“पति-पत्नी के बीच गोपनीयता का अधिकार नहीं: साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 और अनुच्छेद 21 के संदर्भ में न्यायिक व्याख्या”

शीर्षक: “पति-पत्नी के बीच गोपनीयता का अधिकार नहीं: साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 और अनुच्छेद 21 के संदर्भ में न्यायिक व्याख्या”


परिचय

भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, जिसमें समय के साथ गोपनीयता का अधिकार (Right to Privacy) भी न्यायिक मान्यता प्राप्त कर चुका है। परंतु, कुछ विधिक परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं, जहाँ यह अधिकार सीमित किया जा सकता है। एक ऐसा ही प्रावधान है भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 122, जो पति-पत्नी के बीच संवाद की गोपनीयता को लेकर एक विशेष दिशा-निर्देश प्रदान करता है।

हाल ही में न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि पति-पत्नी के बीच गोपनीयता का अधिकार एक मौलिक अधिकार के रूप में नहीं माना जा सकता, विशेषकर जब कोई पक्ष अपने बचाव या दावा को सिद्ध करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत कर रहा हो।


संदर्भ: साक्ष्य अधिनियम की धारा 122

धारा 122: पति-पत्नी के बीच संप्रेषण की गोपनीयता

यह धारा कहती है कि:

“कोई पति या पत्नी विवाह के दौरान एक-दूसरे के मध्य हुए संप्रेषण (communication) को न्यायालय में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकता/सकती, जब तक कि दूसरा पक्ष इसकी अनुमति न दे।”

हालांकि यह नियम कुछ अपवादों के अधीन है, जैसे:

  • जब एक पति/पत्नी दूसरे के विरुद्ध अभियोजन का पक्ष हो
  • जब मामला वैवाहिक विवाद का हो और संप्रेषण विवाद से प्रत्यक्ष संबंधित हो

न्यायालय की विवेचना

1. गोपनीयता का कोई उल्लंघन नहीं

न्यायालय ने कहा कि प्रस्तुत मामले में गोपनीयता का कोई उल्लंघन नहीं हुआ, क्योंकि जो साक्ष्य प्रस्तुत किए गए थे, वे विवादित पक्षों के बीच विवाह के दौरान हुए संवादों से संबंधित थे और सीधे मुकदमे के विषय से जुड़े थे।

2. धारा 122 – गोपनीयता की क्षैतिज (Horizontal) व्याख्या पर लागू नहीं होती

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 122 केवल वैवाहिक संबंधों के दायरे में सीमित है और इसे अन्य नागरिकों या तृतीय पक्षों के विरुद्ध लागू नहीं किया जा सकता। अतः, इसे “horizontal application” के रूप में गोपनीयता के मौलिक अधिकार की तरह नहीं देखा जा सकता।

3. अनुच्छेद 21 और गोपनीयता

हालांकि अनुच्छेद 21 के तहत गोपनीयता का अधिकार एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है (विशाखा केस, पु्त्तुस्वामी केस आदि में), परंतु इस मामले में ऐसा कोई उल्लंघन नहीं पाया गया क्योंकि:

  • प्रस्तुत साक्ष्य प्रत्यक्ष रूप से मुकदमे से संबंधित थे
  • उनका उद्देश्य न्यायसंगत ढंग से स्वयं को निर्दोष सिद्ध करना और न्यायालय से उचित राहत प्राप्त करना था

4. निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार (Right to Fair Trial)

कोर्ट ने संतुलन स्थापित करते हुए कहा कि निष्पक्ष सुनवाई और साक्ष्य प्रस्तुत करने का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार है। यदि पति या पत्नी को यह छूट न दी जाए कि वे विवाद से संबंधित संवादों को अदालत में प्रस्तुत कर सकें, तो यह न्याय से वंचित करने जैसा होगा।


न्यायालय की टिप्पणियाँ और निष्कर्ष

  • गोपनीयता का अधिकार पूर्ण नहीं है – यह हमेशा परिस्थितियों के अधीन होता है।
  • पति-पत्नी के बीच हुए संवाद, यदि विवाद से संबंधित हैं, तो उन्हें साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 को अनुच्छेद 21 के गोपनीयता अधिकार से जोड़ना अनुचित है, क्योंकि इसका उद्देश्य अलग है।
  • इस प्रकार के मामलों में न्यायिक विवेक महत्वपूर्ण है ताकि एक पक्ष का न्याय पाने का अधिकार दूसरे पक्ष के गोपनीयता अधिकार से बाधित न हो।

न्यायिक सिद्धांत का महत्व

यह निर्णय न्यायिक क्षेत्र में एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है:

  • एक ओर यह बताता है कि गोपनीयता का अधिकार सर्वव्यापी नहीं है;
  • दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित करता है कि कोई पक्ष अपने वैध अधिकारों और दावों को न्यायालय में साक्ष्य द्वारा प्रमाणित कर सके।

निष्कर्ष

साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 का उद्देश्य विवाह संबंधों में संवाद की गोपनीयता की रक्षा करना है, परंतु यह कोई अविभाज्य मौलिक अधिकार नहीं है, और इसे अनुच्छेद 21 के तहत विस्तारित गोपनीयता अधिकार के समानांतर नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि इस धारा की व्याख्या करते समय निष्पक्ष सुनवाई, साक्ष्य प्रस्तुत करने के अधिकार और न्यायिक संतुलन को केंद्र में रखना होगा।


“न्याय की मांग केवल गोपनीयता की रक्षा नहीं, बल्कि सत्य की खोज और न्याय की निष्पक्षता है।”