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पॉक्सो कानून और लैंगिक तटस्थता : कर्नाटक हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

पॉक्सो कानून और लैंगिक तटस्थता : कर्नाटक हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

(52 वर्षीय महिला आरोपी की याचिका पर सुनवाई – न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना, कर्नाटक हाईकोर्ट)


भारत में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act, 2012) एक ऐसा प्रगतिशील कानून है जिसे विशेष रूप से बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए लाया गया। अब तक समाज में यह धारणा बनी रही कि इस अधिनियम के तहत मुख्यतः पुरुष ही आरोपी बनाए जाते हैं, क्योंकि अधिकांश मामलों में यौन शोषणकर्ता पुरुष होते हैं। लेकिन हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि पॉक्सो कानून लैंगिक तटस्थ (Gender-Neutral) है और यदि परिस्थितियाँ हों तो महिला भी इस अधिनियम के तहत आरोपी बन सकती है।

यह निर्णय न केवल पॉक्सो कानून की व्याख्या का दायरा बढ़ाता है, बल्कि भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में समानता और समावेशिता की दिशा में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।


मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

  • मामला वर्ष 2020 का है, जब 13 वर्षीय एक नाबालिग लड़के के यौन उत्पीड़न का आरोप सामने आया।
  • परिवार उस समय विदेश चला गया था, इसलिए शिकायत दर्ज नहीं की गई।
  • वर्ष 2024 में भारत लौटने पर बच्चे के माता-पिता ने इस घटना के संबंध में शिकायत दर्ज कराई।
  • इस शिकायत के आधार पर 52 वर्षीय महिला के खिलाफ पॉक्सो एक्ट की धारा 4 और 6 के तहत मामला दर्ज किया गया।
  • महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की।

हाईकोर्ट के अवलोकन (Observations of the High Court)

न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने अपने फैसले में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बातें कहीः

  1. पॉक्सो एक्ट का उद्देश्य:
    • यह अधिनियम बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है।
    • कानून का मूल आधार लैंगिक भेदभाव को समाप्त कर बच्चों की समान सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  2. लैंगिक तटस्थता (Gender Neutrality):
    • अदालत ने स्पष्ट किया कि पॉक्सो कानून केवल पुरुषों को आरोपी मानने तक सीमित नहीं है।
    • इसकी धारा 4 (Penetrative Sexual Assault) और धारा 6 (Aggravated Penetrative Sexual Assault) पुरुष और महिला दोनों पर समान रूप से लागू होती हैं।
  3. समावेशी दृष्टिकोण:
    • कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम की प्रस्तावना और उद्देश्य ही इसे समावेशी बनाते हैं।
    • इसका लाभकारी उद्देश्य है—सभी बच्चों की सुरक्षा, चाहे अपराधी पुरुष हो या महिला।
  4. याचिका खारिज:
    • 52 वर्षीय महिला द्वारा कार्यवाही रद्द करने की मांग को अदालत ने खारिज कर दिया।
    • अदालत ने कहा कि जांच और मुकदमे की प्रक्रिया अपने ढंग से पूरी होगी।

पॉक्सो कानून की प्रासंगिक धाराएँ (Relevant Provisions of POCSO Act)

  1. धारा 4: यौन प्रवेश (Penetrative Sexual Assault) से संबंधित।
  2. धारा 6: गंभीर परिस्थितियों में यौन प्रवेश, जिसमें कठोर दंड का प्रावधान है।
  3. धारा 2(1)(d): “Child” की परिभाषा—18 वर्ष से कम आयु का प्रत्येक व्यक्ति।
  4. धारा 29: अभियुक्त के खिलाफ साक्ष्य का अनुमान, यानी आरोपी को अपनी निर्दोषता साबित करनी होती है।

इन धाराओं को पढ़कर यह स्पष्ट होता है कि कानून ने अपराधी की लैंगिक पहचान का उल्लेख नहीं किया है, बल्कि केवल “अपराध” और “पीड़ित बच्चा” पर ध्यान केंद्रित किया है।


निर्णय का महत्व (Significance of the Judgment)

  1. लैंगिक समानता (Gender Equality):
    • यह निर्णय बताता है कि कानून के दायरे में पुरुष और महिला दोनों बराबर हैं।
    • अपराधी चाहे किसी भी लिंग का हो, दंड समान रूप से लागू होगा।
  2. समाज की धारणा को चुनौती:
    • समाज में अक्सर यह धारणा होती है कि केवल पुरुष ही यौन अपराध कर सकते हैं।
    • यह फैसला इस मिथक को तोड़ता है और मानता है कि महिला भी अपराधी हो सकती है।
  3. बच्चों की सुरक्षा को सर्वोपरि:
    • पॉक्सो एक्ट का उद्देश्य है कि हर बच्चा सुरक्षित रहे, चाहे अपराधी कोई भी हो।
    • यह निर्णय उस उद्देश्य को और अधिक मजबूत करता है।
  4. न्यायिक दृष्टिकोण में बदलाव:
    • पहले जहाँ अदालतें महिला अपराधियों को इस कानून से बाहर मानती थीं, वहीं अब न्यायपालिका ने स्पष्ट कर दिया है कि कानून तटस्थ है।

आलोचनात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)

  • सकारात्मक पहलू:
    • यह निर्णय बच्चों की सुरक्षा की दिशा में एक ठोस कदम है।
    • इससे यह संदेश गया कि अपराध के मामलों में कानून किसी के साथ पक्षपात नहीं करेगा।
    • लैंगिक समानता और न्याय के सिद्धांत को मजबूती मिलती है।
  • संभावित चुनौतियाँ:
    • समाज में महिला को आरोपी मानना अभी भी कठिन है; यह मानसिकता बदलने में समय लगेगा।
    • महिला अपराधियों पर मुकदमा चलाने से संबंधित संवेदनशील पहलुओं को संभालना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • कहीं यह निर्णय निर्दोष महिलाओं के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज करने का हथियार न बन जाए।

निष्कर्ष (Conclusion)

कर्नाटक हाईकोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि पॉक्सो कानून केवल पुरुषों के खिलाफ नहीं, बल्कि महिलाओं के खिलाफ भी लागू हो सकता है। यह निर्णय लैंगिक समानता की दिशा में ऐतिहासिक कदम है, क्योंकि इसका उद्देश्य है—हर बच्चे की सुरक्षा।

इस फैसले ने यह संदेश दिया कि कानून का केंद्रबिंदु अपराधी का लिंग नहीं, बल्कि पीड़ित बच्चे की सुरक्षा है। यह निर्णय न केवल न्यायिक व्याख्या को नया आयाम देता है, बल्कि समाज को भी यह सिखाता है कि बच्चों की सुरक्षा में किसी प्रकार का भेदभाव स्वीकार्य नहीं है।


ठीक है 🙏
अब मैं इस मामले (52 वर्षीय महिला आरोपी – POCSO Act, Karnataka High Court) का Case Note तैयार कर रहा हूँ, ताकि आप इसे परीक्षा या रिवीजन में आसानी से उपयोग कर सकें।


📌 Case Note

Kumari X (52 वर्षीय महिला) Vs. State of Karnataka

(Before Justice M. Nagaprasanna, Karnataka High Court, 2024)


1. Facts of the Case (मामले की तथ्यात्मक पृष्ठभूमि)

  • घटना वर्ष 2020 में हुई जब 13 वर्षीय लड़के का यौन उत्पीड़न हुआ।
  • पीड़ित का परिवार विदेश चला गया था, इसलिए तत्काल शिकायत दर्ज नहीं हुई।
  • वर्ष 2024 में भारत लौटने पर माता-पिता ने शिकायत दर्ज कराई।
  • इस शिकायत के आधार पर 52 वर्षीय महिला के खिलाफ POCSO Act की धारा 4 और 6 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया।
  • महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि पॉक्सो अधिनियम केवल पुरुषों पर लागू होता है, महिलाओं पर नहीं।

2. Issues before the Court (न्यायालय के समक्ष प्रमुख प्रश्न)

  1. क्या पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act, 2012) केवल पुरुषों को आरोपी मानकर बनाया गया है या यह लैंगिक तटस्थ (Gender-Neutral) है?
  2. क्या महिला को भी पॉक्सो कानून की धाराओं के तहत आरोपी बनाया जा सकता है?
  3. क्या याचिका के आधार पर महिला के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जाना चाहिए?

3. Contentions (पक्षकारों के तर्क)

  • याचिकाकर्ता (महिला) के तर्क:
    • पॉक्सो अधिनियम का निर्माण मुख्यतः पुरुष अपराधियों को रोकने के लिए किया गया।
    • महिला के खिलाफ इन धाराओं का प्रयोग विधिक दृष्टि से त्रुटिपूर्ण है।
    • इसलिए उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही रद्द की जानी चाहिए।
  • राज्य (State of Karnataka) का तर्क:
    • पॉक्सो अधिनियम की भाषा स्पष्ट है, इसमें “अभियुक्त” (Accused) शब्द का प्रयोग हुआ है, न कि “पुरुष”।
    • कानून का उद्देश्य बच्चे की सुरक्षा है, अपराधी पुरुष हो या महिला—इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
    • इसलिए कार्यवाही जारी रहनी चाहिए।

4. Judgment (न्यायालय का निर्णय)

  • न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने कहा कि:
    • पॉक्सो अधिनियम लैंगिक तटस्थ है।
    • इसका उद्देश्य सभी बच्चों को यौन शोषण से बचाना है।
    • अधिनियम की धारा 4 और 6 पुरुष व महिला दोनों पर समान रूप से लागू होती हैं।
    • अपराधी का लिंग महत्वहीन है, बल्कि ध्यान केवल पीड़ित बच्चे की सुरक्षा पर है।
  • महिला की याचिका खारिज कर दी गई और आपराधिक कार्यवाही जारी रखने का आदेश दिया गया।

5. Ratio Decidendi (निर्णय का कानूनी आधार)

  • POCSO Act की भाषा और उद्देश्य इसे Gender-Neutral बनाते हैं।
  • “Child” शब्द की परिभाषा (धारा 2) 18 वर्ष से कम उम्र के सभी व्यक्तियों पर लागू होती है, और “Accused” शब्द लिंग-विशेष नहीं है।
  • इसलिए महिला भी इस अधिनियम के तहत आरोपी बनाई जा सकती है।

6. Significance of the Case (निर्णय का महत्व)

  1. लैंगिक समानता (Gender Equality): यह फैसला दर्शाता है कि अपराधी का लिंग अप्रासंगिक है, कानून सब पर समान रूप से लागू होता है।
  2. समाज की धारणा में बदलाव: यह धारणा टूटी कि केवल पुरुष ही यौन अपराध कर सकते हैं।
  3. बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि: अदालत ने स्पष्ट किया कि पॉक्सो अधिनियम का असली उद्देश्य सभी बच्चों की सुरक्षा है।
  4. न्यायिक व्याख्या: यह निर्णय आने वाले मामलों में नज़ीर (precedent) का काम करेगा और महिला अपराधियों पर भी पॉक्सो लागू करने का मार्ग प्रशस्त करेगा।