Puttaswamy v. Union of India (2017): निजता को मौलिक अधिकार और चिकित्सा रिकॉर्ड की गोपनीयता का संवैधानिक संरक्षण
भारतीय संविधान समय-समय पर न्यायपालिका की व्याख्या और निर्णयों के माध्यम से विकसित होता रहा है। 2017 में दिया गया Puttaswamy v. Union of India का निर्णय भारतीय संवैधानिक इतिहास का एक मील का पत्थर है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि निजता (Right to Privacy) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है। इस निर्णय का प्रभाव केवल नागरिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका गहरा असर चिकित्सा क्षेत्र और विशेष रूप से मेडिकल रिकॉर्ड की गोपनीयता (Confidentiality of Medical Records) पर भी पड़ा।
मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)
यह मामला आधार योजना (Aadhaar Scheme) के संदर्भ में उठा, जिसमें नागरिकों की बायोमेट्रिक और व्यक्तिगत जानकारी सरकार द्वारा एकत्र की जा रही थी। न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) ने इसके खिलाफ याचिका दाखिल की और तर्क दिया कि आधार योजना नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है।
मामला संविधान पीठ (9 न्यायाधीशों की बेंच) के समक्ष आया। बेंच ने यह प्रश्न उठाया कि—
- क्या निजता भारतीय संविधान में एक मौलिक अधिकार है?
- क्या सरकार व्यक्तिगत जानकारी (जैसे बायोमेट्रिक डेटा, स्वास्थ्य संबंधी जानकारी) एकत्र कर सकती है?
- क्या निजता का अधिकार जीवन और स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा है?
न्यायालय की दलीलें और अवलोकन (Court’s Observations)
1. निजता मौलिक अधिकार है
सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से कहा कि निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के साथ-साथ अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता के अधिकार) से भी जुड़ा हुआ है।
2. सूचना की गोपनीयता
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि उसकी व्यक्तिगत जानकारी, जिसमें मेडिकल रिकॉर्ड भी शामिल हैं, बिना उसकी अनुमति के सार्वजनिक न की जाए।
3. स्वास्थ्य संबंधी डेटा का महत्व
कोर्ट ने माना कि स्वास्थ्य संबंधी जानकारी व्यक्ति की निजता का सबसे संवेदनशील हिस्सा है। यदि किसी मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, बीमारियां या परीक्षण रिपोर्ट बिना अनुमति के साझा की जाती है, तो यह उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का हनन होगा।
4. राज्य की सीमाएँ
न्यायालय ने कहा कि यद्यपि सरकार को सार्वजनिक हित में कुछ परिस्थितियों में डेटा एकत्र करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार उचित प्रक्रिया (Due Process) और अनुपातिकता (Proportionality) के सिद्धांत से नियंत्रित रहेगा।
मेडिकल रिकॉर्ड और निजता (Medical Records and Privacy)
Puttaswamy मामले के निर्णय के बाद चिकित्सा क्षेत्र में निम्नलिखित महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित हुए—
1. मेडिकल रिकॉर्ड की गोपनीयता
- किसी भी अस्पताल, डॉक्टर या स्वास्थ्य संस्था को मरीज का मेडिकल रिकॉर्ड उसकी सहमति के बिना तीसरे पक्ष को देने की अनुमति नहीं है।
- मेडिकल डेटा को केवल कानूनी आवश्यकता, न्यायालय के आदेश या सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति में ही साझा किया जा सकता है।
2. डॉक्टर-रोगी संबंध की गोपनीयता
- डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वास का संबंध होता है।
- यदि मरीज को यह डर हो कि उसकी बीमारी या रिपोर्ट सार्वजनिक हो जाएगी, तो वह सही जानकारी साझा करने से हिचक सकता है, जिससे इलाज पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
- इसलिए निजता को मौलिक अधिकार मानने से डॉक्टर-रोगी संबंध और मजबूत हुआ।
3. डिजिटल स्वास्थ्य डेटा (Digital Health Data)
आजकल इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड (EHR) और डिजिटल मेडिकल डेटा का चलन बढ़ गया है। इस निर्णय ने स्पष्ट किया कि—
- डिजिटल डेटा की सुरक्षा करना भी उतना ही आवश्यक है जितना कि भौतिक रिकॉर्ड की।
- अस्पतालों और सरकार को साइबर सुरक्षा और डेटा प्रोटेक्शन के उपाय करने होंगे।
4. बीमा कंपनियों और तीसरे पक्ष की सीमाएँ
बीमा कंपनियां अक्सर मेडिकल रिकॉर्ड मांगती हैं। इस निर्णय के बाद यह आवश्यक हो गया कि—
- मरीज की सहमति (Consent) के बिना कोई भी संस्था मेडिकल रिकॉर्ड प्राप्त नहीं कर सकती।
- केवल आवश्यक सीमा तक ही डेटा साझा किया जाएगा।
मामले का महत्व (Significance of the Case)
1. संविधान की नई व्याख्या
इस मामले ने भारतीय संविधान को आधुनिक समय के अनुरूप व्याख्यायित किया। निजता को केवल शारीरिक स्वतंत्रता नहीं बल्कि सूचना और डेटा की गोपनीयता से भी जोड़ा गया।
2. मरीजों के अधिकार मजबूत हुए
मरीजों को यह संवैधानिक अधिकार मिला कि उनका मेडिकल डेटा सुरक्षित रखा जाए। यदि कोई अस्पताल या संस्था इसमें लापरवाही करती है, तो यह मौलिक अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा।
3. अस्पतालों और डॉक्टरों की जिम्मेदारी
अब अस्पतालों और डॉक्टरों पर यह जिम्मेदारी है कि वे—
- मरीज का डेटा सुरक्षित रखें।
- केवल अनुमति मिलने पर ही जानकारी साझा करें।
- साइबर सुरक्षा उपाय अपनाएं।
4. कानून निर्माण की दिशा
इस फैसले के बाद डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 जैसे कानूनों की नींव मजबूत हुई। अब स्वास्थ्य संबंधी जानकारी को विशेष श्रेणी (Sensitive Personal Data) माना जाता है।
आलोचनात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)
Puttaswamy निर्णय आधुनिक भारत के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ भी सामने आती हैं—
- ग्रामीण और छोटे अस्पतालों में अभी भी रिकॉर्ड सुरक्षित रखने की उचित व्यवस्था नहीं है।
- कई बार बीमा कंपनियां मरीजों पर दबाव डालकर मेडिकल डेटा लेती हैं।
- सरकारी योजनाओं में डेटा संग्रह करते समय मरीज को पूरी जानकारी और विकल्प नहीं दिए जाते।
इसके बावजूद, यह निर्णय मरीजों की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम है।
निष्कर्ष (Conclusion)
Puttaswamy v. Union of India (2017) का निर्णय भारतीय संवैधानिक इतिहास में क्रांतिकारी है। इसने स्पष्ट किया कि—
- निजता (Privacy) अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार है।
- चिकित्सा रिकॉर्ड व्यक्ति की निजता का अभिन्न हिस्सा है।
- मरीज की सहमति के बिना मेडिकल डेटा का खुलासा नहीं किया जा सकता।
- अस्पतालों, डॉक्टरों और सरकार को मरीज की जानकारी सुरक्षित रखने के लिए कानूनी और तकनीकी उपाय अपनाने होंगे।
इस प्रकार, यह निर्णय न केवल नागरिक स्वतंत्रता बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता, सुरक्षा और विश्वास को भी मजबूत करता है। चिकित्सा क्षेत्र में यह फैसला मरीज और डॉक्टर दोनों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत बन चुका है।