⚖️ गुजरात उच्च न्यायालय का निर्णय: “भले ही पत्नी दोषी हो, लेकिन यदि वह स्वयं का भरण-पोषण नहीं कर सकती, तो उसे भरण-पोषण का अधिकार है”

⚖️ गुजरात उच्च न्यायालय का निर्णय: “भले ही पत्नी दोषी हो, लेकिन यदि वह स्वयं का भरण-पोषण नहीं कर सकती, तो उसे भरण-पोषण का अधिकार है”


🔍 भूमिका (Introduction):

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 (Section 125 CrPC) समाज के कमजोर वर्गों — विशेषकर महिलाओं, बच्चों और वृद्ध माता-पिता — को संरक्षण प्रदान करती है, जिससे वे भरण-पोषण हेतु बेसहारा न रहें। इस धारा का उद्देश्य दया या दंड नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और आर्थिक सहायता है।

गुजरात उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि भले ही पत्नी पति से अलग रह रही हो और न्यायालय की दृष्टि में उसके पास “पर्याप्त कारण” न हो, फिर भी यदि वह खुद का गुज़ारा नहीं कर सकती, तो उसे भरण-पोषण का अधिकार है।


⚖️ प्रसंग: पारिवारिक न्यायालय द्वारा भरण-पोषण से इनकार

🏛️ मामले का सारांश:

  • पत्नी ने धारा 125 CrPC के अंतर्गत अपने पति से भरण-पोषण की मांग की थी।
  • पारिवारिक न्यायालय ने भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया।
  • न्यायालय ने यह पाया कि पत्नी “उचित कारण के बिना” पति के साथ रहने से इनकार कर रही थी।
  • न्यायालय ने दोनों पक्षों के बीच सुलह (reconciliation) की कोशिश की, जो असफल रही।
  • इसके बाद, निचली अदालत ने पत्नी को “deserter” मानते हुए उसकी स्थिति के प्रति पूर्वाग्रह (bias) रख लिया।

👩‍⚖️ गुजरात उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण (Judgment of Gujarat High Court):

🔎 मुख्य तर्क:

Even if the wife is living separately without sufficient cause, but is unable to maintain herself, she cannot be denied maintenance outright.

📌 अदालत के प्रमुख निष्कर्ष:

  1. पूर्वाग्रहपूर्ण रवैया अस्वीकार्य है:
    पारिवारिक न्यायालय ने पत्नी के प्रति पूर्वग्रह प्रदर्शित किया और निष्पक्ष न्याय नहीं किया।
  2. भरण-पोषण का अधिकार पत्नी की स्थिति पर निर्भर है:
    यदि पत्नी आर्थिक रूप से असहाय है और खुद का भरण-पोषण नहीं कर सकती, तो भले ही वह पति से अलग रह रही हो, उसे भरण-पोषण का अधिकार मिलना चाहिए।
  3. केवल “गलती” आधार नहीं हो सकता:
    विवाह संबंधों में खटास या गलती पर ध्यान देने से पहले यह देखा जाना चाहिए कि महिला आर्थिक रूप से निर्भर है या नहीं।
  4. न्याय की पुनर्स्थापना:
    उच्च न्यायालय ने निचली अदालत का निर्णय रद्द (overturn) कर दिया और मामले को पुनः विचार हेतु पारिवारिक न्यायालय को भेज (remand) दिया।

🧠 कानूनी सिद्धांत और महत्व:

विषय व्याख्या
धारा 125 CrPC पत्नी, नाबालिग संतान और माता-पिता को भरण-पोषण का अधिकार देता है यदि वे स्वयं का पालन-पोषण नहीं कर सकते।
‘Sufficient Reason’ की व्याख्या केवल यह दिखाना कि पत्नी पति के साथ नहीं रह रही, पर्याप्त नहीं है; यह भी देखा जाना चाहिए कि वह क्यों नहीं रह रही और क्या वह आर्थिक रूप से सक्षम है।
न्याय का मूल सिद्धांत न्याय निष्पक्ष होना चाहिए, न कि पूर्वाग्रह से ग्रस्त।

📚 प्रासंगिक उदाहरण:

यह निर्णय उन मामलों में नज़ीर (precedent) के रूप में उपयोग किया जा सकता है:

  • जहां पत्नी पर ‘गलती’ का आरोप है, लेकिन वह आर्थिक रूप से कमजोर है।
  • जहां पारिवारिक न्यायालय द्वारा सुलह की विफलता को आधार बनाकर पत्नी के खिलाफ निर्णय लिया गया हो।

निष्कर्ष (Conclusion):

गुजरात उच्च न्यायालय का यह निर्णय एक बार फिर से धारा 125 CrPC के कल्याणकारी उद्देश्य को रेखांकित करता है — “किसी महिला को केवल इसलिए भूखा नहीं रहने दिया जा सकता क्योंकि वह पति से अलग रह रही है।”

यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि भरण-पोषण की मांग चरित्र मूल्यांकन पर नहीं, बल्कि आर्थिक जरूरत और सामाजिक न्याय पर आधारित होनी चाहिए।

⚖️ “न्याय, सहानुभूति और व्यावहारिकता का समावेश होना चाहिए।”