विधवा बहू को ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण का अधिकार : दिल्ली हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
प्रस्तावना
भारतीय समाज में विवाह के बाद बहू अपने पति और ससुराल के परिवार का हिस्सा बन जाती है। पति की मृत्यु के बाद अक्सर विधवा स्त्रियों को आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक संघर्षों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या विधवा बहू अपने ससुर या ससुराल की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण (Maintenance) का दावा कर सकती है?
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में इस संवेदनशील और महत्वपूर्ण प्रश्न पर एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम (Hindu Adoptions and Maintenance Act, 1956 – HAMA) की धारा 19(1) के तहत विधवा बहू को अपने ससुर से भरण-पोषण का वैधानिक अधिकार प्राप्त है। हालांकि यह दायित्व केवल पैतृक (coparcenary/ancestral) संपत्ति तक सीमित है, न कि ससुर की स्वयं अर्जित संपत्ति तक।
मामले के तथ्य (Facts of the Case)
- एक विधवा बहू ने निचली अदालत में अपने भरण-पोषण के लिए याचिका दायर की थी।
- निचली अदालत ने उसकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि बहू अपने ससुर से भरण-पोषण की हकदार नहीं है।
- इस आदेश को चुनौती देते हुए विधवा महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की।
- मामला जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ के समक्ष आया।
मुद्दा (Issue)
क्या विधवा बहू अपने मृत पति के बाद ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है?
विधिक प्रावधान (Legal Provisions)
- हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA)
- धारा 19(1): विधवा बहू अपने ससुर से भरण-पोषण की हकदार है, यदि वह अपने पति या उसके परिवार की संपत्ति से उचित रूप से निर्वाह नहीं कर पा रही है।
- यह दायित्व केवल उसी स्थिति में लागू होता है जब ससुर के पास पैतृक या सहदायिक संपत्ति हो।
- धारा 21 और 22 HAMA – इन धाराओं में आश्रितों (dependents) और भरण-पोषण के दायित्व का उल्लेख है।
- धारा 25 HAMA – भरण-पोषण की मात्रा और अदालत की विवेकाधिकार शक्ति।
अपीलकर्ता (विधवा बहू) के तर्क
- पति की मृत्यु के बाद उसके पास स्वयं जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं है।
- ससुर के पास पर्याप्त पैतृक संपत्ति है जिससे उसका भरण-पोषण किया जा सकता है।
- हिंदू कानून के अनुसार बहू भी आश्रित (dependent) की श्रेणी में आती है और उसे भरण-पोषण का अधिकार है।
प्रतिवादी (ससुराल पक्ष) के तर्क
- ससुर की संपत्ति स्वयं अर्जित (self-acquired) है, इसलिए बहू इस पर अधिकार नहीं जता सकती।
- HAMA की धारा 19 केवल सीमित परिस्थितियों में लागू होती है, और बहू को अपने ससुर की व्यक्तिगत संपत्ति से दावा करने का कोई अधिकार नहीं है।
- निचली अदालत का आदेश सही था।
न्यायालय का तर्क (Court’s Reasoning)
- धारा 19(1) HAMA का स्पष्ट उल्लेख है कि विधवा बहू अपने ससुर से भरण-पोषण का दावा कर सकती है।
- यह दायित्व सहदायिक/पैतृक संपत्ति से उत्पन्न होता है। यदि ससुर के पास पैतृक संपत्ति है, तो उससे बहू का भरण-पोषण सुनिश्चित किया जाएगा।
- ससुर की स्वयं अर्जित संपत्ति (self-acquired property) पर बहू का कोई अधिकार नहीं बनता।
- विधवा महिला को आर्थिक रूप से असहाय छोड़ना न्याय और समानता के सिद्धांतों के विरुद्ध होगा।
- अदालत ने निचली अदालत के आदेश को गैर-भरण-पोषणीय (unsustainable) बताते हुए निरस्त कर दिया और विधवा बहू को पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण का अधिकार मान्यता दी।
निष्कर्ष (Conclusion)
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि –
- विधवा बहू को पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने का वैधानिक अधिकार है।
- ससुर का दायित्व केवल पैतृक संपत्ति तक सीमित रहेगा, स्वयं अर्जित संपत्ति तक नहीं।
- इस प्रकार, निचली अदालत का आदेश त्रुटिपूर्ण था और उसे निरस्त किया जाता है।
महत्व और प्रभाव (Significance & Impact)
- विधवा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा – यह फैसला उन हजारों विधवा बहुओं के लिए राहत लेकर आया है जिन्हें पति की मृत्यु के बाद आर्थिक संकट झेलना पड़ता है।
- पारिवारिक दायित्व की पुष्टि – निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि परिवार की जिम्मेदारी केवल पति तक सीमित नहीं है, बल्कि ससुराल पक्ष पर भी कुछ दायित्व हैं।
- कानूनी स्पष्टता – कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि भरण-पोषण का दावा केवल पैतृक संपत्ति से किया जा सकता है, न कि ससुर की व्यक्तिगत संपत्ति से।
- सामाजिक दृष्टि से महत्व – यह फैसला समाज में महिलाओं की सुरक्षा और समानता को बढ़ावा देगा और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करेगा।
समापन
दिल्ली हाईकोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्यायशास्त्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इससे न केवल विधवा बहुओं के अधिकारों को वैधानिक संरक्षण मिला है बल्कि न्यायालय ने यह भी संदेश दिया है कि समाज की कमजोर कड़ियों – विशेषकर विधवा महिलाओं – को आर्थिक असुरक्षा में छोड़ना न्याय और संवैधानिक मूल्यों के विपरीत है।
ठीक है 👍
अब मैं इस दिल्ली हाईकोर्ट के हालिया फैसले की तुलना सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती निर्णयों से कर देता हूँ, ताकि यह और गहन व प्रभावी बन जाए।
विधवा बहू के भरण-पोषण के अधिकार पर दिल्ली हाईकोर्ट बनाम सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती निर्णय
1. Delhi High Court (2024) – Widowed Daughter-in-law v. State & Ors.
- कोर्ट ने कहा कि विधवा बहू को अपने ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण का वैधानिक अधिकार है।
- दायित्व केवल पैतृक/सहदायिक संपत्ति तक सीमित होगा, स्वयं अर्जित संपत्ति तक नहीं।
- निचली अदालत द्वारा विधवा बहू की याचिका खारिज करना त्रुटिपूर्ण माना गया।
2. Vimala v. Veeraswamy (1991) 2 SCC 375
- सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भरण-पोषण केवल भोजन या कपड़े तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें सम्मानजनक जीवन (dignified living) का अधिकार भी शामिल है।
- यह निर्णय महत्वपूर्ण था क्योंकि इसमें भरण-पोषण को “मानवीय गरिमा” (Human Dignity) से जोड़ा गया।
- दिल्ली HC के फैसले से यह दृष्टांत मेल खाता है कि विधवा महिला को न्यूनतम जीवन निर्वाह ही नहीं, बल्कि सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिलना चाहिए।
3. Savitri v. Govind Singh Rawat (1985) 4 SCC 337
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 125 CrPC (maintenance to wife, children and parents) के तहत कोर्ट अंतरिम भरण-पोषण (interim maintenance) का आदेश भी दे सकती है।
- उद्देश्य यह था कि महिला मुकदमे की लंबी प्रक्रिया के दौरान भूखी न रहे और उसके जीवन का निर्वाह तुरंत सुनिश्चित हो सके।
- यह फैसला भी दिल्ली HC की सोच से मेल खाता है, जहाँ कहा गया कि विधवा महिला को उसके जीवन निर्वाह हेतु पैतृक संपत्ति से वैधानिक सहायता मिलनी चाहिए।
4. Kirtikant D. Vadodaria v. State of Gujarat (1996) 4 SCC 479
- सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विधवा बहू अपने ससुर से भरण-पोषण का दावा कर सकती है, यदि उसके पास जीविकोपार्जन का कोई साधन न हो और ससुर के पास पर्याप्त साधन हों।
- यह निर्णय सीधे तौर पर HAMA की धारा 19 से संबंधित था और दिल्ली HC के तर्कों को मजबूती प्रदान करता है।
5. Chaturbhuj v. Sita Bai (2008) 2 SCC 316
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण का अधिकार “कृपा” (charity) नहीं है बल्कि वैधानिक दायित्व (legal right) है।
- यह दृष्टिकोण दिल्ली HC के फैसले के समानांतर है, जहाँ कहा गया कि विधवा बहू का अधिकार वैधानिक है और उसे पैतृक संपत्ति से पूरा किया जाना चाहिए।
तुलनात्मक निष्कर्ष
- Delhi HC (2024) ने HAMA की धारा 19(1) की पुनः पुष्टि की और यह स्पष्ट किया कि विधवा बहू ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण की हकदार है।
- Supreme Court (Vimala, Savitri, Kirtikant, Chaturbhuj मामलों में) ने पहले ही यह स्थापित कर दिया था कि भरण-पोषण का अधिकार महिला की मानवीय गरिमा और वैधानिक सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।
- अंतर यह है कि दिल्ली HC ने विशेष रूप से “पैतृक संपत्ति बनाम स्वयं अर्जित संपत्ति” के अंतर पर जोर दिया, जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने भरण-पोषण को व्यापक सामाजिक-न्यायिक परिप्रेक्ष्य में देखा।
✅ इस प्रकार, दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की पूर्ववर्ती व्याख्याओं का प्राकृतिक विस्तार (logical extension) है। यह न केवल विधवा बहुओं को सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि पारिवारिक दायित्वों की परिभाषा को भी और स्पष्ट करता है।