मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम: नियम और दंड
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सबसे जटिल और संवेदनशील विषयों में से एक है मानव अंग प्रत्यारोपण (Human Organ Transplantation)। यह चिकित्सा विज्ञान की ऐसी उपलब्धि है, जिसने हजारों लोगों को नया जीवन दिया है। लेकिन साथ ही, अंग व्यापार, जबरन अंग निकालने और अवैध प्रत्यारोपण जैसी आपराधिक गतिविधियों ने समाज और कानून को गंभीर चुनौती दी है। इसी समस्या को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार ने मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (Transplantation of Human Organs Act – THOA, 1994) बनाया। इस अधिनियम में समय-समय पर संशोधन भी किए गए ताकि कानून अधिक प्रभावी बन सके।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि यह अधिनियम क्या है, इसमें कौन-कौन से नियम हैं, दंडात्मक प्रावधान क्या हैं, और भारत में अंग प्रत्यारोपण की कानूनी प्रक्रिया कैसी है।
अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता
मानव शरीर में कई ऐसे अंग और ऊतक (Tissues) हैं, जिन्हें क्षति या खराबी के बाद प्रत्यारोपण के जरिए नया जीवन दिया जा सकता है।
- किडनी: सबसे अधिक प्रत्यारोपित अंग, क्योंकि किडनी फेलियर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
- लिवर: सिरोसिस या लिवर फेलियर में आवश्यक।
- हार्ट: हृदय रोगियों के लिए जीवनदायी।
- फेफड़े, अग्न्याशय, कॉर्निया, बोन मैरो आदि भी प्रत्यारोपण योग्य हैं।
भारत में हजारों मरीज हर साल अंग प्रत्यारोपण के इंतजार में रहते हैं, लेकिन उपलब्ध दाताओं की कमी और अवैध अंग व्यापार एक बड़ी समस्या है।
मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994
भारत सरकार ने इस अधिनियम को 1994 में लागू किया। इसका उद्देश्य था:
- अंगों की कानूनी रूप से दान और प्रत्यारोपण की अनुमति देना।
- अवैध अंग व्यापार और मानव अंगों की खरीद-बिक्री पर रोक लगाना।
- मृतकों के अंग दान (Cadaver Donation) को बढ़ावा देना।
अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ
- लिविंग डोनर (Living Donor):
- व्यक्ति अपने रिश्तेदार को अंग दान कर सकता है।
- रिश्तेदार में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी और बच्चे शामिल हैं।
- गैर-रिश्तेदार को दान करने के लिए विशेष अनुमति (Authorisation Committee) आवश्यक है।
- कैडेवर डोनर (Cadaver Donor):
- मस्तिष्क मृत्यु (Brain Death) घोषित होने के बाद परिवार की सहमति से अंग लिए जा सकते हैं।
- मस्तिष्क मृत्यु की पुष्टि डॉक्टरों की विशेष टीम द्वारा की जाती है।
- प्रमाणन और पंजीकरण:
- सभी अस्पतालों को प्रत्यारोपण केंद्र के रूप में पंजीकृत होना आवश्यक है।
- अंग प्रत्यारोपण केवल पंजीकृत केंद्रों पर ही हो सकता है।
- प्राधिकरण समिति (Authorization Committee):
- यह समिति गैर-रिश्तेदार दाताओं के मामलों को देखती है ताकि अवैध व्यापार रोका जा सके।
- अंगों की खरीद-बिक्री पर प्रतिबंध:
- किसी भी तरह से अंगों का व्यापार, पैसा लेना या देना सख्त वर्जित है।
मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 2011 संशोधन
1994 के अधिनियम में कई कमियाँ थीं। अंग माफिया इसका दुरुपयोग कर रहे थे। इसलिए 2011 में इसमें संशोधन किया गया।
प्रमुख संशोधन
- रिश्तेदार की परिभाषा का विस्तार:
- अब दादा-दादी, पोता-पोती, नाती-नानी को भी “निकट संबंधी” में शामिल किया गया।
- टिश्यू (Tissue) प्रत्यारोपण को भी शामिल किया गया।
- दंडात्मक प्रावधानों को और कड़ा किया गया।
- नेशनल ह्यूमन ऑर्गन एंड टिश्यू रिमूवल एंड स्टोरेज नेटवर्क और राज्य स्तर पर संगठन बनाने की व्यवस्था।
अंग प्रत्यारोपण प्रक्रिया (Legal Procedure)
- डोनर की सहमति
- जीवित दाता को स्वेच्छा से लिखित सहमति देनी होगी।
- किसी प्रकार का दबाव या लालच अपराध माना जाएगा।
- मेडिकल परीक्षण
- डोनर और रिसीवर दोनों का मेडिकल टेस्ट किया जाता है ताकि अनुकूलता (Compatibility) साबित हो सके।
- प्राधिकरण समिति की अनुमति
- यदि डोनर रिश्तेदार नहीं है तो समिति की अनुमति अनिवार्य है।
- हॉस्पिटल का पंजीकरण
- केवल पंजीकृत अस्पताल ही प्रत्यारोपण कर सकते हैं।
- ब्रेन डेथ का निर्धारण
- चार डॉक्टरों की टीम द्वारा प्रमाणित।
- इसमें एक न्यूरोलॉजिस्ट, एक न्यूरोसर्जन और संबंधित विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
दंडात्मक प्रावधान
अधिनियम में सख्त दंड का प्रावधान है ताकि अवैध व्यापार रोका जा सके।
1. अंगों की खरीद-बिक्री
- पहली बार अपराध: 5 साल तक की सजा और ₹20 लाख तक का जुर्माना।
- बार-बार अपराध: 10 साल तक की सजा और ₹1 करोड़ तक का जुर्माना।
2. झूठी जानकारी या दस्तावेज देना
- 2 साल तक की कैद और ₹5 लाख तक का जुर्माना।
3. अस्पताल की जिम्मेदारी
- यदि कोई अस्पताल बिना अनुमति अंग प्रत्यारोपण करता है, तो उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।
4. डॉक्टर की जिम्मेदारी
- यदि डॉक्टर लापरवाही से नियमों का उल्लंघन करते हैं, तो मेडिकल काउंसिल से उनका लाइसेंस निलंबित किया जा सकता है।
भारत में चुनौतियाँ
- अंगों की भारी कमी – अंगों की मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर है।
- अवैध अंग व्यापार – गरीबी और लालच के कारण कई लोग अवैध तरीके से अंग बेचने को मजबूर होते हैं।
- जागरूकता की कमी – मृत्युपरांत अंगदान (Cadaver Donation) बहुत कम है।
- कानून का कमजोर प्रवर्तन – कई बार अंग माफिया नियमों को दरकिनार कर देते हैं।
- सामाजिक व धार्मिक मान्यताएँ – कई परिवार अंगदान को लेकर संकोच करते हैं।
सुधार और समाधान
- सख्त निगरानी – सभी अस्पतालों और डॉक्टरों पर नियमित निगरानी।
- जनजागरूकता अभियान – अंगदान को सामाजिक आंदोलन की तरह बढ़ावा देना।
- अंग प्रत्यारोपण रजिस्ट्री – राष्ट्रीय स्तर पर डोनर और रिसीवर का डेटाबेस।
- फास्ट-ट्रैक अदालतें – अवैध व्यापार के मामलों में त्वरित न्याय।
- पारदर्शिता – दाता और मरीज की जानकारी गुप्त रखते हुए निष्पक्ष प्रक्रिया।
निष्कर्ष
मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम ने भारत में चिकित्सा जगत को कानूनी रूप से एक ढांचा दिया है, जिससे जरूरतमंद मरीजों की जान बचाई जा सके और अवैध व्यापार पर रोक लगे। हालांकि चुनौतियाँ अभी भी बहुत हैं, लेकिन यदि कानून का सख्ती से पालन हो, जनजागरूकता बढ़े और पारदर्शिता कायम रहे, तो अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया न केवल सुरक्षित बल्कि न्यायपूर्ण भी हो सकती है।
अंगदान केवल कानून या चिकित्सा का विषय नहीं है, बल्कि यह मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक जिम्मेदारी का भी प्रतीक है। जब तक लोग स्वयं आगे आकर अंगदान नहीं करेंगे, तब तक न तो मरीजों को जीवन मिलेगा और न ही अंग माफिया का अंत होगा।