‘सुनवाई बिना लंबे समय तक कैदी जेल में नहीं रह सकता’ – बॉम्बे हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
परिचय:
भारतीय न्याय प्रणाली में यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को निष्पक्ष और शीघ्र सुनवाई का अधिकार प्राप्त है। हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक हत्या के मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि किसी भी आरोपी को बिना सुनवाई के लंबे समय तक जेल में रखना असंवैधानिक है और यह पूर्व-ट्रायल सजा (Pre-Trial Punishment) के समान है।
मुख्य टिप्पणी:
कोर्ट ने कहा:
“बिना सुनवाई के किसी व्यक्ति को लंबे समय तक हिरासत में रखना, उसे दंडित करने के समान है।”
यह टिप्पणी उस समय की गई जब एक आरोपी की जमानत याचिका पर विचार करते हुए कोर्ट ने देखा कि उसके मामले की सुनवाई में अत्यधिक देरी हो रही है और वह लंबे समय से बिना दोष सिद्ध हुए जेल में बंद है।
जमानत का सिद्धांत: नियम बनाम अपवाद
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि—
- जमानत का सिद्धांत नियम है, और
- जमानत न देना अपवाद होना चाहिए।
जब किसी व्यक्ति को बिना किसी निष्कर्ष पर पहुँचे लंबे समय तक जेल में रखा जाता है, तो वह व्यक्ति उस अपराध के लिए सज़ा भुगत रहा होता है, जिसके लिए अभी तक दोष सिद्ध ही नहीं हुआ है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है।
न्यायिक देरी और दुष्परिणाम:
भारतीय अदालतों में लंबित मामलों की अधिकता के कारण कई बार अभियुक्तों को वर्षों तक बिना सुनवाई के जेल में रहना पड़ता है। यह स्थिति न केवल मानवाधिकारों का हनन है, बल्कि न्यायिक व्यवस्था में विश्वास को भी कमजोर करती है।
इस प्रकार के मामलों में अदालतों की यह भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है कि वे अभियुक्तों को उचित समय पर जमानत दें या मामलों की शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित करें।
छोटा राजन को मिली राहत: 20 साल पुराने धमकी केस में बरी
एक अन्य महत्वपूर्ण घटना में, गैंगस्टर छोटा राजन को एक 20 साल पुराने बिल्डर को धमकी देने के मामले में बरी कर दिया गया है।
मामले की पृष्ठभूमि:
- यह मामला दो दशक पुराना था, जिसमें एक बिल्डर को फोन पर धमकी देने का आरोप छोटा राजन पर लगा था।
- यह केस पहले मुंबई पुलिस के पास था, बाद में इसे CBI को सौंपा गया था।
- मामले की सुनवाई विशेष अदालत में हुई।
न्यायालय का निर्णय:
- विशेष अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष (CBI) आरोपी के विरुद्ध आरोप सिद्ध करने में असफल रहा है।
- कोई ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए जा सके, जिससे छोटा राजन को दोषी ठहराया जा सके।
CBI को झटका:
यह फैसला CBI के लिए एक झटका माना जा रहा है क्योंकि वह इस मामले को साबित करने में विफल रही। इससे यह भी सवाल उठता है कि पुराने आपराधिक मामलों की जांच और अभियोजन में कितनी गंभीरता और सटीकता बरती जा रही है।
निष्कर्ष:
इन दोनों मामलों ने एक बार फिर यह रेखांकित किया है कि:
- न्यायिक प्रणाली में त्वरित न्याय कितना आवश्यक है।
- किसी भी व्यक्ति को बिना दोष सिद्ध हुए सजा देना न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
- अभियोजन की जिम्मेदारी है कि वह ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करे, अन्यथा बेकसूरों को लंबी सजा भुगतनी पड़ती है या अपराधी छूट जाते हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी और छोटा राजन की बरी होना, दोनों ही घटनाएं भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए गंभीर चिंतन और सुधार का संकेत हैं।