भारतीय दंड संहिता (IPC) के अंतर्गत मानहानि (Defamation) का अपराध
प्रस्तावना
मानहानि (Defamation) एक ऐसा अपराध है जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा, सामाजिक छवि और गरिमा को आघात पहुँचाता है। भारतीय समाज में प्रतिष्ठा (Reputation) को व्यक्ति की अमूल्य संपत्ति माना गया है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व का ऐसा हिस्सा है जिसके बिना सामाजिक जीवन कठिन हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के बारे में झूठे, अपमानजनक या दुर्भावनापूर्ण शब्दों का प्रयोग करता है और उससे उसकी सामाजिक छवि धूमिल होती है, तो यह मानहानि कहलाती है।
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 499 से 502 तक मानहानि के अपराध का विस्तृत प्रावधान किया गया है।
मानहानि की परिभाषा (Section 499, IPC)
धारा 499 के अनुसार –
“जब कोई व्यक्ति शब्दों द्वारा, चाहे वे बोले गए हों या लिखे गए हों, संकेतों द्वारा या दृश्य निरूपण द्वारा, किसी व्यक्ति के बारे में ऐसा कथन करता है या प्रकाशित करता है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुँचती है, तो यह मानहानि कहलाती है।”
इस प्रकार, मानहानि मौखिक शब्दों, लिखित शब्दों, चित्र, संकेत या अन्य किसी माध्यम से भी की जा सकती है।
मानहानि के आवश्यक तत्व (Essentials of Defamation)
मानहानि का अपराध सिद्ध होने के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं –
- कथन होना चाहिए –
मानहानि के लिए आवश्यक है कि कोई कथन (Statement) किया जाए। यह कथन बोले गए शब्द, लिखित रूप, चित्र या संकेत के माध्यम से हो सकता है। - कथन किसी व्यक्ति से सम्बंधित हो –
यह कथन किसी जीवित व्यक्ति या मृत व्यक्ति की प्रतिष्ठा से सम्बंधित होना चाहिए। मृत व्यक्ति की मानहानि भी अपराध है, बशर्ते वह कथन उनके परिवार या वंशजों की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाए। - कथन प्रकाशित किया जाना चाहिए (Publication) –
केवल कथन करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसका दूसरों तक पहुँचना आवश्यक है। यदि कथन केवल उस व्यक्ति तक सीमित रहे जिसकी मानहानि की गई है, तो वह अपराध नहीं है। - प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचना आवश्यक –
कथन से उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा को समाज में क्षति पहुँची हो। यदि कथन हास्य या सत्य पर आधारित है तो यह मानहानि नहीं मानी जाएगी।
मानहानि के प्रकार
भारतीय विधि में मानहानि को मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है –
- लाइबल (Libel) –
जब मानहानि लिखित रूप में की जाती है, जैसे – अखबार, पत्रिका, किताब, पम्पलेट, कार्टून आदि। यह स्थायी रूप में होती है और अधिक गंभीर मानी जाती है। - स्लैंडर (Slander) –
जब मानहानि मौखिक शब्दों, इशारों या हाव-भाव द्वारा की जाती है। यह अस्थायी रूप में होती है, परन्तु IPC में दोनों को समान रूप से अपराध माना गया है।
अपवाद (Exceptions) – धारा 499 में उल्लेखित
धारा 499 में 10 अपवाद (Exceptions) दिए गए हैं, जिनमें यदि कथन आता है तो वह मानहानि नहीं मानी जाएगी –
- सत्य कथन (Truth for Public Good) –
यदि कथन सत्य है और सार्वजनिक हित में किया गया है तो यह मानहानि नहीं है। - सार्वजनिक कर्मचारियों की आलोचना –
किसी लोक सेवक (Public Servant) के कार्यकलाप पर ईमानदार आलोचना करना मानहानि नहीं है। - न्यायिक कार्यवाही –
न्यायालय में दिए गए कथन या रिपोर्ट को मानहानि नहीं माना जाएगा। - न्यायालय की कार्यवाही का रिपोर्टिंग –
यदि कोई व्यक्ति न्यायालय की कार्यवाही की सच्ची रिपोर्ट करता है तो यह अपराध नहीं है। - लोकहित के मामलों पर टिप्पणी –
किसी ऐसे विषय पर निष्पक्ष और सद्भावना से की गई टिप्पणी जो सार्वजनिक हित में हो, मानहानि नहीं है। - लोक व्यक्तियों के आचरण की आलोचना –
यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में है, तो उसके कार्यकलाप पर ईमानदार और सद्भावना से आलोचना करना अपराध नहीं है। - निष्पक्ष टिप्पणी –
कला, साहित्य, वैज्ञानिक कार्यों आदि की निष्पक्ष आलोचना मानहानि नहीं है। - सद्भावना से किया गया कथन –
यदि किसी व्यक्ति के सुधार, हित या सावधानी हेतु कथन किया गया है, तो वह मानहानि नहीं है। - न्यायसंगत चेतावनी –
यदि किसी व्यक्ति को या समाज को सावधान करने के उद्देश्य से कथन किया गया है तो यह मानहानि नहीं है। - धर्म, जाति या समुदाय के बारे में ईमानदार टिप्पणी –
यदि किसी धर्म या समुदाय के अनुयायियों की भलाई के लिए कोई ईमानदार कथन किया जाता है, तो वह मानहानि नहीं है।
दंड का प्रावधान (Section 500, IPC)
धारा 500 के अनुसार –
“मानहानि करने वाले व्यक्ति को अधिकतम दो वर्ष तक का कारावास, या जुर्माना, अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है।”
अन्य संबंधित धाराएँ
- धारा 501 IPC – यदि कोई व्यक्ति जान-बूझकर मानहानिकारक सामग्री छापता है या प्रकाशित करता है तो उसे भी समान दंड मिलेगा।
- धारा 502 IPC – यदि कोई व्यक्ति मानहानिकारक सामग्री का विक्रय या वितरण करता है, तो यह भी अपराध है।
न्यायिक दृष्टिकोण (Judicial Pronouncements)
- सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ (2016, SC) –
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मानहानि का अपराध संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक उचित प्रतिबंध है, क्योंकि किसी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाना समाज के लिए हानिकारक है। - राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य (1994, SC) –
इस मामले में कहा गया कि प्रेस को स्वतंत्रता है, परन्तु यदि वह झूठे तथ्यों का प्रकाशन करता है जिससे किसी की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचती है तो वह मानहानि का दोषी होगा। - राम जेठमलानी बनाम सुब्रमण्यम स्वामी (2006, Delhi HC) –
न्यायालय ने माना कि मानहानि का आधारभूत तत्व किसी व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाना है।
संविधान और मानहानि
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है। परंतु अनुच्छेद 19(2) के अनुसार यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है और उस पर उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
मानहानि का अपराध इसी उचित प्रतिबंध के अंतर्गत आता है, क्योंकि यह किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) से भी जुड़ा हुआ है, जिसमें प्रतिष्ठा का अधिकार (Right to Reputation) शामिल है।
मानहानि और मीडिया
आधुनिक युग में सोशल मीडिया, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विस्तार के साथ मानहानि के मामलों में वृद्धि हुई है।
- अखबारों में झूठी रिपोर्ट,
- टीवी चैनलों पर अफवाह फैलाना,
- सोशल मीडिया पोस्ट या ट्वीट से किसी की छवि धूमिल करना –
ये सभी IPC की धारा 499-500 के अंतर्गत मानहानि मानी जाती है।
निष्कर्ष
मानहानि का अपराध भारतीय दंड संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो समाज में व्यक्तियों की प्रतिष्ठा की रक्षा करता है। यह अपराध न केवल व्यक्तिगत गरिमा से जुड़ा है बल्कि सामाजिक समरसता और शांति बनाए रखने में भी सहायक है। यद्यपि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, परंतु यह स्वतंत्रता किसी की प्रतिष्ठा को आहत करने का अधिकार नहीं देती। इसलिए कानून ने दोनों के बीच संतुलन बनाते हुए मानहानि को अपराध घोषित किया है।
आज के समय में जब सोशल मीडिया और अभिव्यक्ति के साधन अत्यधिक बढ़ गए हैं, तो मानहानि का दायरा और भी व्यापक हो गया है। यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति में संयम और जिम्मेदारी का पालन करें, ताकि समाज में प्रतिष्ठा और गरिमा बनी रहे।