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उत्तराधिकार की अवधारणा : हिन्दू विधि के अंतर्गत (धारा-वार विश्लेषण सहित)

उत्तराधिकार की अवधारणा : हिन्दू विधि के अंतर्गत (धारा-वार विश्लेषण सहित)

भूमिका

भारतीय समाज में उत्तराधिकार (Succession) का प्रश्न सदैव महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि यह तय करता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति किस प्रकार और किन उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी। हिन्दू विधि में उत्तराधिकार का आधार पारिवारिक संरचना, धर्मशास्त्रों और परंपराओं से उत्पन्न हुआ। परंतु आधुनिक युग में इसे विधिक स्वरूप हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956) के माध्यम से दिया गया।


हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 का क्षेत्राधिकार (Section 2)

यह अधिनियम हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख समुदाय पर लागू होता है। मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी इस अधिनियम के दायरे में नहीं आते।


वसीयतनामा द्वारा और अवसीयतनामा रहित उत्तराधिकार

Section 30: वसीयतनामा (Testamentary Succession) का प्रावधान है, जिसमें व्यक्ति अपनी संपत्ति अपनी इच्छा से किसी को भी दे सकता है।
अन्य धाराएँ: यदि व्यक्ति वसीयत नहीं करता, तो उसकी संपत्ति Intestate Succession के नियमों के अनुसार बंटती है।


हिन्दू पुरुष का उत्तराधिकार (Sections 8 to 13)

Section 8: सामान्य नियम

यदि कोई हिन्दू पुरुष बिना वसीयत के मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसकी संपत्ति सबसे पहले Class I heirs को मिलेगी।

Section 9: उत्तराधिकार की श्रेणियाँ

  1. Class I heirs → प्रथम प्राथमिकता
  2. Class II heirs → द्वितीय प्राथमिकता
  3. Agnates (पितृ पक्ष से संबंध)
  4. Cognates (मातृ पक्ष से संबंध)

Section 10: Class I heirs में बंटवारा

Class I में पुत्र, पुत्री, विधवा, माता तथा मृत संतान के बच्चे शामिल हैं। सभी को समान हिस्सेदारी दी जाती है।

Section 11: Class II heirs में बंटवारा

यदि Class I का कोई जीवित नहीं है, तो संपत्ति Class II heirs में जाएगी, जैसे पिता, भाई, बहन आदि।

Section 12-13: अग्नेट्स और कग्नेट्स

यदि Class I और II में कोई उत्तराधिकारी न हो तो संपत्ति अग्नेट्स और फिर कग्नेट्स को मिलेगी।


हिन्दू स्त्री का उत्तराधिकार (Sections 14 to 16)

Section 14: स्त्रियों का अधिकार

  • उपधारा (1): स्त्रियों को उनकी संपत्ति पर पूर्ण अधिकार (Absolute Ownership) है।
  • उपधारा (2): यदि उन्हें सीमित अधिकार किसी शर्त के साथ प्राप्त हुआ है, तो वही लागू होगा।

Section 15: स्त्री की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का उत्तराधिकार

स्त्री की संपत्ति का बंटवारा निम्न क्रम में होगा:

  1. पुत्र, पुत्री और पति
  2. पति के उत्तराधिकारी
  3. माता-पिता
  4. पिता के उत्तराधिकारी
  5. माता के उत्तराधिकारी

Section 16: क्रमबद्ध वितरण

Section 15 में बताए गए वारिसों के बीच संपत्ति का वितरण क्रमबद्ध तरीके से होगा।


Coparcenary अधिकार और 2005 संशोधन (Section 6)

मूल स्थिति: पुत्र को जन्म से ही पैतृक संपत्ति में सहभोजी (coparcener) का अधिकार था।
2005 संशोधन: पुत्री को भी समान अधिकार प्रदान किया गया।

  • पुत्री अब जन्म से ही coparcener है।
  • वह संपत्ति में समान हिस्सेदारी रखती है।
  • सुप्रीम कोर्ट का Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) निर्णय इस धारा को स्पष्ट करता है।

अपवाद (Sections 21 to 29)

  • Section 21: हत्या करने वाला व्यक्ति संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं बन सकता।
  • Section 22: सह-उत्तराधिकारियों के बीच प्राथमिक खरीद का अधिकार।
  • Section 23 (अब निरस्त): अविवाहित पुत्री को पैतृक घर में अधिकार नहीं था, परंतु 2005 संशोधन ने इसे हटा दिया।
  • Section 24 (अब निरस्त): पुनर्विवाह करने वाली विधवा के अधिकार सीमित थे, पर अब समाप्त हो गए।
  • Section 25-28: किसी को उत्तराधिकार से वंचित करने के विशेष प्रावधान।

न्यायालयों की प्रमुख व्याख्याएँ

  1. Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020): पुत्री को जन्म से coparcener अधिकार।
  2. Gurupad v. Hirabai (1978): विधवा को संपत्ति में समान अधिकार।
  3. Prakash v. Phulavati (2016): संशोधन का सीमित प्रभाव, जिसे बाद में Vineeta Sharma ने पलटा।

सामाजिक एवं विधिक महत्व

  • स्त्रियों को आर्थिक सशक्तिकरण मिला।
  • पारिवारिक विवादों को सुलझाने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  • समाज में समानता और न्याय की भावना को बल मिला।

निष्कर्ष

धारा-वार विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 तथा 2005 संशोधन ने पारंपरिक पितृसत्तात्मक व्यवस्था को चुनौती देते हुए पुरुष और स्त्री को समान अधिकार प्रदान किए हैं। न्यायालयों ने भी इसे व्यापक दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया है। आज आवश्यकता है कि इन प्रावधानों की सही जानकारी समाज तक पहुँचे, ताकि उत्तराधिकार के मामलों में समानता और न्याय सुनिश्चित हो सके।