IndianLawNotes.com

गुजरात हाईकोर्ट का निर्णय: घरेलू हिंसा मामलों में सीडी को साक्ष्य के रूप में स्वीकार्यता

गुजरात हाईकोर्ट का निर्णय: घरेलू हिंसा मामलों में सीडी को साक्ष्य के रूप में स्वीकार्यता

लेखक: [Adv. P.K. Nigam]

घरेलू हिंसा के मामलों में साक्ष्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अक्सर पीड़ित पक्ष को अपने अनुभवों और उत्पीड़न को साबित करने के लिए ठोस साक्ष्य की आवश्यकता होती है। गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में घरेलू हिंसा के मामले में सीडी रिकॉर्डिंग (CD Recording) को साक्ष्य के रूप में स्वीकार्यता प्रदान की, जिससे पीड़ित की सुरक्षा और न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।

मामले का तथ्यात्मक आधार

इस मामले में याचिकाकर्ता, जो पत्नी के रूप में पेश हुई, ने अदालत में एक सीडी प्रस्तुत की जिसमें पति और अन्य परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत रिकॉर्ड की गई थी। सीडी के साथ उसने एक प्रतिलिपि (transcript) और सेक्शन 65B के तहत प्रमाणपत्र भी प्रस्तुत किया, जिसमें उसने अपनी आवाज, पति की आवाज और परिवार के अन्य सदस्यों की आवाज़ों की पहचान की।

याचिकाकर्ता ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि रिकॉर्ड की गई बातचीत में किसी प्रकार की छेड़छाड़ या मिटाई गई जानकारी नहीं है, और इस सीडी के माध्यम से उसने संपत्ति गृह में होने वाले क्रूर व्यवहार को साबित करने की कोशिश की।

अदालती विश्लेषण और सीडी की स्वीकार्यता

कोर्ट ने माना कि जब पत्नी ने प्रमाणित किया कि सीडी में शामिल आवाज़ें उसके पति और परिवार के सदस्यों की हैं, तो आवाज़ों की पहचान पर कोई विवाद नहीं है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि परिवारिक मामलों में न्यायालय सभी प्रासंगिक सूचनाओं, दस्तावेजों, रिपोर्टों और बयानों को विचार में ले सकता है, चाहे वे साक्ष्य अधिनियम के तहत औपचारिक रूप से स्वीकार्य हों या न हों। यह दृष्टिकोण सेक्शन 14 और अन्य प्रावधानों के अनुरूप है, जो अदालत को विवादों के समाधान में सक्षम बनाते हैं।

सीडी की सटीकता (accuracy) को हैश वैल्यू (Hash Value) के माध्यम से भी पुष्टि की गई। हैश वैल्यू यह सुनिश्चित करती है कि रिकॉर्डिंग में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ। इसके आधार पर अदालत ने यह निर्णय दिया कि प्रस्तुत सीडी साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है

प्रासंगिक कानूनी प्रावधान

इस मामले में कोर्ट ने निम्नलिखित प्रावधानों का उल्लेख किया:

  1. Domestic Violence Act (DV Act) Sections 19, 20, 21, 28, 31 – ये प्रावधान पीड़ित को सुरक्षा, राहत और साक्ष्य प्रस्तुत करने के अधिकार देते हैं।
  2. Indian Evidence Act Sections 65B, 7, 8, 73, 122 – ये प्रावधान इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग और डिजिटल साक्ष्य की मान्यता और प्रमाणिकता तय करते हैं।
  3. Section 14 of DV Act – अदालत को परिवारिक मामलों में सभी प्रासंगिक जानकारी को विचार करने की अनुमति देता है।

सीडी के साथ Section 65B का प्रमाणपत्र और हैश वैल्यू प्रस्तुत करना, इसे डिजिटल साक्ष्य के रूप में prima facie मान्य बनाता है, जो अदालत में चुनौती देने योग्य नहीं होता जब तक कि छेड़छाड़ का ठोस प्रमाण न हो।

FSL परीक्षण के लिए याचिका

याचिकाकर्ता ने अदालत से Forensic Science Laboratory (FSL) के माध्यम से सीडी की जांच कराने का अनुरोध किया। उसका उद्देश्य था कि अदालत को और अधिक प्रमाण उपलब्ध कराए जाएं और आवाज़ों की पहचान में मदद मिले। अदालत ने माना कि FSL की रिपोर्ट सीडी पर रिकॉर्ड की गई आवाज़ों की तुलना करने में सहायक होगी, जिससे परिवारिक विवादों में न्याय सुनिश्चित हो सके।

चूंकि कोर्ट ने पहले ही सीडी को साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर लिया था, इसलिए याचिका को FSL परीक्षण के लिए अनुमति दे दी गई। यह निर्णय यह दर्शाता है कि अदालत को डिजिटल साक्ष्यों के प्रयोग और उनका वैज्ञानिक परीक्षण करने में अधिकार है, ताकि न्यायिक प्रक्रिया में सटीकता और विश्वसनीयता बनी रहे।

सीडी साक्ष्य का महत्व

सीडी को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करना घरेलू हिंसा मामलों में कई कारणों से महत्वपूर्ण है:

  1. पीड़ित की सुरक्षा और न्याय – कई बार पीड़ित अपनी कहानी मौखिक रूप से व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं। रिकॉर्डिंग उनके अनुभवों को प्रमाणित करती है।
  2. छेड़छाड़ का न्यूनतम जोखिम – हैश वैल्यू और 65B प्रमाणपत्र यह सुनिश्चित करते हैं कि रिकॉर्डिंग सुरक्षित और अप्रभावित है।
  3. साक्ष्य का मजबूतीकरण – न्यायालय को विवादों में सबूत के रूप में ठोस आधार प्रदान करता है, जिससे निर्णय में पारदर्शिता और विश्वसनीयता आती है।
  4. वैज्ञानिक परीक्षण की संभावना – FSL द्वारा जांच कराकर अदालत को आवाज़ों की तुलना करने में मदद मिलती है, जिससे विवाद सुलझाने में आसानी होती है।

अदालत का दृष्टिकोण

गुजरात हाईकोर्ट ने यह निर्णय समान्य और पारंपरिक साक्ष्यों की तुलना में डिजिटल साक्ष्य की स्वीकार्यता को महत्व देते हुए लिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि परिवारिक मामलों में अदालत का उद्देश्य केवल तकनीकी रूप से साक्ष्य की औपचारिकता नहीं है, बल्कि सत्य की पहचान और न्याय सुनिश्चित करना है।

कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि परिवारिक मामलों में साक्ष्य की प्रासंगिकता और विश्वसनीयता अधिक महत्वपूर्ण होती है, न कि केवल कानूनी तकनीकीता। इस दृष्टिकोण ने डिजिटल साक्ष्य और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग को स्वीकार करने के लिए न्यायालयिक मानक स्थापित किया।

व्यावहारिक और सामाजिक महत्व

  1. पीड़ितों को विश्वास और सहारा – यह निर्णय पीड़ितों को यह विश्वास दिलाता है कि उनके अनुभवों और प्रताड़नाओं को न्यायालय द्वारा गंभीरता से लिया जाएगा।
  2. न्यायिक प्रक्रिया में सुधार – डिजिटल साक्ष्यों का उपयोग कर अदालत समय और संसाधनों की बचत कर सकती है।
  3. डिजिटल साक्ष्य की सुरक्षा और प्रमाणीकरण – 65B प्रमाणपत्र और हैश वैल्यू सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी व्यक्ति साक्ष्य को बदल या मिटा नहीं सकता।
  4. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अपनाना – FSL परीक्षण के माध्यम से आवाज़ों की पहचान करना न्यायिक प्रक्रिया को अधिक सटीक बनाता है।

निष्कर्ष

गुजरात हाईकोर्ट का यह निर्णय घरेलू हिंसा मामलों में डिजिटल साक्ष्य की स्वीकार्यता के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण मिसाल है। अदालत ने स्पष्ट किया कि सीडी रिकॉर्डिंग, प्रतिलिपि और 65B प्रमाणपत्र के साथ, जब इसमें छेड़छाड़ का कोई प्रमाण न हो, तो इसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

साथ ही, FSL परीक्षण की अनुमति देने का निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि अदालत को सभी वैज्ञानिक और तकनीकी उपकरण उपलब्ध हों, जिससे परिवारिक विवादों में न्याय निष्पक्ष और प्रमाणिक रूप से सुनिश्चित किया जा सके।

यह निर्णय पीड़ितों के अधिकार, न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता, और डिजिटल साक्ष्यों की विश्वसनीयता को बढ़ावा देता है। अदालत ने अपने निर्णय में परिवारिक मामलों में न्याय की प्राथमिकता और प्रासंगिकता पर जोर दिया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय का उद्देश्य केवल तकनीकी औपचारिकताओं का पालन नहीं, बल्कि वास्तविक न्याय सुनिश्चित करना है।

इस प्रकार, गुजरात हाईकोर्ट का यह निर्णय डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत पीड़ित की सुरक्षा और डिजिटल साक्ष्यों के महत्व को एक मजबूत कानूनी आधार प्रदान करता है, जो भविष्य में घरेलू हिंसा मामलों में न्यायिक प्रक्रियाओं को मार्गदर्शन देगा।