औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 : दवाओं की गुणवत्ता पर कानून
प्रस्तावना
दवा और औषधियाँ मानव जीवन के लिए उतनी ही आवश्यक हैं जितना भोजन और पानी। जब कोई व्यक्ति बीमार होता है तो उसकी सबसे बड़ी आशा यह रहती है कि उसे सही और गुणवत्तापूर्ण दवा मिले जिससे उसका उपचार हो सके। किंतु यदि दवाएँ मिलावटी, नकली या घटिया गुणवत्ता की हों तो यह न केवल रोगी के स्वास्थ्य को खतरे में डालती हैं बल्कि कभी-कभी मृत्यु का कारण भी बन जाती हैं। इसी खतरे से बचाव के लिए भारत सरकार ने औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (Drugs and Cosmetics Act, 1940) बनाया। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में औषधियों और प्रसाधन सामग्री के निर्माण, बिक्री, आयात और वितरण को नियंत्रित करना तथा उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करना है।
अधिनियम की पृष्ठभूमि
स्वतंत्रता से पूर्व भारत में दवाओं की गुणवत्ता और निर्माण पर कोई सख्त कानून नहीं था। बाजार में कई बार नकली और असुरक्षित दवाएँ बेची जाती थीं, जिससे लोगों की जान पर संकट उत्पन्न होता था। 1930 के दशक में रंगीला केस और अन्य कई घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत में एक ऐसा कानून आवश्यक है जो दवाओं की गुणवत्ता को सुनिश्चित कर सके। इसी के परिणामस्वरूप औषधि अधिनियम, 1940 पारित हुआ, जिसे बाद में संशोधित कर औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 नाम दिया गया।
अधिनियम का उद्देश्य
इस अधिनियम के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
- देश में बिकने वाली दवाओं और कॉस्मेटिक्स की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- नकली, मिलावटी और घटिया गुणवत्ता की दवाओं की रोकथाम करना।
- औषधियों और प्रसाधन सामग्री के निर्माण, आयात, बिक्री और वितरण को नियंत्रित करना।
- जनता के स्वास्थ्य की रक्षा करना।
- वैज्ञानिक और तकनीकी मानकों का पालन सुनिश्चित करना।
अधिनियम की परिभाषाएँ
- औषधि (Drug) – इसमें सभी प्रकार की औषधियाँ, टीके, रक्त, जीवन रक्षक दवाएँ और चिकित्सीय उपकरण शामिल हैं।
- प्रसाधन सामग्री (Cosmetics) – इसका अर्थ है सौंदर्य प्रसाधन जैसे क्रीम, पाउडर, साबुन, तेल आदि, जो मानव शरीर की सफाई, आकर्षण या सौंदर्य बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
- मिलावटी दवा – ऐसी दवा जिसमें शुद्धता और मानक के विपरीत तत्व मिले हों।
- नकली दवा – ऐसी दवा जो किसी अन्य असली दवा के नाम पर बेची जाए या उसकी पैकेजिंग नकली हो।
दवाओं की गुणवत्ता पर कानूनी प्रावधान
1. निर्माण और आयात पर नियंत्रण
- अधिनियम के अनुसार, बिना लाइसेंस के दवाओं और प्रसाधन सामग्री का निर्माण, आयात या बिक्री नहीं की जा सकती।
- दवा निर्माण इकाईयों को तय मानकों का पालन करना अनिवार्य है।
- आयातित दवाओं की जाँच और परीक्षण भी आवश्यक है ताकि वे अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों पर खरी उतरें।
2. गुणवत्ता मानक (Standards of Quality)
- अधिनियम में स्पष्ट किया गया है कि दवाएँ और प्रसाधन सामग्री भारतीय औषधि संहिता (Indian Pharmacopoeia) या सरकार द्वारा निर्धारित अन्य मानकों के अनुरूप होनी चाहिए।
- कोई भी दवा यदि मानक से कम गुणवत्ता की पाई जाती है तो उसे “Not of Standard Quality” घोषित किया जाता है।
3. मिलावटी और नकली दवाओं पर प्रतिबंध
- किसी भी प्रकार की मिलावटी (Adulterated) या नकली (Spurious) दवा का निर्माण या बिक्री करना अपराध है।
- ऐसे अपराधियों को कठोर दंड और कारावास का प्रावधान है।
4. दवा निरीक्षकों की नियुक्ति
- अधिनियम के अंतर्गत Drug Inspectors की नियुक्ति की जाती है।
- उन्हें यह अधिकार है कि वे किसी भी दवा की जाँच कर सकते हैं, नमूना ले सकते हैं और प्रयोगशाला को भेज सकते हैं।
- यदि दोषपूर्ण दवा पाई जाती है तो वे उसे जब्त कर सकते हैं और अभियोजन चला सकते हैं।
5. केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला
- अधिनियम के अंतर्गत Central Drugs Laboratory की स्थापना की गई है।
- यहाँ दवाओं और प्रसाधन सामग्री के नमूनों की वैज्ञानिक जाँच की जाती है।
- यह प्रयोगशाला गुणवत्ता सुनिश्चित करने में केंद्रीय भूमिका निभाती है।
6. दंडात्मक प्रावधान
- नकली या मिलावटी दवाओं के निर्माण या बिक्री पर जीवन कारावास तक की सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान है।
- यदि ऐसी दवा से किसी की मृत्यु होती है तो अपराधी को और कठोर सजा दी जाती है।
न्यायालयों का दृष्टिकोण
भारतीय न्यायपालिका ने कई मामलों में इस अधिनियम को कड़ाई से लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
- Drugs Inspector v. B.K. Krishnaiah (1981) – अदालत ने कहा कि अधिनियम का उद्देश्य जनहित की रक्षा करना है, इसलिए दोषियों को कठोर दंड दिया जाना चाहिए।
- State of Haryana v. Brij Lal Mittal (1998) – सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दवाओं की गुणवत्ता में लापरवाही जनता के जीवन के साथ खिलवाड़ है।
संवैधानिक आधार
यह अधिनियम अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) की भावना से जुड़ा हुआ है। यदि कोई नागरिक मिलावटी या घटिया दवा के कारण जीवन से वंचित होता है तो यह उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। साथ ही, अनुच्छेद 47 राज्य को जनता के स्वास्थ्य सुधार का दायित्व सौंपता है।
प्रसाधन सामग्री पर नियंत्रण
अधिनियम न केवल दवाओं बल्कि कॉस्मेटिक्स की गुणवत्ता पर भी लागू होता है।
- ऐसे सौंदर्य प्रसाधन जिनमें हानिकारक रसायन या तत्व मिलाए गए हों, उनका निर्माण और बिक्री प्रतिबंधित है।
- प्रसाधन सामग्री में भी नकली और मिलावटी उत्पाद पर कठोर दंड का प्रावधान है।
चुनौतियाँ
यद्यपि अधिनियम ने दवाओं और प्रसाधन सामग्री की गुणवत्ता को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन कई चुनौतियाँ अब भी मौजूद हैं –
- नकली दवाओं का व्यापार – आज भी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में नकली दवाएँ धड़ल्ले से बिकती हैं।
- निरीक्षकों की कमी – पर्याप्त संख्या में Drug Inspectors की कमी है, जिससे निगरानी प्रभावी नहीं हो पाती।
- जनता में जागरूकता का अभाव – अधिकांश लोग नकली और असली दवा में अंतर नहीं कर पाते।
- प्रयोगशालाओं की सीमाएँ – परीक्षण सुविधाएँ अभी भी पर्याप्त नहीं हैं।
सुधार की संभावनाएँ
- दवाओं की गुणवत्ता जाँच के लिए आधुनिक तकनीक और प्रयोगशालाओं का विस्तार होना चाहिए।
- नकली दवाओं की बिक्री पर त्वरित न्यायालय (Fast Track Courts) द्वारा सख्त दंड दिए जाने चाहिए।
- जनता को यह जागरूक करना आवश्यक है कि वे केवल मान्यता प्राप्त दुकानों से ही दवाएँ खरीदें।
- सरकार को दवाओं की ट्रैकिंग सिस्टम विकसित करना चाहिए ताकि हर दवा का स्रोत पता लगाया जा सके।
निष्कर्ष
औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 भारत में दवाओं और प्रसाधन सामग्री की गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाला एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण कानून है। इसका उद्देश्य जनता को नकली, मिलावटी और घटिया दवाओं से बचाना तथा गुणवत्तापूर्ण दवाएँ उपलब्ध कराना है। इस अधिनियम ने दवा निर्माण, बिक्री और वितरण पर कठोर नियंत्रण स्थापित किया है और दोषियों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया है।
हालाँकि, नकली दवाओं का व्यापार आज भी चुनौती बना हुआ है। यदि सरकार, न्यायपालिका और समाज मिलकर अधिनियम को सख्ती से लागू करें और जागरूकता बढ़ाएँ तो निश्चित ही भारत में दवाओं और प्रसाधन सामग्री की गुणवत्ता पर पूरा नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। यह न केवल जनता के स्वास्थ्य की रक्षा करेगा बल्कि “सभी को स्वस्थ जीवन” के लक्ष्य को भी साकार करेगा।