“संयुक्त परिवार की संपत्ति पर वसीयत की वैधता को लेकर झारखंड हाईकोर्ट का महत्त्वपूर्ण फैसला: पुत्रियों को भी मिला बराबरी का अधिकार”

“संयुक्त परिवार की संपत्ति पर वसीयत की वैधता को लेकर झारखंड हाईकोर्ट का महत्त्वपूर्ण फैसला: पुत्रियों को भी मिला बराबरी का अधिकार”

परिचय
झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया कि संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति (Joint Hindu Family Property) के मामले में, वसीयत (Will) की वैधता और उसके परिणामों को लेकर सीमाएं तय हैं। अदालत ने कहा कि जहां एक ओर वसीयत की वैधता पर विचार करना प्रॉबेट कोर्ट का कार्य है, वहीं संपत्ति के स्वामित्व (title) से जुड़े विवाद probate अदालत के क्षेत्राधिकार में नहीं आते। इसके साथ ही, न्यायालय ने हिंदू कानून के तहत बेटियों को भी संयुक्त परिवार की संपत्ति में समान अधिकार देने का निर्देश दिया।


A. प्रॉबेट कार्यवाही में संपत्ति के स्वामित्व की जांच नहीं की जाती

Indian Succession Act की धारा 6, 9, 30 और 63 तथा Evidence Act की धारा 68 के तहत अदालत ने कहा कि वसीयत की वैधता ही प्रॉबेट कार्यवाही का मूल विषय होती है।

  • प्रॉबेट कोर्ट यह नहीं देखता कि वसीयत में वर्णित संपत्ति पर वास्तव में वसीयतकर्ता का स्वामित्व था या नहीं।
  • यदि वसीयत वैध तरीके से बनाई गई है और उसमें नियमानुसार गवाह हैं, तो उसे वैध माना जाएगा — परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि संपत्ति का स्वामित्व स्वतः सिद्ध हो गया।

B. संयुक्त परिवार की संपत्ति में हिस्सेदारी को वसीयत द्वारा स्थानांतरित किया जा सकता है

अदालत ने यह माना कि हिंदू कानून के तहत कोई व्यक्ति अपनी सहस्वामी (coparcenary) हिस्सेदारी को वसीयत द्वारा स्थानांतरित कर सकता है।

  • इसका मतलब यह नहीं कि वह पूरी संपत्ति पर अधिकार रखता है, बल्कि केवल अपने हिस्से तक ही वसीयत वैध मानी जाएगी।
  • यह सिद्धांत हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम और वंशानुक्रम के सिद्धांतों से मेल खाता है।

C. वसीयत के बाद हुए पारिवारिक समझौते की प्रधानता होती है

यदि वसीयत बनाने के बाद परिवार के सदस्यों के बीच कोई पारिवारिक समझौता (family arrangement) हो जाता है, तो वसीयत पर अमल नहीं किया जा सकता।

  • ऐसे मामलों में पारिवारिक समझौता वसीयत से ऊपर माना जाता है।
  • यह सिद्धांत सामाजिक न्याय और परिवारिक सौहार्द बनाए रखने की दृष्टि से बेहद आवश्यक है।

D. उत्तराधिकार या बंटवारे से ही संपत्ति का हस्तांतरण संभव

अदालत में यह याचिका दायर की गई कि वसीयतकर्ता को संयुक्त परिवार की संपत्ति को वसीयत द्वारा देने का विशेषाधिकार (exclusive right) नहीं था।

  • अदालत ने इस याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि संयुक्त परिवार की संपत्ति केवल उत्तराधिकार या विधिवत बंटवारे (partition) के माध्यम से ही हस्तांतरित की जा सकती है।
  • इसलिए, वसीयतकर्ता द्वारा की गई वसीयत वैध नहीं मानी गई और अपील को खारिज कर दिया गया

E. पुत्रियों को संयुक्त परिवार की संपत्ति में समान अधिकार

इस मामले में अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एक हिंदू पुरुष की मृत्यु के बाद उसकी पुत्रियों को भी संयुक्त परिवार की संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त हैं

  • अदालत ने प्रारंभिक डिक्री (preliminary decree) को संशोधित करते हुए यह निर्देश दिया कि सभी पुत्रियों को उनके समान हिस्से दिए जाएँ।
  • अदालत ने अंतिम आदेश इसी अनुसार पारित करने का निर्देश दिया, जिससे कि महिला उत्तराधिकार का अधिकार और भी मजबूत हो गया।

निष्कर्ष

झारखंड हाईकोर्ट का यह निर्णय भारतीय पारिवारिक और उत्तराधिकार कानूनों की व्याख्या में एक मार्गदर्शक मिसाल बन गया है।

  • इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि प्रॉबेट कोर्ट का कार्य वसीयत की वैधता तक सीमित है, न कि संपत्ति के स्वामित्व की जांच तक।
  • साथ ही, यह निर्णय हिंदू महिलाओं को समान उत्तराधिकार अधिकार सुनिश्चित करता है और पारिवारिक समझौते को वसीयत से ऊपर मानकर सामाजिक संतुलन को प्राथमिकता देता है।

मामले का सारांश:

  • मामले से संबंधित कानून: Indian Succession Act (Sections 6, 9, 30, 63), Indian Evidence Act (Section 68), Hindu Succession Act
  • मुख्य मुद्दा: क्या वसीयत के माध्यम से संयुक्त परिवार की संपत्ति का वितरण वैध है?
  • फैसला:
    • केवल अपनी हिस्सेदारी तक वसीयत मान्य है
    • वसीयतकर्ता के पास पूरी संपत्ति पर अधिकार नहीं
    • पारिवारिक समझौता वसीयत से ऊपर
    • पुत्रियों को भी बराबर का हिस्सा
    • प्रॉबेट कोर्ट संपत्ति के शीर्षक पर विचार नहीं कर सकता