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काले कोट में वकील: इतिहास, कारण और कानूनी प्रथा

काले कोट में वकील: इतिहास, कारण और कानूनी प्रथा

वकालत का पेशा न केवल कानून के ज्ञान और न्यायप्रियता का प्रतीक है, बल्कि इसका अपना एक विशेष परिधान और पहचान भी है। अदालत में वकील द्वारा पहना जाने वाला काला कोट (Black Coat) आज के समय में न्यायपालिका का स्थायी प्रतीक बन गया है। यह कोट और उससे जुड़ी वेशभूषा, जैसे सफेद बैंड और टाई, सिर्फ एक पोशाक नहीं बल्कि पेशे की गरिमा, शिष्टाचार और न्याय की प्रतिष्ठा का प्रतीक हैं। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि वकील क्यों केवल काले कोट पहनते हैं, इसका इतिहास, कानूनी महत्व और आधुनिक न्यायिक परिप्रेक्ष्य।


1. वकालत की शुरुआत और प्रारंभिक वेशभूषा

भारत और ब्रिटेन में वकालत की परंपरा का इतिहास गहरा और पुराना है। ब्रिटेन में वकालत की शुरूआत लगभग साल 1327 में हुई थी। उस समय न्यायाधीश और वकील दोनों की वेशभूषा पूरी तरह भिन्न थी।

  • प्रारंभ में जज अपने सिर पर भूरे बालों का आभूषण और लाल रंग के कपड़े पहनते थे
  • वकील भी अदालत में उपस्थित होने के लिए अपने समय के अनुरूप रंगीन और भव्य परिधान पहनते थे।
  • इस समय का उद्देश्य मुख्य रूप से आदर्श, सम्मान और शिष्टाचार का प्रदर्शन करना था।

2. 1600 के दशक में बदलाव

साल 1600 के आसपास वकालत की वेशभूषा में महत्वपूर्ण बदलाव आया। यह बदलाव सार्वजनिक और पेशेवर मानकों के अनुरूप था।

  • 1637 में एक प्रस्ताव रखा गया कि वकीलों की वेशभूषा जनता के अनुरूप होनी चाहिए।
  • इसका उद्देश्य था कि वकील जनता के बीच पहचाने जा सकें और उनका व्यवहार पेशेवर और निष्पक्ष प्रतीत हो।
  • इस समय वकीलों ने अपने कपड़ों में गंभीरता और शालीनता लाना शुरू किया, जिससे उनके पेशे का गंभीर और सम्मानजनक स्वरूप सामने आया।

3. काले कोट का चलन: शोक सभा का कारण

साल 1694 में ब्रिटेन की क्वीन मैरी की चेचक से मृत्यु हो गई। उसके पति, राजा विलियम, ने इस दुःख की स्मृति में सभी न्यायाधीशों और वकीलों को शोक सभा में काले रंग के गाउन पहनने का आदेश जारी किया।

  • वकीलों ने राजा के आदेश का पालन किया और शोक सभा में काले गाउन में पहुंचे।
  • हालांकि यह प्रारंभिक आदेश केवल शोक सभा तक सीमित था, लेकिन राजा विलियम ने इसे निरस्त नहीं किया
  • धीरे-धीरे यह प्रथा स्थायी हो गई और काले कोट को वकालत का पहचान चिन्ह बना दिया।

यह घटना वकीलों की वेशभूषा में स्थायित्व और गंभीरता लाने वाला एक मील का पत्थर साबित हुई।


4. काले कोट का प्रतीकात्मक महत्व

काले कोट में वकील केवल पोशाक ही नहीं पहनता, बल्कि यह विभिन्न मूल्य और प्रतीकों को दर्शाता है:

  1. गंभीरता और शालीनता:
    • काला रंग गंभीरता, अनुशासन और पेशेवर शालीनता का प्रतीक है।
    • अदालत में वकील का यह स्वरूप न्यायाधीश और पक्षकार दोनों पर प्रभाव डालता है।
  2. निष्पक्षता का प्रतीक:
    • रंग में कोई चमक या आकर्षक तत्व नहीं होता, जिससे वकील का ध्यान केवल न्याय और कानून पर केंद्रित रहता है।
  3. परंपरा और पहचान:
    • काले कोट ने वकीलों को जनता और अदालत में एक समान और पहचाने जाने योग्य पहचान दी।
  4. शोक और संवेदनशीलता:
    • इसकी उत्पत्ति शोक सभा से हुई है, इसलिए यह सामाजिक और भावनात्मक संवेदनाओं का प्रतीक भी है।

5. भारत में कानूनी रूपांतरण

भारत में वकालत की प्रथा ब्रिटिश शासन के दौरान आई। अंग्रेजों ने न्यायपालिका और वकीलों के लिए कानूनी वेशभूषा का नियम लागू किया।

  • 1961 में अधिवक्ता अधिनियम के तहत अदालतों में पेश होने वाले वकीलों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया कि वे काला कोट, सफेद बैंड और शर्ट टाई पहनें
  • अधिनियम का उद्देश्य था वकीलों की पेशेवर पहचान बनाए रखना और अदालत में शिष्टाचार को सुनिश्चित करना

इस प्रकार भारत में भी ब्रिटिश परंपरा का पालन करते हुए काले कोट को पेशे का अनिवार्य हिस्सा बनाया गया।


6. काले कोट के साथ सफेद बैंड और टाई का महत्व

  • सफेद बैंड: न्याय, निष्पक्षता और पारदर्शिता का प्रतीक।
  • काली कोट और सफेद बैंड का संयोजन: वकील का पूरा स्वरूप पेशेवर और गंभीर बनाता है।
  • यह संयोजन अदालत में समानता, एकरूपता और पेशेवर गरिमा दर्शाता है।

7. आधुनिक समय में काले कोट की प्रथा

आज, काले कोट में वकील सिर्फ परंपरा के लिए नहीं बल्कि कानूनी और पेशेवर आवश्यकताओं के लिए अदालत में उपस्थित होते हैं।

  • यह जज और पक्षकार दोनों पर प्रभाव डालता है
  • अदालत में शिष्टाचार बनाए रखने और पेशे की गरिमा को दर्शाने के लिए इसे अनिवार्य माना जाता है।
  • कई बार वकील और न्यायाधीशों के बीच समान पोशाक से अनावश्यक भेदभाव और ध्यान भटकाने वाले तत्वों से बचा जाता है।

8. काले कोट पहनने के फायदे

  1. पेशे की गंभीरता:
    • वकील का स्वरूप न्यायाधीश और अदालत में गंभीरता दर्शाता है।
  2. समाज में पहचान:
    • काले कोट ने वकील को समाज में एक पहचाने जाने योग्य पेशेवर पहचान दी।
  3. आंतरिक अनुशासन:
    • पहनावे का नियम वकीलों में आंतरिक अनुशासन और प्रोफेशनलिज़्म बनाए रखता है।
  4. निष्पक्षता का प्रतीक:
    • रंगीन या आकर्षक परिधान नहीं, जिससे सिर्फ न्याय और कानून पर ध्यान केंद्रित होता है।

9. कुछ सामान्य भ्रांतियाँ और तथ्य

भ्रांति तथ्य
वकील सिर्फ काले कोट इसलिए पहनते हैं क्योंकि यह फैशन है। नहीं, इसका कारण इतिहास, शोक और पेशेवर गरिमा है।
काले कोट पहनना आज अनिवार्य नहीं है। भारत में अधिनियम 1961 के तहत काला कोट अनिवार्य है।
कोट सिर्फ जजों के आदेश से आया। आंशिक रूप से सही है, लेकिन इसे स्थायी रूप से कानून और परंपरा ने सुनिश्चित किया

10. निष्कर्ष

काले कोट में वकील केवल पोशाक नहीं पहनता, बल्कि इतिहास, पेशेवर गरिमा और न्याय की पहचान पहनता है।

  • इसकी उत्पत्ति ब्रिटेन की शोक सभा से हुई।
  • बाद में इसे पेशेवर और कानूनी रूप दे दिया गया।
  • भारत में अधिनियम 1961 के तहत इसे अनिवार्य कर दिया गया।

याद रखिए: वकील का काला कोट निष्पक्षता, अनुशासन और न्यायप्रियता का प्रतीक है। यह अदालत में वकील की पहचान, गरिमा और पेशेवर दृष्टिकोण को बनाए रखता है।

इस प्रकार, काले कोट पहनना वकील की पेशेवर शालीनता और न्यायपालिका के प्रति सम्मान का प्रत्यक्ष प्रतीक है।


Visual Timeline: काले कोट में वकीलों का इतिहास (1327–1961)

1327 – वकालत की शुरूआत

  • जज और वकील रंगीन कपड़े पहनते थे।
  • जज भूरे बाल और लाल रंग के कपड़े पहनते थे।

1600 – पेशेवर वेशभूषा का प्रस्ताव

  • 1637 में प्रस्ताव रखा गया कि वकीलों की पोशाक जनता के अनुरूप हो।
  • वकीलों ने पेशेवर और शिष्ट स्वरूप अपनाना शुरू किया।

1694 – शोक सभा और काले गाउन की शुरुआत

  • क्वीन मैरी की चेचक से मृत्यु।
  • राजा विलियम ने सभी जज और वकीलों को काले गाउन में शोक सभा में उपस्थित होने का आदेश दिया।
  • इस आदेश के बाद काले गाउन की प्रथा स्थायी रूप से अपनाई गई।

1700–1800 – काले गाउन का सामान्य उपयोग

  • वकील और जज सभी पेशेवर अवसरों पर काले गाउन पहनने लगे।
  • शिष्टाचार और पेशेवर पहचान का प्रतीक बन गया।

19वीं सदी (1800–1900) – ब्रिटिश कालीन भारत में प्रथा का आगमन

  • भारत में ब्रिटिश न्याय प्रणाली के तहत वकीलों ने काले कोट पहनना शुरू किया।
  • पेशेवर अनुशासन और न्याय प्रणाली में समानता सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य।

1961 – अधिवक्ता अधिनियम

  • भारत में अदालतों में काला कोट, सफेद बैंड और शर्ट टाई पहनना अनिवार्य कर दिया गया।
  • वकीलों की पेशेवर पहचान और अदालत में शिष्टाचार को कानूनी रूप दे दिया गया।