“Res Judicata स्थायी निषेधाज्ञा की पुनः कार्यवाही में बाधा नहीं: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”
परिचय
भारतीय विधिक प्रणाली में Res Judicata का सिद्धांत अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो यह सुनिश्चित करता है कि एक ही विवाद को बार-बार न्यायालयों में न लाया जाए। परंतु जब बात स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) जैसे आदेशों के क्रियान्वयन की हो, तो क्या पहले की कार्यवाही में ‘संतोष’ (satisfaction) दर्ज होने से अगली कार्यवाही रुक जाती है? इसी प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए Execution Petition को पुनर्स्थापित किया है।
मामले का संक्षिप्त विवरण
मामला SARASWATI DEVI & ORS V/S SANTOSH SINGH & ORS से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ताओं को एक स्थायी निषेधाज्ञा डिक्री प्राप्त हुई थी, जो प्रतिवादियों को अनुसूचित संपत्ति में शांतिपूर्ण कब्जे में हस्तक्षेप करने से रोकती थी।
डिक्री को कार्यान्वित कराने हेतु याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर Execution Petition को निचली अदालत ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि इससे पूर्व एक अन्य execution में ‘संतोष’ (satisfaction) दर्ज किया गया था। न्यायालय ने माना कि चूँकि पूर्व execution पूरी हो चुकी थी, इस कारण सिद्धांत Res Judicata लागू होता है और वर्तमान याचिका अस्वीकार्य है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी एवं निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को पलटते हुए कहा कि स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Prohibitory Injunction) एक सतत प्रवृत्ति (continuous nature) का आदेश होता है और इसका उल्लंघन भविष्य में किसी भी समय हो सकता है। इसलिए, केवल इसलिए कि एक पूर्व execution petition में ‘संतोष’ (satisfaction) दर्ज हुआ था, इसका यह अर्थ नहीं है कि आगे भविष्य में उत्पन्न हस्तक्षेप को चुनौती देने वाली execution petition को खारिज कर दिया जाए।
अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा:
“A satisfaction recorded in an earlier execution petition cannot bar a subsequent execution if new acts of interference are alleged. The principle of Res Judicata does not apply to bar enforcement of a decree for permanent injunction in such cases.“
Res Judicata का सीमित अनुप्रयोग
न्यायालय ने इस निर्णय में Res Judicata सिद्धांत की सीमाओं की व्याख्या की। यह सिद्धांत उन मामलों में लागू होता है जहाँ कोई विवाद पहले ही निर्णीत हो चुका हो और उसी पक्षों के बीच पुनः उसी विवाद को उठाया गया हो। लेकिन यहाँ पर एक नया तथ्यात्मक परिदृश्य (subsequent interference) उत्पन्न हुआ था, जो पूर्व execution की विषयवस्तु नहीं था। अतः Res Judicata स्वतः लागू नहीं होता।
स्थायी निषेधाज्ञा का प्रकृति और उद्देश्य
सुप्रीम कोर्ट ने स्थायी निषेधाज्ञा डिक्री की प्रकृति को स्पष्ट करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य केवल एक बार का निषेध नहीं, बल्कि किसी भी प्रकार के निरंतर या बार-बार होने वाले हस्तक्षेप को रोकना है। यदि किसी डिक्रीधारी के शांतिपूर्ण कब्जे में पुनः अवरोध उत्पन्न किया जाए, तो उसे अधिकार है कि वह उसी डिक्री के आधार पर पुनः निष्पादन की मांग कर सके।
निष्कर्ष
इस निर्णय के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि स्थायी निषेधाज्ञा डिक्री के क्रियान्वयन को Res Judicata के सिद्धांत से बाधित नहीं किया जा सकता, यदि नया हस्तक्षेप उत्पन्न हुआ हो। यह निर्णय न्यायप्रणाली में injunction decrees की प्रभावशीलता को बनाए रखने तथा डिक्रीधारी के अधिकारों की रक्षा हेतु एक मील का पत्थर है।