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अवैध तंबाकू व्यापार और 104 करोड़ रुपये की जीएसटी चोरी : एक गहन विश्लेषण

अवैध तंबाकू व्यापार और 104 करोड़ रुपये की जीएसटी चोरी : एक गहन विश्लेषण

प्रस्तावना

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2017 में लागू किया गया माल एवं सेवा कर (GST) देश की कर व्यवस्था को सरल और पारदर्शी बनाने का एक ऐतिहासिक कदम था। लेकिन इसके बावजूद कुछ क्षेत्रों में कर चोरी और अवैध व्यापार की प्रवृत्ति लगातार बनी हुई है। विशेषकर सिगरेट, पान मसाला और अन्य तंबाकू उत्पादों में यह समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। हाल ही में जीएसटी अधिकारियों ने चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 104.38 करोड़ रुपये की कर चोरी का खुलासा किया है। यह मामला केवल कर चोरी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की आर्थिक व्यवस्था, स्वास्थ्य सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती भी है।


मामले की पृष्ठभूमि

जीएसटी आसूचना महानिदेशालय (DGGI) और अन्य प्रवर्तन एजेंसियों ने वर्ष 2025 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में तंबाकू उत्पादों के अवैध व्यापार से जुड़ी 61 मामलों का पता लगाया। इन मामलों में कुल 104.38 करोड़ रुपये की जीएसटी चोरी दर्ज की गई। इसके अलावा, सीमा शुल्क और राजस्व आसूचना निदेशालय (DRI) ने जून तक लगभग 3.93 करोड़ की अवैध सिगरेट जब्त की।

केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) के पूर्व चेयरमैन पी.सी. झा ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए कहा कि वर्ष 2024-25 में विभिन्न एजेंसियों द्वारा 600 करोड़ से अधिक मूल्य की तस्करी की गई सिगरेट पकड़ी गई थीं।


तंबाकू और कर चोरी का संबंध

तंबाकू और इसके उत्पादों पर सरकार द्वारा उच्च दर से कर लगाया जाता है। इसका उद्देश्य दोहरा होता है –

  1. राजस्व प्राप्ति बढ़ाना।
  2. लोगों को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक उत्पादों से दूर करना।

लेकिन जब कर की दर अधिक होती है, तो कई बार इसका परिणाम यह होता है कि कारोबारी अवैध व्यापार और तस्करी की ओर बढ़ जाते हैं। सोना, शराब और तंबाकू जैसी वस्तुएं इस श्रेणी में आती हैं।


जीएसटी चोरी के तरीके

अवैध कारोबारी जीएसटी चोरी करने के लिए विभिन्न तरीके अपनाते हैं, जैसे –

  • फर्जी बिलिंग और शेल कंपनियों के माध्यम से लेन-देन दिखाना।
  • कम उत्पादन दिखाकर असल में अधिक उत्पादन करना।
  • अवैध आयात और तस्करी के जरिए बाजार में उत्पाद बेचना।
  • छोटे पैकेट और बिना टैक्स स्टैम्प वाले पान मसाला व सिगरेट का निर्माण।

इन तरीकों से न केवल सरकार को कर का नुकसान होता है बल्कि वैध कारोबारियों की प्रतिस्पर्धा क्षमता भी प्रभावित होती है।


आर्थिक प्रभाव

  1. राजस्व हानि – सरकार को प्रतिवर्ष अरबों रुपये के कर का नुकसान उठाना पड़ता है।
  2. वैध उद्योग पर दबाव – जो कंपनियां ईमानदारी से टैक्स देती हैं, उन्हें बाजार में टिके रहना मुश्किल हो जाता है।
  3. काला धन और अपराध – अवैध व्यापार से उत्पन्न धन का इस्तेमाल संगठित अपराध और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों में होता है।

स्वास्थ्य और सामाजिक प्रभाव

तंबाकू उत्पाद पहले से ही स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। जब इनका अवैध व्यापार होता है तो –

  • गुणवत्ता नियंत्रण नहीं होता।
  • नकली और घटिया उत्पाद बाजार में आते हैं।
  • गरीब और युवाओं तक यह उत्पाद और सस्ते दामों पर पहुंच जाते हैं, जिससे लत और बीमारियों का खतरा और बढ़ जाता है।

भारत में तंबाकू सेवन के कारण प्रतिवर्ष लाखों लोगों की मृत्यु होती है। ऐसे में अवैध व्यापार समाज के लिए दोहरी मार साबित होता है।


प्रवर्तन एजेंसियों की भूमिका

इस मामले में DGGI, DRI, सीमा शुल्क विभाग, असम राइफल्स और CRPF जैसी एजेंसियों ने बड़ी भूमिका निभाई।

  • DGGI ने मामलों की जांच की और 61 केस दर्ज किए।
  • सीमा शुल्क विभाग ने आयात-निर्यात मार्गों पर निगरानी रखकर करोड़ों की सिगरेट पकड़ी।
  • DRI ने तस्करी नेटवर्क का पर्दाफाश किया।

इन एजेंसियों की संयुक्त कार्रवाई से यह साबित होता है कि सरकार अवैध व्यापार और कर चोरी के खिलाफ गंभीर है।


कानूनी प्रावधान

भारत में कर चोरी और तंबाकू व्यापार से जुड़े मामलों के लिए विभिन्न कानून लागू हैं –

  1. CGST Act, 2017 – कर चोरी पर दंडात्मक कार्रवाई और गिरफ्तारी का प्रावधान।
  2. Customs Act, 1962 – अवैध आयात और तस्करी पर कार्रवाई।
  3. COTPA (Cigarettes and Other Tobacco Products Act, 2003) – तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन और पैकेजिंग पर नियंत्रण।
  4. NDPS Act (यदि नशीले पदार्थ शामिल हों) – कड़े दंड का प्रावधान।

चुनौतियाँ

  • सीमा क्षेत्रों से तस्करी रोकना कठिन है।
  • फर्जी बिलिंग और शेल कंपनियों की पहचान करना जटिल है।
  • छोटे स्तर पर होने वाली कर चोरी का पता लगाना मुश्किल होता है।
  • कई बार स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार भी प्रवर्तन को कमजोर करता है।

समाधान और आगे की राह

  1. प्रवर्तन एजेंसियों का समन्वय – DGGI, DRI, पुलिस और सीमा शुल्क के बीच बेहतर तालमेल।
  2. तकनीक का उपयोग – एआई, डेटा एनालिटिक्स और ब्लॉकचेन के जरिए फर्जी बिलिंग पकड़ना।
  3. कठोर दंड – दोषियों को सख्त सजा और भारी जुर्माना।
  4. जागरूकता अभियान – तंबाकू सेवन के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाना।
  5. कर नीति का पुनर्विचार – कर की दरें संतुलित रखना ताकि कर चोरी की प्रवृत्ति कम हो।

निष्कर्ष

अवैध तंबाकू व्यापार और जीएसटी चोरी भारत की आर्थिक प्रणाली, स्वास्थ्य सुरक्षा और कानून व्यवस्था तीनों के लिए गंभीर खतरा है। आगरा, दिल्ली और सीमावर्ती इलाकों से लेकर देशभर में इस तरह के मामले बार-बार सामने आ रहे हैं।

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में उजागर हुई 104.38 करोड़ रुपये की कर चोरी और करोड़ों की सिगरेट की जब्ती ने यह साबित कर दिया है कि तंबाकू उद्योग में अवैध व्यापार एक संगठित रूप ले चुका है। सरकार और प्रवर्तन एजेंसियों को इस पर कड़ा शिकंजा कसना होगा, तभी राजस्व की रक्षा और समाज को इस घातक प्रवृत्ति से बचाया जा सकेगा।

अंततः यह मामला केवल कर चोरी का नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य, नैतिकता और राष्ट्रीय सुरक्षा का भी प्रश्न है। अतः आवश्यक है कि सरकार और नागरिक समाज मिलकर इस पर रोक लगाएँ।