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🏛️ कमर्शियल भाषण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

🏛️ कमर्शियल भाषण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

नई दिल्ली, भास्कर न्यूज
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression) का मौलिक अधिकार प्राप्त है। लेकिन यह अधिकार पूर्ण (Absolute) नहीं है, बल्कि यथोचित प्रतिबंधों (Reasonable Restrictions) के अधीन है। इसी संदर्भ में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया कि “कमर्शियल (Commercial) और प्रतिबंधित भाषण (Prohibited Speech) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में नहीं आते।”

यह मामला पांच सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स से जुड़ा था, जिन पर दिव्यांगों और दुर्लभ जेनेटिक बीमारियों से पीड़ित लोगों का मज़ाक उड़ाने का आरोप लगा था। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी को अपने पॉडकास्ट या शो में बिना शर्त माफी (Unconditional Apology) दिखाने का आदेश दिया और यह टिप्पणी की कि “माफी की भावना अपराध की गंभीरता से अधिक होनी चाहिए।”


📌 मामला क्या है? (Background of the Case)

  • यह केस एक एनजीओ ‘क्योर एसएमए (Cure SMA)’ द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है। यह संस्था स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA) जैसी दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चों और मरीजों के अधिकारों के लिए काम करती है।
  • आरोप था कि कुछ सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स ने अपने पॉडकास्ट और शो में दिव्यांग व्यक्तियों और जेनेटिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों का उपहास किया।
  • इस पर अदालत ने कड़ी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी भी वर्ग, विशेषकर दिव्यांगों और दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित लोगों की गरिमा का हनन स्वीकार्य नहीं है।

📌 सुनवाई के दौरान कोर्ट की टिप्पणियां (Court’s Observations)

1. कमर्शियल भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने कहा:

  • “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उद्देश्य लोकतंत्र को मजबूत करना और नागरिकों को अपने विचार रखने का अवसर देना है।”
  • “लेकिन व्यावसायिक उद्देश्य से किया गया भाषण (Commercial Speech) या ऐसा भाषण जो समाज के कमजोर वर्गों की गरिमा को ठेस पहुँचाए, उसे संविधान संरक्षण नहीं देता।”

2. माफी की भावना का महत्व

बेंच ने कहा कि –

  • “माफी केवल औपचारिकता न होकर सच्चे पश्चाताप का प्रतीक होनी चाहिए।”
  • भविष्य में इंफ्लूएंसर्स पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है, जिसे दुर्लभ बीमारियों जैसे SMA (Spinal Muscular Atrophy) से पीड़ित लोगों के इलाज में खर्च किया जाएगा।

3. सरकारी हस्तक्षेप की अनुमति

कोर्ट ने इस मामले में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information and Broadcasting) को हस्तक्षेप की अनुमति दी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर चल रही सामग्री मानवीय संवेदनाओं और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप हो।


📌 आरोपी सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स कौन हैं?

अदालत में मौजूद पाँचों इंफ्लूएंसर्स में शामिल थे –

  1. समय रैना (Samay Raina) – ‘India’s Got Latent’ शो के होस्ट
  2. विपुल गोयल (Vipul Goyal) – स्टैंड-अप कॉमेडियन
  3. बलराज परविंदर सिंह घई (Balraj Parvinder Singh Ghai)
  4. निशांत जगदीश (Nishant Jagdish)
  5. सोनाली ठाकुर (Sonali Thakur) – कोर्ट में पेश नहीं हो सकीं।

इन सभी को अपने प्लेटफॉर्म पर बिना शर्त माफी जारी करने का आदेश दिया गया।


📌 संवैधानिक और कानूनी पहलू (Legal and Constitutional Aspects)

✅ अनुच्छेद 19(1)(a) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को अपने विचार प्रकट करने का अधिकार देता है।

✅ अनुच्छेद 19(2) – यथोचित प्रतिबंध (Reasonable Restrictions)

राज्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निम्न आधारों पर प्रतिबंध लगा सकता है:

  • भारत की संप्रभुता और अखंडता
  • राज्य की सुरक्षा
  • जन व्यवस्था (Public Order)
  • शालीनता या नैतिकता (Decency or Morality)
  • मानहानि (Defamation)
  • न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court)
  • अपराध हेतु उकसावा (Incitement to an offence)

👉 इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी संवेदनशील वर्ग की गरिमा पर आघात करना स्वतंत्रता का हिस्सा नहीं हो सकता


📌 इस फैसले का महत्व (Significance of the Judgment)

1. दिव्यांगों की गरिमा की रक्षा

यह फैसला दिव्यांग व्यक्तियों और दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित लोगों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा करता है।

2. सोशल मीडिया पर जिम्मेदारी

इंफ्लूएंसर्स और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स को यह संदेश मिला कि वे मनोरंजन या व्यावसायिक लाभ के नाम पर किसी भी वर्ग का अपमान नहीं कर सकते।

3. भविष्य की नजीर (Precedent)

यह निर्णय भविष्य में उन मामलों के लिए नजीर बनेगा, जहाँ फ्री स्पीच बनाम संवेदनशीलता का सवाल उठेगा।

4. सरकार और न्यायपालिका की साझी भूमिका

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को हस्तक्षेप की अनुमति देकर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकार और न्यायपालिका मिलकर डिजिटल स्पेस को जिम्मेदार बनाने की दिशा में काम करेंगे।


📌 उदाहरण द्वारा समझें (Illustration)

मान लीजिए कोई कंटेंट क्रिएटर अपने शो में किसी विशेष बीमारी से पीड़ित लोगों का उपहास करता है और उससे विज्ञापन व प्रायोजन से पैसा कमाता है।

  • यह भाषण कमर्शियल स्पीच माना जाएगा।
  • यदि वह पीड़ित वर्ग की गरिमा को ठेस पहुँचाता है, तो यह संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा नहीं होगा।
  • ऐसे में न्यायालय उसे माफी, जुर्माना या अन्य दंड का आदेश दे सकता है।

📌 निष्कर्ष (Conclusion)

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन का उत्कृष्ट उदाहरण है।

  • इसने स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता का अधिकार असीमित नहीं है और जब यह दूसरों की गरिमा और अधिकारों को ठेस पहुँचाए, तो उस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
  • दिव्यांग और दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे लोग पहले ही कठिन जीवन जी रहे हैं, ऐसे में उनका उपहास करना किसी भी दृष्टि से संवैधानिक नहीं है।
  • कोर्ट का यह रुख न केवल संवेदनशील वर्गों की रक्षा करता है बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर जवाबदेही और नैतिकता को भी बढ़ावा देता है।

👉 इसलिए यह कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा और जिम्मेदारी दोनों को स्पष्ट करते हुए समाज के कमजोर वर्गों की गरिमा की रक्षा के लिए एक मजबूत संदेश दिया है।