तलाक डिक्री के विरुद्ध अपील मृतक पक्षकार की मृत्यु के बाद भी बनी रहती है: कर्नाटक हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

तलाक डिक्री के विरुद्ध अपील मृतक पक्षकार की मृत्यु के बाद भी बनी रहती है: कर्नाटक हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

(Karnataka High Court on Appeal and Death in Matrimonial Matters)


🔍 भूमिका:

वैवाहिक विवादों में अदालत द्वारा पारित तलाक की डिक्री (Divorce Decree) को अक्सर एक या दोनों पक्षों द्वारा ऊपरी अदालतों में चुनौती दी जाती है। लेकिन जब अपील की लंबित अवस्था में ही डिक्री प्राप्त करने वाले (Decree-Holder) पक्षकार की मृत्यु हो जाए, तो प्रश्न यह उठता है कि क्या उस अपील का कोई औचित्य बचता है?
इस महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया है कि तलाक डिक्री के विरुद्ध की गई अपील मृतक पक्ष की मृत्यु से समाप्त नहीं होती क्योंकि यह जीवित पक्ष की कानूनी स्थिति और संपत्ति संबंधी अधिकारों को प्रभावित करती है।


⚖️ मामले की पृष्ठभूमि:

इस मामले में एक तलाक की डिक्री पारित की गई थी, जिसके विरुद्ध एक पक्ष ने ऊपरी अदालत (Appellate Court) में अपील दायर की थी। अपील की कार्यवाही के दौरान ही डिक्री प्राप्त करने वाले (अर्थात तलाक मांगने वाले) पक्ष की मृत्यु हो गई।
उत्तरदाता (Respondent) पक्ष का तर्क था कि अब जब डिक्रीधारी की मृत्यु हो गई है, तो अपील निरर्थक हो गई है और उसे समाप्त (Abate) माना जाना चाहिए।

परंतु अपीलकर्ता का यह तर्क था कि यह निर्णय न केवल तलाक से जुड़ा है, बल्कि इससे उनकी वैवाहिक स्थिति, संपत्ति के उत्तराधिकार, और सामाजिक प्रतिष्ठा पर भी प्रभाव पड़ता है। इसलिए यह अपील अब भी जारी रहनी चाहिए।


🧑‍⚖️ कर्नाटक हाईकोर्ट का निर्णय:

कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस मामले में विस्तार से कानूनी व्याख्या करते हुए निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर निर्णय दिया:

  1. तलाक डिक्री केवल पति-पत्नी के संबंधों को समाप्त नहीं करती, बल्कि यह भविष्य में उत्तराधिकार, पेंशन, संपत्ति, बीमा, सामाजिक स्थिति और पुनर्विवाह जैसे अधिकारों को भी प्रभावित करती है।
  2. यदि डिक्री के खिलाफ अपील करने वाला जीवित है, तो उसकी वैवाहिक स्थिति और अधिकार स्पष्ट करने के लिए अपील जारी रहनी चाहिए।
  3. CPC की Order XXII के अनुसार, कुछ मामलों में अपील मृत्यु के कारण समाप्त हो जाती है, लेकिन वैवाहिक मामलों में तलाक की डिक्री से जुड़े अपील इसके अपवाद हैं क्योंकि इसमें जीवित पक्ष की वैधानिक स्थिति दांव पर होती है।
  4. अदालत ने यह भी कहा कि मृतक पक्षकार की मृत्यु के बाद किसी वैधानिक उत्तराधिकारी को पक्षकार बनाकर अपील को आगे बढ़ाया जा सकता है।

📚 कानूनी महत्व और सैद्धांतिक आधार:

  • यह निर्णय “Abatement of Appeal” के सामान्य सिद्धांतों से अलग जाकर वैवाहिक विवादों में न्यायसंगत और व्यावहारिक अपवाद प्रस्तुत करता है।
  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए निर्णयों जैसे Savithri Pandey v. Prem Chandra Pandey (2002) और Shyamali Sarkar v. Ashok Sarkar (2010) में भी यह माना गया है कि वैवाहिक डिक्री से जुड़े अधिकार मृत्यु के बाद भी जीवित रह सकते हैं।
  • तलाक की डिक्री से उत्पन्न Proprietary and Personal Consequences को केवल मृत्यु से समाप्त नहीं माना जा सकता।

📌 फैसले का प्रभाव:

  • यह निर्णय ऐसे हजारों मामलों के लिए दिशा-निर्देशक है जहाँ तलाक की डिक्री के विरुद्ध अपील लंबित होती है और डिक्रीधारी की मृत्यु हो जाती है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि जीवित पक्ष की कानूनी, सामाजिक और आर्थिक स्थिति को उचित न्याय मिल सके।
  • इससे संबंधित अपीलीय कार्यवाहियों को मृतक पक्षकार की मृत्यु के आधार पर समाप्त करने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।

निष्कर्ष:

कर्नाटक हाईकोर्ट का यह निर्णय भारतीय पारिवारिक कानूनों में न्याय और तर्क का संतुलन प्रस्तुत करता है।
यह स्पष्ट करता है कि विवाह केवल दो व्यक्तियों के बीच का संबंध नहीं है, बल्कि इससे जुड़े अधिकार और दायित्व जीवनभर प्रभाव डालते हैं – यहां तक कि मृत्यु के बाद भी।
इसलिए, तलाक डिक्री के विरुद्ध की गई अपील को केवल इस आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता कि डिक्रीधारी की मृत्यु हो गई है।

यह निर्णय न्यायपालिका की इस सोच को दर्शाता है कि कानून केवल प्रक्रिया नहीं, बल्कि न्याय का माध्यम है।