शीर्षक:
“NDPS अधिनियम के तहत न्यायिक विवेक और लम्बी न्यायिक हिरासत: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय (Manpreet Singh @ Jassi v/s State of Punjab, CRM-M-8945-2025)”
भूमिका
NDPS अधिनियम, 1985 भारत में मादक पदार्थों के दुरुपयोग को रोकने के लिए कठोर कानूनी प्रावधानों वाला एक विशेष अधिनियम है। इसमें धारा 22-C और 27 जैसे प्रावधान हैं, जो व्यावसायिक (Commercial) मात्रा के नशीले पदार्थों की बरामदगी पर सख्त दंडात्मक प्रावधान लागू करते हैं। इसके साथ ही, धारा 37 NDPS अधिनियम, जमानत (Bail) देने पर सख्त शर्तें लगाती है। हाल ही में, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने Manpreet Singh @ Jassi v/s State of Punjab (CRM-M-8945-2025) केस में NDPS अधिनियम की कठोरता के बावजूद अभियुक्त को जमानत प्रदान की, यह कहते हुए कि अभियुक्त 10 महीने 15 दिन से अधिक समय तक जेल में रह चुका है और मुकदमे की सुनवाई में देरी के चलते अनिश्चित काल तक जेल में रखना उचित नहीं होगा।
मामला संक्षेप में
- अभियुक्त Manpreet Singh @ Jassi पर NDPS अधिनियम की धारा 22-C (व्यावसायिक मात्रा में नशीले पदार्थों की बरामदगी) और धारा 27 (उपभोग) के तहत मामला दर्ज किया गया।
- अभियोजन के अनुसार, उसके पास से वाणिज्यिक मात्रा में प्रतिबंधित पदार्थ बरामद किया गया था।
- NDPS अधिनियम की धारा 37 के तहत ऐसे मामलों में जमानत देने पर विशेष प्रतिबंध है, जब तक कि अदालत को यह विश्वास न हो कि आरोपी निर्दोष है और वह अपराध दोहराएगा नहीं।
अभियुक्त की दलीलें
- अभियुक्त ने कहा कि वह पहले से किसी अन्य आपराधिक मामले में शामिल नहीं है।
- उसके खिलाफ दर्ज मामले में जांच पूरी हो चुकी है।
- आरोप तय हो चुके हैं, लेकिन अभियोजन पक्ष के कुल 20 गवाहों में से एक भी गवाह अब तक पेश नहीं किया गया है।
- मुकदमे की सुनवाई में लंबा समय लग सकता है और इस दौरान अभियुक्त का अनिश्चितकालीन कारावास उचित नहीं है।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का निर्णय
✅ लंबी हिरासत का प्रभाव
- अदालत ने माना कि अभियुक्त पहले ही 10 महीने 15 दिन की हिरासत भुगत चुका है।
- अभियोजन पक्ष के सभी 20 गवाहों में से अब तक एक भी गवाह पेश नहीं किया गया है।
- मुकदमे का शीघ्र निपटारा संभव नहीं है।
✅ अनावश्यक हिरासत से बचाव
- अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में अभियुक्त को अनिश्चितकाल तक हिरासत में रखना न्याय के हित में नहीं होगा।
- NDPS अधिनियम की धारा 37 का अनुपालन करते हुए अदालत ने यह भी देखा कि अभियुक्त के खिलाफ कोई अन्य मामला लंबित नहीं है।
✅ नियमित जमानत मंजूर
- अदालत ने NDPS अधिनियम के तहत लगे आरोपों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए और अभियुक्त के पक्ष में उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए धारा 483 BNSS (Bail) के तहत नियमित जमानत मंजूर की।
निर्णय का महत्व
✅ NDPS अधिनियम के कठोर प्रावधानों में न्यायिक विवेक
- यह फैसला NDPS अधिनियम की कठोरता को एक मानवीय दृष्टिकोण के साथ संतुलित करता है।
- अभियुक्त की लंबी न्यायिक हिरासत और मुकदमे में देरी को देखते हुए अदालत ने न्यायिक विवेक का प्रयोग करते हुए जमानत का आदेश दिया।
✅ लंबी न्यायिक हिरासत पर अंकुश
- अदालत ने स्पष्ट किया कि मुकदमे की लंबी अवधि अभियुक्त के अधिकारों के खिलाफ है।
- अभियुक्त को अनिश्चितकालीन कारावास देना ‘विलंबित न्याय’ के बराबर है।
✅ प्रत्येक मामले के तथ्यों का महत्व
- अदालत ने कहा कि NDPS अधिनियम के मामलों में भी अभियुक्त के व्यक्तिगत तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर न्याय किया जाना चाहिए, न कि केवल अधिनियम की कठोरता के आधार पर।
निष्कर्ष
Manpreet Singh @ Jassi v/s State of Punjab में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका की उस संवेदनशीलता को दर्शाता है जिसमें कठोर कानूनों के बीच भी अभियुक्त के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जाती है। अदालत ने NDPS अधिनियम के दायरे में रहकर अभियुक्त को नियमित जमानत प्रदान की, यह दर्शाता है कि न्यायालय केवल कानून की कठोरता ही नहीं, बल्कि परिस्थितियों की न्यायोचित व्याख्या भी करते हैं।