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पासपोर्ट आवेदन में वैवाहिक स्थिति या पूर्व पति/पत्नी का नाम गलत भरने पर पासपोर्ट रद्द नहीं किया जा सकता: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का अहम फैसला

पासपोर्ट आवेदन में वैवाहिक स्थिति या पूर्व पति/पत्नी का नाम गलत भरने पर पासपोर्ट रद्द नहीं किया जा सकता: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का अहम फैसला

भारत में पासपोर्ट व्यक्ति की पहचान, नागरिकता और विदेश यात्रा का एक सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है। पासपोर्ट अधिनियम, 1967 इस प्रक्रिया को नियंत्रित करता है और इसके अंतर्गत पासपोर्ट जारी करने, नवीनीकरण करने तथा रद्द करने की परिस्थितियाँ स्पष्ट रूप से निर्धारित की गई हैं। हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि केवल वैवाहिक स्थिति गलत भरने या पूर्व पति/पत्नी का नाम गलती से दर्ज करने के आधार पर पासपोर्ट जब्त या रद्द नहीं किया जा सकता। यह निर्णय नागरिकों के अधिकारों और पासपोर्ट अधिनियम की व्याख्या को लेकर एक अहम दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।


मामला क्या था?

याचिकाकर्ता की पहले सिद्धार्थ नारुला से शादी हुई थी, लेकिन वर्ष 2011 में उनका तलाक हो गया। तलाक के बाद 2015 में उन्होंने पासपोर्ट नवीनीकरण के लिए एक ट्रैवल एजेंट की मदद से आवेदन किया। आवेदन में गलती से पति का नाम फिर से सिद्धार्थ नारुला दर्ज कर दिया गया। इसी आधार पर उन्हें नया पासपोर्ट जारी कर दिया गया।

बाद में जब यह गलती सामने आई तो पासपोर्ट प्राधिकरण ने इसे पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10(3)(b) के अंतर्गत पासपोर्ट रद्द करने योग्य त्रुटि माना। प्राधिकरण का कहना था कि आवेदन में गलत जानकारी देना एक गंभीर चूक है।


याचिकाकर्ता का तर्क

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि-

  1. यह गलती अनजाने में हुई त्रुटि थी और इसका कोई दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य नहीं था।
  2. आवेदन स्वयं उन्होंने नहीं भरा था, बल्कि ट्रैवल एजेंट ने उनकी ओर से विवरण भरा।
  3. उनका तलाक पहले ही हो चुका था, इसलिए वैवाहिक स्थिति छिपाने या गलत प्रस्तुत करने का कोई उद्देश्य नहीं था।
  4. पासपोर्ट रद्द करने से उनके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन होगा, विशेषकर आवागमन की स्वतंत्रता (Article 21) पर आघात होगा।

अदालत की व्याख्या

जस्टिस हर्ष बंजर की पीठ ने मामले पर सुनवाई करते हुए निम्न बिंदुओं पर जोर दिया:

  1. धारा 10(3)(b) की परिभाषा
    पासपोर्ट अधिनियम की धारा 10(3)(b) कहती है कि यदि पासपोर्ट गलत जानकारी, धोखे या झूठे दस्तावेज़ों के आधार पर प्राप्त किया गया है तो उसे जब्त या रद्द किया जा सकता है।
  2. अनजानी गलती बनाम जानबूझकर गलत सूचना
    अदालत ने स्पष्ट किया कि ‘misrepresentation’ (गलत प्रस्तुतीकरण) और ‘suppression of facts’ (तथ्यों को छिपाना) तभी माना जाएगा जब यह कार्य जानबूझकर और किसी लाभ उठाने की नीयत से किया गया हो।

    • यदि वैवाहिक स्थिति गलत भरी गई है या पूर्व पति/पत्नी का नाम गलती से दर्ज हो गया है तो यह जानबूझकर धोखा देने की श्रेणी में नहीं आता
    • ऐसी त्रुटियों को मानवीय भूल माना जाएगा।
  3. नागरिक अधिकारों की सुरक्षा
    अदालत ने कहा कि इस प्रकार की लापरवाही के कारण पासपोर्ट जब्त या रद्द करना नागरिकों के अधिकारों के विपरीत होगा। चूंकि पासपोर्ट एक आवश्यक दस्तावेज़ है और विदेश यात्रा के लिए जरूरी है, इसलिए इसका रद्द होना व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

अदालत का निष्कर्ष

हाईकोर्ट ने कहा:

  • यदि कोई आवेदनकर्ता या उसके behalf में किसी अन्य व्यक्ति ने गलती से वैवाहिक स्थिति सही ढंग से न बताई हो या पूर्व पति/पत्नी का नाम भर दिया हो, तो यह धारा 10(3)(b) के अंतर्गत पासपोर्ट रद्द करने का आधार नहीं बन सकता।
  • इस प्रकार की त्रुटियाँ महज ‘अनजानी गलती’ (Inadvertent Mistake) की श्रेणी में आती हैं।
  • पासपोर्ट प्राधिकरण को ऐसी स्थिति में नागरिकों को उचित अवसर देना चाहिए, न कि सीधे रद्दीकरण की कार्रवाई करनी चाहिए।

कानूनी महत्व

  1. स्पष्ट व्याख्या – अदालत ने धारा 10(3)(b) की सही व्याख्या करते हुए यह सुनिश्चित किया कि केवल गंभीर धोखाधड़ी या जानबूझकर गलत सूचना देने के मामलों में ही पासपोर्ट जब्त/रद्द किया जाए।
  2. नागरिकों का संरक्षण – यह फैसला नागरिकों को राहत प्रदान करता है, ताकि वे छोटी-मोटी अनजानी गलतियों के कारण अपने पासपोर्ट से वंचित न हों।
  3. प्रशासनिक सुधार – पासपोर्ट कार्यालयों और अधिकारियों को यह दिशा-निर्देश देता है कि उन्हें आवेदनों की त्रुटियों को संवेदनशीलता और व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखना चाहिए।

व्यापक प्रभाव

  • यह फैसला विशेष रूप से तलाकशुदा, विधवा या पुनर्विवाह करने वाले व्यक्तियों के लिए राहतकारी है।
  • कई बार आवेदनकर्ता स्वयं आवेदन नहीं भरते और एजेंटों की मदद लेते हैं। इस कारण छोटी-सी गलती भी पासपोर्ट रद्द होने का कारण बन जाती थी।
  • अब यह स्पष्ट है कि इस तरह की अनजानी भूलों को ‘धोखाधड़ी’ नहीं माना जाएगा।

निष्कर्ष

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का यह फैसला पासपोर्ट से जुड़े कानून और नागरिक अधिकारों की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। अदालत ने यह संदेश दिया है कि कानून का उद्देश्य नागरिकों को सज़ा देना नहीं, बल्कि उनके अधिकारों की रक्षा करना है।

वैवाहिक स्थिति या पूर्व पति/पत्नी का नाम गलत भरने जैसी त्रुटियाँ अक्सर लापरवाही या भूलवश होती हैं, न कि धोखा देने की नीयत से। ऐसे मामलों में पासपोर्ट रद्द करना न्यायसंगत नहीं होगा। यह निर्णय न केवल पासपोर्ट अधिनियम की उचित व्याख्या करता है बल्कि नागरिकों को यह आश्वासन भी देता है कि उनके मूलभूत अधिकारों को संरक्षित किया जाएगा।


👉 यह फैसला आने वाले समय में ऐसे कई मामलों में नज़ीर (precedent) का काम करेगा और प्रशासनिक अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे गलती और धोखाधड़ी के बीच फर्क समझकर ही कदम उठाएँ।


1. प्रश्न: पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10(3)(b) क्या कहती है?

उत्तर: पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10(3)(b) के अनुसार यदि पासपोर्ट किसी झूठी सूचना, गलत दस्तावेज़ या तथ्य छिपाने के आधार पर प्राप्त किया गया है, तो उसे सरकार द्वारा जब्त या रद्द किया जा सकता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पासपोर्ट जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ का दुरुपयोग न हो। हालांकि, इस प्रावधान का प्रयोग तभी होना चाहिए जब यह साबित हो कि आवेदनकर्ता ने जानबूझकर गलत जानकारी दी है। हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पासपोर्ट आवेदन में वैवाहिक स्थिति या पति/पत्नी का नाम गलती से गलत लिखा गया है और उसमें धोखा देने की मंशा नहीं है, तो यह धारा लागू नहीं होगी। इसका मतलब है कि केवल अनजानी भूल के कारण पासपोर्ट जब्त या रद्द नहीं किया जा सकता।


2. प्रश्न: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले में मुख्य विवाद क्या था?

उत्तर: इस मामले में याचिकाकर्ता का पहले विवाह हुआ था और बाद में तलाक हो गया। तलाक के बाद उन्होंने पासपोर्ट नवीनीकरण के लिए आवेदन किया, लेकिन ट्रैवल एजेंट की गलती से उनके पूर्व पति का नाम फिर से आवेदन में भर दिया गया। पासपोर्ट कार्यालय ने इसे गलत सूचना मानकर पासपोर्ट रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। विवाद इस बात पर था कि क्या यह गलती जानबूझकर की गई थी या केवल लापरवाही थी। हाईकोर्ट ने कहा कि यह अनजानी गलती थी और इसमें धोखा देने की कोई मंशा नहीं थी। इसलिए इसे पासपोर्ट रद्द करने का आधार नहीं माना जा सकता।


3. प्रश्न: हाईकोर्ट ने ‘अनजानी गलती’ और ‘जानबूझकर गलत सूचना’ में क्या अंतर बताया?

उत्तर: हाईकोर्ट ने कहा कि ‘अनजानी गलती’ (Inadvertent Mistake) और ‘जानबूझकर गलत सूचना’ (Misrepresentation) दोनों अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। यदि कोई व्यक्ति आवेदन भरते समय लापरवाही से या अनजाने में गलत जानकारी दे देता है, तो यह अनजानी गलती है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर तथ्य छिपाए या झूठी जानकारी दे ताकि उसे अनुचित लाभ मिले, तो यह गलत सूचना है। पासपोर्ट रद्द करने का आधार केवल तब बनता है जब गलत सूचना जानबूझकर और धोखाधड़ी की मंशा से दी गई हो। इसलिए सामान्य लापरवाही या एजेंट की गलती पर पासपोर्ट रद्द करना न्यायसंगत नहीं है।


4. प्रश्न: अदालत ने नागरिक अधिकारों की सुरक्षा पर क्या कहा?

उत्तर: अदालत ने माना कि पासपोर्ट व्यक्ति की स्वतंत्रता और आवागमन के अधिकार से जुड़ा हुआ दस्तावेज़ है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को गरिमा के साथ जीने और स्वतंत्र रूप से आवागमन करने का अधिकार है। यदि केवल छोटी-मोटी त्रुटियों के आधार पर पासपोर्ट जब्त या रद्द कर दिया जाए, तो यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होगा। इसलिए प्रशासन को ऐसे मामलों में संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और नागरिकों को गलती सुधारने का अवसर देना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि कानून का उद्देश्य सज़ा देना नहीं बल्कि न्याय और अधिकारों की रक्षा करना है।


5. प्रश्न: इस फैसले का तलाकशुदा और पुनर्विवाहित व्यक्तियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

उत्तर: यह फैसला तलाकशुदा और पुनर्विवाहित व्यक्तियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। अक्सर पासपोर्ट आवेदन में वैवाहिक स्थिति या पूर्व पति/पत्नी का नाम गलती से दर्ज हो जाता है। पहले ऐसी स्थिति में पासपोर्ट रद्द होने का खतरा रहता था। लेकिन अब हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि ऐसी अनजानी गलतियों के कारण पासपोर्ट रद्द नहीं किया जाएगा। इससे तलाकशुदा या पुनर्विवाहित व्यक्तियों को राहत मिलेगी और वे बिना किसी डर के पासपोर्ट आवेदन या नवीनीकरण कर सकेंगे। यह फैसला मानवीय दृष्टिकोण को प्राथमिकता देता है।


6. प्रश्न: पासपोर्ट प्राधिकरण की क्या जिम्मेदारी तय हुई?

उत्तर: हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद पासपोर्ट प्राधिकरण पर यह जिम्मेदारी आ गई है कि वे आवेदन में हुई त्रुटियों की प्रकृति को ध्यान से परखें। यदि गलती केवल तकनीकी है और इसमें कोई धोखाधड़ी की मंशा नहीं है, तो उसे तुरंत रद्द करने के बजाय सुधारने का अवसर देना चाहिए। प्राधिकरण को यह समझना होगा कि हर गलती जानबूझकर नहीं होती। इसके अलावा, उन्हें नागरिकों की परेशानियों को कम करने के लिए पारदर्शी और लचीला रवैया अपनाना होगा। इस निर्णय से अधिकारियों को चेतावनी भी मिलती है कि वे बिना उचित कारण के पासपोर्ट रद्द न करें।


7. प्रश्न: क्या पासपोर्ट रद्द करने का निर्णय मौलिक अधिकारों से जुड़ा है?

उत्तर: हाँ, पासपोर्ट रद्द करने का निर्णय मौलिक अधिकारों से सीधे जुड़ा हुआ है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ का अधिकार दिया गया है, जिसमें स्वतंत्र आवागमन भी शामिल है। पासपोर्ट रद्द हो जाने से व्यक्ति विदेश यात्रा नहीं कर सकता, जिससे उसके रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा और अन्य अवसर प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए पासपोर्ट रद्द करने का निर्णय केवल गंभीर और जानबूझकर धोखाधड़ी वाले मामलों में ही होना चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि छोटी-मोटी अनजानी गलतियों पर पासपोर्ट रद्द करना अनुचित है और यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है।


8. प्रश्न: अदालत ने एजेंट द्वारा भरे गए आवेदन की गलती पर क्या टिप्पणी की?

उत्तर: अदालत ने माना कि कई बार लोग खुद पासपोर्ट आवेदन नहीं भरते और एजेंटों या तीसरे पक्ष की मदद लेते हैं। ऐसे में यदि एजेंट गलती कर देता है, तो उसका खामियाजा आवेदनकर्ता को भुगतना अनुचित है। यदि यह साबित हो जाए कि गलती एजेंट की वजह से हुई है और आवेदनकर्ता की ओर से कोई धोखाधड़ी की मंशा नहीं थी, तो पासपोर्ट रद्द करना गलत होगा। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि प्रशासन को इस तरह की परिस्थितियों का व्यावहारिक समाधान करना चाहिए और आवेदनकर्ता को सुधार का अवसर देना चाहिए।


9. प्रश्न: इस फैसले का भविष्य के मामलों में क्या महत्व होगा?

उत्तर: यह फैसला भविष्य के कई मामलों में नज़ीर (precedent) के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। अब अदालतों और पासपोर्ट प्राधिकरणों के पास एक स्पष्ट मार्गदर्शन है कि वैवाहिक स्थिति या पति/पत्नी का नाम गलत भरने जैसी त्रुटियाँ पासपोर्ट रद्द करने का आधार नहीं हो सकतीं। भविष्य में ऐसे मामले आने पर यह निर्णय उदाहरण के रूप में पेश किया जाएगा। इससे नागरिकों को राहत मिलेगी और प्रशासनिक अधिकारियों को भी कानून का सही अनुपालन करने की दिशा मिलेगी। यह निर्णय न्याय और प्रशासनिक संवेदनशीलता दोनों के बीच संतुलन स्थापित करता है।


10. प्रश्न: इस फैसले से नागरिकों को क्या संदेश मिलता है?

उत्तर: इस फैसले से नागरिकों को यह महत्वपूर्ण संदेश मिलता है कि छोटी-मोटी अनजानी गलतियों से घबराने की आवश्यकता नहीं है। कानून नागरिकों को दंडित करने के लिए नहीं बल्कि उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए बना है। यदि आवेदन में कोई त्रुटि हो जाए तो उसे सुधारने का अवसर मिलेगा, न कि सीधे पासपोर्ट रद्द कर दिया जाएगा। साथ ही, यह नागरिकों को यह भी सिखाता है कि आवेदन भरते समय सावधानी बरतना जरूरी है और यदि संभव हो तो स्वयं विवरण भरें ताकि गलतियों की संभावना कम हो। यह फैसला नागरिक अधिकारों और प्रशासनिक न्याय के बीच संतुलन का प्रतीक है।