्रदान की जाए। भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNSS) ने आपराधिक प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान दिए हैं। नीचे एक आपराधिक मामले के विभिन्न चरणों का विस्तार से वर्णन किया गया है, जिसमें प्रत्येक चरण से संबंधित BNSS की धाराओं का उल्लेख भी किया गया है।


1. प्राथमिकी (Filing of FIR) – धारा 173 BNSS

किसी भी आपराधिक मामले की शुरुआत सामान्यतः प्राथमिकी (FIR – First Information Report) से होती है। जब किसी व्यक्ति को कोई अपराध होते हुए दिखाई देता है या वह स्वयं पीड़ित होता है, तो वह पुलिस थाने में जाकर प्राथमिकी दर्ज कर सकता है। FIR अपराध का पहला आधिकारिक दस्तावेज होता है, जो पुलिस को जांच शुरू करने का अधिकार देता है।

BNSS की धारा 173 पुलिस को अपराध की जाँच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अधिकार देती है। पुलिस द्वारा FIR दर्ज करने के बाद अपराध का विवरण, समय, स्थान, आरोपी का विवरण, पीड़ित का बयान आदि शामिल किए जाते हैं। FIR में झूठा विवरण देना भी दंडनीय अपराध है।


2. जाँच (Investigation) – धारा 173 से 196 BNSS

FIR दर्ज होने के बाद पुलिस द्वारा अपराध की जाँच शुरू की जाती है। जाँच का उद्देश्य अपराध की वास्तविकता पता करना, सबूत इकट्ठा करना, गवाहों के बयान लेना, घटनास्थल का निरीक्षण करना, फोरेंसिक जांच कराना आदि होता है। BNSS की धारा 173 से 196 पुलिस की शक्तियों और प्रक्रिया को परिभाषित करती हैं।

जाँच के दौरान पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है, आवश्यक दस्तावेज और भौतिक प्रमाण जुटा सकती है। साथ ही, आरोपी को न्यायालय में पेश कर न्यायिक हिरासत या जमानत की प्रक्रिया की जाती है। जाँच निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए ताकि आरोपी और पीड़ित दोनों को न्याय मिल सके।


3. आरोप पत्र (Charge Sheet) – धारा 193 BNSS

जाँच पूरी होने के बाद पुलिस आरोप पत्र (Charge Sheet) तैयार करती है। इसमें यह बताया जाता है कि जाँच में कौन-कौन से साक्ष्य प्राप्त हुए, किस आधार पर आरोपी पर अपराध का आरोप लगाया जा रहा है, कौन-कौन गवाह हैं आदि।

BNSS की धारा 193 के तहत आरोप पत्र अदालत में प्रस्तुत किया जाता है। आरोप पत्र न्यायालय के समक्ष मामला चलाने का आधार बनता है। यदि जाँच में पर्याप्त सबूत नहीं मिलते हैं, तो पुलिस अदालत में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकती है और आरोपी को बरी करने की सिफारिश कर सकती है।


4. डिस्चार्ज याचिका (Discharge Petition) – धारा 250 BNSS

आरोप पत्र के बाद आरोपी को अदालत द्वारा आरोप तय करने से पहले यह अवसर दिया जाता है कि वह डिस्चार्ज याचिका (Discharge Petition) दायर कर सके। इसका उद्देश्य यह देखना होता है कि क्या आरोप लगाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं या नहीं। यदि अदालत मानती है कि आरोप अस्थायी हैं और मामला आगे बढ़ाने का कोई आधार नहीं है, तो आरोपी को आरोप से मुक्त कर दिया जाता है।

धारा 250 BNSS के तहत यह प्रक्रिया आरोप तय होने से पहले की जाती है और न्यायालय केवल प्रथम दृष्टया जांच करता है।


5. आरोप तय होना और मामला चलना (Framing of Charges)

डिस्चार्ज याचिका पर निर्णय लेने के बाद अदालत आरोपी पर आरोप तय करती है। यदि अदालत को लगता है कि आरोप prima facie साबित हो सकते हैं, तो मामला सुनवाई के लिए आगे बढ़ता है। इसके बाद आरोपी अपना पक्ष रख सकता है और आरोप स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।


6. साक्ष्य प्रस्तुति (Evidence) – अध्याय 25, धारा 307 से 336 BNSS

जब आरोप तय हो जाते हैं, तो अदालत में साक्ष्य प्रस्तुत किए जाते हैं। इसमें सरकारी वकील द्वारा गवाहों के बयान, दस्तावेज, मेडिकल रिपोर्ट, फोरेंसिक रिपोर्ट आदि पेश किए जाते हैं। आरोपी पक्ष भी अपने गवाह और प्रमाण प्रस्तुत कर सकता है।

BNSS की धारा 307 से 336 साक्ष्य की प्रक्रिया, गवाहों की परीक्षा, प्रतिपरीक्षा, दस्तावेजों की स्वीकृति आदि का विवरण देती है। गवाहों की विश्वसनीयता की जांच की जाती है। यदि कोई गवाह झूठ बोलता है तो उसे दंडित किया जा सकता है।

साक्ष्य चरण में आरोपी को जिरह का अधिकार प्राप्त होता है। यह चरण न्यायिक प्रक्रिया का मुख्य भाग है जहाँ अपराध साबित या खंडित होता है।


7. बहस (Arguments) – धारा 367 से 378 BNSS

साक्ष्य समाप्त होने के बाद अदालत में दोनों पक्षों के वकील बहस (Arguments) करते हैं। अभियोजन पक्ष साक्ष्यों के आधार पर अपराध सिद्ध करने का प्रयास करता है जबकि बचाव पक्ष सबूतों की कमी, गवाहों की असंगति, प्रक्रिया में त्रुटि आदि के आधार पर आरोपी को बरी कराने का प्रयास करता है।

BNSS की धारा 367 से 378 बहस के नियम, अदालत में पक्ष रखने की प्रक्रिया, गवाहों के समर्थन में तर्क आदि का उल्लेख करती है। बहस के बाद अदालत अपने निर्णय हेतु समय ले सकती है।


8. निर्णय (Judgment) – धारा 392 से 406 BNSS

बहस समाप्त होने पर अदालत निर्णय (Judgment) सुनाती है। इसमें यह तय किया जाता है कि आरोपी दोषी है या निर्दोष। यदि अदालत को साक्ष्यों से अपराध सिद्ध होता है तो दोषी करार दिया जाता है अन्यथा आरोपी को बरी कर दिया जाता है।

BNSS की धारा 392 से 406 निर्णय देने की प्रक्रिया, दोष सिद्ध होने पर दंड की सिफारिश, और अदालत द्वारा आदेश पारित करने के नियम बताती है। अदालत सजा सुनाते समय अपराध की गंभीरता, आरोपी का व्यवहार, पूर्व रिकॉर्ड, और पीड़ित की स्थिति पर विचार करती है।


9. बरी होना (Acquittal) – धारा 392 से 406 BNSS

यदि साक्ष्य अपर्याप्त हैं या अदालत को लगता है कि अपराध सिद्ध नहीं हुआ है तो आरोपी को बरी (Acquittal) कर दिया जाता है। इसका अर्थ है कि आरोपी को अदालत द्वारा निर्दोष मानते हुए सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया।

बरी होने के बाद आरोपी पर कोई आपराधिक दायित्व नहीं रहता और उसे आगे की कानूनी कार्रवाई से राहत मिलती है।


10. अपील (Appeal) – धारा 413 से 435 BNSS

निर्णय के बाद यदि कोई पक्ष असंतुष्ट है तो वह अपील (Appeal) दायर कर सकता है। अभियोजन पक्ष या आरोपी दोनों ही उच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैं। अपील में यह देखा जाता है कि निचली अदालत ने कानून और प्रक्रिया का सही पालन किया या नहीं।

BNSS की धारा 413 से 435 अपील की प्रक्रिया, समय सीमा, आवश्यक दस्तावेज, उच्च अदालत की शक्तियां आदि का उल्लेख करती हैं। अपील में निर्णय को चुनौती दी जा सकती है या नए साक्ष्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं।


निष्कर्ष

भारतीय न्याय प्रणाली में आपराधिक मामले की प्रक्रिया कई चरणों में संपन्न होती है। BNSS 2023 ने इसे और स्पष्ट, त्वरित और पारदर्शी बनाने के लिए नियमों का निर्धारण किया है। FIR से लेकर अंतिम अपील तक प्रत्येक चरण में आरोपी और पीड़ित दोनों के अधिकारों की रक्षा का प्रयास किया गया है। अदालत द्वारा निष्पक्ष सुनवाई, साक्ष्य की जांच, और न्यायसंगत निर्णय के माध्यम से समाज में कानून का शासन सुनिश्चित होता है। साथ ही, अपील की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि यदि किसी स्तर पर त्रुटि हुई हो तो उसका सुधार किया जा सके।

इस तरह BNSS के प्रावधानों के तहत आपराधिक मामलों की प्रक्रिया न केवल न्याय प्रदान करती है बल्कि सामाजिक विश्वास और विधिक व्यवस्था को मजबूत करने का भी कार्य करती है।


प्रश्न 1. FIR क्या है और इसकी शुरुआत कब होती है?

उत्तर: FIR (First Information Report) एक आधिकारिक रिपोर्ट है जो पुलिस थाने में किसी अपराध की जानकारी मिलने पर दर्ज की जाती है। यह किसी पीड़ित या गवाह द्वारा अपराध की सूचना पुलिस को देने पर दर्ज होती है। BNSS की धारा 173 के तहत पुलिस इसकी जाँच शुरू करती है।


प्रश्न 2. जाँच (Investigation) का उद्देश्य क्या होता है?

उत्तर: जाँच का उद्देश्य अपराध की पुष्टि करना, सबूत इकट्ठा करना, गवाहों के बयान लेना और आरोपी की भूमिका का पता लगाना होता है। धारा 173 से 196 BNSS में जाँच की प्रक्रिया का उल्लेख है।


प्रश्न 3. आरोप पत्र (Charge Sheet) क्या है?

उत्तर: जाँच पूरी होने के बाद पुलिस अदालत में आरोप पत्र प्रस्तुत करती है। इसमें अपराध के तथ्य, गवाहों के बयान, साक्ष्य और आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप शामिल होते हैं। BNSS की धारा 193 में इसका उल्लेख है।


प्रश्न 4. डिस्चार्ज याचिका (Discharge Petition) किस उद्देश्य से दी जाती है?

उत्तर: यह आरोपी को आरोप तय होने से पहले अपना पक्ष रखने का मौका देती है। यदि अदालत को लगता है कि आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है तो आरोपी को आरोप से मुक्त कर दिया जाता है। इसका उल्लेख धारा 250 BNSS में है।


प्रश्न 5. साक्ष्य चरण (Evidence Stage) में क्या होता है?

उत्तर: इस चरण में गवाहों के बयान, दस्तावेज, मेडिकल रिपोर्ट आदि प्रस्तुत किए जाते हैं। अभियोजन और बचाव पक्ष अपने-अपने साक्ष्य अदालत में रखते हैं। इसका उल्लेख BNSS की धारा 307 से 336 में है।


प्रश्न 6. बहस (Arguments) का महत्व क्या है?

उत्तर: साक्ष्य पेश करने के बाद अदालत में दोनों पक्ष अपने तर्क प्रस्तुत करते हैं। अभियोजन पक्ष अपराध साबित करने की कोशिश करता है जबकि आरोपी पक्ष आरोपों का खंडन करता है। धारा 367 से 378 BNSS में इसकी प्रक्रिया दी गई है।


प्रश्न 7. निर्णय (Judgment) क्या होता है?

उत्तर: बहस समाप्त होने के बाद अदालत तय करती है कि आरोपी दोषी है या निर्दोष। यह निर्णय साक्ष्य, गवाहों और तर्कों के आधार पर लिया जाता है। धारा 392 से 406 BNSS में इसके नियम बताए गए हैं।


प्रश्न 8. बरी (Acquittal) का क्या अर्थ है?

उत्तर: जब अदालत को पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिलते और आरोपी पर लगे आरोप सिद्ध नहीं होते तो उसे बरी कर दिया जाता है। इसका उल्लेख भी धारा 392 से 406 BNSS में है।


प्रश्न 9. अपील (Appeal) कब की जाती है?

उत्तर: यदि अभियोजन या आरोपी अदालत के निर्णय से असंतुष्ट हैं तो उच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकते हैं। इसमें निचली अदालत द्वारा कानून के उल्लंघन या त्रुटि की समीक्षा की जाती है। इसका उल्लेख धारा 413 से 435 BNSS में है।


प्रश्न 10. BNSS में आपराधिक प्रक्रिया का उद्देश्य क्या है?

उत्तर: BNSS का उद्देश्य अपराधियों को दंड देना और निर्दोषों की रक्षा करना है। इसमें पारदर्शिता, निष्पक्षता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक चरण को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।