Pyare Lal Bhargava v. State of Rajasthan (AIR 1963 SC 1094) – सरकारी अभिलेख की चोरी पर सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय
भारतीय दंड संहिता (IPC) में चोरी (Theft) की परिभाषा धारा 378 में दी गई है। इस धारा के अनुसार, “जो कोई भी किसी चल संपत्ति को बेईमानी के साथ, मालिक की सहमति के बिना, उसे उसकी कब्जे से निकालने के आशय से ले जाता है, वह चोरी करता है।” यह परिभाषा पहली नज़र में सरल प्रतीत होती है, किंतु जब मामला सरकारी दस्तावेज़ या सार्वजनिक रिकॉर्ड से जुड़ा हो, तब जटिल प्रश्न उठते हैं कि क्या सरकारी अभिलेख, जो एक सार्वजनिक संपत्ति है, ‘चोरी’ की श्रेणी में आएगा या नहीं।
इसी संदर्भ में Pyare Lal Bhargava v. State of Rajasthan (AIR 1963 SC 1094) का मामला भारतीय दंड संहिता की व्याख्या और चोरी की अवधारणा के लिए मील का पत्थर माना जाता है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति सरकारी अभिलेख को मालिकाना नियंत्रण (possession) से बाहर ले जाता है, तो यह कृत्य चोरी की श्रेणी में आता है, भले ही उस पर पुनः लौटाने का इरादा क्यों न हो।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले में आरोपी प्यारे लाल भार्गव राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग में कार्यरत था। उसे कार्यालय के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों और रिकॉर्ड तक पहुंच प्राप्त थी। आरोप यह था कि उसने जानबूझकर सरकारी रिकॉर्ड, जो उसके आधिकारिक अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत था, को अपनी जेब में रख लिया और कार्यालय परिसर से बाहर ले गया।
हालांकि आरोपी का तर्क था कि उसने दस्तावेज़ स्थायी रूप से रखने का इरादा नहीं किया, बल्कि केवल अस्थायी रूप से उसे बाहर ले गया था। इसलिए उस पर चोरी का अपराध सिद्ध नहीं होता। आरोपी ने कहा कि चोरी तभी होती है जब संपत्ति को स्थायी रूप से हड़पने (permanent deprivation) का इरादा हो।
मुख्य मुद्दा (Issue)
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था:
“क्या सरकारी रिकॉर्ड को जेब में रखकर कार्यालय से बाहर ले जाना चोरी (theft) की परिभाषा में आता है, भले ही आरोपी का इरादा उसे स्थायी रूप से हड़पने का न हो?”
न्यायालय की व्याख्या
सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 378 IPC में दी गई चोरी की परिभाषा का गहन विश्लेषण किया। न्यायालय ने कहा कि चोरी के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं:
- संपत्ति चल संपत्ति (movable property) हो।
- संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति के कब्जे (possession) में हो।
- संपत्ति को बेईमानी से ले जाया जाए।
- संपत्ति लेने में मालिक की सहमति न हो।
- संपत्ति को कब्जे से बाहर ले जाने का इरादा हो।
न्यायालय ने कहा कि सरकारी रिकॉर्ड भी चल संपत्ति के अंतर्गत आते हैं। यद्यपि वे अमूर्त महत्व के होते हैं, लेकिन उनका भौतिक स्वरूप कागज और फाइलों के रूप में होता है, जिन्हें ले जाया जा सकता है। अतः ये चोरी के लिए वैध विषय (subject matter) बन सकते हैं।
न्यायालय का निर्णय (Judgment)
न्यायालय ने कहा कि आरोपी द्वारा सरकारी रिकॉर्ड को अपनी जेब में रखकर कार्यालय से बाहर ले जाना चोरी है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चोरी के लिए स्थायी रूप से संपत्ति हड़पने का इरादा आवश्यक नहीं है। केवल कब्जे से बेईमानीपूर्वक बाहर ले जाना ही पर्याप्त है।
- आरोपी ने जानबूझकर मालिक (सरकार) की अनुमति के बिना रिकॉर्ड को बाहर ले गया। यह कृत्य चोरी की परिभाषा में आता है।
- सरकारी दस्तावेज़ या रिकॉर्ड सार्वजनिक संपत्ति है, और उसका अनुचित उपयोग समाज और शासन व्यवस्था के लिए गंभीर परिणाम ला सकता है।
इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने आरोपी को चोरी का दोषी माना।
इस मामले से स्थापित सिद्धांत
- सरकारी रिकॉर्ड भी चल संपत्ति है – न्यायालय ने माना कि दस्तावेज़ और फाइलें चोरी का विषय हो सकती हैं।
- स्थायी रूप से हड़पने का इरादा आवश्यक नहीं – केवल अस्थायी रूप से भी कब्जे से बाहर ले जाना चोरी है, यदि वह बेईमानी से किया गया हो।
- बेईमानी का तत्व (Dishonest Intention) – यदि कोई कार्य किसी और की संपत्ति को उसकी अनुमति के बिना कब्जे से बाहर ले जाता है, तो यह बेईमानी है।
- सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा – यह निर्णय सरकारी अभिलेखों की सुरक्षा और पवित्रता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
महत्व और प्रभाव
इस निर्णय ने भारतीय दंड संहिता में चोरी की अवधारणा को और व्यापक बनाया। इससे यह स्पष्ट हो गया कि:
- सरकारी अभिलेखों का अनधिकृत रूप से ले जाना गंभीर अपराध है।
- यह मामला सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को सतर्क करता है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग करके रिकॉर्ड को निजी उद्देश्य हेतु प्रयोग न करें।
- न्यायालय ने यह संदेश दिया कि सरकारी दस्तावेज़ राष्ट्र की संपत्ति हैं और उनके साथ छेड़छाड़ करना समाज के लिए हानिकारक है।
आलोचनात्मक विश्लेषण
कुछ विधि विशेषज्ञों ने यह तर्क दिया कि यदि आरोपी का स्थायी हड़पने का इरादा न हो तो उसे चोरी के बजाय किसी अन्य हल्के अपराध के तहत दंडित किया जाना चाहिए। लेकिन न्यायालय का दृष्टिकोण यह था कि सरकारी दस्तावेज़ों को किसी भी प्रकार से बाहर ले जाना प्रशासनिक व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रिया को खतरे में डाल सकता है। इसलिए कठोर व्याख्या अपनाई गई।
इस दृष्टिकोण ने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी सरकारी कर्मचारी यह बहाना न बना सके कि वह दस्तावेज़ केवल “अस्थायी रूप से” बाहर ले गया था।
निष्कर्ष
Pyare Lal Bhargava v. State of Rajasthan (AIR 1963 SC 1094) भारतीय न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण निर्णय है, जिसने यह स्थापित किया कि सरकारी रिकॉर्ड की चोरी भी चोरी की ही श्रेणी में आएगी। इस निर्णय ने सरकारी अभिलेखों की पवित्रता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए ठोस आधार प्रदान किया।
यह फैसला आज भी उन मामलों में उद्धृत किया जाता है जहाँ सरकारी रिकॉर्ड, फाइल या दस्तावेज़ की अनधिकृत निकासी का प्रश्न उठता है। इसने यह सिद्ध किया कि कानून की नज़र में सरकारी संपत्ति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति।
✅ इस प्रकार यह निर्णय भारतीय दंड संहिता की व्याख्या को और व्यापक बनाता है और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा हेतु महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित करता है।