दिल्ली हाई कोर्ट ने पीएम मोदी की डिग्री पर सूचना देने के CIC आदेश को किया निरस्त
भूमिका
लोकतांत्रिक व्यवस्था में सूचना का अधिकार (Right to Information – RTI) नागरिकों का एक बुनियादी अधिकार है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से ही सूचना का अधिकार भी निकला है। आम नागरिकों को शासन, प्रशासन और नेताओं की पारदर्शिता से जुड़ी जानकारी प्राप्त करने का हक है। इसी पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक योग्यता से जुड़ा मामला कई वर्षों से विवाद और बहस का विषय बना हुआ है।
हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें पीएम मोदी की डिग्री से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था। इस फैसले ने फिर से RTI की सीमाओं, गोपनीयता के अधिकार और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन को लेकर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद 2016 से शुरू हुआ जब आम आदमी पार्टी (AAP) के नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी की स्नातक और परास्नातक डिग्री पर सवाल उठाए। इसके बाद कई RTI आवेदन दाखिल किए गए, जिनमें दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय से उनकी शैक्षणिक योग्यता से जुड़ी जानकारी मांगी गई।
- केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने एक आदेश में कहा था कि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय को पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी उपलब्ध करानी होगी।
- CIC ने यह तर्क दिया कि प्रधानमंत्री देश का सर्वोच्च निर्वाचित पद है और उनकी शैक्षणिक योग्यता की जानकारी “जनहित” में आती है।
दिल्ली हाई कोर्ट की कार्यवाही
CIC के आदेश को चुनौती देते हुए गुजरात विश्वविद्यालय ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार किया—
- क्या प्रधानमंत्री जैसे उच्च संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति की शैक्षणिक डिग्री को सार्वजनिक करना अनिवार्य है?
- क्या यह सूचना जनहित से जुड़ी है या यह किसी व्यक्ति की निजता (Privacy) के दायरे में आती है?
- क्या CIC अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर ऐसा आदेश दे सकता है?
हाई कोर्ट का फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने CIC के आदेश को रद्द (Set Aside) कर दिया और कहा कि—
- शैक्षणिक डिग्री एक व्यक्तिगत सूचना है: किसी भी व्यक्ति की डिग्री, अंकतालिका या शैक्षणिक अभिलेख उसकी निजी जानकारी का हिस्सा है। यह जानकारी केवल तभी सार्वजनिक की जा सकती है जब इससे जुड़े “बड़े जनहित” को साबित किया जाए।
- RTI Act की धारा 8(1)(j): अदालत ने कहा कि इस धारा के तहत किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी को तब तक साझा नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसका सीधा संबंध किसी सार्वजनिक गतिविधि या जनहित से न हो।
- CIC ने अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया: अदालत का मत था कि CIC ने बिना पर्याप्त कानूनी आधार के प्रधानमंत्री की डिग्री की जानकारी साझा करने का आदेश देकर अपने अधिकार से अधिक हस्तक्षेप किया।
संविधान और कानून का दृष्टिकोण
- अनुच्छेद 19(1)(a) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नागरिकों को सूचना प्राप्त करने का अधिकार देता है, परंतु यह पूर्णतः निरंकुश नहीं है।
- RTI Act, 2005 – सूचना का अधिकार अधिनियम पारदर्शिता को बढ़ावा देता है, लेकिन इसमें कई अपवाद भी दिए गए हैं।
- धारा 8(1)(j) – निजी जानकारी जो किसी सार्वजनिक हित से संबंधित न हो।
- धारा 8(1)(e) – ट्रस्टी या तीसरे पक्ष से संबंधित गोपनीय जानकारी।
- गोपनीयता का अधिकार (Right to Privacy) – सर्वोच्च न्यायालय ने पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017) मामले में निजता को मौलिक अधिकार माना। इसलिए शैक्षणिक योग्यता जैसी जानकारी का खुलासा करने में सावधानी बरतनी होगी।
जनहित बनाम निजता का सवाल
इस पूरे विवाद का मूल प्रश्न यही है कि क्या प्रधानमंत्री की शैक्षणिक डिग्री “जनहित” के दायरे में आती है?
- समर्थक पक्ष – प्रधानमंत्री देश के सर्वोच्च पद पर हैं, इसलिए उनकी शैक्षणिक योग्यता पर पारदर्शिता होनी चाहिए। यह मतदाता का अधिकार है कि वह अपने नेता की शैक्षणिक पृष्ठभूमि जाने।
- विरोधी पक्ष – प्रधानमंत्री को चुनाव लड़ते समय अपनी शैक्षणिक योग्यता चुनाव आयोग के नामांकन पत्र में घोषित करनी होती है। यह पहले से ही सार्वजनिक दस्तावेज का हिस्सा है। इसलिए डिग्री की कॉपी मांगना अनावश्यक और निजता का उल्लंघन है।
आलोचना और विवाद
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बाद कई राजनीतिक और कानूनी बहसें छिड़ गईं—
- पारदर्शिता पर असर – आलोचकों का कहना है कि इससे नेताओं की पारदर्शिता पर प्रश्न उठते हैं और आम जनता के सूचना के अधिकार को सीमित किया गया है।
- निजता की रक्षा – समर्थकों का कहना है कि अदालत ने निजता के अधिकार की रक्षा कर लोकतंत्र को संतुलित किया है।
- राजनीतिक रंग – चूँकि मामला प्रधानमंत्री से जुड़ा है, इसलिए यह विवाद केवल कानूनी ही नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी गहन महत्व रखता है।
अन्य न्यायिक दृष्टांत
- गिरिश रामचंद्र देशपांडे बनाम CIC (2013) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि व्यक्तिगत अभिलेख (जैसे सेवा रिकॉर्ड, एसीआर, दंडात्मक कार्यवाही आदि) तब तक सार्वजनिक नहीं किए जा सकते जब तक बड़े जनहित का मामला न हो।
- आरटीआई और निजता का संतुलन – कई मामलों में अदालतों ने कहा है कि RTI अधिनियम का उद्देश्य पारदर्शिता है, लेकिन यह किसी की निजी स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं कर सकता।
फैसले का प्रभाव
दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला भविष्य में RTI के तहत मांगी जाने वाली निजी सूचनाओं पर गहरा असर डालेगा।
- RTI की सीमाएं और स्पष्ट होंगी – यह तय होगा कि कौन सी जानकारी वास्तव में सार्वजनिक हित में आती है।
- राजनीतिक विवाद जारी रहेंगे – पीएम मोदी की डिग्री का मुद्दा राजनीतिक बहस का हिस्सा बना रहेगा।
- जनता का विश्वास – पारदर्शिता और निजता के बीच संतुलन बनाने की चुनौती और कठिन हो जाएगी।
निष्कर्ष
दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में निजता और पारदर्शिता के बीच संतुलन की जटिलता को दर्शाता है। प्रधानमंत्री जैसे उच्च पद पर आसीन व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यता निश्चित रूप से जनता की रुचि का विषय है, लेकिन इसे कानूनी रूप से “जनहित” की श्रेणी में रखना कठिन है।
CIC के आदेश को रद्द कर अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सूचना का अधिकार निरंकुश नहीं है और हर जानकारी सार्वजनिक हित में नहीं आती। आने वाले समय में यह फैसला भारतीय लोकतंत्र में गोपनीयता बनाम पारदर्शिता की बहस को और गहरा करेगा।