“हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मिर्गी तलाक का आधार नहीं: उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय”
लेख:
हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि मिर्गी (Epilepsy) जैसी चिकित्सकीय स्थिति हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत तलाक का वैध आधार नहीं हो सकती, जब तक यह स्पष्ट रूप से मानसिक विक्षिप्तता (mental disorder) की सीमा तक न पहुँचे।
इस निर्णय में 33 वर्षीय एक व्यक्ति की उस याचिका को खारिज कर दिया गया, जिसमें उसने अपनी पत्नी पर क्रूरता (Cruelty) और मानसिक अस्वस्थता का आरोप लगाकर तलाक की माँग की थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि विवाह के तुरंत बाद उसे पता चला कि उसकी पत्नी मिर्गी की बीमारी से ग्रसित है और यह बात उससे छिपाई गई थी। उसने यह भी आरोप लगाया कि बीमारी के कारण उसकी पत्नी मानसिक रूप से अस्थिर और व्यवहार में क्रूर हो गई है।
हालाँकि, न्यायालय ने चिकित्सा प्रमाणों और गवाहों के आधार पर पाया कि:
- पत्नी को मिर्गी है, लेकिन यह न तो मानसिक विक्षिप्तता की श्रेणी में आती है और न ही इसका कोई प्रमाण है कि उसने पति के साथ ऐसा क्रूर व्यवहार किया जो तलाक का आधार बन सके।
- मिर्गी एक नियंत्रण योग्य और सामान्य चिकित्सीय स्थिति है, जो स्वयं में किसी के साथ क्रूरता का प्रमाण नहीं मानी जा सकती।
अदालत ने यह भी कहा कि यदि बीमारी की जानकारी नहीं देना एकमात्र मुद्दा है, तो यह भी तलाक के लिए पर्याप्त आधार नहीं बनता, जब तक यह “धोखा” (fraud) की परिभाषा के अंतर्गत न आए।
न्यायालय ने कहा:
“मात्र मिर्गी की बीमारी किसी व्यक्ति को अपात्र या विवाह के लिए अयोग्य नहीं बनाती। जब तक यह साबित न हो कि वह बीमारी विवाह जीवन को असहनीय बनाती है, तब तक इसे तलाक का आधार नहीं माना जा सकता।”
विधिक दृष्टिकोण:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) के अनुसार, तलाक केवल उन्हीं आधारों पर दिया जा सकता है जो स्पष्ट रूप से अधिनियम में वर्णित हैं, जैसे:
- क्रूरता
- परित्याग
- मानसिक विक्षिप्तता (जिससे सह-जीवन असंभव हो जाए)
- व्यभिचार आदि।
मिर्गी को अब मानसिक विकार नहीं माना जाता, विशेष रूप से “Persons with Disabilities Act” और चिकित्सीय प्रगति के बाद।
निष्कर्ष:
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि समाज में व्याप्त बीमारियों के प्रति पूर्वग्रह और कलंक (stigma) के आधार पर वैवाहिक रिश्तों को तोड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह निर्णय न केवल कानूनी रूप से सटीक है, बल्कि समाजिक न्याय और समावेशिता (inclusiveness) की दिशा में भी एक सशक्त कदम है।