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निजता का अधिकार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता युग: Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India (2017) का प्रभाव

निजता का अधिकार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता युग: Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India (2017) का प्रभाव

भारत के संवैधानिक इतिहास में Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India (2017) का फैसला एक मील का पत्थर है। इस ऐतिहासिक निर्णय में नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एकमत से यह घोषित किया कि निजता का अधिकार (Right to Privacy) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत संरक्षित एक मौलिक अधिकार है। यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा को सुरक्षित करता है, बल्कि बदलते तकनीकी युग में, विशेषकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और रोबोटिक्स के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में, इसकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है।

आज जब AI आधारित तकनीकें, डेटा विश्लेषण, चेहरे की पहचान प्रणाली, और निगरानी तंत्र तेजी से विकसित हो रहे हैं, तब यह फैसला एक संवैधानिक सुरक्षा कवच प्रदान करता है। यह लेख लगभग 1400 शब्दों में इस फैसले की पृष्ठभूमि, महत्व, और AI तथा रोबोटिक्स से जुड़े निजता के सवालों पर इसके प्रभाव का विश्लेषण प्रस्तुत करता है।


1. मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

यह मामला 2012 में सेवानिवृत्त न्यायाधीश के.एस. पुट्टस्वामी द्वारा दायर की गई एक याचिका से उत्पन्न हुआ। उन्होंने आधार (Aadhaar) योजना की संवैधानिकता पर सवाल उठाया। आधार योजना में नागरिकों की बायोमेट्रिक जानकारी एकत्र की जा रही थी, और याचिकाकर्ता का तर्क था कि यह नागरिकों की निजता और स्वतंत्रता का उल्लंघन है।

शुरुआती दौर में सरकार का तर्क था कि भारतीय संविधान में निजता को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। इसके आधार पर पूर्व के दो निर्णयों—M.P. Sharma v. Satish Chandra (1954) और Kharak Singh v. State of UP (1962)—का हवाला दिया गया।

इसी संदर्भ में मामला सर्वोच्च न्यायालय की 9-न्यायाधीशों की पीठ के पास गया, जिसने 24 अगस्त 2017 को अपना ऐतिहासिक निर्णय सुनाया।


2. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (The Supreme Court Judgment)

पीठ ने सर्वसम्मति से यह कहा कि—

  • निजता मानव गरिमा और स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा है।
  • यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के साथ ही अनुच्छेद 14 और 19 के तहत भी संरक्षित है।
  • डिजिटल युग में निजता का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है क्योंकि राज्य और निजी कंपनियां दोनों ही नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी एकत्र कर रही हैं।
  • कोई भी कानून या नीति तभी वैध मानी जाएगी जब वह तीन कसौटियों पर खरी उतरे:
    1. वैध उद्देश्य (Legitimate Aim)
    2. आनुपातिकता (Proportionality)
    3. प्रक्रिया की न्यायिकता (Procedural Safeguards)

इस प्रकार निजता को न केवल मौलिक अधिकार घोषित किया गया, बल्कि तकनीकी विकास के दौर में इसकी रक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानूनी मानक भी तय किए गए।


3. निजता और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Privacy and Artificial Intelligence)

आज का युग डेटा-चालित (data-driven) है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स व्यक्तिगत डेटा पर आधारित निर्णय लेने में सक्षम हो चुके हैं। चाहे वह सोशल मीडिया की प्रोफाइलिंग हो, बैंकिंग लेन-देन का विश्लेषण हो, या स्मार्ट कैमरों द्वारा निगरानी—हर जगह व्यक्तिगत जानकारी का इस्तेमाल हो रहा है।

  • AI आधारित निगरानी (Surveillance Systems): सरकारें और निजी कंपनियां चेहरे की पहचान और बायोमेट्रिक डेटा का उपयोग कर रही हैं।
  • डेटा संग्रह (Data Collection): कंपनियां उपयोगकर्ताओं की आदतें, पसंद, लोकेशन और संचार तक का डेटा एकत्र कर रही हैं।
  • निर्णय निर्माण (Decision-making): AI सिस्टम अक्सर यह तय करते हैं कि किसी व्यक्ति को ऋण मिलेगा या नहीं, नौकरी में चयन होगा या नहीं, या विज्ञापन किसे दिखाया जाएगा।

ऐसी स्थिति में Puttaswamy Judgment यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों की सूचना पर नियंत्रण (informational self-determination) बना रहे और उन्हें बिना सहमति के निगरानी या प्रोफाइलिंग का शिकार न होना पड़े।


4. निगरानी तंत्र और संवैधानिक सुरक्षा (Surveillance Mechanisms and Constitutional Safeguards)

भारत में डिजिटलाइजेशन तेजी से बढ़ रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के नाम पर बड़े पैमाने पर निगरानी तंत्र स्थापित किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए:

  • CCTV नेटवर्क और ड्रोन निगरानी
  • आधार आधारित प्रमाणीकरण
  • फेशियल रिकग्निशन सिस्टम
  • AI आधारित सोशल मीडिया मॉनिटरिंग

इन सभी से निजता पर खतरा बढ़ता है। लेकिन Puttaswamy Judgment यह कहता है कि कोई भी निगरानी तभी वैध होगी जब वह कानूनी आधार पर, आनुपातिक तरीके से और न्यायिक सुरक्षा उपायों के साथ की जाए। इसका अर्थ यह है कि राज्य असीमित शक्ति का उपयोग नहीं कर सकता।


5. AI और निजता: प्रमुख चुनौतियाँ (Key Challenges in AI and Privacy)

  1. डेटा सुरक्षा (Data Security): AI सिस्टम साइबर हमलों और डेटा लीक का शिकार हो सकते हैं।
  2. प्रोफाइलिंग और भेदभाव (Profiling and Discrimination): AI एल्गोरिद्म अक्सर जाति, धर्म या लिंग आधारित पूर्वाग्रह को बढ़ावा देते हैं।
  3. सहमति का प्रश्न (Consent): उपयोगकर्ता अक्सर जाने-अनजाने अपनी जानकारी साझा कर देते हैं, बिना यह समझे कि उसका उपयोग कैसे होगा।
  4. पारदर्शिता (Transparency): AI निर्णय लेने की प्रक्रिया (‘Black Box’ Problem) अक्सर अस्पष्ट रहती है।
  5. निगरानी राज्य (Surveillance State): अत्यधिक डेटा संग्रहण से लोकतंत्र में स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति पर खतरा उत्पन्न हो सकता है।

6. निजता सुरक्षा के उपाय (Safeguards and Future Framework)

Puttaswamy Judgment के बाद भारत ने डेटा संरक्षण कानून की दिशा में कदम बढ़ाए। 2023 में Digital Personal Data Protection Act लाया गया, जो AI और डिजिटल तकनीकों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। निजता की रक्षा के लिए निम्न उपाय आवश्यक हैं:

  • स्पष्ट डेटा संरक्षण कानून
  • डेटा न्यूनतमकरण (Data Minimization)
  • एल्गोरिद्म की पारदर्शिता और जवाबदेही
  • नागरिकों की सहमति आधारित डेटा उपयोग
  • स्वतंत्र नियामक निकाय (Independent Regulators)

7. अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य (International Perspective)

दुनिया के कई देशों ने निजता और AI को लेकर सख्त नियम बनाए हैं।

  • यूरोपियन यूनियन का GDPR (General Data Protection Regulation): यह उपयोगकर्ताओं को डेटा पर अधिक नियंत्रण देता है।
  • अमेरिका: विभिन्न राज्यों में निजता संबंधी अलग-अलग कानून हैं।
  • चीन: AI निगरानी में अग्रणी है लेकिन वहां व्यक्तिगत निजता की गारंटी सीमित है।

भारत में Puttaswamy Judgment इन वैश्विक मानकों के अनुरूप निजता को मौलिक अधिकार बनाकर डिजिटल युग के लिए मजबूत नींव तैयार करता है।


8. निष्कर्ष (Conclusion)

Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India (2017) का निर्णय भारतीय संविधान की व्याख्या में ऐतिहासिक महत्व रखता है। इसने यह स्पष्ट कर दिया कि निजता केवल अमीरों का विलास नहीं बल्कि हर नागरिक का मौलिक अधिकार है

कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स के दौर में, जब व्यक्तिगत डेटा ही सबसे बड़ी संपत्ति बन गया है, तब यह फैसला नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करता है। यह राज्य और निजी कंपनियों दोनों को यह संदेश देता है कि मानव गरिमा और स्वतंत्रता सर्वोपरि है, और तकनीक को नागरिकों के अधिकारों की सीमाओं का सम्मान करना होगा।

इस प्रकार यह फैसला न केवल भारतीय लोकतंत्र के लिए, बल्कि AI और रोबोटिक्स जैसे नए क्षेत्रों के लिए भी मार्गदर्शक सिद्धांत प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 1. Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India (2017) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

इस मामले की शुरुआत सेवानिवृत्त न्यायाधीश के.एस. पुट्टस्वामी द्वारा 2012 में दायर याचिका से हुई। उन्होंने आधार योजना की संवैधानिकता को चुनौती दी। आधार में नागरिकों की बायोमेट्रिक और व्यक्तिगत जानकारी एकत्र की जा रही थी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि यह नागरिकों की निजता का उल्लंघन है। सरकार का कहना था कि निजता संविधान में मौलिक अधिकार नहीं है। पहले के दो निर्णय—M.P. Sharma (1954) और Kharak Singh (1962)—को आधार बनाकर सरकार ने यह दावा किया। इस विवाद के चलते मामला सर्वोच्च न्यायालय की 9-न्यायाधीशों की पीठ को सौंपा गया। 24 अगस्त 2017 को कोर्ट ने सर्वसम्मति से कहा कि निजता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार है।


प्रश्न 2. सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार क्यों माना?

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि निजता मानव गरिमा और स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा है। यदि किसी व्यक्ति को अपने विचार, जीवनशैली, और व्यक्तिगत जानकारी पर नियंत्रण का अधिकार नहीं होगा, तो उसकी स्वतंत्रता अधूरी रह जाएगी। अनुच्छेद 21 के तहत “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” की व्याख्या व्यापक रूप से की जाती है। इसी कारण न्यायालय ने कहा कि निजता उसी का हिस्सा है। इसके अलावा अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता) भी निजता की रक्षा करते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि डिजिटल युग में जब राज्य और कंपनियाँ नागरिकों का डेटा एकत्र कर रही हैं, तब निजता को मौलिक अधिकार मानना अनिवार्य है।


प्रश्न 3. Puttaswamy निर्णय ने आधार योजना पर क्या प्रभाव डाला?

आधार योजना इस केस की मुख्य पृष्ठभूमि थी। सरकार नागरिकों से बायोमेट्रिक डेटा लेकर उनकी पहचान बना रही थी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आधार योजना पूरी तरह अवैध नहीं है, लेकिन यह केवल उन्हीं क्षेत्रों में लागू हो सकती है जहाँ इसका उपयोग उचित और आवश्यक है। उदाहरण के लिए, सब्सिडी और सरकारी योजनाओं के लिए आधार वैध है, लेकिन बैंक खाता खोलने या मोबाइल सिम कार्ड खरीदने के लिए इसे अनिवार्य नहीं किया जा सकता। इस प्रकार, Puttaswamy Judgment ने आधार के दायरे को सीमित कर दिया और इसे नागरिकों की निजता के अनुरूप संतुलित बनाया।


प्रश्न 4. इस फैसले में न्यायालय ने कौन-सी कसौटियाँ निर्धारित कीं?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी कानून या नीति जो निजता पर प्रभाव डालती है, उसे तीन कसौटियों पर खरा उतरना होगा:

  1. वैध उद्देश्य (Legitimate Aim): डेटा संग्रह या निगरानी का कोई ठोस कारण होना चाहिए।
  2. आनुपातिकता (Proportionality): उपाय समस्या के अनुरूप होना चाहिए, अतिरेक नहीं।
  3. प्रक्रियात्मक सुरक्षा (Procedural Safeguards): डेटा के दुरुपयोग को रोकने के लिए कानूनी सुरक्षा उपाय होने चाहिए।
    इन कसौटियों ने डिजिटल युग में निजता की रक्षा के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान किया।

प्रश्न 5. यह फैसला कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से कैसे जुड़ता है?

AI आधारित सिस्टम भारी मात्रा में व्यक्तिगत डेटा पर काम करते हैं। सोशल मीडिया, बैंकिंग, स्वास्थ्य और निगरानी तंत्र—सभी जगह डेटा का उपयोग होता है। Puttaswamy Judgment ने कहा कि नागरिकों को अपनी जानकारी पर नियंत्रण का अधिकार है। इसका सीधा असर AI पर पड़ता है, क्योंकि अब AI कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि डेटा का संग्रह और उपयोग सहमति, पारदर्शिता और कानूनी वैधता के साथ हो। बिना इन शर्तों के AI आधारित निगरानी या प्रोफाइलिंग असंवैधानिक मानी जा सकती है।


प्रश्न 6. निगरानी तंत्र और निजता के बीच क्या संतुलन जरूरी है?

राज्य सुरक्षा और अपराध नियंत्रण के लिए निगरानी तंत्र का उपयोग करता है। लेकिन अत्यधिक निगरानी नागरिकों की स्वतंत्रता पर हमला कर सकती है। Puttaswamy Judgment ने कहा कि निगरानी तभी वैध होगी जब वह कानून द्वारा अधिकृत हो, सीमित दायरे में हो, और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय मौजूद हों। इसका अर्थ है कि सरकार या कंपनियाँ बिना कानूनी आधार के नागरिकों पर नजर नहीं रख सकतीं। यह लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखने के लिए अनिवार्य है।


प्रश्न 7. AI और डेटा सुरक्षा से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

AI और बिग डेटा से जुड़ी मुख्य चुनौतियाँ हैं:

  • साइबर हमलों के कारण डेटा लीक।
  • जाति, धर्म या लिंग आधारित भेदभावपूर्ण प्रोफाइलिंग।
  • बिना सहमति के डेटा का संग्रह।
  • पारदर्शिता की कमी (Black Box समस्या)।
  • राज्य द्वारा निगरानी का दुरुपयोग।
    इन चुनौतियों के समाधान के लिए मजबूत डेटा सुरक्षा कानून, पारदर्शिता और स्वतंत्र नियामक संस्थाओं की आवश्यकता है।

प्रश्न 8. Digital Personal Data Protection Act, 2023 का क्या महत्व है?

Puttaswamy Judgment के बाद भारत में निजता की रक्षा के लिए कानून बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए गए। इसका परिणाम है Digital Personal Data Protection Act, 2023। इस कानून का उद्देश्य है नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी की रक्षा करना और डेटा संग्रह करने वाली कंपनियों को जवाबदेह बनाना। इसमें नागरिकों को डेटा पर नियंत्रण, सहमति वापसी का अधिकार, और दुरुपयोग पर शिकायत दर्ज कराने का प्रावधान दिया गया है। यह कानून AI और डिजिटल तकनीकों के दौर में निजता की रक्षा का मजबूत आधार है।


प्रश्न 9. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निजता की सुरक्षा के क्या मानक हैं?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निजता की सुरक्षा के लिए कई मॉडल मौजूद हैं। यूरोपियन यूनियन का GDPR (General Data Protection Regulation) सबसे सख्त और प्रभावी माना जाता है। यह नागरिकों को डेटा पर पूर्ण नियंत्रण देता है और कंपनियों को सख्त दायित्वों के तहत लाता है। अमेरिका में अलग-अलग राज्यों के निजता कानून हैं। चीन में AI आधारित निगरानी बहुत व्यापक है, लेकिन वहां व्यक्तिगत निजता पर सीमित सुरक्षा है। भारत में Puttaswamy Judgment और DPDP Act इन वैश्विक मानकों के अनुरूप नागरिकों की निजता की रक्षा करने का प्रयास है।


प्रश्न 10. इस फैसले का भविष्य में क्या महत्व रहेगा?

Puttaswamy Judgment भविष्य में भी भारतीय लोकतंत्र और तकनीकी विकास के लिए मार्गदर्शक रहेगा। जब AI, रोबोटिक्स और बिग डेटा और भी उन्नत होंगे, तब निजता का सवाल और गहराएगा। यह फैसला सुनिश्चित करता है कि कोई भी नई तकनीक नागरिकों की गरिमा और स्वतंत्रता को प्रभावित न करे। यह राज्य और कंपनियों दोनों पर यह दायित्व डालता है कि वे तकनीकी नवाचार को मानवाधिकारों और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप लागू करें। इस प्रकार, यह फैसला आने वाले दशकों तक प्रासंगिक बना रहेगा।