अनुबंध का उल्लंघन एवं पीड़ित पक्ष को उपलब्ध उपाय
प्रस्तावना
भारतीय विधि व्यवस्था में अनुबंध (Contract) का विशेष महत्व है। जब दो या अधिक व्यक्ति किसी कार्य को करने या न करने के लिए सहमति देते हैं और वह सहमति विधि द्वारा लागू की जा सकती है, तो उसे अनुबंध कहा जाता है। यह परिभाषा भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 2(एच) में दी गई है।
अनुबंध एक कानूनी दायित्व उत्पन्न करता है और प्रत्येक पक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने दायित्व का पालन करे। किंतु जब कोई पक्ष अनुबंध के अनुसार अपने दायित्व का निर्वहन नहीं करता, या करने से इनकार करता है, तो इसे अनुबंध का उल्लंघन (Breach of Contract) कहा जाता है। ऐसी स्थिति में दूसरा पक्ष, जिसे पीड़ा पहुँची है, उसे कानून द्वारा कुछ उपाय (Remedies) उपलब्ध कराए जाते हैं ताकि उसकी क्षति की भरपाई की जा सके या उसे न्याय मिले।
अनुबंध के उल्लंघन का अर्थ
अनुबंध का उल्लंघन तब होता है जब—
- कोई पक्ष अपने वादे के अनुसार कार्य करने से इनकार कर देता है, या
- अपूर्ण रूप से अथवा गलत ढंग से कार्य करता है, या
- अनुबंध में तय समय सीमा के भीतर कार्य नहीं करता।
भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 37 में कहा गया है कि प्रत्येक पक्ष को अनुबंध की शर्तों का पालन करना अनिवार्य है। यदि वह ऐसा नहीं करता, तो वह उल्लंघनकर्ता (Defaulter) कहलाता है।
उदाहरण: यदि “A” ने “B” को 1 जुलाई को 100 बोरी गेहूँ देने का वादा किया और उस दिन गेहूँ नहीं दिया, तो यह उल्लंघन है।
अनुबंध के उल्लंघन के प्रकार
1. वास्तविक उल्लंघन (Actual Breach of Contract)
जब अनुबंध के प्रदर्शन (Performance) के समय, कोई पक्ष वादा पूरा नहीं करता, तो इसे वास्तविक उल्लंघन कहते हैं।
- यह प्रदर्शन के समय हो सकता है।
- या प्रदर्शन की प्रक्रिया के दौरान हो सकता है।
उदाहरण: A ने B को 1 अगस्त को माल देने का वादा किया। 1 अगस्त को A माल नहीं देता। यह वास्तविक उल्लंघन है।
2. पूर्वानुमानित उल्लंघन (Anticipatory Breach of Contract)
जब अनुबंध की समय सीमा आने से पहले ही कोई पक्ष यह स्पष्ट कर दे कि वह अनुबंध का पालन नहीं करेगा, तो इसे पूर्वानुमानित उल्लंघन कहते हैं।
उदाहरण: A ने B को 1 सितम्बर को माल देने का वादा किया। किंतु A 15 अगस्त को ही पत्र लिखकर कह देता है कि वह माल नहीं देगा। यह पूर्वानुमानित उल्लंघन है।
इस स्थिति में पीड़ित पक्ष के पास दो विकल्प होते हैं—
- वह तुरंत अनुबंध को निरस्त मानकर क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है।
- या तय तिथि तक प्रतीक्षा कर सकता है कि शायद उल्लंघनकर्ता अपना विचार बदल दे।
अनुबंध उल्लंघन के परिणाम
अनुबंध का उल्लंघन केवल एक पक्ष को क्षति नहीं पहुँचाता, बल्कि व्यापारिक विश्वास और सामाजिक व्यवस्था को भी प्रभावित करता है। इसलिए विधि यह सुनिश्चित करती है कि पीड़ित पक्ष को उचित राहत मिले।
प्रसिद्ध अंग्रेजी वाद Hadley v. Baxendale (1854) में सिद्धांत प्रतिपादित किया गया कि पीड़ित पक्ष को ऐसे नुकसान की क्षतिपूर्ति दी जाएगी जो स्वाभाविक रूप से उल्लंघन से उत्पन्न हुए हों या अनुबंध के समय पक्षों की जानकारी में थे।
उपाय (Remedies) – पीड़ित पक्ष के लिए उपलब्ध राहतें
भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 तथा विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 के अंतर्गत पीड़ित पक्ष को विभिन्न उपाय उपलब्ध हैं। इनमें मुख्यतः निम्नलिखित सम्मिलित हैं:
1. क्षतिपूर्ति (Damages)
क्षतिपूर्ति का अर्थ है—उल्लंघन के कारण हुए वास्तविक नुकसान की आर्थिक भरपाई। न्यायालय का उद्देश्य उल्लंघनकर्ता को दंडित करना नहीं बल्कि पीड़ित पक्ष को उसके नुकसान की भरपाई दिलाना है।
क्षतिपूर्ति के प्रकार
- साधारण क्षतिपूर्ति (Ordinary Damages):
- वे क्षतिपूर्ति जो सीधे-सीधे उल्लंघन से हुई हों।
- उदाहरण: यदि A ने 100 बोरी गेहूँ B को ₹2000 प्रति बोरी पर देने का अनुबंध किया, किंतु डिलीवरी नहीं की और B को ₹2200 प्रति बोरी पर खरीदना पड़ा, तो प्रति बोरी ₹200 का नुकसान साधारण क्षतिपूर्ति होगा।
- विशेष क्षतिपूर्ति (Special Damages):
- जब विशेष परिस्थितियों की जानकारी अनुबंध के समय दी गई हो और उल्लंघन के कारण वही नुकसान हो।
- उदाहरण: किसी व्यापारी ने कुरियर कंपनी को बताया कि देरी से माल पहुँचने पर भारी हानि होगी। यदि कुरियर देरी करता है, तो विशेष क्षतिपूर्ति मिलेगी।
- नाममात्र क्षतिपूर्ति (Nominal Damages):
- जब वास्तविक नुकसान सिद्ध नहीं होता, किंतु अधिकार का उल्लंघन हुआ है, तब प्रतीकात्मक क्षतिपूर्ति दी जाती है।
- दंडात्मक या उदाहरणीय क्षतिपूर्ति (Exemplary Damages):
- कुछ मामलों में उल्लंघनकर्ता को सबक सिखाने हेतु अधिक क्षतिपूर्ति दी जाती है, जैसे—विवाह के वादे का उल्लंघन, या बैंक द्वारा गलत ढंग से चेक dishonor करना।
- निर्धारित क्षतिपूर्ति (Liquidated Damages):
- जब अनुबंध में पहले से क्षतिपूर्ति की राशि तय हो। धारा 74 के अनुसार न्यायालय उचित क्षतिपूर्ति देगा, किंतु तय राशि से अधिक नहीं।
2. विशिष्ट निष्पादन (Specific Performance)
कभी-कभी केवल क्षतिपूर्ति पर्याप्त नहीं होती। ऐसे मामलों में न्यायालय आदेश दे सकता है कि उल्लंघनकर्ता वही कार्य करे जिसका वादा किया गया था।
- यह उपाय सामान्यतः तब दिया जाता है जब वस्तु अनूठी हो (जैसे – जमीन का टुकड़ा, दुर्लभ चित्रकला, विशेष मशीनरी)।
- यह राहत विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 के अंतर्गत मिलती है।
3. निषेधाज्ञा (Injunction)
यदि अनुबंध की शर्त “किसी कार्य को न करने” की है, तो न्यायालय निषेधाज्ञा जारी कर सकता है।
उदाहरण: A ने B के साथ यह अनुबंध किया कि वह केवल B के लिए ही प्रदर्शन करेगा। यदि A किसी और के लिए प्रदर्शन करने की कोशिश करता है, तो न्यायालय A को रोकने हेतु निषेधाज्ञा जारी कर सकता है।
4. अनुबंध का निरस्तीकरण (Rescission of Contract)
यदि उल्लंघन गंभीर हो, तो पीड़ित पक्ष अनुबंध को समाप्त कर सकता है। अनुबंध निरस्त होने पर दोनों पक्ष अपनी पूर्व स्थिति (Status quo) में लौट आते हैं।
5. अंशत: निष्पादन (Restitution)
यदि अनुबंध का कोई हिस्सा पूरा किया गया हो और बाद में उल्लंघन हो जाए, तो पीड़ित पक्ष द्वारा दी गई राशि या लाभ वापस लिया जा सकता है।
महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टांत
- Hadley v. Baxendale (1854):
क्षतिपूर्ति केवल उसी नुकसान के लिए दी जाएगी जो स्वाभाविक रूप से उल्लंघन से उत्पन्न हुआ हो या अनुबंध के समय प्रत्याशित था। - Fateh Chand v. Balkishan Das (1963, भारत):
अनुबंध में तय दंड राशि (Penalty) से अधिक क्षतिपूर्ति नहीं दी जा सकती। - Kanhaiya Lal v. National Bank of India:
चेक dishonor होने पर ग्राहक को क्षतिपूर्ति देने का सिद्धांत स्थापित हुआ।
निष्कर्ष
अनुबंध का उल्लंघन न केवल पक्षकारों के बीच अविश्वास पैदा करता है बल्कि आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को भी प्रभावित करता है। इसलिए विधि ने पीड़ित पक्ष को विभिन्न उपाय दिए हैं—जैसे क्षतिपूर्ति, विशिष्ट निष्पादन, निषेधाज्ञा, अनुबंध का निरस्तीकरण आदि।
इन उपायों का मुख्य उद्देश्य पीड़ित पक्ष को ऐसी स्थिति में लाना है, मानो अनुबंध का सही ढंग से पालन किया गया हो। अनुबंधों की पवित्रता और व्यापारिक विश्वास बनाए रखने हेतु इन उपायों का बहुत महत्व है।