सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के संरक्षण हेतु 5 अहम निर्देश

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के संरक्षण हेतु 5 अहम निर्देश

परिचय

घरेलू हिंसा केवल एक पारिवारिक समस्या नहीं, बल्कि यह महिलाओं के मूलभूत मानवाधिकारों पर एक गंभीर आघात है। भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए वर्ष 2005 में घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) लागू किया गया। परंतु इसका क्रियान्वयन ज़मीनी स्तर पर अब तक संतोषजनक नहीं रहा। इसी पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट ने 2024-25 में एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए देशभर में घरेलू हिंसा पीड़ित महिलाओं के लिए पांच प्रमुख निर्देश जारी किए, जो कि महिला सशक्तिकरण और न्यायिक सक्रियता की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।


1. प्रत्येक जिले में महिला संरक्षण अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि सभी राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश यह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक जिले में एक महिला संरक्षण अधिकारी (Protection Officer) की नियुक्ति अवश्य की जाए।
इन अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी:

  • घरेलू हिंसा की शिकायतें दर्ज करना
  • पीड़िता की सुरक्षा के लिए तत्काल उपाय करना
  • कोर्ट को रिपोर्ट देना और पुनर्वास सुविधाओं की निगरानी करना

न्यायालय की टिप्पणी: “कानून की प्रभावशीलता तभी है जब उसके कार्यान्वयन के लिए ज़िम्मेदार अधिकारी वास्तविक रूप से नियुक्त और प्रशिक्षित हों।”


2. आश्रय गृहों और सहायता केंद्रों की उपलब्धता की समीक्षा

कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि हर राज्य में महिला आश्रय गृह (Shelter Homes) और वन-स्टॉप क्राइसेस सेंटर (One Stop Centers) की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए, और उनकी स्थिति की समीक्षा कर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।
इसके अंतर्गत यह भी सुनिश्चित किया जाना है कि:

  • महिलाओं को सुरक्षित आश्रय मिले
  • चिकित्सा, काउंसलिंग, और कानूनी सहायता उपलब्ध हो
  • बच्चों की देखरेख की भी समुचित व्यवस्था हो

3. राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए मासिक रिपोर्टिंग सिस्टम

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया कि राज्यों को मासिक आधार पर घरेलू हिंसा अधिनियम के क्रियान्वयन की रिपोर्ट केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय को भेजनी होगी।
रिपोर्ट में यह विवरण होना चाहिए:

  • दर्ज की गई शिकायतों की संख्या
  • की गई कार्रवाई
  • दंडित किए गए मामलों का प्रतिशत
  • पुनर्वास की स्थिति

4. पीड़िताओं को मुफ्त कानूनी सहायता और फास्ट ट्रैक कोर्ट्स में प्राथमिकता

सुप्रीम कोर्ट ने सभी न्यायालयों से यह भी कहा कि घरेलू हिंसा के मामलों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में प्राथमिकता दी जाए और पीड़ित महिलाओं को निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान की जाए।

“एक महिला को न्याय के लिए वर्षों इंतजार न करना पड़े — यह न्याय का उपहास होगा।”

यह निर्देश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (State Legal Services Authority) को भी भेजा गया है कि वह जागरूकता अभियान चलाकर इस सुविधा की जानकारी महिलाओं तक पहुँचाए।


5. पुलिस बल और अधिकारियों के लिए विशेष प्रशिक्षण अनिवार्य

कोर्ट ने पाया कि कई बार पीड़ित महिलाओं की शिकायतों को पुलिस द्वारा गंभीरता से नहीं लिया जाता। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस बल, जजों, और महिला संरक्षण अधिकारियों के लिए संवेदनशीलता आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम (Gender Sensitization Training) को अनिवार्य कर दिया।
इसमें शामिल होंगे:

  • घरेलू हिंसा के प्रकारों की पहचान
  • महिला के अधिकारों की जानकारी
  • कानून की प्रक्रियाओं का समुचित पालन

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के ये 5 अहम निर्देश घरेलू हिंसा के खिलाफ एक व्यापक और संवेदनशील कानूनी ढाँचा तैयार करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका अब केवल फैसले सुनाने तक सीमित नहीं, बल्कि उनके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय हस्तक्षेप भी कर रही है।

इन आदेशों से न केवल पीड़ित महिलाओं को संबल मिलेगा, बल्कि प्रशासनिक मशीनरी की जवाबदेही भी तय होगी। समय की आवश्यकता है कि इन निर्देशों को ज़मीन पर ईमानदारी से लागू किया जाए, ताकि हर महिला बिना भय के अपने अधिकारों के साथ जी सके।