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आरोपी के बरी होने पर वारिस भी कर सकते हैं अपील: सुप्रीम कोर्ट – पीड़ित को भी समान अवसर

आरोपी के बरी होने पर वारिस भी कर सकते हैं अपील: सुप्रीम कोर्ट – पीड़ित को भी समान अवसर

सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2025 को एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि अपराध के पीड़ित और उनके कानूनी उत्तराधिकारी आरोपी की बरी होने की स्थिति में उच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकते हैं। यह फैसला न केवल अपराध पीड़ितों के अधिकारों को मजबूत करता है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में समानता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है।

इस निर्णय की बेंच में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन शामिल थे। अदालत ने कहा कि अपराध पीड़ित के अधिकार को आरोपी के अधिकार के समान दर्जा दिया जाना चाहिए। इस फैसले के तहत यह स्पष्ट किया गया कि यदि आरोपी को किसी अपराध में बरी कर दिया जाता है, तो पीड़ित को भी उसी न्यायिक मंच पर अपील करने का अधिकार है, जैसा कि आरोपी के पास होता है।


पीड़ित का समान अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्याय प्रक्रिया में सभी पक्षों को समान अवसर मिलना चाहिए। जैसे दोषसिद्धि के मामले में आरोपी अपील कर सकता है, वैसे ही पीड़ित को यह अधिकार होना चाहिए कि वह कम सजा, अपर्याप्त मुआवजे या आरोपी के बरी होने की स्थिति में उच्च न्यायालय में अपील कर सके। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अपराध पीड़ित की अपील का अधिकार किसी भी परिस्थिति में सीमित नहीं किया जा सकता।

इस फैसले का उद्देश्य पीड़ितों को न्याय प्राप्ति में समान अधिकार देना और यह सुनिश्चित करना है कि न्याय की प्रक्रिया में उन्हें वंचित न किया जाए। कोर्ट ने कहा कि यदि पीड़ित की मृत्यु हो जाती है, तो उसके कानूनी उत्तराधिकारी इस अपील को आगे बढ़ा सकते हैं। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि न्याय प्रक्रिया में पीड़ित के अधिकार समाप्त न हों और उसके उत्तराधिकारी न्याय की दिशा में कदम उठा सकें।


दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 372

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 372 का उल्लेख किया। यह धारा 2009 में संशोधित की गई थी, और इसके तहत अपराध पीड़ितों को यह अधिकार दिया गया कि वे आरोपी की बरी होने की स्थिति में अपील कर सकें।

धारा 372 के संशोधन से पहले केवल अभियोजन पक्ष और आरोपी को ही अपील का अधिकार था। इस संशोधन ने अपराध पीड़ितों के अधिकारों को न्यायिक प्रक्रिया में समान दर्जा प्रदान किया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में इस तथ्य को रेखांकित किया कि कानून की यह व्याख्या पीड़ितों के लिए न्याय प्राप्ति को अधिक सुलभ बनाती है।


कानूनी उत्तराधिकारियों की भूमिका

यदि पीड़ित अपील की प्रक्रिया के दौरान मृत्यु हो जाता है, तो उसके कानूनी उत्तराधिकारी इस अपील को आगे बढ़ा सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि न्याय की प्रक्रिया में किसी भी तरह का अंतराल या अवरोध पीड़ित के अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता। इससे यह सुनिश्चित होता है कि न्यायिक प्रक्रिया में निरंतरता बनी रहे और पीड़ित के परिवार को न्याय प्राप्त करने का अवसर मिले।

कानूनी उत्तराधिकारी पीड़ित के अपील के अधिकार को बनाए रखते हैं और उच्च न्यायालय में आरोपी के खिलाफ अपील को आगे बढ़ा सकते हैं। यह व्यवस्था समाज में न्याय के प्रति विश्वास को मजबूत करती है और पीड़ितों तथा उनके परिवारों को न्याय प्रणाली में सक्रिय भागीदारी का अवसर प्रदान करती है।


समाज पर प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक प्रभाव भी व्यापक है। यह कदम समाज में यह संदेश देता है कि न्याय प्रणाली में पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा की जाएगी।

  1. न्याय के प्रति विश्वास: पीड़ित और उनके परिवारों को यह अधिकार मिलने से न्याय प्रणाली में विश्वास बढ़ता है।
  2. समान अवसर: सभी पक्षों को न्याय प्रक्रिया में समान अवसर प्राप्त होता है, जिससे न्याय की निष्पक्षता सुनिश्चित होती है।
  3. पीड़ित की सुरक्षा: यह निर्णय पीड़ितों को यह आश्वासन देता है कि उनके अधिकार और अपील का हक उनके और उनके उत्तराधिकारियों तक सुरक्षित रहेगा।
  4. सुधारात्मक कदम: कानून में संशोधन और सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्णय समाज में अपराध के प्रति कड़ा संदेश भेजते हैं और न्याय प्रक्रिया को सशक्त बनाते हैं।

न्यायिक दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया में केवल आरोपी को ही अधिकार देना न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। पीड़ित और उनके उत्तराधिकारी को समान अधिकार देकर यह सुनिश्चित किया जाता है कि न्याय प्रक्रिया में किसी पक्ष को अन्याय का सामना न करना पड़े।

अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि अपील का अधिकार किसी भी परिस्थिति में सीमित नहीं किया जा सकता। चाहे यह कम सजा, अपर्याप्त मुआवजा या आरोपी की बरी की स्थिति हो, पीड़ित को हमेशा न्याय की उच्च अदालत में अपील करने का अधिकार होना चाहिए।


निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक निर्णय अपराध पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए न्याय प्राप्ति की प्रक्रिया में समान अवसर और अधिकार सुनिश्चित करता है।

  • यह फैसला पीड़ितों को न्याय प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी का अवसर देता है।
  • कानूनी उत्तराधिकारी अपील की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं, जिससे न्याय में निरंतरता बनी रहती है।
  • यह निर्णय समाज में न्याय प्रणाली के प्रति विश्वास बढ़ाता है और पीड़ितों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्थापित किया कि न्याय की प्रक्रिया में पीड़ित और उनके उत्तराधिकारी को आरोपी के समान अधिकार और अवसर प्रदान किए जाने चाहिए, ताकि न्याय सुलभ, निष्पक्ष और समान हो।