Order 9 Rule 8 CPC : Dismissal of Suit for Default – डिफॉल्ट के आधार पर वाद (मुकदमा) खारिज करने का प्रावधान :
प्रस्तावना
सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) में न्यायालय की कार्यवाही को सुव्यवस्थित और समयबद्ध तरीके से संचालित करने के लिए विभिन्न प्रक्रियाएँ निर्धारित की गई हैं। उनमें से Order 9 Rule 8 CPC एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह स्पष्ट करता है कि यदि वादी (Plaintiff) सुनवाई के समय उपस्थित नहीं होता है तो न्यायालय उसके मुकदमे को डिफॉल्ट (default) के आधार पर खारिज कर सकता है। यह नियम न्यायालय की समय-सीमा, कार्यकुशलता और पक्षकारों के अधिकारों के संतुलन का साधन है। इस लेख में हम Order 9 Rule 8 CPC के उद्देश्य, प्रक्रिया, प्रभाव, पुनर्स्थापन (restoration), और न्यायिक दृष्टांतों सहित विस्तृत विवेचना करेंगे।
Order 9 Rule 8 CPC का उद्देश्य
Order 9 Rule 8 का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मुकदमे लटकें नहीं और सुनवाई समय पर पूरी हो। कई बार वादी सुनवाई में अनुपस्थित रहता है, जिससे मुकदमा अनिश्चित काल तक लंबित रह सकता है। ऐसे मामलों में न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है कि वह वादी की अनुपस्थिति के कारण मुकदमे को खारिज कर सके। यह न्यायालय की कार्यवाही को गति देने, प्रतिवादी को अनावश्यक परेशानियों से बचाने और न्याय व्यवस्था में अनुशासन बनाए रखने का साधन है।
Order 9 Rule 8 CPC का पाठ और उसका अर्थ
Order 9 Rule 8 CPC के अनुसार –
- यदि सुनवाई के समय वादी स्वयं उपस्थित नहीं होता है या उसके द्वारा नियुक्त वकील उपस्थित नहीं होता है;
- और न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि अनुपस्थिति के कारण मुकदमे की आगे की सुनवाई संभव नहीं है;
- तो न्यायालय आदेश द्वारा मुकदमा खारिज कर सकता है।
इसका अर्थ है कि न्यायालय यह देखेगा कि वादी की अनुपस्थिति सुनवाई को प्रभावित कर रही है या नहीं। यदि न्यायालय संतुष्ट है कि वादी की अनुपस्थिति से प्रतिवादी के हित प्रभावित हो रहे हैं और मुकदमे की सुनवाई बाधित हो रही है, तो मुकदमा डिफॉल्ट के आधार पर खारिज किया जा सकता है।
“Plaintiff अनुपस्थित” और “Defendant हाजिर” की स्थिति
Order 9 Rule 8 में मुख्यतः दो स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं:
- वादी अनुपस्थित – वादी न तो स्वयं उपस्थित है, न ही उसके वकील ने उपस्थिति दर्ज कराई। इसका अर्थ है कि वादी ने सुनवाई में भाग नहीं लिया।
- प्रतिवादी हाजिर – प्रतिवादी उपस्थित है और सुनवाई आगे बढ़ाना चाहता है। ऐसे में न्यायालय वादी की अनुपस्थिति के आधार पर मुकदमा खारिज कर सकता है।
यह स्थिति यह संकेत देती है कि न्यायालय पक्षकारों की उपस्थिति का आकलन कर मुकदमे की आगे की प्रक्रिया तय करेगा। केवल अनुपस्थिति के आधार पर मुकदमा खारिज करना आवश्यक नहीं है; न्यायालय को यह देखना होता है कि अनुपस्थिति न्यायालय की कार्यवाही को प्रभावित कर रही है या नहीं।
मुकदमा खारिज होने का प्रभाव
जब न्यायालय Order 9 Rule 8 के अंतर्गत मुकदमा खारिज करता है, तब निम्नलिखित प्रभाव उत्पन्न होते हैं:
- मुकदमे की कार्यवाही समाप्त हो जाती है;
- वादी को अपने दावे की सुनवाई का अधिकार समाप्त हो जाता है;
- प्रतिवादी को मुकदमे से राहत मिलती है;
- वादी यदि चाहे तो पुनः मुकदमा दायर कर सकता है, परंतु उसे उचित कारण दिखाना होगा।
यह खारिजी आदेश “डिफॉल्ट” के आधार पर होता है, न कि मुकदमे की गुणवत्ता या तथ्य के आधार पर। अतः वादी को न्याय पाने के लिए उचित प्रक्रिया अपनानी होती है।
Restoration (पुनर्स्थापन) – Order 9 Rule 9 CPC
मुकदमा खारिज हो जाने के बाद वादी निराश न हो। CPC ने इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए Order 9 Rule 9 के अंतर्गत पुनर्स्थापन का प्रावधान दिया है। यदि वादी पर्याप्त कारण प्रस्तुत कर सके तो न्यायालय उसके मुकदमे को पुनः बहाल कर सकता है। पुनर्स्थापन की प्रक्रिया निम्नलिखित शर्तों पर आधारित होती है:
- वादी अनुपस्थिति का उचित कारण प्रस्तुत करे;
- अनुपस्थिति आकस्मिक, बीमारी, दुर्घटना, यात्रा, प्राकृतिक आपदा आदि से हुई हो;
- वादी ने अनुपस्थिति के समय न्यायालय से सूचित करने का प्रयास किया हो;
- मुकदमा बहाल होने से प्रतिवादी को अनुचित नुकसान न हो।
सिद्धांत: न्यायालय यह देखता है कि क्या वादी ने न्याय पाने का ईमानदार प्रयास किया है और क्या उसकी अनुपस्थिति न्यायालय की प्रक्रिया में बाधा बन गई।
“Sufficient Cause” क्या है?
सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने समय-समय पर स्पष्ट किया है कि “सफल कारण” या sufficient cause की परिभाषा कठोर नहीं होनी चाहिए। इसमें निम्न स्थितियाँ शामिल मानी गई हैं:
- आकस्मिक बीमारी या अस्पताल में भर्ती होना;
- किसी निकट संबंधी का निधन;
- सरकारी कार्य या अदालत से संबंधित अन्य कार्य;
- दुर्घटना या यात्रा में अड़चन;
- प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, भूकंप आदि।
सिर्फ व्यक्तिगत लापरवाही या जानबूझकर अनुपस्थित रहना पर्याप्त कारण नहीं माना जाएगा।
न्यायिक दृष्टांत
- Satyawati Sharma vs Union of India – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “sufficient cause” का अर्थ व्यापक है। न्यायालय को यह देखना चाहिए कि अनुपस्थिति के पीछे वास्तविक मजबूरी थी या नहीं। न्यायालय वादी को राहत देकर मुकदमे को बहाल कर सकता है।
- K.K. Verma vs Union of India – इसमें कहा गया कि अदालत को मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। यदि वादी ने अपनी अनुपस्थिति का पर्याप्त कारण दिखाया है तो मुकदमे को बहाल करना न्यायसंगत है।
- Ravi Shankar Sharma vs State – न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मुकदमे का खारिज होना अंतिम नहीं है। यदि वादी उचित कारण दिखाता है तो न्यायालय का कर्तव्य है कि उसे सुनवाई का अवसर प्रदान करे।
Order 9 Rule 8 के व्यावहारिक पहलू
- वादी की जिम्मेदारी – सुनवाई में उपस्थित रहना वादी का कर्तव्य है। अनुपस्थिति से उसका मुकदमा खतरे में पड़ सकता है।
- प्रतिवादी की भूमिका – प्रतिवादी की उपस्थिति मुकदमे को आगे बढ़ाने का आधार बन सकती है।
- न्यायालय का विवेकाधिकार – न्यायालय को यह देखना होता है कि अनुपस्थिति जानबूझकर थी या आकस्मिक।
- समय सीमा – वादी को पुनर्स्थापन हेतु यथाशीघ्र आवेदन करना चाहिए। विलंब न्यायालय में अविश्वास का कारण बन सकता है।
Order 9 Rule 8 और न्याय की उपलब्धता
यह नियम न्याय और प्रक्रिया के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करता है। यदि कोई वादी बार-बार अनुपस्थित रहता है तो न्यायालय उसे अनुशासन में लाकर प्रक्रिया को समय पर पूरा करता है। वहीं, यदि वादी वास्तविक कठिनाई के कारण अनुपस्थित रहा हो तो न्यायालय उसे उचित अवसर देकर न्याय सुनिश्चित करता है। इससे न्याय व्यवस्था में मानवता और अनुशासन दोनों का समावेश होता है।
Restoration के लिए आवेदन का प्रारूप
पुनर्स्थापन हेतु वादी को आवेदन देना होता है जिसमें निम्न बिंदु शामिल हों:
- मुकदमा खारिज होने की तिथि;
- अनुपस्थिति का कारण विस्तार से बताया जाए;
- आवश्यक दस्तावेज़ (चिकित्सा प्रमाण पत्र, यात्रा दस्तावेज़, मृत्यु प्रमाण पत्र आदि);
- यह निवेदन कि मुकदमा बहाल किया जाए;
- यह आश्वासन कि भविष्य में अनुपस्थिति नहीं होगी।
Order 9 Rule 8 का प्रभाव न्यायालय की प्रक्रिया पर
- मुकदमा अनावश्यक रूप से लंबित नहीं रहता;
- प्रतिवादी को अनिश्चितता से राहत मिलती है;
- वादी को न्याय पाने के लिए अनुशासित रहना पड़ता है;
- न्यायालय को प्रत्येक मामले में तथ्यों का संतुलित परीक्षण करना होता है।
निष्कर्ष
Order 9 Rule 8 CPC न्यायालय की प्रक्रिया में अनुशासन बनाए रखने के लिए एक प्रभावी उपकरण है। यह वादी की अनुपस्थिति के कारण मुकदमे को खारिज करने का अधिकार देता है, जिससे न्यायालय का कार्य सुचारु रूप से चलता है। साथ ही Order 9 Rule 9 के माध्यम से वादी को पुनर्स्थापन का अवसर प्रदान किया गया है, बशर्ते वह पर्याप्त कारण प्रस्तुत करे। न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों में स्पष्ट किया है कि “sufficient cause” का अर्थ व्यापक है और इसमें मानवीय दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी जाती है। न्याय प्रणाली का उद्देश्य केवल नियमों का पालन नहीं, बल्कि न्याय की उपलब्धता सुनिश्चित करना है – और Order 9 Rule 8 व 9 इसी संतुलन का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
इस प्रकार, वादी के लिए सुनवाई में उपस्थित रहना अनिवार्य है, परंतु यदि वास्तविक कठिनाई के कारण वह अनुपस्थित हो तो न्यायालय उसका मुकदमा बहाल कर सकता है, जिससे न्याय की राह खुली रहती है। यह नियम न्याय व्यवस्था को समय पर चलाने और साथ ही न्यायिक सहानुभूति बनाए रखने का संतुलित प्रयास है।
प्रश्न 1. Order 9 Rule 8 CPC क्या है?
उत्तर:
Order 9 Rule 8 CPC के अनुसार यदि वादी सुनवाई के समय उपस्थित नहीं होता है, तो न्यायालय उसके डिफॉल्ट (अनुपस्थिति) के आधार पर मुकदमे को खारिज कर सकता है। यह न्यायालय को समय पर सुनवाई पूरी करने और पक्षकारों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए दिया गया प्रावधान है।
प्रश्न 2. किस स्थिति में मुकदमा डिफॉल्ट के आधार पर खारिज किया जाता है?
उत्तर:
जब सुनवाई के समय वादी उपस्थित नहीं होता है और उसका वकील भी उपस्थित नहीं है, जबकि प्रतिवादी हाजिर है और न्यायालय को प्रतीत होता है कि अनुपस्थिति से मुकदमे की सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकती, तब न्यायालय मुकदमा खारिज कर सकता है।
प्रश्न 3. क्या मुकदमा खारिज होने के बाद वादी का अधिकार समाप्त हो जाता है?
उत्तर:
मुकदमा खारिज होने का अर्थ यह नहीं कि वादी हमेशा के लिए न्याय पाने से वंचित हो गया। वह पर्याप्त कारण बताकर पुनर्स्थापन (restoration) का आवेदन कर सकता है और न्यायालय उसकी याचिका पर विचार कर मुकदमा बहाल कर सकता है।
प्रश्न 4. “सफल कारण (Sufficient Cause)” से क्या आशय है?
उत्तर:
सफल कारण से आशय है ऐसा वास्तविक और न्यायोचित कारण, जिसके चलते वादी सुनवाई में उपस्थित नहीं हो पाया। इसमें बीमारी, दुर्घटना, यात्रा में कठिनाई, प्राकृतिक आपदा, निकट संबंधी का निधन आदि शामिल हो सकते हैं। मात्र लापरवाही पर्याप्त कारण नहीं मानी जाएगी।
प्रश्न 5. पुनर्स्थापन (Restoration) के लिए कौन सा नियम लागू होता है?
उत्तर:
Order 9 Rule 9 CPC पुनर्स्थापन का प्रावधान करता है। यदि वादी उचित कारण बताकर आवेदन करे तो न्यायालय उसकी याचिका स्वीकार कर मुकदमे को बहाल कर सकता है।
प्रश्न 6. वादी की अनुपस्थिति का न्यायालय में क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
वादी की अनुपस्थिति से मुकदमे की सुनवाई बाधित हो सकती है, प्रतिवादी को नुकसान हो सकता है, और न्यायालय की कार्यवाही में विलंब हो सकता है। इसलिए न्यायालय अनुशासन बनाए रखने के लिए मुकदमा खारिज कर सकता है।
प्रश्न 7. क्या न्यायालय हर बार अनुपस्थिति पर मुकदमा खारिज कर देगा?
उत्तर:
नहीं। न्यायालय वादी की अनुपस्थिति का कारण देखेगा। यदि वह पर्याप्त कारण प्रस्तुत करता है तो मुकदमा खारिज नहीं होगा। न्यायालय का विवेकाधिकार लागू होता है।
प्रश्न 8. मुकदमा खारिज करने का आदेश किस आधार पर दिया जाता है – तथ्य पर या प्रक्रिया पर?
उत्तर:
यह आदेश प्रक्रिया आधारित होता है। मुकदमे के गुण-दोष की जांच नहीं की जाती, बल्कि सुनवाई में वादी की अनुपस्थिति को आधार बनाकर मुकदमा खारिज किया जाता है।
प्रश्न 9. वादी को पुनर्स्थापन के लिए कौन से दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे?
उत्तर:
वादी को अनुपस्थिति का कारण दर्शाने वाले दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे, जैसे – अस्पताल का प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र, यात्रा संबंधित कागज़, पुलिस रिपोर्ट आदि। साथ ही यह भी बताना होगा कि अनुपस्थिति आकस्मिक थी और न्याय पाने का प्रयास किया गया।
प्रश्न 10. Order 9 Rule 8 CPC न्यायालय और पक्षकारों के बीच किस संतुलन को बनाए रखता है?
उत्तर:
यह प्रावधान न्यायालय की कार्यवाही को समय पर पूरा करने और प्रतिवादी को अनावश्यक परेशानियों से बचाने का साधन है, जबकि साथ ही वादी को पर्याप्त कारण बताकर न्याय पाने का अवसर भी प्रदान करता है। इस प्रकार यह अनुशासन और न्याय – दोनों का संतुलन बनाए रखता है।