समाज, सामाजिक ढांचा, सामाजिक परिवर्तन और अपराध का समाजशास्त्र “Society, Social Structure, Social Change and Sociology of Crime”

समाज, सामाजिक ढांचा, सामाजिक परिवर्तन और अपराध का समाजशास्त्र “Society, Social Structure, Social Change and Sociology of Crime”

प्रस्तावना

मानव प्राणी स्वभावतः सामाजिक प्राणी (Social Animal) है। वह अकेले जीवन नहीं जी सकता और न ही अपने विकास को स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ा सकता है। मनुष्य की आवश्यकताएँ, इच्छाएँ और आकांक्षाएँ समाज के भीतर ही पूरी होती हैं। इसी कारण समाजशास्त्र (Sociology) का उदय हुआ, जो समाज, सामाजिक संबंधों और सामाजिक संस्थाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है।

लॉरेंस (Lawrence) ने कहा है – “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो मनुष्यों के पारस्परिक संबंधों और उनके संगठन का अध्ययन करता है।”
इस निबंध में हम चार मुख्य आयामों पर चर्चा करेंगे –

  1. समाज (Society)
  2. सामाजिक ढांचा (Social Structure)
  3. सामाजिक परिवर्तन (Social Change)
  4. अपराध का समाजशास्त्र (Sociology of Crime)

1. समाज (Society)

(क) समाज की परिभाषा

  • मैकाइवर और पेज (MacIver & Page) : “समाज वह जाल है जो सामाजिक संबंधों से बना है।”
  • गिडिंग्स (Giddings) : “समाज चेतन व्यक्तियों का वह समूह है जो एक-दूसरे की क्रियाओं को प्रभावित करता है।”

अर्थात समाज केवल व्यक्तियों का समूह नहीं है, बल्कि यह उन संबंधों, मान्यताओं, परंपराओं और संस्थाओं का समुच्चय है जो व्यक्तियों को जोड़कर रखते हैं।

(ख) समाज की विशेषताएँ

  1. मानव समूह – समाज केवल मनुष्यों का संगठन है।
  2. सामाजिक संबंध – समाज का आधार पारस्परिक संबंध हैं।
  3. सहयोग एवं सहभागिता – समाज में लोग मिलकर जीवन यापन करते हैं।
  4. नियम एवं मूल्य – समाज को व्यवस्थित रखने हेतु मान्यताओं और नियमों का पालन होता है।
  5. गतिशीलता – समाज स्थिर नहीं है; समय के साथ बदलता रहता है।

2. सामाजिक ढांचा (Social Structure)

(क) परिभाषा

  • राडक्लिफ-ब्राउन (Radcliffe-Brown) : “सामाजिक ढांचा वह सुव्यवस्थित संबंध है जो समाज के विभिन्न अंगों के बीच पाया जाता है।”
  • जी.पी. मर्डॉक (G.P. Murdock) : “सामाजिक ढांचा वह नमूना है जिसके अंतर्गत समाज की संस्थाएँ, भूमिकाएँ और स्थिति संगठित होती हैं।”

(ख) सामाजिक ढांचे के अंग

  1. सामाजिक संस्थाएँ (Social Institutions) – परिवार, विवाह, शिक्षा, धर्म, राजनीति, कानून आदि।
  2. भूमिकाएँ और स्थिति (Roles & Status) – प्रत्येक व्यक्ति की एक सामाजिक स्थिति होती है और उससे संबंधित भूमिकाएँ निभानी होती हैं।
  3. सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) – जाति, वर्ग, लिंग, पेशा आदि के आधार पर समाज का विभाजन।
  4. नियम एवं मूल्य (Norms & Values) – समाज को नियंत्रित करने वाले आचार नियम।

(ग) भारतीय संदर्भ में सामाजिक ढांचा

भारतीय समाज का ढांचा मुख्यतः जाति व्यवस्था, परिवार और धर्म पर आधारित रहा है।

  • जाति व्यवस्था ने समाज को संगठित तो किया, परंतु कठोरता के कारण असमानता और भेदभाव भी उत्पन्न हुए।
  • संयुक्त परिवार भारतीय समाज की प्रमुख इकाई रहा है।
  • धर्म और परंपराएँ सामाजिक ढांचे का अभिन्न हिस्सा रही हैं।

3. सामाजिक परिवर्तन (Social Change)

(क) परिभाषा

  • किंग्सले डेविस (Kingsley Davis) : “सामाजिक परिवर्तन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के ढांचे और क्रियाओं में परिवर्तन होता है।”
  • गिलिन और गिलिन (Gillin & Gillin) : “सामाजिक परिवर्तन का अर्थ है – सामाजिक प्रक्रियाओं, मूल्यों और संस्थाओं में परिवर्तन।”

(ख) सामाजिक परिवर्तन के प्रकार

  1. धीमा परिवर्तन (Slow Change) – जैसे – परंपराओं में धीरे-धीरे बदलाव।
  2. तेज परिवर्तन (Rapid Change) – जैसे – औद्योगिक क्रांति, सूचना प्रौद्योगिकी का आगमन।
  3. योजना-बद्ध परिवर्तन (Planned Change) – जैसे – पंचवर्षीय योजनाएँ, शिक्षा नीतियाँ।
  4. अयोजना-बद्ध परिवर्तन (Unplanned Change) – जैसे – महामारी, प्राकृतिक आपदा।

(ग) सामाजिक परिवर्तन के कारक

  1. भौगोलिक कारक – जलवायु, भौगोलिक स्थिति, आपदाएँ।
  2. आर्थिक कारक – औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, वैश्वीकरण।
  3. सांस्कृतिक कारक – परंपराएँ, मान्यताएँ, शिक्षा।
  4. राजनीतिक कारक – स्वतंत्रता आंदोलन, लोकतंत्र, संविधान।
  5. वैज्ञानिक एवं तकनीकी कारक – इंटरनेट, मोबाइल, कृत्रिम बुद्धिमत्ता।

(घ) भारतीय समाज में सामाजिक परिवर्तन

  • जाति व्यवस्था में ढीलापन और आरक्षण नीतियाँ।
  • महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की दिशा में परिवर्तन।
  • शहरीकरण और औद्योगिकीकरण से पारिवारिक संरचना में बदलाव।
  • शिक्षा और मीडिया के प्रसार से सामाजिक चेतना का विकास।

4. अपराध का समाजशास्त्र (Sociology of Crime)

(क) अपराध की अवधारणा

अपराध वह व्यवहार है जो समाज के मान्य नियमों और कानून का उल्लंघन करता है। यह न केवल विधिक (Legal) संकल्पना है, बल्कि सामाजिक संकल्पना भी है।

  • सदरलैंड (Sutherland) : “अपराध सामाजिक संबंधों की उपज है।”
  • एमीले दुर्खीम (Emile Durkheim) : “अपराध समाज का सामान्य अंग है, क्योंकि यह समाज की नैतिक सीमाओं को दर्शाता है।”

(ख) अपराध की समाजशास्त्रीय व्याख्या

  1. जैविक सिद्धांत (Biological Theories) – लोम्ब्रोसो (Lombroso) ने अपराधियों को जन्मजात माना।
  2. मनोवैज्ञानिक सिद्धांत (Psychological Theories) – अपराधी मानसिक असंतुलन या व्यक्तित्व विकार के कारण अपराध करते हैं।
  3. समाजशास्त्रीय सिद्धांत (Sociological Theories) :
    • सामाजिक अव्यवस्था सिद्धांत (Social Disorganization Theory) – अव्यवस्थित समाज अपराध को जन्म देता है।
    • तनाव सिद्धांत (Strain Theory) – जब व्यक्ति की आकांक्षाएँ पूरी नहीं होतीं तो वह अपराध की ओर प्रवृत्त होता है।
    • सांस्कृतिक विचलन सिद्धांत (Cultural Deviance Theory) – अपराध उन समूहों में अधिक होता है जहाँ मान्यताएँ मुख्यधारा से अलग होती हैं।

(ग) भारत में अपराध की स्थिति

  • आर्थिक अपराध (भ्रष्टाचार, कर चोरी)।
  • संगठित अपराध (माफिया, मानव तस्करी)।
  • साइबर अपराध (ऑनलाइन धोखाधड़ी, हैकिंग)।
  • घरेलू हिंसा और लैंगिक अपराध।
  • आतंकवाद और नक्सलवाद।

(घ) अपराध नियंत्रण के उपाय

  1. शिक्षा और नैतिक मूल्य – अपराध रोकथाम हेतु समाज में नैतिक शिक्षा का प्रसार।
  2. कानून का प्रभावी प्रवर्तन – पुलिस और न्यायपालिका को सुदृढ़ करना।
  3. आर्थिक अवसर – बेरोजगारी और गरीबी कम करने से अपराध घट सकता है।
  4. सामाजिक जागरूकता – समाज में अपराध के विरुद्ध सामूहिक चेतना का निर्माण।
  5. पुनर्वास और सुधार – अपराधियों को केवल दंडित न करके, सुधारने पर बल देना।

निष्कर्ष

समाजशास्त्र के अध्ययन से हमें यह स्पष्ट होता है कि कानून और समाज एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। समाज के बिना कानून का कोई अस्तित्व नहीं और कानून के बिना समाज में व्यवस्था संभव नहीं।

  • समाज हमें पारस्परिक संबंधों और संगठन का ज्ञान कराता है।
  • सामाजिक ढांचा समाज के संगठनात्मक स्वरूप को समझाता है।
  • सामाजिक परिवर्तन यह दिखाता है कि समाज गतिशील है और निरंतर बदलता रहता है।
  • अपराध का समाजशास्त्र यह स्पष्ट करता है कि अपराध केवल विधिक नहीं, बल्कि सामाजिक समस्या भी है।

आज के वैश्वीकरण और तकनीकी युग में अपराध की प्रवृत्तियाँ बदल रही हैं। ऐसे में आवश्यकता है कि समाजशास्त्र और विधि (Law) मिलकर ऐसी नीतियाँ बनाएँ जो न केवल अपराध को रोकें बल्कि समाज को अधिक न्यायपूर्ण, समान और मानवीय बना सकें।


समाज, सामाजिक ढांचा, सामाजिक परिवर्तन और अपराध का समाजशास्त्र

प्रस्तावना

समाजशास्त्र (Sociology) एक वैज्ञानिक अध्ययन है जो मानव समाज, उसकी संरचना, संगठन, कार्यप्रणाली एवं परिवर्तन की व्याख्या करता है। समाज, सामाजिक ढाँचा और सामाजिक परिवर्तन एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। इसी तरह अपराध (Crime) केवल एक कानूनी समस्या न होकर एक सामाजिक घटना भी है, जिसका अध्ययन समाजशास्त्रियों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से किया है।


समाज (Society)

समाज का अर्थ केवल व्यक्तियों का समूह नहीं, बल्कि उन व्यक्तियों के बीच पारस्परिक संबंधों, भूमिकाओं, मूल्यों और संस्थाओं का तंत्र है।

समाजशास्त्री परिभाषा/उद्धरण मुख्य बिंदु
मैकाइवर एवं पेज “Society is a system of usages and procedures of authority and mutual aid, of many groupings and divisions, of control of human behavior and of liberties.” समाज केवल व्यक्तियों का समूह नहीं, बल्कि परंपराओं, संस्थाओं और परस्पर सहयोग का तंत्र है।
एमिल दुर्खीम “Society is not merely a sum of individuals but the system formed by their association represents a specific reality which has its own characteristics.” समाज एक स्वतंत्र इकाई है जिसकी अपनी वास्तविकता होती है।
मैक्स वेबर समाज उन व्यक्तियों की क्रियाओं से निर्मित है जो अर्थपूर्ण सामाजिक संबंधों पर आधारित हों। सामाजिक क्रिया (Social Action) के आधार पर समाज का निर्माण।

सामाजिक ढांचा (Social Structure)

सामाजिक ढांचा समाज की स्थायी व्यवस्था है जिसमें विभिन्न संस्थाएँ, भूमिकाएँ और मानदंड शामिल होते हैं।

समाजशास्त्री परिभाषा/दृष्टिकोण मुख्य विशेषताएँ
मैकाइवर “The term social structure implies an arrangement of persons in relationships defined or controlled by institutions.” सामाजिक संरचना का आधार व्यक्ति और संस्था के बीच संबंध।
रैडक्लिफ ब्राउन समाज के ढाँचे को सामाजिक संबंधों का नेटवर्क माना। व्यक्ति-व्यक्ति और संस्था-व्यक्ति संबंध।
टैल्कट पार्सन्स समाज का ढांचा विभिन्न उप-प्रणालियों का समन्वय है (AGIL मॉडल)। हर संस्था समाज की स्थिरता में योगदान देती है।

सामाजिक परिवर्तन (Social Change)

सामाजिक परिवर्तन का अर्थ है – मूल्यों, संस्थाओं, संबंधों और सामाजिक संरचनाओं में समय के साथ होने वाला रूपांतरण।

समाजशास्त्री सिद्धांत/उद्धरण दृष्टिकोण
एमिल दुर्खीम परिवर्तन यांत्रिक एकजुटता (Mechanical Solidarity) से सजीव एकजुटता (Organic Solidarity) की ओर होता है। औद्योगिकीकरण और श्रम विभाजन के कारण परिवर्तन।
कार्ल मार्क्स “The history of all hitherto existing societies is the history of class struggle.” वर्ग संघर्ष और आर्थिक आधार परिवर्तन का प्रमुख कारण।
मैक्स वेबर सामाजिक परिवर्तन धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों (जैसे Protestant Ethic) से प्रेरित हो सकता है। विचारधारा और मूल्य परिवर्तन का स्रोत।
ओगबर्न “Cultural Lag” सिद्धांत – भौतिक संस्कृति तेज़ी से बदलती है जबकि अमूर्त संस्कृति धीरे बदलती है। तकनीकी प्रगति और सामाजिक संस्थाओं में असमान परिवर्तन।

अपराध का समाजशास्त्र (Sociology of Crime)

अपराध केवल विधि-लंघन नहीं बल्कि सामाजिक अव्यवस्था का परिणाम है। विभिन्न समाजशास्त्रियों ने इसे अलग-अलग दृष्टिकोण से समझाया।

समाजशास्त्री सिद्धांत मुख्य विचार
लोम्ब्रोसो (Lombroso) “Born Criminal Theory” अपराधी जन्मजात होता है, उसकी शारीरिक बनावट (जैसे जबड़ा, कान, माथा) से अपराधी प्रवृत्ति जानी जा सकती है।
एमिल दुर्खीम “Crime is a normal phenomenon.” अपराध हर समाज में होता है और यह सामाजिक परिवर्तन की संभावना को दर्शाता है।
रॉबर्ट मर्टन “Strain Theory” जब सामाजिक लक्ष्य और उन्हें पाने के वैध साधनों में अंतर होता है तो अपराध जन्म लेता है।
सदरलैंड “Differential Association Theory” अपराधी प्रवृत्ति सीखी जाती है – संगति (Company) और वातावरण से।
हिर्शी (Hirschi) “Social Bond Theory” जब व्यक्ति का समाज से जुड़ाव कमजोर होता है तो अपराध की संभावना बढ़ जाती है।

सामाजिक ढाँचे और अपराध का संबंध

  • जब सामाजिक संस्थाएँ (परिवार, शिक्षा, धर्म) कमजोर होती हैं, अपराध बढ़ता है।
  • सामाजिक असमानता और वर्ग संघर्ष भी अपराध को जन्म देते हैं (मार्क्सवादी दृष्टिकोण)।
  • शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और मूल्य-भंग (Anomie) की स्थिति अपराध की प्रमुख वजह है (दुर्खीम)।

समग्र मूल्यांकन

  • समाज स्थिर नहीं है, वह लगातार बदलता रहता है।
  • सामाजिक ढाँचा और सामाजिक परिवर्तन परस्पर पूरक हैं।
  • अपराध केवल विधिक समस्या न होकर एक सामाजिक विकृति (Social Pathology) है।
  • आधुनिक समय में समाजशास्त्रियों ने “सहभागी समाज” और “निवारक दृष्टिकोण” की आवश्यकता पर बल दिया है।

निष्कर्ष

समाज, सामाजिक ढाँचा, सामाजिक परिवर्तन और अपराध का समाजशास्त्र एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। समाजशास्त्रियों के विभिन्न सिद्धांत हमें यह समझाते हैं कि समाज किस प्रकार संगठित होता है, कैसे बदलता है और उसमें अपराध क्यों उत्पन्न होता है। आज के वैश्विक युग में, जब तीव्र सामाजिक और तकनीकी परिवर्तन हो रहे हैं, तब इन समाजशास्त्रीय दृष्टिकोणों का अध्ययन हमें एक स्वस्थ, न्यायपूर्ण और अपराध-मुक्त समाज की दिशा में मार्गदर्शन देता है।