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महिला वकीलों की सुरक्षा : सुप्रीम कोर्ट ने बार काउंसिल्स को POSH अधिनियम के तहत लाने पर केंद्र और BCI को जारी किया नोटिस

महिला वकीलों की सुरक्षा : सुप्रीम कोर्ट ने बार काउंसिल्स को POSH अधिनियम के तहत लाने पर केंद्र और BCI को जारी किया नोटिस

प्रस्तावना

भारत में कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा का मुद्दा लंबे समय से संवेदनशील विषय रहा है। न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका तीनों ने विभिन्न स्तरों पर इस दिशा में कार्य किया है। वर्ष 2013 में पारित “कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013 (POSH Act)” एक ऐतिहासिक कदम था, जिसने हर महिला कर्मचारी को कार्यस्थल पर सुरक्षित वातावरण का अधिकार दिया। हालांकि, हाल के वर्षों में यह सवाल उठता रहा है कि क्या वकालत करने वाली महिला अधिवक्ताओं को भी POSH अधिनियम के तहत वही सुरक्षा प्राप्त है, जैसी अन्य क्षेत्रों की महिलाओं को मिलती है?

इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका ने नए विमर्श को जन्म दिया है। इस याचिका में मांग की गई है कि बार काउंसिल्स और बार एसोसिएशन्स को भी POSH अधिनियम के दायरे में लाया जाए, ताकि महिला अधिवक्ताओं को यौन उत्पीड़न के मामलों में न्याय और सुरक्षा मिल सके। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर गंभीर रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को नोटिस जारी किया है।


पृष्ठभूमि : POSH अधिनियम, 2013

POSH अधिनियम, 2013 की जड़ें विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) के ऐतिहासिक निर्णय से जुड़ी हैं, जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसके बाद संसद ने 2013 में यह कानून बनाया।

  • अधिनियम के तहत प्रत्येक नियोक्ता के लिए यह अनिवार्य है कि वह आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन करे।
  • शिकायत मिलने पर त्वरित जांच, कार्रवाई और न्याय सुनिश्चित करना नियोक्ता का दायित्व है।
  • अधिनियम किसी भी निजी, सार्वजनिक या गैर-सरकारी संगठन पर लागू होता है, जहाँ कार्यस्थल पर महिला कर्मचारी हों।

हालाँकि, अधिवक्ता महिलाएँ तकनीकी रूप से स्वतंत्र पेशेवर मानी जाती हैं और वे किसी कंपनी या संस्थान की कर्मचारी नहीं होतीं। इस कारण POSH अधिनियम के तहत उनकी स्थिति अस्पष्ट बनी रही।


वर्तमान मामला : जनहित याचिका और सुप्रीम कोर्ट का रुख

हाल ही में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई, जिसमें मांग की गई कि –

  1. बार काउंसिल्स और बार एसोसिएशन्स को POSH अधिनियम के तहत “नियोक्ता” माना जाए।
  2. महिला अधिवक्ताओं के लिए हर बार एसोसिएशन में आंतरिक शिकायत समिति का गठन अनिवार्य किया जाए।
  3. अधिवक्ताओं के चेंबर और कोर्ट परिसरों को “कार्यस्थल” की परिभाषा में शामिल किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस PIL को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार और BCI से जवाब मांगा है। अदालत ने कहा कि यह प्रश्न बेहद गंभीर है और महिला वकीलों की सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


महिला वकीलों की स्थिति और चुनौतियाँ

बार काउंसिल्स और कोर्ट परिसरों में कार्यरत महिला अधिवक्ताओं को कई विशिष्ट चुनौतियों का सामना करना पड़ता है –

  1. चेंबर और कोर्ट रूम में असमान माहौल – महिला वकीलों के साथ कभी-कभी असम्मानजनक व्यवहार, टिप्पणी और भेदभाव की घटनाएँ सामने आती हैं।
  2. शिकायत निवारण की कमी – बार एसोसिएशन्स में POSH जैसी कोई बाध्यकारी शिकायत समिति नहीं है।
  3. पेशेवर दबाव और करियर बाधाएँ – शिकायत करने पर करियर प्रभावित होने का डर रहता है।
  4. लंबे कार्य घंटे और असुरक्षित वातावरण – देर रात तक कोर्ट तैयारी, क्लाइंट मीटिंग और लंबी सुनवाई के कारण जोखिम बढ़ जाता है।

यही कारण है कि महिला अधिवक्ताओं की सुरक्षा हेतु POSH अधिनियम को बार काउंसिल्स तक विस्तारित करना समय की मांग बन चुका है।


सुप्रीम कोर्ट की पहल का महत्व

सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र और BCI को नोटिस जारी करने के कई महत्वपूर्ण आयाम हैं –

  1. न्यायपालिका का प्रगतिशील दृष्टिकोण – कोर्ट ने महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
  2. बार एसोसिएशन्स की जिम्मेदारी तय करना – यदि POSH अधिनियम लागू होता है तो प्रत्येक बार एसोसिएशन को शिकायत समिति गठित करनी होगी।
  3. महिला अधिवक्ताओं को समान अधिकार – अब वे भी उसी सुरक्षा कवच में होंगी, जिसमें अन्य क्षेत्रों की महिलाएँ हैं।
  4. कानूनी पेशे में विश्वास बहाली – यह कदम महिलाओं को न्यायिक क्षेत्र में सुरक्षित और सम्मानजनक स्थान दिलाने में सहायक होगा।

आलोचना और चुनौतियाँ

हालाँकि, इस कदम को लेकर कुछ आलोचनाएँ और व्यावहारिक चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं –

  • स्वतंत्र पेशे की परिभाषा : अधिवक्ता किसी नियोक्ता-कर्मचारी संबंध में नहीं आते, इसलिए POSH अधिनियम की शब्दावली में संशोधन करना पड़ सकता है।
  • संस्थागत ढांचा : देशभर की हजारों बार एसोसिएशन्स में समितियाँ गठित करना चुनौतीपूर्ण होगा।
  • निष्पक्षता का प्रश्न : यदि शिकायतें वरिष्ठ अधिवक्ताओं या न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ हों, तो समिति की निष्पक्षता सुनिश्चित करना कठिन हो सकता है।

भावी संभावनाएँ

यदि सुप्रीम कोर्ट इस PIL पर सकारात्मक निर्णय देता है, तो—

  1. बार एसोसिएशन्स में POSH समितियाँ बनेंगी, जहाँ महिला अधिवक्ता अपनी शिकायत दर्ज करा सकेंगी।
  2. न्यायपालिका में लैंगिक समानता को मजबूती मिलेगी।
  3. भारत में कानूनी पेशे को अधिक सुरक्षित और पारदर्शी बनाया जा सकेगा।
  4. अन्य स्वतंत्र पेशों (जैसे चार्टर्ड अकाउंटेंसी, मेडिकल प्रोफेशन) में भी इसी तरह की बहस शुरू हो सकती है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट की पहल न केवल महिला वकीलों की सुरक्षा बल्कि न्यायपालिका की गरिमा और विश्वसनीयता से भी जुड़ा प्रश्न है। POSH अधिनियम को बार काउंसिल्स और बार एसोसिएशन्स तक लागू करने से महिला अधिवक्ताओं को एक सुरक्षित, समान और सम्मानजनक कार्यस्थल प्राप्त होगा। यह पहल भविष्य में भारतीय विधि व्यवसाय को और अधिक समावेशी और संवेदनशील बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।


संभावित प्रश्नोत्तर (Exam-Oriented Q&A)

प्रश्न 1. POSH अधिनियम, 2013 का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकना, निषेध करना और पीड़िताओं को न्याय दिलाना।

प्रश्न 2. POSH अधिनियम की उत्पत्ति किस ऐतिहासिक केस से जुड़ी है?
उत्तर: विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) केस से।

प्रश्न 3. अधिनियम के तहत आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की क्या भूमिका है?
उत्तर: महिला कर्मचारी द्वारा दर्ज शिकायत की जांच करना और उचित कार्रवाई की सिफारिश करना।

प्रश्न 4. PIL में सुप्रीम कोर्ट से क्या मांग की गई है?
उत्तर: बार काउंसिल्स और बार एसोसिएशन्स को POSH अधिनियम के तहत लाया जाए।

प्रश्न 5. सुप्रीम कोर्ट ने इस PIL पर क्या रुख अपनाया?
उत्तर: कोर्ट ने केंद्र सरकार और BCI को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

प्रश्न 6. महिला अधिवक्ताओं को POSH सुरक्षा की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर: उन्हें कोर्ट और बार एसोसिएशन्स में भेदभाव, असम्मान और यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है।

प्रश्न 7. POSH अधिनियम वर्तमान में किन क्षेत्रों पर लागू है?
उत्तर: सरकारी, निजी और गैर-सरकारी सभी संगठनों पर जहाँ महिलाएँ कार्यरत हैं।

प्रश्न 8. बार काउंसिल्स को POSH अधिनियम के तहत लाने की चुनौती क्या है?
उत्तर: अधिवक्ता स्वतंत्र पेशेवर हैं, इसलिए “नियोक्ता-कर्मचारी संबंध” का प्रश्न जटिल है।

प्रश्न 9. POSH अधिनियम का महिला अधिवक्ताओं पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर: उन्हें सुरक्षित और सम्मानजनक कार्य वातावरण मिलेगा।

प्रश्न 10. इस कदम का दीर्घकालिक महत्व क्या होगा?
उत्तर: न्यायपालिका में लैंगिक समानता, विश्वास और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा।


POSH Act – प्रमुख बिंदुओं का सारांश

प्रमुख धाराएँ (Key Provisions)

  • धारा 2 – कार्यस्थल और यौन उत्पीड़न की परिभाषा।
  • धारा 4 – आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन।
  • धारा 6 – स्थानीय शिकायत समिति (LCC) का गठन जहाँ ICC न हो।
  • धारा 9 – महिला द्वारा शिकायत दर्ज करने का प्रावधान।
  • धारा 11–13 – शिकायत की जाँच और कार्रवाई की प्रक्रिया।
  • धारा 19 – नियोक्ता का दायित्व: सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना।

महत्वपूर्ण केस लॉ

  • विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) – कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा हेतु दिशा-निर्देश।
  • मेडा बनाम महाराष्ट्र राज्य (2013) – महिलाओं की गरिमा कार्यस्थल पर सर्वोच्च है।
  • नवतेज सिंह जौहर केस (2018) – गरिमा और समानता के अधिकार की पुनः पुष्टि।

सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्देश (2025)

  • महिला वकीलों की सुरक्षा हेतु केंद्र और BCI को नोटिस जारी
  • बार काउंसिल्स और बार एसोसिएशन्स को POSH अधिनियम के तहत लाने पर विचार।
  • अधिवक्ताओं के चेंबर और कोर्ट परिसरों को “कार्यस्थल” की परिभाषा में शामिल करने का प्रश्न।