शीर्षक:
“7 साल से कम सजा वाले अपराध में गिरफ्तारी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्देश: बीएनएसएस की धारा-35 और सुप्रीम कोर्ट के अरुणेश कुमार निर्देशों का सख्ती से पालन अनिवार्य”
परिचय:
प्रयागराज स्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया है कि सात साल से कम सजा वाले अपराधों में गिरफ्तारी के लिए पुलिस को बीएनएसएस (B.N.S.S.) अधिनियम की धारा-35 का सख्ती से पालन करना होगा। यह आदेश जौनपुर के महराजगंज निवासी संदीप यादव की याचिका पर न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने दिया।
मामले का विवरण:
- संदीप यादव ने एफआईआर के खिलाफ याचिका दाखिल कर एफआईआर रद्द करने की मांग की थी।
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि संज्ञेय अपराधों में आरोपों की जांच पर अदालत का हस्तक्षेप उचित नहीं है।
- कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि अपराध में सजा सात साल से कम है, तो गिरफ्तारी से पहले विवेचना के लिए अदालत की अनुमति लेना जरूरी है।
- गिरफ्तारी के समय पुलिस को बीएनएसएस की धारा-35 और सुप्रीम कोर्ट के अरुणेश कुमार मामले में जारी निर्देशों का पालन करना होगा।
धारा-35 बीएनएसएस क्या कहती है?
धारा-35 के तहत गिरफ्तारी से पहले पुलिस को विवेचना की सटीकता सुनिश्चित करनी होती है और केवल आवश्यक होने पर ही गिरफ्तारी करनी होती है। यह एक सुरक्षा तंत्र है ताकि गैरजरूरी गिरफ्तारी और अनुचित हिरासत को रोका जा सके।
अरुणेश कुमार केस के निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट के अरुणेश कुमार बनाम राज्य महाराष्ट्र (2014) के फैसले में भी यह निर्देश दिया गया कि पुलिस बिना किसी ठोस आधार के गिरफ्तारी नहीं कर सकती। गिरफ्तारी से पहले जांच और समुचित प्रक्रिया अपनाना आवश्यक है।
कोर्ट का आदेश और उसके प्रभाव:
- गिरफ्तारी पर रोक: सात साल से कम सजा वाले अपराधों में गिरफ्तारी के लिए पहले अदालत से अनुमति लेना अनिवार्य हो गया है।
- पुलिस की जिम्मेदारी: पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के बाद बिना विवेचना के गिरफ्तार नहीं करना है।
- अदालत की भूमिका: अदालतों को केवल आवश्यक विवेचना के बाद गिरफ्तारी की मंजूरी देना है, जिससे गलत गिरफ्तारी के मामलों में कमी आएगी।
- न्यायपालिका का संरक्षण: इस आदेश से नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा होगी और पुलिस के अनुचित दुरुपयोग पर रोक लगेगी।
निष्कर्ष:
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश न्यायिक संरक्षण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जो बताता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था किस प्रकार नागरिकों के अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता को सुनिश्चित करती है।
यह आदेश पुलिस और न्यायपालिका दोनों के लिए एक स्पष्ट निर्देश है कि गिरफ्तारी कोई साधारण कदम नहीं है, बल्कि उसके लिए उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन आवश्यक है।
इससे अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई तो सख्त होगी, लेकिन गलत और बिना वजह गिरफ्तारी के मामलों में भी कमी आएगी।