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भरण-पोषण से नहीं बच सकते पति: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय और तलाक संबंधी कार्यवाहियों में बंद हुई कानूनी खामियाँ

भरण-पोषण से नहीं बच सकते पति: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय और तलाक संबंधी कार्यवाहियों में बंद हुई कानूनी खामियाँ

भारतीय पारिवारिक कानून में भरण-पोषण (Maintenance) का प्रश्न हमेशा से विवादास्पद और संवेदनशील रहा है। विशेषकर तब, जब तलाक की कार्यवाही या अन्य वैवाहिक विवाद न्यायालय में लंबित हों, आर्थिक रूप से कमजोर जीवनसाथी — सामान्यतः पत्नी — अपने जीवनयापन और मुकदमे की लड़ाई लड़ने के लिए पति पर निर्भर रहती है। इस संदर्भ में इलाहाबाद हाईकोर्ट का हालिया फैसला अंकित सुमन बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य (Ankit Suman v. State of U.P. and Another) अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इस निर्णय में न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया कि—
👉 केवल तलाक संबंधी कार्यवाही पर रोक (Stay) लग जाने मात्र से हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के अंतर्गत भरण-पोषण (Maintenance Pendente Lite) की जिम्मेदारी समाप्त नहीं होती।
👉 जब तक तलाक की कार्यवाही विधिवत रूप से समाप्त नहीं हो जाती, तब तक पति का दायित्व बना रहेगा।

यह फैसला न केवल भरण-पोषण संबंधी कानून को और अधिक स्पष्ट करता है, बल्कि उन loopholes (कानूनी खामियों) को भी बंद करता है जिनका सहारा लेकर पति प्रायः अपनी जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश करते थे।


धारा 24, हिंदू विवाह अधिनियम: उद्देश्य और प्रावधान

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 का मुख्य उद्देश्य यह है कि यदि किसी वैवाहिक विवाद के दौरान पति या पत्नी में से कोई एक पक्ष आर्थिक रूप से कमजोर हो और मुकदमा चलाने या अपना जीवनयापन करने में असमर्थ हो, तो वह दूसरे पक्ष से उचित भरण-पोषण और मुकदमे का खर्च प्राप्त कर सके।

  • यह प्रावधान “Maintenance Pendente Lite” यानी मुकदमा लंबित रहते हुए भरण-पोषण से संबंधित है।
  • अदालत यह सुनिश्चित करती है कि आर्थिक रूप से निर्बल पक्ष मुकदमे में उचित रूप से अपनी बात रख सके और आर्थिक कठिनाई उसकी न्याय तक पहुँचने की राह में बाधा न बने।

इस प्रकार धारा 24 न्याय तक समान पहुँच (Access to Justice) की संवैधानिक गारंटी को लागू करने का एक साधन है।


मामले के तथ्य और मुख्य प्रश्न

अंकित सुमन बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य प्रकरण में मुख्य प्रश्न यह था कि—

  • यदि किसी तलाक की कार्यवाही पर स्टे (Stay) लग गया है, तो क्या भरण-पोषण आदेश स्वतः निरस्त हो जाएगा?
  • या फिर भरण-पोषण की देनदारी तब तक जारी रहेगी जब तक मुकदमा औपचारिक रूप से समाप्त न हो जाए?

पति पक्ष का तर्क था कि चूँकि कार्यवाही स्थगित (Stay) कर दी गई है, इसलिए भरण-पोषण आदेश भी लागू नहीं रहना चाहिए। परंतु न्यायालय ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया।


न्यायालय का तर्क और निर्णय

न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम ने अपने फैसले में निम्न बिंदुओं को रेखांकित किया:

  1. “Stay” और “Quash” का अंतर
    • “Stay” का अर्थ है किसी कार्यवाही को अस्थायी रूप से रोक देना। इसका मतलब यह नहीं है कि मुकदमा समाप्त हो गया।
    • जबकि “Quash” का अर्थ है मुकदमे को विधिवत निरस्त कर देना।
    • जब तक मुकदमा केवल Stay पर है, तब तक वह लंबित ही माना जाएगा और भरण-पोषण की देनदारी भी बनी रहेगी।
  2. लंबित कार्यवाही में जिम्मेदारी जारी रहेगी
    • चाहे मुकदमा पुनरीक्षण (Revision) में हो, अपील में हो, या बहिष्कृत कर दिए जाने के बाद बहाली (Restoration) के लिए लंबित हो, इन सभी परिस्थितियों में पति का दायित्व जारी रहेगा।
  3. भरण-पोषण आदेश की प्रकृति
    • धारा 24 के अंतर्गत दिया गया आदेश एक सिविल डिक्री (Civil Decree) की तरह लागू करने योग्य है।
    • इसका पालन न करने पर वसूली की कार्यवाही की जा सकती है।

निर्णय का महत्व

1. कानूनी स्पष्टता

अब तक कई मामलों में पति पक्ष यह तर्क देता था कि मुकदमा Stay पर है, इसलिए भरण-पोषण नहीं देना पड़ेगा। इस फैसले ने उस अनिश्चितता को समाप्त कर दिया है।

2. कानूनी खामियों का बंद होना

पहले यह loophole (खामी) प्रचलित थी कि पति मुकदमे में Stay लेकर भरण-पोषण से बच निकलते थे। अब अदालत ने यह रास्ता बंद कर दिया है।

3. कमजोर पक्ष की सुरक्षा

यह फैसला सुनिश्चित करता है कि मुकदमेबाजी के दौरान पत्नी या आर्थिक रूप से निर्बल जीवनसाथी को निरंतर सहायता मिलती रहे। इससे उनके साथ अन्याय या अनुचित आर्थिक दबाव नहीं डाला जा सकेगा।

4. न्याय तक पहुँच की गारंटी

वास्तविक न्याय तभी संभव है जब मुकदमे के दोनों पक्ष समान रूप से अपनी बात रख सकें। आर्थिक रूप से कमजोर जीवनसाथी की सहायता करना इसी दिशा में एक आवश्यक कदम है।


व्यापक प्रभाव

इस निर्णय का असर केवल इस मामले तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि भविष्य में आने वाले सैकड़ों तलाक और वैवाहिक विवादों में इसकी मिसाल दी जाएगी।

  1. निचली अदालतों के लिए मार्गदर्शन
    अब पारिवारिक न्यायालय और जिला न्यायालयों को यह स्पष्ट हो गया है कि Stay की स्थिति में भी भरण-पोषण आदेश लागू रहेगा।
  2. महिलाओं के अधिकारों की रक्षा
    भारतीय समाज में प्रायः महिलाएँ आर्थिक रूप से पति पर आश्रित रहती हैं। ऐसे में यह निर्णय उनके लिए बड़ा सहारा है।
  3. पति की जिम्मेदारी की पुष्टि
    यह संदेश भी गया कि विवाह संबंधी मुकदमों में पति अपनी जिम्मेदारी से कानूनी चालों का सहारा लेकर बच नहीं सकता।

पूर्ववर्ती न्यायिक दृष्टांतों से तुलना

पूर्व में भी उच्चतम न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने भरण-पोषण के महत्व को रेखांकित किया है। उदाहरण के लिए—

  • चंद्रकला बनाम सुरेंद्र कुमार (AIR 1977 SC 1239) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भरण-पोषण का उद्देश्य पत्नी को जीवनयापन और न्याय तक पहुँच दिलाना है।
  • जसबीर कौर सहगल बनाम जिला न्यायाधीश देहरादून (AIR 1997 SC 3397) में यह स्पष्ट किया गया कि भरण-पोषण का निर्धारण पति की आय और जीवन स्तर को देखकर किया जाएगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय इन्हीं न्यायिक सिद्धांतों की कड़ी में एक और ठोस जोड़ है।


आलोचनात्मक दृष्टिकोण

हालाँकि यह निर्णय आर्थिक रूप से निर्बल जीवनसाथी की रक्षा करता है, फिर भी कुछ आलोचनाएँ संभव हैं—

  • यदि मुकदमा लंबा खिंच जाए और पति सीमित आय वाला हो, तो उस पर अत्यधिक आर्थिक बोझ पड़ सकता है।
  • कुछ मामलों में पत्नी भी भरण-पोषण का दुरुपयोग कर सकती है और मुकदमे को लंबा खींच सकती है।

लेकिन न्यायालय ने यह संतुलन भी रखा है कि भरण-पोषण की राशि पति की आय और परिस्थितियों के अनुसार तय होगी।


निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट का अंकित सुमन बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य फैसला भारतीय matrimonial law में एक मील का पत्थर है। इसने यह स्पष्ट कर दिया कि भरण-पोषण से बचने का कोई रास्ता नहीं है

  • मुकदमा लंबित रहते हुए पत्नी या आर्थिक रूप से कमजोर जीवनसाथी को सहायता मिलती रहेगी।
  • कानूनी तकनीकी खामियों का सहारा लेकर पति अब जिम्मेदारी से बच नहीं पाएंगे।
  • यह निर्णय न्याय तक समान पहुँच और लैंगिक न्याय (Gender Justice) की दिशा में एक ठोस कदम है।

विवाह केवल सामाजिक संस्था ही नहीं, बल्कि संवैधानिक और कानूनी दायित्व भी है। इस निर्णय ने पति-पत्नी दोनों के अधिकारों और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन कायम करने का प्रयास किया है।


संभावित प्रश्न-उत्तर

1. प्रश्न: हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर: धारा 24 का उद्देश्य मुकदमेबाजी के दौरान आर्थिक रूप से निर्बल जीवनसाथी (अक्सर पत्नी) को उचित भरण-पोषण और मुकदमे का खर्च दिलाना है ताकि न्याय तक समान पहुँच सुनिश्चित हो सके।


2. प्रश्न: Ankit Suman v. State of U.P. केस में मुख्य विवाद क्या था?

उत्तर: विवाद यह था कि क्या तलाक की कार्यवाही पर Stay लग जाने से भरण-पोषण आदेश स्वतः समाप्त हो जाएगा, या तब तक लागू रहेगा जब तक मुकदमा औपचारिक रूप से समाप्त न हो जाए।


3. प्रश्न: न्यायालय ने “Stay” और “Quash” में क्या अंतर बताया?

उत्तर: “Stay” का अर्थ कार्यवाही को अस्थायी रूप से रोकना है, जबकि “Quash” का अर्थ मुकदमे को पूरी तरह निरस्त करना है। Stay के दौरान मुकदमा लंबित रहता है और भरण-पोषण दायित्व भी जारी रहता है।


4. प्रश्न: क्या पुनरीक्षण (Revision), अपील या बहाली (Restoration) के लंबित रहने पर भी भरण-पोषण देना होगा?

उत्तर: हाँ, जब तक कार्यवाही लंबित है, पति का भरण-पोषण का दायित्व जारी रहेगा।


5. प्रश्न: धारा 24 के अंतर्गत दिया गया भरण-पोषण आदेश किस प्रकार लागू किया जाता है?

उत्तर: यह आदेश एक सिविल डिक्री की तरह लागू किया जाता है और इसके उल्लंघन पर वसूली की कार्यवाही हो सकती है।


6. प्रश्न: इस निर्णय का महिलाओं के अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

उत्तर: यह महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा देगा और पति को कानूनी तकनीकी खामियों का सहारा लेकर भरण-पोषण से बचने से रोकेगा।


7. प्रश्न: पूर्व में भरण-पोषण संबंधी कौन-सा सुप्रीम कोर्ट का निर्णय उल्लेखनीय है?

उत्तर: जसबीर कौर सहगल बनाम जिला न्यायाधीश देहरादून (AIR 1997 SC 3397) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भरण-पोषण पति की आय और जीवन स्तर के अनुरूप तय किया जाएगा।


8. प्रश्न: इस निर्णय से कौन-सा loophole बंद हुआ है?

उत्तर: पति अक्सर Stay लेकर भरण-पोषण देने से बच जाते थे। अब यह loophole बंद हो गया है और Stay के बावजूद दायित्व जारी रहेगा।


9. प्रश्न: न्यायालय ने भरण-पोषण आदेश के पीछे कौन-सा संवैधानिक सिद्धांत रेखांकित किया?

उत्तर: न्यायालय ने न्याय तक समान पहुँच (Access to Justice) और लैंगिक न्याय (Gender Justice) के संवैधानिक सिद्धांत को मजबूत किया।


10. प्रश्न: इस निर्णय की आलोचनात्मक दृष्टि से क्या चुनौती हो सकती है?

उत्तर: आलोचक कह सकते हैं कि लंबे मुकदमे में पति पर अधिक आर्थिक बोझ पड़ सकता है या पत्नी भरण-पोषण का दुरुपयोग कर सकती है। फिर भी अदालत यह संतुलन पति की आय और परिस्थितियों के आधार पर बनाती है।