‘7 वर्ष में सबसे कम उम्र के सर्जन, 12 में IIT में प्रवेश’: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने CBSE की कक्षा 9 में प्रवेश के लिए आयु सीमा पर विचार करते हुए बाल प्रतिभाओं का हवाला दिया
प्रस्तावना
भारत में शिक्षा प्रणाली हमेशा से ही प्रतिभाओं की पहचान और उनके विकास पर केंद्रित रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने भी यह स्पष्ट किया है कि शिक्षा केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बच्चों की संपूर्ण विकास यात्रा का हिस्सा है। हाल ही में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक मामले में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा 10 वर्षीय छात्र को कक्षा 9 में प्रवेश न देने के निर्णय पर विचार करते हुए असाधारण बाल प्रतिभाओं का हवाला दिया। न्यायालय ने यह सवाल उठाया कि क्या असाधारण प्रतिभा वाले बच्चों के लिए आयु सीमाएं इतनी कठोर होनी चाहिए। इस निर्णय ने शिक्षा प्रणाली में लचीलापन और प्रतिभाओं की पहचान की आवश्यकता को उजागर किया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला तब सामने आया जब एक 10 वर्षीय छात्र, जो कि कक्षा 1 से 8 तक नियमित रूप से पढ़ रहा था, को कक्षा 9 में प्रवेश से वंचित किया गया। छात्र के पिता ने CBSE से अपील की, लेकिन बोर्ड ने NEP 2020 और अपनी परीक्षा नियमावली के तहत न्यूनतम आयु सीमा का हवाला देते हुए प्रवेश से इनकार कर दिया। बोर्ड के अनुसार, कक्षा 9 में प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु 14 वर्ष निर्धारित थी। इस असंतोषजनक स्थिति के कारण, छात्र के पिता ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का रुख किया।
इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केवल कानूनी पक्ष नहीं देखा, बल्कि शिक्षा प्रणाली और बच्चों की असाधारण क्षमताओं के सामाजिक और शैक्षणिक महत्व पर भी विचार किया।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति द्वारका धिश बंसल की पीठ ने सुनवाई के दौरान असाधारण बाल प्रतिभाओं के कई उदाहरणों का हवाला दिया। न्यायालय ने कहा:
“देश में 7 वर्ष की आयु में सबसे कम उम्र के सर्जन और 12 वर्ष में IIT में अध्ययन करने वाले बच्चों की खबरें आती हैं।”
यह टिप्पणी स्पष्ट रूप से यह दर्शाती है कि कोर्ट ने यह समझा कि जब देश ऐसे अद्भुत बच्चों को पहचानता है, तो क्या कठोर आयु सीमाओं के कारण उनकी शिक्षा में बाधा डालना न्यायसंगत होगा। कोर्ट ने यह सवाल भी उठाया कि क्या NEP में निर्धारित आयु सीमा केवल निर्देशात्मक है या इसे अनिवार्य मानकर असाधारण प्रतिभाओं को शिक्षा से वंचित किया जा सकता है।
NEP-2020 और आयु सीमा का महत्व
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने शिक्षा प्रणाली में सुधार और नवाचार को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। NEP के अनुसार, कक्षा 9 में प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु 14 वर्ष निर्धारित है। हालांकि, उच्च न्यायालय ने इसे “निर्देशात्मक” (directory) माना, “अनिवार्य” (mandatory) नहीं।
कोर्ट ने यह माना कि यदि कोई बच्चा असाधारण रूप से प्रतिभाशाली है, तो आयु सीमा उसके शैक्षणिक विकास में बाधा नहीं बननी चाहिए। यह दृष्टिकोण शिक्षा प्रणाली में लचीलापन और बच्चों की क्षमता के अनुसार उन्हें आगे बढ़ाने के महत्व को रेखांकित करता है।
बाल प्रतिभाओं के उदाहरण
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कुछ अद्भुत बाल प्रतिभाओं का उदाहरण प्रस्तुत किया, जो कि देश में शिक्षा के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियों के प्रतीक हैं।
1. अकृत जसवाल
हिमाचल प्रदेश के अकृत जसवाल ने मात्र 7 वर्ष की आयु में एक 8 वर्षीय लड़की का सफल ऑपरेशन किया था। उनकी बुद्धिमत्ता और कौशल का स्तर इतना ऊंचा था कि उन्हें 11 वर्ष की आयु में पंजाब विश्वविद्यालय में प्रवेश मिला। उनकी यह कहानी न केवल देश बल्कि वैश्विक स्तर पर भी सराही गई।
अकृत की उपलब्धि यह दिखाती है कि असाधारण प्रतिभा वाले बच्चे सामान्य आयु समूह में नहीं फिट होते। उनके लिए शिक्षा के अवसर और मार्गदर्शन उनके विशेष कौशल के अनुरूप होना चाहिए।
2. कश्वी
हिमाचल प्रदेश की कश्वी को 8 वर्ष की आयु में कक्षा 8 में प्रवेश मिला। उच्च न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि उसे नियमित निगरानी में रखा जाए, ताकि उसकी शारीरिक, मानसिक और शैक्षणिक स्थिति पर नजर रखी जा सके। कश्वी का उदाहरण यह दर्शाता है कि अत्यधिक प्रतिभाशाली बच्चों को उचित मार्गदर्शन और संरक्षण के साथ शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जा सकता है।
कोर्ट का आदेश
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने CBSE को निर्देश दिया कि वह 10 वर्षीय छात्र को कक्षा 9 में अस्थायी प्रवेश प्रदान करे। इसके साथ ही, एक तीन सदस्यीय चिकित्सा बोर्ड गठित करने का आदेश दिया गया, जो छात्र की मानसिक परिपक्वता और बुद्धिमत्ता का मूल्यांकन करेगा।
इस मूल्यांकन के आधार पर ही CBSE को अंतिम निर्णय लेने का निर्देश दिया गया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि असाधारण प्रतिभा वाले बच्चों के लिए लचीलेपन का मतलब यह नहीं कि नियमों की अवहेलना हो, बल्कि इसका अर्थ यह है कि नियमों को परिस्थिति के अनुसार समायोजित किया जाए।
शिक्षा प्रणाली में लचीलापन
यह निर्णय शिक्षा प्रणाली में लचीलापन की आवश्यकता को उजागर करता है। भारत जैसे विविध और प्रतिभाशाली देश में हर बच्चे की क्षमता समान नहीं होती। कुछ बच्चे सामान्य शिक्षण प्रणाली के मानक समय सीमा के भीतर सीख सकते हैं, जबकि अन्य असाधारण प्रतिभा के कारण पहले या अलग तरीके से आगे बढ़ सकते हैं।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नियमों में लचीलापन केवल असाधारण बच्चों के लिए ही नहीं, बल्कि शिक्षा नीति निर्माताओं को यह संकेत देता है कि वे शिक्षा प्रणाली को ऐसे ढालें जो हर प्रकार की प्रतिभा को निखार सके।
बाल प्रतिभाओं के लिए मार्गदर्शन और अवसर
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का यह आदेश शिक्षा नीति निर्माताओं और विद्यालय प्रशासन को यह संदेश देता है कि असाधारण प्रतिभाओं को सही दिशा और मार्गदर्शन देने के लिए लचीले उपाय करने चाहिए।
- मानसिक परिपक्वता का मूल्यांकन: अत्यधिक प्रतिभाशाली बच्चों के लिए मानसिक और भावनात्मक परिपक्वता का मूल्यांकन आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे को शिक्षा में शामिल करते समय उसका संतुलन बना रहे।
- अस्थायी प्रवेश: असाधारण प्रतिभाओं वाले बच्चों को अस्थायी प्रवेश प्रदान करना चाहिए, ताकि उनके शैक्षणिक विकास को बाधा न पहुंचे।
- नियमों में लचीलापन: शिक्षा के नियम और आयु सीमाएं निर्देशात्मक हो सकती हैं, लेकिन असाधारण परिस्थितियों में इन्हें आवश्यकतानुसार संशोधित किया जाना चाहिए।
- निगरानी और मार्गदर्शन: बच्चों की शारीरिक, मानसिक और शैक्षणिक स्थिति पर नियमित निगरानी रखने से उनकी पूर्ण क्षमता विकसित हो सकती है।
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय शिक्षा प्रणाली में लचीलापन और बाल प्रतिभाओं के महत्व को रेखांकित करता है। यह दर्शाता है कि कठोर नियमों में ढील देने से असाधारण बच्चों की क्षमता का पूर्ण विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।
असाधारण प्रतिभा वाले बच्चों के लिए शिक्षा प्रणाली में लचीलापन केवल उनके व्यक्तिगत विकास के लिए ही नहीं, बल्कि देश की प्रगति और नवाचार के लिए भी आवश्यक है। यदि भारत के प्रतिभाशाली बच्चे अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच सकें, तो यह देश की वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
इस निर्णय से शिक्षा नीति निर्माताओं को यह प्रेरणा मिलेगी कि वे शिक्षा के नियम और मार्गदर्शन ऐसे तैयार करें जो हर बच्चे की प्रतिभा को पहचानें और उसे निखारें। यह निर्णय न केवल उस 10 वर्षीय छात्र के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समग्र शिक्षा प्रणाली में नवाचार और लचीलेपन के लिए भी मील का पत्थर साबित हो सकता है।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का यह दृष्टिकोण एक संदेश है कि देश में बाल प्रतिभाओं को उचित अवसर और मार्गदर्शन देकर उन्हें आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि वे न केवल व्यक्तिगत रूप से सफल हों, बल्कि समाज और देश के लिए भी योगदान कर सकें।