हत्या (Murder) और हत्या न करने योग्य अपराध (Culpable Homicide)
भूमिका
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code, 1860 – IPC) में हत्या और हत्या न करने योग्य अपराध (Culpable Homicide) दोनों ही गंभीर आपराधिक कृत्य हैं, लेकिन इनकी प्रकृति, गंभीरता और दंड में अंतर है। सामान्यत: हत्या (Murder) को Culpable Homicide का गंभीरतम रूप माना जाता है। दोनों ही अपराध मानव जीवन की अवैध हत्या से संबंधित हैं, लेकिन आपराधिक मंशा (Mens Rea), परिस्थितियाँ और परिणाम इन दोनों को अलग करते हैं।
IPC में:
- Culpable Homicide – धारा 299
- Murder – धारा 300
1. हत्या न करने योग्य अपराध (Culpable Homicide) – धारा 299 IPC
परिभाषा
धारा 299 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु करता है:
- मृत्यु कारित करने का इरादा (Intention to cause death), या
- ऐसी शारीरिक चोट कारित करने का इरादा जो मृत्यु कारित करने की संभावना रखती हो, या
- ऐसा कार्य करना जिसे करने से मृत्यु की संभावना हो और व्यक्ति को इसका ज्ञान हो,
तो वह “Culpable Homicide” करता है।
आवश्यक तत्व (Ingredients)
- मानव की मृत्यु होना – किसी जीवित मानव का अवैध रूप से जीवन समाप्त होना।
- अवैध कार्य या निष्क्रियता – कार्य ऐसा हो जो कानून द्वारा निषिद्ध हो।
- मृत्यु कारित करने का इरादा या ज्ञान – अपराधी को यह पता हो या वह चाहता हो कि उसका कार्य मृत्यु का कारण बनेगा।
उदाहरण
- यदि कोई व्यक्ति गुस्से में किसी को जोर से मारता है और चोट इतनी गंभीर होती है कि डॉक्टर के अनुसार मृत्यु संभव थी, तो यह Culpable Homicide है।
प्रकार
Culpable Homicide दो प्रकार का होता है:
- Murder के समान गंभीर (Culpable Homicide amounting to Murder) – जब यह धारा 300 की श्रेणी में आता है।
- Murder से कम गंभीर (Culpable Homicide not amounting to Murder) – जब यह धारा 300 के अपवादों में आता है।
2. हत्या (Murder) – धारा 300 IPC
परिभाषा
धारा 300 के अनुसार, Culpable Homicide तभी Murder कहलाता है, जब—
- अपराधी का स्पष्ट इरादा हो मृत्यु कारित करने का, या
- अपराधी का इरादा हो ऐसी चोट पहुँचाने का जो मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो, और अपराधी को इसका ज्ञान हो, या
- चोट ऐसी हो जो साधारणतः मृत्यु का कारण बनती है, या
- अपराधी ऐसा कार्य करता है जो अत्यंत खतरनाक है और जिससे मृत्यु अवश्यंभावी है, और वह इसे जानते हुए भी करता है।
आवश्यक तत्व (Ingredients)
- Mens Rea का उच्च स्तर – हत्या में इरादा (Intention) और ज्ञान (Knowledge) दोनों ही उच्चतम स्तर पर होते हैं।
- अत्यधिक गंभीर चोट – चोट ऐसी हो जो लगभग निश्चित रूप से मृत्यु का कारण बने।
- परिस्थितियों की गंभीरता – कार्य इतना खतरनाक हो कि सामान्य व्यक्ति भी जानता हो कि यह मृत्यु का कारण बनेगा।
उदाहरण
- यदि कोई व्यक्ति तलवार से किसी के दिल में वार करता है, तो यह Murder है क्योंकि यह कार्य निश्चित रूप से मृत्यु का कारण बनेगा।
3. Murder और Culpable Homicide में अंतर
आधार | Culpable Homicide | Murder |
---|---|---|
कानूनी प्रावधान | धारा 299 IPC | धारा 300 IPC |
गंभीरता | Murder से कम गंभीर | सबसे गंभीर रूप |
इरादा (Mens Rea) | इरादा/ज्ञान – मृत्यु संभव है | इरादा/ज्ञान – मृत्यु निश्चित या लगभग निश्चित |
परिणाम | मृत्यु हो सकती है | मृत्यु होना लगभग निश्चित |
दंड | धारा 304 IPC – आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की सजा | धारा 302 IPC – फांसी या आजीवन कारावास |
उदाहरण | गुस्से में मारपीट से मृत्यु होना | जानबूझकर दिल में गोली मारना |
4. Murder के अपवाद (Exceptions to Section 300)
यदि कोई मामला इन अपवादों में आता है, तो वह Murder नहीं बल्कि Culpable Homicide not amounting to Murder होगा—
- उत्तेजना (Grave and Sudden Provocation) – अचानक और गंभीर उत्तेजना में किया गया कृत्य।
- निजी रक्षा (Right of Private Defence) – आत्मरक्षा में की गई हत्या, बशर्ते आवश्यक सीमा में हो।
- लोकसेवक का कृत्य (Act of Public Servant) – लोकसेवक द्वारा अपने कर्तव्य के दौरान, बिना दुर्भावना के।
- अवैध कृत्य में अचानक लड़ाई (Sudden Fight) – पूर्व योजना के बिना हुई लड़ाई में हुई मृत्यु।
- सहमति से किया गया कार्य (Consent) – 18 वर्ष से ऊपर का व्यक्ति स्वेच्छा से किसी जोखिम भरे कार्य के लिए सहमति देता है।
5. न्यायिक दृष्टांत (Case Laws)
- Reg v. Govinda (1876) – यह प्रसिद्ध मामला Murder और Culpable Homicide के बीच का अंतर स्पष्ट करता है।
- Virsa Singh v. State of Punjab (1958) – हत्या में आवश्यक तत्वों को परिभाषित किया।
- K.M. Nanavati v. State of Maharashtra (1962) – Grave and Sudden Provocation का उदाहरण।
- State of Andhra Pradesh v. Rayavarapu Punnayya (1976) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “All murders are culpable homicide but all culpable homicide are not murder.”
6. दंड (Punishment)
- Murder (धारा 302 IPC) – फांसी या आजीवन कारावास, साथ में जुर्माना।
- Culpable Homicide not amounting to Murder (धारा 304 IPC) –
- भाग I – आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना।
- भाग II – 10 वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों।
निष्कर्ष
Murder और Culpable Homicide दोनों में ही मानव जीवन की अवैध हत्या शामिल है, लेकिन अंतर इरादे, ज्ञान और परिस्थितियों की गंभीरता में है। Murder, Culpable Homicide का सबसे गंभीर रूप है जिसमें मृत्यु का परिणाम लगभग निश्चित होता है। भारतीय दंड संहिता ने इन दोनों अपराधों के बीच स्पष्ट रेखा खींची है ताकि न्यायिक प्रक्रिया में दोषी को उचित दंड दिया जा सके और निर्दोष को बचाया जा सके।