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जल अधिनियम, 1974 : जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण का विधिक आधार

जल अधिनियम, 1974 : जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण का विधिक आधार


प्रस्तावना

जल (Water) मानव जीवन और प्राकृतिक पारिस्थितिकी का मूल स्रोत है। इसका महत्व केवल पीने और घरेलू उपयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि कृषि, उद्योग, परिवहन और ऊर्जा उत्पादन के लिए भी यह अनिवार्य है। किंतु औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण जल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन और प्रदूषण होने लगा। नदियाँ, तालाब और भूजल रासायनिक कचरे, सीवेज, प्लास्टिक तथा अन्य प्रदूषकों से दूषित होने लगे। इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार ने जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 (Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974) लागू किया। यह अधिनियम भारत का पहला व्यापक कानून है जो केवल जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाया गया।


अधिनियम की पृष्ठभूमि

जल प्रदूषण का मुद्दा 1970 के दशक तक अत्यंत गंभीर रूप ले चुका था। औद्योगिक अपशिष्ट और नगरपालिकाओं का गंदा पानी सीधे नदियों और तालाबों में डाला जा रहा था। परिणामस्वरूप गंगा, यमुना, साबरमती और कई अन्य नदियाँ अत्यधिक प्रदूषित हो गईं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पर्यावरणीय संकट की चर्चा तेज हो रही थी। 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन में भारत ने यह वचन दिया कि वह पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाएगा। इसी संकल्प के आधार पर जल अधिनियम, 1974 बनाया गया।


अधिनियम का उद्देश्य

इस अधिनियम का मूल उद्देश्य जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण करना है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. जल स्रोतों की स्वच्छता बनाए रखना।
  2. जल में हानिकारक पदार्थों के प्रवेश को रोकना।
  3. प्रदूषित जल के प्रयोग से मानव, पशु और पौधों को होने वाले नुकसान से बचाना।
  4. औद्योगिक अपशिष्ट और सीवेज के वैज्ञानिक प्रबंधन को सुनिश्चित करना।
  5. जल प्रदूषण नियंत्रण हेतु केंद्रीय और राज्य स्तर पर बोर्ड की स्थापना करना।
  6. जल गुणवत्ता के मानक तय करना और उनका अनुपालन सुनिश्चित करना।

अधिनियम की प्रमुख परिभाषाएँ

  • जल प्रदूषण: किसी भी जल स्रोत में ठोस, तरल या गैसीय पदार्थों का ऐसा सम्मिश्रण जिससे जल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े या वह मानव, पशु और जलीय जीवन के लिए हानिकारक बन जाए।
  • प्रदूषक: वे पदार्थ जो जल की गुणवत्ता को क्षति पहुँचाते हैं।
  • प्रदूषित जल: ऐसा जल जो स्वास्थ्य, स्वच्छता या पर्यावरणीय दृष्टि से उपयुक्त न हो।

अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ और प्रावधान

  1. केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना
    • अधिनियम के अंतर्गत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs) की स्थापना की गई।
    • CPCB का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर जल प्रदूषण नियंत्रण की नीतियाँ बनाना है।
    • SPCBs राज्यों में प्रदूषण की निगरानी और नियमों का पालन सुनिश्चित करते हैं।
  2. औद्योगिक अपशिष्ट नियंत्रण
    • कोई भी उद्योग बिना राज्य बोर्ड की अनुमति के जल स्रोत में अपशिष्ट नहीं डाल सकता।
    • बोर्ड आवश्यकतानुसार अनुमति निरस्त या संशोधित कर सकता है।
  3. जल गुणवत्ता मानक
    • बोर्ड जल की स्वच्छता और गुणवत्ता के लिए वैज्ञानिक मानक तय करते हैं।
    • इन मानकों का पालन करना उद्योगों और नगरपालिकाओं के लिए अनिवार्य है।
  4. प्रयोगशालाओं की स्थापना
    • जल की गुणवत्ता की जांच हेतु केंद्रीय और राज्य स्तर पर प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई।
    • विशेषज्ञ वैज्ञानिक प्रदूषण के स्तर की रिपोर्ट तैयार करते हैं।
  5. दंडात्मक प्रावधान
    • अधिनियम का उल्लंघन करने पर सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
    • पहली बार अपराध करने पर 3 माह तक की कैद या 10,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
    • लगातार अपराध करने पर प्रतिदिन अतिरिक्त जुर्माना और सजा बढ़ाई जा सकती है।

अधिनियम से जुड़े महत्वपूर्ण प्रावधान

  1. जल में अपशिष्ट डालने पर नियंत्रण
    राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति के बिना कोई भी उद्योग, संस्था या व्यक्ति जल स्रोत में गंदगी नहीं डाल सकता।
  2. उद्योगों की जिम्मेदारी
    हर उद्योग को अपने अपशिष्ट का शोधन करना अनिवार्य है।
  3. जन-जागरूकता और भागीदारी
    बोर्ड को अधिकार है कि वह जनता में जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए जागरूकता फैलाए।

अधिनियम का क्रियान्वयन और न्यायपालिका की भूमिका

न्यायपालिका ने इस अधिनियम की व्याख्या करते हुए कई ऐतिहासिक निर्णय दिए।

  • M.C. Mehta बनाम भारत संघ (गंगा प्रदूषण मामला, 1988) – सुप्रीम कोर्ट ने गंगा में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को बंद करने का आदेश दिया।
  • Indian Council for Enviro-Legal Action बनाम भारत संघ (1996) – न्यायालय ने “Polluter Pays Principle” को लागू किया और प्रदूषण करने वाले उद्योगों को क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया।
  • Vellore Citizens Welfare Forum बनाम भारत संघ (1996) – न्यायालय ने सतत विकास (Sustainable Development) के सिद्धांत को पर्यावरणीय कानून का हिस्सा माना।

अधिनियम की उपलब्धियाँ

  1. देशभर में CPCB और SPCBs की स्थापना हुई।
  2. औद्योगिक इकाइयों पर निगरानी बढ़ी और अपशिष्ट शोधन संयंत्र (Effluent Treatment Plants) लगाए गए।
  3. गंगा एक्शन प्लान, यमुना एक्शन प्लान जैसी योजनाएँ शुरू हुईं।
  4. जल प्रदूषण को एक कानूनी अपराध के रूप में मान्यता मिली।

अधिनियम की कमियाँ और चुनौतियाँ

  1. क्रियान्वयन में ढिलाई – कई बार बोर्डों के पास पर्याप्त साधन और संसाधन नहीं होते।
  2. भ्रष्टाचार और राजनीतिक दबाव – प्रदूषण फैलाने वाले बड़े उद्योग बच निकलते हैं।
  3. जन-जागरूकता की कमी – जनता जल संरक्षण को लेकर उतनी सक्रिय नहीं है।
  4. शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि – सीवेज का उपचार पर्याप्त नहीं हो पाता।
  5. दंडात्मक प्रावधानों की कठोरता में कमी – सजा और जुर्माना अपेक्षाकृत कम है, जिससे उद्योगों पर पर्याप्त दबाव नहीं बनता।

वर्तमान महत्व और संदर्भ

आज जब जलवायु परिवर्तन, सूखा, जल संकट और नदियों का प्रदूषण गंभीर समस्या बन चुके हैं, तब जल अधिनियम, 1974 का महत्व और बढ़ जाता है। यह अधिनियम उद्योगों और नगरपालिकाओं को प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए बाध्य करता है। इस कानून के आधार पर ही कई राज्यों में जल संरक्षण की योजनाएँ चल रही हैं। गंगा और यमुना की सफाई हेतु भी यह अधिनियम मार्गदर्शक है।


निष्कर्ष

जल अधिनियम, 1974 भारत में जल प्रदूषण रोकने के लिए बनाया गया पहला समग्र कानून है। इसने जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में संस्थागत ढाँचा और कानूनी प्रावधान उपलब्ध कराए। यद्यपि इसके क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं, परंतु इसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है। यदि इस अधिनियम का कठोरता से पालन किया जाए तो नदियों और जल स्रोतों की स्वच्छता सुनिश्चित की जा सकती है। जल जीवन का आधार है और इसे प्रदूषण से मुक्त रखना हमारा नैतिक और कानूनी दायित्व है।

अतः यह कहा जा सकता है कि –
“जल ही जीवन है, और जल अधिनियम, 1974 उस जीवन की सुरक्षा का कानूनी आधार है।”


प्रश्न 1. जल अधिनियम, 1974 किन परिस्थितियों में बनाया गया था?

उत्तर: 1970 के दशक में भारत में जल प्रदूषण की समस्या अत्यंत गंभीर हो चुकी थी। औद्योगिक अपशिष्ट और नगरपालिकाओं का गंदा पानी सीधे नदियों और तालाबों में छोड़ा जा रहा था। गंगा, यमुना, साबरमती जैसी नदियाँ प्रदूषित होने लगी थीं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पर्यावरणीय संकट की चर्चा हो रही थी। 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन में भारत ने पर्यावरण संरक्षण हेतु ठोस कदम उठाने का वचन दिया। इसी संकल्प और बढ़ते प्रदूषण की समस्या को देखते हुए संसद ने जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 बनाया। यह अधिनियम भारत का पहला ऐसा व्यापक कानून है, जो केवल जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण हेतु लाया गया।


प्रश्न 2. जल अधिनियम, 1974 का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर: इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण करना है। इसमें ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनसे जल स्रोतों की स्वच्छता और गुणवत्ता बनाए रखी जा सके। यह अधिनियम औद्योगिक अपशिष्ट और नगरपालिकाओं के सीवेज को बिना शोधन जल स्रोतों में डालने पर रोक लगाता है। साथ ही, इसके तहत केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई है, जो जल की गुणवत्ता पर निगरानी रखते हैं और आवश्यकतानुसार मानक तय करते हैं। अधिनियम का एक उद्देश्य यह भी है कि प्रदूषित जल के प्रयोग से मानव, पशु और पौधों को होने वाले नुकसान को रोका जा सके और जल संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित हो।


प्रश्न 3. जल अधिनियम, 1974 के अंतर्गत “जल प्रदूषण” की परिभाषा क्या है?

उत्तर: अधिनियम के अनुसार, जल प्रदूषण का अर्थ है – किसी भी जल स्रोत (जैसे नदी, तालाब, झील, भूजल या समुद्र) में ठोस, तरल या गैसीय पदार्थ का ऐसा सम्मिश्रण जिससे जल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। यदि जल का उपयोग पीने, कृषि, उद्योग या अन्य किसी कार्य हेतु अनुपयुक्त हो जाए तो वह प्रदूषित माना जाएगा। साथ ही, यदि जल में हानिकारक तत्वों की मौजूदगी से मानव, पशु या जलीय जीवों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़े तो वह भी जल प्रदूषण कहलाता है। यह परिभाषा व्यापक है और इसमें औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू गंदगी, रासायनिक पदार्थ और जहरीले तत्व सभी शामिल हैं।


प्रश्न 4. जल अधिनियम, 1974 के अंतर्गत कौन-कौन सी संस्थाएँ स्थापित की गईं?

उत्तर: इस अधिनियम के तहत दो प्रमुख संस्थागत ढाँचे बनाए गए –

  1. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) – इसका काम राष्ट्रीय स्तर पर नीतियाँ बनाना, मानक तय करना और राज्य बोर्डों को दिशा-निर्देश देना है।
  2. राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs) – इनका कार्य राज्यों में जल प्रदूषण की निगरानी करना, उद्योगों से अनुमति लेना और प्रदूषण नियंत्रण के उपाय लागू कराना है।
    इसके अतिरिक्त, अधिनियम में वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं की स्थापना का भी प्रावधान है, जहाँ जल की गुणवत्ता की जाँच की जाती है। इन संस्थाओं के माध्यम से जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रशासनिक और वैज्ञानिक ढाँचा तैयार किया गया है।

प्रश्न 5. इस अधिनियम में औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए क्या प्रावधान हैं?

उत्तर: जल अधिनियम, 1974 के अंतर्गत औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन पर विशेष जोर दिया गया है। कोई भी उद्योग बिना राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति के जल स्रोत में गंदा पानी या रासायनिक अपशिष्ट नहीं डाल सकता। हर उद्योग को अपने अपशिष्ट का वैज्ञानिक शोधन (Treatment) करना अनिवार्य है। इसके लिए उन्हें Effluent Treatment Plants (ETPs) स्थापित करने पड़ते हैं। यदि उद्योग बोर्ड द्वारा तय मानकों का पालन नहीं करता तो उसकी अनुमति रद्द की जा सकती है और दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि औद्योगिक गतिविधियाँ पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को नुकसान न पहुँचाएँ।


प्रश्न 6. इस अधिनियम में दंडात्मक प्रावधान क्या हैं?

उत्तर: जल अधिनियम, 1974 के उल्लंघन पर कठोर दंड का प्रावधान है। यदि कोई व्यक्ति या उद्योग बिना अनुमति जल स्रोत में अपशिष्ट डालता है या बोर्ड के नियमों का पालन नहीं करता, तो उसे 3 माह तक की कैद या 10,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। यदि अपराध लगातार जारी रहता है तो प्रतिदिन 5,000 रुपये का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जा सकता है। यदि उल्लंघन से गंभीर हानि होती है तो सजा बढ़ाकर 7 वर्ष तक की कैद दी जा सकती है। इन दंडात्मक प्रावधानों का उद्देश्य उद्योगों और संस्थाओं को प्रदूषण नियंत्रण के प्रति गंभीर बनाना है।


प्रश्न 7. न्यायपालिका ने इस अधिनियम को लागू करने में क्या भूमिका निभाई है?

उत्तर: भारतीय न्यायपालिका ने जल अधिनियम, 1974 को प्रभावी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। M.C. Mehta बनाम भारत संघ (गंगा प्रदूषण मामला, 1988) में सुप्रीम कोर्ट ने गंगा में गंदगी डालने वाले कई उद्योगों को बंद करने का आदेश दिया। Indian Council for Enviro-Legal Action बनाम भारत संघ (1996) में न्यायालय ने “Polluter Pays Principle” को लागू किया और उद्योगों को प्रदूषण से हुई क्षति की भरपाई करने को कहा। इन निर्णयों से यह स्पष्ट हुआ कि जल अधिनियम केवल सैद्धांतिक कानून नहीं है, बल्कि इसे न्यायालयों के हस्तक्षेप से व्यावहारिक रूप भी मिला।


प्रश्न 8. इस अधिनियम की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या रही हैं?

उत्तर: जल अधिनियम, 1974 की वजह से भारत में प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हुईं। (1) CPCB और SPCBs की स्थापना से राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण तंत्र मजबूत हुआ। (2) अनेक उद्योगों ने अपने-अपने अपशिष्ट शोधन संयंत्र लगाए। (3) गंगा एक्शन प्लान और यमुना एक्शन प्लान जैसी योजनाएँ शुरू की गईं। (4) जल प्रदूषण को एक कानूनी अपराध माना गया और इसके लिए दंड का प्रावधान किया गया। यद्यपि चुनौतियाँ बनी हुई हैं, फिर भी इस अधिनियम ने जल संरक्षण के प्रति सरकार और जनता दोनों को जागरूक किया।


प्रश्न 9. जल अधिनियम, 1974 की प्रमुख कमियाँ और चुनौतियाँ क्या हैं?

उत्तर: इस अधिनियम की सबसे बड़ी कमी है प्रभावी क्रियान्वयन की कमी। कई बार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास पर्याप्त संसाधन और तकनीकी साधन नहीं होते। दूसरी चुनौती है भ्रष्टाचार और राजनीतिक दबाव, जिसके कारण प्रदूषण फैलाने वाले बड़े उद्योग सजा से बच जाते हैं। जन-जागरूकता की कमी भी एक बड़ी समस्या है। इसके अलावा, शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न सीवेज का शोधन पर्याप्त रूप से नहीं हो पाता। दंडात्मक प्रावधान अपेक्षाकृत कमजोर हैं और उद्योगों पर पर्याप्त दबाव नहीं बना पाते। इन कारणों से यह अधिनियम अपने उद्देश्यों को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं कर पाया।


प्रश्न 10. वर्तमान समय में जल अधिनियम, 1974 का महत्व क्यों बढ़ गया है?

उत्तर: आज के दौर में जल अधिनियम, 1974 का महत्व और बढ़ गया है क्योंकि भारत गहरे जल संकट और प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण नदियाँ सूख रही हैं, भूजल का स्तर गिर रहा है और प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। ऐसे समय में यह अधिनियम उद्योगों और नगरपालिकाओं को नियंत्रित करने का प्रभावी उपकरण है। इसके आधार पर ही राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने कई निर्णय दिए हैं और जल संरक्षण योजनाएँ लागू हुई हैं। यदि इस अधिनियम का सख्ती से पालन किया जाए तो आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ और सुरक्षित जल उपलब्ध कराया जा सकता है।