दलित छात्र की मौत पर झारखंड हाईकोर्ट की BIT मेसरा को फटकार, ₹20 लाख मुआवजा और रैगिंग रोकने के निर्देश
भारत में शिक्षा संस्थानों में रैगिंग की घटनाएं लंबे समय से चिंता का विषय रही हैं। आए दिन कई विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से ऐसे मामले सामने आते हैं, जहां वरिष्ठ छात्र जूनियर छात्रों के साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं। इस अमानवीय प्रथा ने कई बार छात्रों की जान तक ले ली है। हाल ही में झारखंड हाईकोर्ट ने बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (BIT), मेसरा से जुड़े एक ऐसे ही मामले में सख्त रुख अपनाया और संस्थान को फटकार लगाते हुए पीड़ित छात्र के परिजनों को ₹20 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया। साथ ही अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए कि संस्थान रैगिंग की घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए और जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करे।
घटना का पृष्ठभूमि
यह मामला BIT मेसरा के एक दलित छात्र की दुखद मौत से जुड़ा है। छात्र की मौत के बाद यह आरोप लगे कि उसे लगातार रैगिंग का शिकार बनाया जा रहा था। सहपाठियों और वरिष्ठ छात्रों के उत्पीड़न से परेशान होकर उसने आत्महत्या कर ली। परिवार ने आरोप लगाया कि संस्थान प्रशासन ने शिकायतों को नजरअंदाज किया और रैगिंग रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
परिवार की याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीर मानवाधिकार और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना। अदालत ने कहा कि शिक्षा संस्थानों का दायित्व केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि छात्रों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करना भी उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है।
अदालत की टिप्पणी और फटकार
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने BIT मेसरा प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि यह अत्यंत शर्मनाक है कि एक प्रतिष्ठित संस्थान के अंदर ऐसी घटनाएं हो रही हैं और प्रशासन उन्हें रोकने में पूरी तरह असफल रहा।
अदालत ने कहा,
- “रैगिंग केवल अनुशासनहीनता नहीं, बल्कि छात्रों के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार पर सीधा हमला है।”
- “संस्थान का दायित्व है कि वह सभी छात्रों, विशेष रूप से कमजोर वर्गों और दलित छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।”
- “इस घटना से यह स्पष्ट है कि संस्थान ने एंटी-रैगिंग कानूनों और UGC के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया।”
मुआवजे का आदेश
हाईकोर्ट ने पीड़ित छात्र के परिजनों को आर्थिक और मानसिक क्षति की भरपाई के रूप में ₹20 लाख मुआवजे का आदेश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि यह राशि संस्थान स्वयं वहन करेगा, ताकि भविष्य में प्रबंधन अपनी जिम्मेदारी से पीछे न हट सके।
इसके अतिरिक्त अदालत ने सरकार और UGC को भी निर्देश दिया कि वे नियमित रूप से कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में एंटी-रैगिंग तंत्र की जांच करें।
रैगिंग रोकने के लिए निर्देश
अदालत ने BIT मेसरा को निर्देश दिए कि :
- एंटी-रैगिंग कमेटी को और मजबूत बनाया जाए और उसकी कार्यवाही पारदर्शी हो।
- प्रत्येक हॉस्टल और विभाग में शिकायत पेटी और हेल्पलाइन नंबर उपलब्ध कराए जाएं।
- सभी नए छात्रों को प्रवेश के समय रैगिंग विरोधी शपथपत्र दिलवाया जाए।
- दोषी छात्रों के खिलाफ निलंबन, निष्कासन और आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जाएं।
- दलित और कमजोर वर्ग के छात्रों की सुरक्षा के लिए विशेष निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए।
भारतीय कानून और रैगिंग
भारत में रैगिंग को रोकने के लिए कई कानूनी प्रावधान हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी रैगिंग को अमानवीय प्रथा बताते हुए इसे सख्ती से नियंत्रित करने का आदेश दिया है।
- UGC (Regulations on Curbing the Menace of Ragging in Higher Educational Institutions), 2009 : इन नियमों के तहत प्रत्येक संस्थान को एंटी-रैगिंग कमेटी बनाना अनिवार्य है।
- रैगिंग करने वालों के खिलाफ IPC की धाराओं (धारा 306 – आत्महत्या के लिए उकसाना, धारा 323 – मारपीट, धारा 506 – आपराधिक धमकी आदि) के तहत मामला दर्ज हो सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि रैगिंग करने वालों के खिलाफ “Zero Tolerance” नीति अपनाई जानी चाहिए।
समाज और शिक्षा व्यवस्था पर असर
दलित छात्र की मौत की यह घटना समाज को झकझोरने वाली है। यह केवल रैगिंग का मामला नहीं, बल्कि जातीय भेदभाव और मानसिक उत्पीड़न का भी प्रतीक है। जब तक संस्थान छात्रों को सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण नहीं देंगे, तब तक शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता।
इस घटना से स्पष्ट है कि भारत के प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों में भी अभी तक मानसिक स्वास्थ्य और छात्र सुरक्षा को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया है। यह केवल BIT मेसरा तक सीमित नहीं है, बल्कि देशभर के कॉलेजों के लिए चेतावनी है।
निष्कर्ष
झारखंड हाईकोर्ट का यह फैसला केवल पीड़ित परिवार के लिए न्याय नहीं है, बल्कि देशभर के शिक्षा संस्थानों के लिए एक सख्त संदेश भी है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि रैगिंग और भेदभाव किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ₹20 लाख मुआवजा, प्रशासन की फटकार और एंटी-रैगिंग निर्देश यह दर्शाते हैं कि अब न्यायपालिका इस मुद्दे पर कोई ढिलाई नहीं बरतेगी।
यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि शिक्षा संस्थान केवल डिग्री देने की जगह न बनकर, सुरक्षित, समान और सम्मानजनक वातावरण देने वाले स्थल भी हों। रैगिंग की किसी भी घटना को हल्के में लेना, न केवल एक छात्र का जीवन नष्ट कर सकता है बल्कि समाज की आत्मा को भी घायल कर देता है।