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नागरिकता अधिनियम, 1955 : भारतीय नागरिकता की परिभाषा और प्राप्ति के कानूनी प्रावधान

नागरिकता अधिनियम, 1955 : भारतीय नागरिकता की परिभाषा और प्राप्ति के कानूनी प्रावधान

भारत जैसे विशाल और विविधताओं वाले देश में नागरिकता का प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है। नागरिकता केवल एक कानूनी स्थिति ही नहीं, बल्कि व्यक्ति को देश की संप्रभुता से जोड़ने वाला बंधन भी है। नागरिकता यह निर्धारित करती है कि कौन व्यक्ति भारत के प्रति निष्ठा रखेगा, देश के अधिकारों का उपभोग करेगा और उसकी जिम्मेदारियों का पालन करेगा। हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए यह स्पष्ट किया कि केवल आधार कार्ड, पैन कार्ड या वोटर आईडी रखने मात्र से कोई व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं बन सकता। अदालत ने कहा कि नागरिकता अधिनियम, 1955 ही यह निर्धारित करता है कि कौन भारत का नागरिक होगा और नागरिकता किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है। यह अधिनियम नागरिकता के प्रश्न पर एक व्यापक और पूर्ण व्यवस्था प्रदान करता है।


नागरिकता का महत्व

नागरिकता किसी भी व्यक्ति की उस कानूनी स्थिति को दर्शाती है, जिसमें वह राज्य का हिस्सा माना जाता है। यह स्थिति उसे राजनीतिक अधिकार, सामाजिक सुरक्षा और संवैधानिक संरक्षण प्रदान करती है। नागरिकता के बिना कोई व्यक्ति राज्य में स्थायी रूप से निवास तो कर सकता है, लेकिन उसे नागरिकों के समान अधिकार नहीं मिलते। इसी कारण भारतीय संविधान ने नागरिकता के प्रश्न को अत्यंत गंभीरता से लिया और इसके लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 बनाया गया।


नागरिकता अधिनियम, 1955 की पृष्ठभूमि

भारतीय संविधान के भाग-II (अनुच्छेद 5 से 11) में प्रारंभिक नागरिकता के प्रावधान दिए गए थे। लेकिन संविधान ने यह कार्य संसद पर छोड़ा कि वह भविष्य में नागरिकता प्राप्त करने और समाप्त करने के नियम बनाए। इसी उद्देश्य से संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955 पारित किया। यह अधिनियम 30 दिसंबर 1955 से लागू हुआ और इसमें समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं, जैसे 1986, 2003, 2005, 2019 आदि।


नागरिकता प्राप्त करने के तरीके (Sections 3–7 of Citizenship Act, 1955)

अधिनियम नागरिकता प्राप्त करने के पाँच मुख्य तरीके निर्धारित करता है –

  1. जन्म से नागरिकता (Citizenship by Birth)
    • यदि 26 जनवरी 1950 से 1 जुलाई 1987 तक भारत में जन्म हुआ, तो वह स्वतः नागरिक होगा।
    • 1 जुलाई 1987 से 3 दिसंबर 2004 के बीच जन्म लेने वाला तभी नागरिक होगा, जब उसके माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक हो।
    • 3 दिसंबर 2004 के बाद जन्म लेने वाले बच्चे को तभी नागरिकता मिलेगी जब माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक हो और दूसरा अवैध प्रवासी न हो।
  2. वंश से नागरिकता (Citizenship by Descent)
    • यदि कोई व्यक्ति भारत के बाहर जन्मा है, लेकिन उसके माता-पिता में से कोई भारतीय नागरिक है, तो उसे नागरिकता मिलेगी।
  3. पंजीकरण द्वारा नागरिकता (Citizenship by Registration)
    • कुछ विशेष श्रेणियों के लोग, जैसे भारतीय मूल के लोग, भारत में निवास करने वाले व्यक्ति आदि आवेदन कर पंजीकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।
  4. नागरिकता ग्रहण (Citizenship by Naturalization)
    • कोई विदेशी व्यक्ति, यदि भारत में एक निश्चित अवधि तक वैध रूप से निवास करता है और कुछ शर्तें पूरी करता है, तो उसे नागरिकता दी जा सकती है।
  5. क्षेत्र के भारत में विलय से नागरिकता (Citizenship by Incorporation of Territory)
    • जब कोई नया क्षेत्र भारत में शामिल होता है, तो वहां रहने वाले लोग स्वतः भारतीय नागरिक बन जाते हैं।

नागरिकता समाप्त होने के प्रावधान (Sections 9–10)

अधिनियम नागरिकता समाप्त करने के भी तरीके निर्धारित करता है :

  1. त्याग (Renunciation) – कोई व्यक्ति स्वेच्छा से नागरिकता छोड़ सकता है।
  2. निरसन (Termination) – यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ले लेता है, तो भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाएगी।
  3. वंचन (Deprivation) – सरकार किसी व्यक्ति की नागरिकता छीन सकती है, यदि उसने धोखाधड़ी से नागरिकता प्राप्त की हो या असंवैधानिक कार्यों में संलग्न हो।

आधार, पैन और वोटर आईडी नागरिकता के प्रमाण क्यों नहीं?

हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि –

  • आधार कार्ड केवल पहचान और सरकारी सेवाओं तक पहुँच का दस्तावेज है।
  • पैन कार्ड आयकर विभाग द्वारा जारी वित्तीय पहचान पत्र है।
  • वोटर आईडी मतदान के अधिकार के लिए पहचान पत्र है, लेकिन यह तभी जारी होता है जब चुनाव आयोग किसी व्यक्ति को पात्र मानता है।

इन दस्तावेजों का संबंध नागरिकता से नहीं है। यदि कोई व्यक्ति अवैध रूप से भारत में प्रवेश कर ले और फर्जी आधार या पैन बनवा ले, तो वह भारत का नागरिक नहीं बन सकता। नागरिकता केवल नागरिकता अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के अनुसार ही प्राप्त हो सकती है।


न्यायालय का दृष्टिकोण

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि –

  • नागरिकता का प्रश्न अत्यंत गंभीर है।
  • अवैध प्रवासी फर्जी दस्तावेज बनवाकर नागरिकता का दावा नहीं कर सकते।
  • नागरिकता अधिनियम ही यह निर्धारित करता है कि कौन भारत का नागरिक है।
  • केवल पहचान पत्रों के आधार पर किसी को नागरिक नहीं माना जा सकता।

नागरिकता और राष्ट्रीय सुरक्षा

अवैध प्रवासियों और वास्तविक नागरिकों के बीच अंतर करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि –

  • यह देश की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा करता है।
  • कल्याणकारी योजनाओं का लाभ केवल वैध नागरिकों तक सीमित रहता है।
  • अवैध घुसपैठ से जनसंख्या संतुलन और संसाधनों पर दबाव नहीं बढ़ता।
  • इससे विदेशी नागरिक अपराध कर अपनी पहचान छिपाने में सफल नहीं हो पाते।

निष्कर्ष

नागरिकता केवल पहचान पत्रों का विषय नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति और राष्ट्र के बीच वैधानिक संबंध को दर्शाती है। नागरिकता अधिनियम, 1955 नागरिकता प्राप्त करने, बनाए रखने और समाप्त करने की पूर्ण व्यवस्था करता है। अदालतों ने समय-समय पर यह स्पष्ट किया है कि आधार, पैन और वोटर आईडी नागरिकता के दस्तावेज नहीं हैं।

इसलिए नागरिकता का दावा करने के लिए केवल पहचान पत्र दिखाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में बताए गए प्रावधानों के अनुसार ही भारतीय नागरिकता प्राप्त की जा सकती है। यह अधिनियम भारत की संप्रभुता की रक्षा करता है और सुनिश्चित करता है कि केवल वैध नागरिक ही देश के अधिकारों और लाभों का उपभोग कर सकें।