भारतीय न्याय संहिता (BNS) बनाम भारतीय दंड संहिता (IPC) – एक विस्तृत तुलनात्मक अध्ययन “Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS) vs. Indian Penal Code (IPC) – A Detailed Comparative Study”

भारतीय न्याय संहिता (BNS) बनाम भारतीय दंड संहिता (IPC) – एक विस्तृत तुलनात्मक अध्ययन “Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS) vs. Indian Penal Code (IPC) – A Detailed Comparative Study”

भारत की न्याय व्यवस्था समय के साथ अनेक परिवर्तनों से गुजरी है। आपराधिक कानून (Criminal Law) इसमें सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यह सीधे नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। लगभग 163 वर्षों तक भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC), 1860 ने भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली की रीढ़ का काम किया। किन्तु बदलते समाज, तकनीकी प्रगति और नए अपराधों की प्रकृति को देखते हुए इसकी सीमाएँ सामने आने लगीं। इसी पृष्ठभूमि में भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS), 2023 को पारित किया गया। इस लेख में हम दोनों संहिताओं का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे ताकि यह समझा जा सके कि BNS किस प्रकार IPC से भिन्न और आधुनिक है।


1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • IPC, 1860 : ब्रिटिश शासनकाल के दौरान लॉर्ड मैकाले के नेतृत्व में बनी यह संहिता उस समय औपनिवेशिक शासन के हितों के अनुरूप थी। इसका मुख्य उद्देश्य कानून और व्यवस्था बनाए रखना था, न कि भारतीय समाज की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना।
  • BNS, 2023 : स्वतंत्र भारत की जरूरतों को ध्यान में रखकर, नए अपराध स्वरूप जैसे साइबर अपराध, संगठित अपराध, आतंकवाद और डिजिटल धोखाधड़ी को नियंत्रित करने हेतु तैयार की गई। इसका उद्देश्य न केवल अपराध पर नियंत्रण करना है बल्कि न्याय प्रक्रिया को सरल और समयबद्ध बनाना भी है।

2. संरचना और धाराओं की संख्या

  • IPC में कुल 511 धाराएँ थीं, जिनमें से कई धाराएँ दोहराव और जटिलता से भरी थीं।
  • BNS में धाराओं को पुनर्गठित कर केवल 358 धाराएँ रखी गईं।
    • अप्रासंगिक और औपनिवेशिक मानसिकता वाली धाराएँ हटा दी गईं।
    • आधुनिक अपराधों से संबंधित नई धाराएँ जोड़ी गईं।

3. प्रमुख सुधार और अंतर

(क) राजद्रोह (Sedition)

  • IPC की धारा 124A में राजद्रोह का प्रावधान था, जिसके अंतर्गत सरकार के खिलाफ बोलना भी अपराध माना जाता था।
  • BNS में इसे हटा दिया गया है और इसके स्थान पर “राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ” (Acts endangering sovereignty, unity and integrity of India) को शामिल किया गया है।

(ख) संगठित अपराध और आतंकवाद

  • IPC में माफिया या संगठित अपराध को अलग अपराध नहीं माना गया था।
  • BNS में पहली बार संगठित अपराध, माफिया गिरोह, आतंकवाद और उनके फंडिंग नेटवर्क को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।

(ग) साइबर अपराध

  • IPC में साइबर अपराधों का उल्लेख नहीं था। केवल धोखाधड़ी (420 IPC) जैसी धाराओं का उपयोग होता था।
  • BNS में डिजिटल युग के अपराधों – ऑनलाइन ठगी, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में हेरफेर, साइबर धोखाधड़ी आदि को विशेष रूप से शामिल किया गया।

(घ) महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा

  • IPC में बलात्कार और यौन अपराधों की धाराएँ थीं, लेकिन उनमें कई कमियाँ थीं।
  • BNS में महिला सुरक्षा को और सख्त किया गया है।
    • बलात्कार से पीड़िता की मृत्यु या कोमा की स्थिति में मृत्युदंड का प्रावधान
    • नाबालिग लड़कियों और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर कठोर दंड।

(ङ) दंड व्यवस्था

  • IPC में दंड के रूप मुख्यतः कारावास और जुर्माना थे।
  • BNS में समुदाय सेवा (Community Service) को एक नए सुधारात्मक दंड के रूप में जोड़ा गया है।

(च) हत्या और हत्या जैसे अपराध

  • IPC की धारा 302 – हत्या पर मृत्युदंड या आजीवन कारावास।
  • BNS की धाराएँ 101-103 – हत्या और उससे मिलते-जुलते अपराधों का अधिक विस्तृत वर्गीकरण।

(छ) भीड़ हिंसा (Mob Lynching)

  • IPC में लिंचिंग का कोई प्रावधान नहीं था।
  • BNS में इसे अलग अपराध माना गया है और कठोर दंड दिए गए हैं।

(ज) समयबद्ध न्याय

  • IPC आधारित व्यवस्था में मुकदमे दशकों तक चलते थे।
  • BNS में स्पष्ट किया गया है :
    • जांच 90 दिनों में पूरी करनी होगी।
    • गंभीर अपराधों में मुकदमा 180 दिनों में समाप्त होना चाहिए।

4. समानताएँ

यद्यपि BNS ने व्यापक सुधार किए हैं, कई अपराध जैसे चोरी, डकैती, हत्या, दंगे आदि की परिभाषा लगभग वही रखी गई है। यह दर्शाता है कि BNS पूरी तरह नई संहिता नहीं है बल्कि IPC का परिष्कृत और अद्यतन संस्करण है।


5. व्यावहारिक प्रभाव

  • त्वरित न्याय : मुकदमों की लंबी अवधि कम होगी।
  • आधुनिक अपराधों पर नियंत्रण : साइबर और संगठित अपराधों से निपटने में आसानी होगी।
  • मानवाधिकारों की रक्षा : राजद्रोह जैसी औपनिवेशिक धारा हटाई गई।
  • सुधारात्मक न्याय : समुदाय सेवा जैसी व्यवस्था से अपराधियों का सामाजिक पुनर्वास संभव होगा।

6. आलोचना और चुनौतियाँ

  • कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि “राष्ट्रविरोधी गतिविधि” की परिभाषा भी राजद्रोह जैसी कठोर साबित हो सकती है।
  • न्यायपालिका और पुलिस में ढांचागत सुधार के बिना नए प्रावधानों का पूर्ण लाभ नहीं मिलेगा।
  • प्रशिक्षण और तकनीकी संसाधनों की कमी कार्यान्वयन को प्रभावित कर सकती है।

7. BNS बनाम IPC : सारणीबद्ध तुलना

विषय IPC, 1860 BNS, 2023
धाराओं की संख्या 511 धाराएँ 358 धाराएँ
राजद्रोह धारा 124A, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश हटाकर राष्ट्रविरोधी गतिविधि का नया प्रावधान
संगठित अपराध/आतंकवाद कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं संगठित अपराध व आतंकवाद पर विशेष धाराएँ
साइबर अपराध प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं डिजिटल युग के अपराधों को स्पष्ट रूप से शामिल
महिला सुरक्षा बलात्कार व यौन अपराध पर प्रावधान कठोर दंड, बलात्कार में मृत्युदंड का प्रावधान
दंड व्यवस्था कारावास व जुर्माना कारावास, जुर्माना + समुदाय सेवा
भीड़ हिंसा कोई प्रावधान नहीं लिंचिंग को अलग अपराध माना गया
समय सीमा मुकदमे लंबित रहते थे जांच – 90 दिन, सुनवाई – 180 दिन में

निष्कर्ष

भारतीय दंड संहिता (IPC) औपनिवेशिक विरासत थी, जिसने लंबे समय तक भारत की न्याय व्यवस्था को आधार दिया। लेकिन इसकी सीमाएँ स्पष्ट हो चुकी थीं। भारतीय न्याय संहिता (BNS) ने इन्हीं कमियों को दूर करते हुए एक आधुनिक, समयानुकूल और सरल कानूनी ढांचा प्रस्तुत किया है। यद्यपि इसके क्रियान्वयन में चुनौतियाँ होंगी, फिर भी यह कहा जा सकता है कि BNS भारतीय न्याय व्यवस्था को न केवल अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाएगी, बल्कि इसे जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप भी ढालेगी।


✍️ भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 में नए प्रावधान (नई धाराएँ) और हटाए गए प्रावधान (IPC से समाप्त की गई धाराएँ) की सूची प्रस्तुत कर रहा हूँ। इससे आपको स्पष्ट समझ मिलेगी कि वास्तव में क्या बदलाव हुए हैं।


📌 BNS, 2023 में जोड़े गए नए प्रावधान (नई धाराएँ)

  1. राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ – IPC की धारा 124A (राजद्रोह) हटाकर नया प्रावधान, जिसमें भारत की संप्रभुता, अखंडता और एकता को खतरे में डालने वाली गतिविधियों पर दंड।
  2. संगठित अपराध और माफिया गतिविधियाँ – पहली बार विशेष रूप से परिभाषित।
  3. आतंकवाद और उसकी फंडिंग – आतंकवादी कृत्य, सहायता और वित्तीय सहयोग पर कड़ा प्रावधान।
  4. साइबर अपराध – ऑनलाइन धोखाधड़ी, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में हेरफेर, डिजिटल फेक डॉक्यूमेंट्स पर कठोर दंड।
  5. भीड़ हिंसा (Mob Lynching) – इसे अलग अपराध मानकर सजा का प्रावधान।
  6. बलात्कार के मामलों में कठोर दंड – पीड़िता की मृत्यु या कोमा की स्थिति में मृत्युदंड।
  7. समुदाय सेवा (Community Service) – पहली बार सुधारात्मक दंड के रूप में शामिल।
  8. हिट एंड रन मामलों – मोटर वाहन दुर्घटनाओं में भाग जाने पर कठोर दंड।
  9. महिला और बच्चों की तस्करी – विस्तृत और सख्त प्रावधान।
  10. गंभीर अपराधों में समयबद्ध न्याय
  • जांच 90 दिन में पूरी करनी होगी।
  • सुनवाई 180 दिन में समाप्त करनी होगी।

📌 IPC से हटाए गए प्रावधान (अब BNS में नहीं हैं)

  1. धारा 124A (राजद्रोह) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाला प्रावधान हटाया गया।
  2. अप्रासंगिक/औपनिवेशिक धाराएँ – जैसे “ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपराध”, “सम्राट के खिलाफ अपराध” आदि को समाप्त किया गया।
  3. कुछ पुराने अपराध जिनका वर्तमान समय में महत्व नहीं
    • सिक्कों से संबंधित कई पुरानी धाराएँ।
    • दास प्रथा (Slavery) से जुड़ी अप्रासंगिक धाराएँ।
    • डाक टिकट और औपनिवेशिक राज से जुड़ी विशेष धाराएँ।

📌 BNS में संशोधित और अद्यतन प्रावधान

  • हत्या (IPC 302 → BNS 101-103) : विस्तृत और परिस्थिति-आधारित वर्गीकरण।
  • डकैती और चोरी : परिभाषा वही लेकिन दंड को और स्पष्ट व सख्त किया गया।
  • यौन अपराध : महिलाओं और नाबालिगों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए अधिक कठोर प्रावधान।
  • जालसाजी और धोखाधड़ी : अब इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज और डिजिटल प्रमाणपत्र भी शामिल।
  • लोक सेवकों द्वारा भ्रष्टाचार और शक्ति का दुरुपयोग : दंड में कठोरता और पारदर्शिता।