JURISPRUDENCE SHORT ANS. UNIT- II:
1. Sources of Law
कानून के स्रोत (Sources of Law) वे माध्यम हैं जिनसे विधि की उत्पत्ति और विकास होता है। मुख्य स्रोत तीन माने जाते हैं – विधान (Legislation), न्यायनज़ीर (Precedent), और प्रथा (Custom)। इन स्रोतों से विधि का स्वरूप तय होता है। विधान आधुनिक काल में सबसे प्रमुख स्रोत है क्योंकि यह जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा बनाया जाता है। प्राचीन काल में प्रथा और धार्मिक ग्रंथ भी कानून का प्रमुख स्रोत थे। न्यायालयों के निर्णयों से उत्पन्न मिसालें भी विधि का महत्वपूर्ण स्रोत बन चुकी हैं। इस प्रकार कानून का स्रोत समाज की आवश्यकताओं, परंपराओं और न्याय की अवधारणाओं पर आधारित होता है।
2. Legal and Historical Sources
Legal Sources वे हैं जिनसे प्रत्यक्ष रूप से विधि की उत्पत्ति होती है, जैसे – विधान, न्यायनज़ीर और प्रथा। ये स्रोत वर्तमान और जीवंत माने जाते हैं।
Historical Sources अप्रत्यक्ष स्रोत होते हैं जिनसे विधि के विकास की ऐतिहासिक झलक मिलती है। इनमें प्राचीन ग्रंथ, शास्त्र, धार्मिक पुस्तकें, अभिलेख, परंपराएं और प्राचीन विधिक व्यवस्थाएँ शामिल हैं। ऐतिहासिक स्रोत विधि को आधार और प्रेरणा प्रदान करते हैं, जबकि विधिक स्रोत वर्तमान में लागू विधि को जन्म देते हैं।
3. Legislation – Definition
Legislation का अर्थ है – जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों अथवा सक्षम प्राधिकारी द्वारा विधिवत् बनाई गई लिखित विधि। यह कानून का सबसे संगठित और आधुनिक स्रोत है। ब्लैकस्टोन के अनुसार – “Legislation वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सक्षम प्राधिकारी आदेश या नियम बनाकर उन्हें लागू करता है।” आधुनिक लोकतांत्रिक समाज में विधान सर्वोच्च स्रोत माना जाता है क्योंकि यह जनप्रतिनिधियों की सामूहिक इच्छा का परिणाम होता है।
4. Classification of Legislation
Legislation को विभिन्न आधारों पर विभाजित किया जाता है –
- Supreme and Subordinate Legislation
- Direct and Indirect Legislation
- Substantive and Procedural Legislation
- Ordinary and Constitutional Legislation
यह वर्गीकरण विधि निर्माण की प्रकृति और स्रोत की शक्ति पर आधारित है। उदाहरणतः भारतीय संसद द्वारा बनाया गया कानून सर्वोच्च है, जबकि राज्य सरकार या स्थानीय निकाय द्वारा बनाया गया कानून अधीनस्थ माना जाता है।
5. Supreme and Subordinate Legislation
Supreme Legislation वह है जो सर्वोच्च विधायी संस्था द्वारा बनाई जाती है और किसी अन्य प्राधिकारी के अधीन नहीं होती, जैसे – भारतीय संसद का कानून।
Subordinate Legislation वह है जो सर्वोच्च विधायी संस्था के अधिकार से अधीनस्थ निकायों द्वारा बनाई जाती है, जैसे – नगरपालिका नियम, अधिसूचनाएँ आदि। सर्वोच्च विधान सार्वभौमिक होता है जबकि अधीनस्थ विधान सीमित अधिकार में ही मान्य होता है।
6. Direct and Indirect Legislation
Direct Legislation वह है जो सीधे विधायी निकाय द्वारा बनाई जाती है, जैसे संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम।
Indirect Legislation उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें विधायी निकाय अपने अधिकार किसी अधीनस्थ प्राधिकारी को सौंप देता है, जिसे Delegated Legislation भी कहते हैं। इसका उपयोग तकनीकी, प्रशासनिक या आपात परिस्थितियों में किया जाता है।
7. Principles of Statutory Interpretation
विधियों की व्याख्या के लिए न्यायालय कुछ सिद्धांतों का पालन करते हैं –
- Literal Rule – शब्दों का शाब्दिक अर्थ लेना।
- Golden Rule – शाब्दिक अर्थ से असंगति होने पर यथोचित व्याख्या करना।
- Mischief Rule – उस दोष या समस्या को दूर करने हेतु व्याख्या करना जिसके लिए कानून बनाया गया था।
- Harmonious Construction – विभिन्न प्रावधानों में सामंजस्य स्थापित करना।
ये सिद्धांत न्याय और विधि की सही भावना को लागू करने में सहायक होते हैं।
8. Precedent – Definition
Precedent का अर्थ है – पूर्व में न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय या सिद्धांत जिन्हें समान परिस्थितियों में भविष्य के मामलों में अपनाया जाता है। इसे न्यायनज़ीर भी कहते हैं। इंग्लिश लॉ में यह एक महत्वपूर्ण स्रोत है और भारतीय न्यायपालिका में भी इसका विशेष महत्व है।
9. Kinds of Precedent
Precedent के मुख्य प्रकार –
- Authoritative Precedent – जिसे न्यायालय पालन करने के लिए बाध्य होता है।
- Persuasive Precedent – जिसे न्यायालय मानने के लिए बाध्य नहीं है परंतु मार्गदर्शक के रूप में स्वीकार कर सकता है।
- Original Precedent – जो किसी नये विधिक सिद्धांत की स्थापना करता है।
- Declaratory Precedent – जो पूर्व के सिद्धांत की पुष्टि करता है।
10. Stare Decisis
Stare Decisis का अर्थ है – “निर्णयों पर दृढ़ रहना।” यह सिद्धांत कहता है कि न्यायालयों को पूर्व के निर्णयों का पालन करना चाहिए ताकि विधि में स्थिरता और निश्चितता बनी रहे। इससे समान मामलों में समान न्याय सुनिश्चित होता है। हालांकि, जब पूर्व निर्णय अन्यायपूर्ण या अनुपयुक्त हो तो उच्च न्यायालय उन्हें पलट भी सकते हैं।
11. Original and Declaratory Precedents
Original Precedent नया विधिक सिद्धांत स्थापित करता है और भविष्य के लिए मार्गदर्शक बनता है।
Declaratory Precedent मौजूदा सिद्धांत की पुनः पुष्टि करता है और न्यायालय केवल यह घोषित करता है कि पूर्व से ही ऐसा सिद्धांत मौजूद है। दोनों ही विधि विकास में सहायक होते हैं।
12. Authoritative and Persuasive Precedents
Authoritative Precedent बाध्यकारी होता है, जैसे – सुप्रीम कोर्ट के निर्णय उच्च न्यायालयों पर बाध्यकारी हैं।
Persuasive Precedent केवल मार्गदर्शक होते हैं, जैसे – किसी अन्य राज्य के उच्च न्यायालय का निर्णय, या विदेशी न्यायालय का निर्णय। न्यायालय इनका पालन करने के लिए बाध्य नहीं होते।
13. Custom – Definition and Types
Custom समाज में लंबे समय तक प्रचलित प्रथाओं और व्यवहारों को कहते हैं जिन्हें लोग बाध्यकारी मानते हैं।
इसके प्रकार –
- General Custom – पूरे देश या बड़े क्षेत्र में लागू प्रथा।
- Local Custom – किसी विशेष स्थान या समुदाय तक सीमित प्रथा।
Custom विधि का प्राचीन स्रोत है और कई बार यह लिखित कानून से भी अधिक प्रभावी होता है।
14. Requisites of a Valid Custom
एक वैध प्रथा के लिए आवश्यक शर्तें –
- प्राचीनता – बहुत लंबे समय से प्रचलित हो।
- निरंतरता – लगातार पालन किया जाता हो।
- निश्चितता – स्पष्ट और संदेह रहित हो।
- उचितता – न्यायसंगत और लोकहितकारी हो।
- विधि के विरुद्ध न हो।
यदि ये शर्तें पूरी हों तो प्रथा को कानून का स्वरूप मिल सकता है।
15. Relative Merits and Demerits of Legislation, Precedent and Custom; Codification
Legislation का गुण यह है कि यह स्पष्ट, लिखित और सार्वभौमिक है, परंतु दोष यह है कि यह कठोर और कभी-कभी व्यावहारिक आवश्यकताओं से दूर हो सकता है।
Precedent का गुण यह है कि यह न्यायालयीन अनुभव पर आधारित होता है और व्यावहारिक होता है, परंतु दोष यह कि बहुत अधिक निर्णयों से भ्रम की स्थिति बन सकती है।
Custom का गुण यह है कि यह समाज की स्वीकृति पर आधारित होता है, परंतु दोष यह कि यह कभी-कभी पुराना और अन्यायपूर्ण हो सकता है।
Codification के लाभ – कानून स्पष्ट, संगठित और सभी के लिए सुलभ हो जाता है। हानि – समाज की बदलती परिस्थितियों के अनुरूप तुरंत बदलाव कठिन होता है।
16. Codification – Meaning
Codification का अर्थ है – किसी विशेष विषय से संबंधित समस्त विधि का संकलन और व्यवस्थित लिखित रूप में संहिताकरण। यह प्रक्रिया कानून को निश्चित, स्पष्ट और सुलभ बनाती है। उदाहरण के लिए – भारतीय दंड संहिता, 1860 तथा भारतीय संविदा अधिनियम, 1872। संहिताकरण से कानून में समानता और एकरूपता आती है। यह समाज के सभी वर्गों को एक समान रूप से लागू होता है। इसका उद्देश्य न्यायिक अनिश्चितता को दूर करना और लोगों को यह स्पष्ट करना है कि उनके अधिकार और कर्तव्य क्या हैं।
17. Advantages of Codification
संहिताकरण के प्रमुख लाभ –
- निश्चितता और स्पष्टता – कानून लिखित और सुस्पष्ट होता है।
- सुलभता – नागरिक आसानी से अपने अधिकार समझ सकते हैं।
- एकरूपता – पूरे देश में समान रूप से लागू होता है।
- न्यायालयों का मार्गदर्शन – न्यायाधीशों को निर्णय देने में सुविधा होती है।
- कानून का स्थायित्व – बार-बार बदलाव की आवश्यकता नहीं होती।
इस प्रकार, संहिताकरण न्याय और प्रशासन को सरल एवं प्रभावी बनाता है।
18. Disadvantages of Codification
संहिताकरण के दोष भी हैं –
- कठोरता – लिखित कानून बदलती परिस्थितियों के अनुसार तुरंत अनुकूलित नहीं हो पाता।
- नवाचार की कमी – न्यायालय नए सिद्धांत विकसित करने से बंध जाते हैं।
- जटिलता – बहुत अधिक प्रावधान आम व्यक्ति के लिए समझना कठिन बना देते हैं।
- व्याख्या की समस्या – कभी-कभी भाषा अस्पष्ट होने पर न्यायालय को व्याख्या करनी पड़ती है।
अतः संहिताकरण उपयोगी होते हुए भी समाज की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन योग्य होना चाहिए।
19. Relation between Legislation and Precedent
Legislation और Precedent दोनों ही विधि के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। विधान स्पष्ट और सार्वभौमिक नियम प्रदान करता है, जबकि न्यायनज़ीर व्यावहारिक अनुभव और न्यायालयीन विवेचना पर आधारित होती है। विधान न्यायालय पर बाध्यकारी है, परंतु जब विधान अस्पष्ट होता है, तब न्यायालय पूर्व के निर्णयों को आधार बनाकर व्याख्या करते हैं। इस प्रकार विधान और न्यायनज़ीर परस्पर पूरक हैं। विधान कानून का मूल स्रोत है जबकि न्यायनज़ीर उसकी व्याख्या और अनुप्रयोग का साधन है।
20. Relation between Custom and Legislation
Custom और Legislation का संबंध ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ है। प्राचीन काल में प्रथा ही विधि का प्रमुख स्रोत थी। बाद में इन्हीं प्रथाओं को लिखित रूप देकर विधान का निर्माण हुआ। आज भी कई प्रथाएँ विधानों में सम्मिलित हैं, जैसे – हिंदू विवाह अधिनियम में कई प्रथागत नियम। हालांकि, यदि कोई प्रथा विधान के विरुद्ध है तो विधान को वरीयता दी जाती है। इस प्रकार प्रथा विधान की आधारशिला है, जबकि विधान उसका परिष्कृत रूप है।
21. Importance of Precedent in Indian Legal System
भारतीय विधि प्रणाली में न्यायनज़ीर (Precedent) का अत्यधिक महत्व है। संविधान के अनुच्छेद 141 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी हैं। इससे विधि में निश्चितता, एकरूपता और स्थिरता बनी रहती है। उच्च न्यायालयों के निर्णय अपने राज्य में बाध्यकारी होते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य राज्यों के निर्णय मार्गदर्शक के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं। न्यायनज़ीर से विधि का विकास होता है और यह न्यायालयों को समान मामलों में समान न्याय करने के लिए बाध्य करता है।
22. Limitations of Precedent
न्यायनज़ीर की कुछ सीमाएँ हैं –
- निर्णयों की अधिकता – अनेक निर्णयों से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
- जटिल भाषा – निर्णयों को समझना आम व्यक्ति के लिए कठिन होता है।
- गलत नज़ीर – कभी-कभी न्यायालय गलत निर्णय भी दे देते हैं जिन्हें बाद में पलटना पड़ता है।
- लचीलापन की कमी – पूर्व निर्णयों पर अत्यधिक निर्भरता नए सिद्धांतों के विकास में बाधक हो सकती है।
इसलिए न्यायनज़ीर का महत्व होते हुए भी इसकी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयाँ हैं।
23. Importance of Custom in Law
Custom समाज का सबसे प्राचीन विधि स्रोत है। लोग इसे बाध्यकारी मानते हैं और लंबे समय तक पालन करते हैं। यह समाज की आवश्यकताओं, परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं का परिचायक है। कई बार प्रथाएँ इतनी सुदृढ़ हो जाती हैं कि न्यायालय उन्हें विधि के रूप में मान्यता दे देते हैं। उदाहरण – हिंदू संयुक्त परिवार प्रणाली। प्रथा कानून को समाज से जोड़ती है और उसे व्यावहारिक बनाती है।
24. Demerits of Custom as a Source of Law
प्रथा के दोष –
- अनिश्चितता – हर क्षेत्र में अलग-अलग प्रथाएँ।
- पुरातनता – कई प्रथाएँ आधुनिक मूल्यों के विपरीत होती हैं।
- परिवर्तन की कठिनाई – प्रथा को बदलना कठिन होता है।
- विरोधाभास – विभिन्न प्रथाएँ आपस में टकरा सकती हैं।
इसलिए प्रथा का महत्व होते हुए भी यह आधुनिक समाज की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप हमेशा उपयुक्त नहीं होती।
25. Difference between Legislation and Custom
Legislation लिखित और संगठित रूप में कानून का स्रोत है जबकि Custom प्राचीन और व्यवहारगत स्रोत है। विधान जनप्रतिनिधियों द्वारा बनाया जाता है, जबकि प्रथा समाज द्वारा स्वतः उत्पन्न होती है। विधान निश्चित और सार्वभौमिक है, जबकि प्रथा स्थानीय और कभी-कभी अस्पष्ट होती है। आधुनिक युग में विधान को प्राथमिकता दी जाती है, परंतु प्रथा भी कई बार सहायक स्रोत बनी रहती है।
26. Difference between Legislation and Precedent
Legislation जनप्रतिनिधियों द्वारा पारित लिखित कानून है, जबकि Precedent न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णय हैं। विधान अग्रिम रूप से नियम बनाता है, जबकि न्यायनज़ीर पश्चात रूप से नियम निर्धारित करती है। विधान सार्वभौमिक और बाध्यकारी है, जबकि न्यायनज़ीर का प्रभाव उस क्षेत्र या न्यायालय तक सीमित होता है। दोनों मिलकर विधि व्यवस्था को स्थिरता और लचीलापन प्रदान करते हैं।
27. Difference between Custom and Precedent
Custom समाज द्वारा मान्य प्रथा है जबकि Precedent न्यायालय का निर्णय है। प्रथा अनौपचारिक और प्राचीन स्रोत है, जबकि न्यायनज़ीर औपचारिक और आधुनिक स्रोत है। प्रथा स्थानीय और विविध हो सकती है, जबकि न्यायनज़ीर अधिक संगठित और निश्चित होती है। दोनों का उद्देश्य समाज में न्याय और व्यवस्था बनाए रखना है, परंतु आधुनिक युग में न्यायनज़ीर की वरीयता अधिक है।
28. Relative Merits of Legislation, Precedent and Custom
Legislation का गुण – स्पष्टता और निश्चितता।
Precedent का गुण – व्यावहारिक न्याय और लचीलापन।
Custom का गुण – समाज की स्वीकृति और परंपरा।
तीनों स्रोत अपनी-अपनी दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। विधान आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार उपयुक्त है, न्यायनज़ीर न्यायालयीन अनुभव पर आधारित है, और प्रथा समाज के विश्वास को दर्शाती है।
29. Relative Demerits of Legislation, Precedent and Custom
Legislation का दोष – कठोरता और तत्काल बदलाव की कमी।
Precedent का दोष – निर्णयों की अधिकता और अस्पष्टता।
Custom का दोष – अनिश्चितता और पुरातनता।
तीनों स्रोतों के दोषों के बावजूद ये विधि व्यवस्था को आधार प्रदान करते हैं। आधुनिक युग में विधान को प्रमुख माना जाता है, परंतु अन्य स्रोत भी पूरक भूमिका निभाते हैं।
30. Conclusion on Sources of Law
निष्कर्षतः, विधि के स्रोतों में विधान, न्यायनज़ीर और प्रथा सभी का विशेष महत्व है। विधान आधुनिक लोकतांत्रिक समाज का प्रमुख स्रोत है, न्यायनज़ीर न्यायालयों द्वारा विकसित व्यावहारिक नियम है, और प्रथा समाज की स्वीकृति और परंपरा पर आधारित है। संहिताकरण ने कानून को स्पष्ट और संगठित बना दिया है। हालांकि, प्रत्येक स्रोत की सीमाएँ भी हैं। विधि के विकास और स्थिरता के लिए सभी स्रोत परस्पर पूरक हैं।