“41,664 करोड़ रुपये का आईटीसी घोटाला: फर्जी कंपनियों और नकली इनवॉइस के जरिए बढ़ती जीएसटी चोरी पर केंद्र की बड़ी चेतावनी”
राज्यसभा में सरकार की विस्तृत रिपोर्ट व गंभीर निष्कर्ष
प्रस्तावना
देश में वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रणाली लागू होने के बाद इसे भारत के इतिहास का सबसे बड़ा कर सुधार माना गया था। इसका मुख्य उद्देश्य था—कर प्रक्रिया को सरल बनाना, पारदर्शिता बढ़ाना, और टैक्स चोरी को समाप्त करना। लेकिन समय के साथ यह स्पष्ट होता गया कि जीएसटी प्रणाली की डिजिटल मॉनिटरिंग और इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की सुविधा का दुरुपयोग करने वाले संगठित गिरोह भी सक्रिय हो गए हैं। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने राज्यसभा में एक चौंकाने वाला खुलासा किया—41,664 करोड़ रुपये से अधिक का आईटीसी (Input Tax Credit) फर्जीवाड़ा देशभर में फर्जी कंपनियों और नकली इनवॉइस के जरिए किया गया है।
यह खुलासा न केवल जीएसटी व्यवस्था की कमजोर कड़ियों को उजागर करता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि आर्थिक अपराध कितनी परिष्कृत तकनीक और नेटवर्किंग के जरिए किए जा रहे हैं। इस विस्तृत रिपोर्ट में हम इस घोटाले के कारणों, तरीकों, प्रभावों, सरकारी प्रतिक्रियाओं और भविष्य के सुधारों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. राज्यसभा में खुलासा: सरकार की आधिकारिक जानकारी
वित्त मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया कि देशभर में विशेष ड्राइव के दौरान 41,664 करोड़ रुपये के इनपुट टैक्स क्रेडिट के दावे नकली कंपनियों और फर्जी बिलों के जरिए किए गए। ये कंपनियाँ कागज़ों में मौजूद थीं—लेकिन असल दुनिया में उनका कोई अस्तित्व नहीं था। वे केवल बिल रैकिट का हिस्सा थीं।
सरकार ने यह भी बताया कि:
- हजारों फर्जी GSTIN रद्द या ब्लॉक किए गए,
- कई राज्यों में जांच और छापेमार कार्रवाई जारी है,
- सैकड़ों व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है।
यह आँकड़ा पिछले वर्षों की तुलना में एक बड़ा उछाल दर्शाता है, जो बताता है कि GST विभाग के कड़े कदम उठाने के बावजूद ऐसे नेटवर्क लगातार बढ़ रहे हैं।
2. ITC (इनपुट टैक्स क्रेडिट) क्या है और इसमें घोटाला कैसे होता है?
जीएसटी में ITC का अर्थ है—व्यवसाय द्वारा खरीदे गए सामान या सेवाओं पर दिया गया कर, जिसे वह आउटपुट टैक्स में एडजस्ट कर सकता है। यह सिस्टम इस उद्देश्य से बनाया गया था कि टैक्स की ‘कास्केडिंग’ खत्म हो और टैक्स केवल value addition पर लगे।
फर्जी ITC घोटाला कैसे होता है?
- फर्जी कंपनियाँ बनाई जाती हैं (शेल कंपनियाँ)।
- ये कंपनियाँ बिना माल बेचे नकली इनवॉइस जारी करती हैं।
- खरीददार कंपनी उन बिलों के आधार पर ITC क्लेम कर लेती है।
- सरकार को टैक्स मिलता नहीं, लेकिन ITC के रूप में रिफंड देना पड़ता है।
यही वजह है कि फर्जी बिलिंग रैकेट टैक्स चोरी का सबसे बड़ा माध्यम बन चुका है।
3. फर्जी कंपनियाँ कैसे बनाई जाती हैं?
सरकार ने बताया कि इन रैकेटों में शामिल लोग—
- फर्जी आधार कार्ड,
- फर्जी पते,
- किराए पर ली गई ईमेल आईडी
- और कंप्यूटर जनरेटेड दस्तावेज़
का उपयोग कर फर्म रजिस्टर कर सकते हैं।
कई राज्यों में यह भी पाया गया कि मजदूर, रिक्शा ड्राइवर, और गरीब लोग अनजाने में कंपनियों के डायरेक्टर बनाए गए।
4. 41,664 करोड़ रुपये का घोटाला: इसकी जटिलताएँ
सरकार के अनुसार यह राशि कई प्रकार की धोखाधड़ी से जुड़ी है—
(i) नॉन–एग्ज़िस्टिंग फर्म (Non-existing entities)
कंपनियाँ केवल कागज़ों पर थीं, जिनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं था।
(ii) फर्जी इनवॉइस नेटवर्क
एक कंपनी से दूसरी और दूसरी से तीसरी कंपनी को बिल बनाकर ITC चेन बनाई जाती थी।
(iii) बोगस खरीद–फरोख्त
माल कभी चलता ही नहीं था, केवल बिलों का लेन–देन होता था।
(iv) माल की हेराफेरी
कुछ मामलों में केवल कम मूल्य का माल दिखाया गया, लेकिन बिल उच्च मूल्य के बनाए गए।
5. कौन–कौन से सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित?
राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार निम्नलिखित सेक्टरों में सबसे अधिक फर्जीवाड़े के मामले सामने आए:
- स्क्रैप उद्योग
- आयरन–स्टील ट्रेड
- मोबाइल–इलेक्ट्रॉनिक्स
- टेक्सटाइल
- एडवरटाइजिंग और मार्केटिंग
- निर्माण (Construction)
- खाद्य तेल
इन सेक्टर्स में बिल का लेन–देन आमतौर पर कतई ट्रेस करना आसान नहीं होता, इसलिए फर्जीवाड़ा तेजी से फैलता है।
6. GST चोरी क्यों बढ़ रही है?
भले ही जीएसटी पूरी तरह डिजिटल सिस्टम हो, लेकिन उसकी कुछ कमजोरियाँ अपराधियों को मौका देती हैं:
(i) दस्तावेज़ सत्यापन की कमी
GSTR-1 और GSTR-3B में mismatch होने के बावजूद कुछ समय तक क्लेम संभव है।
(ii) ऑटो–पॉप्युलेशन पर निर्भरता
कई विवरण सिस्टम खुद भर देता है, जिससे रैकेट loopholes का फायदा उठाते हैं।
(iii) मानव संसाधन की कमी
GST विभाग में निगरानी क्षमता सीमित है।
(iv) ई–वे बिल्स में लापरवाही
बोगस वाहनों के नंबर डालकर ई–वे बिल जेनरेट किए जाते हैं।
7. केंद्र सरकार की कार्रवाई
सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े कदम उठाए हैं:
(1) राष्ट्रीय स्तर पर विशेष ड्राइव
GST धोखाधड़ी रोकने के लिए PAN–आधारित सत्यापन, बैंक खाता जांच, और मोबाइल OTP प्रमाणीकरण को सख्त किया गया।
(2) 25,000 से अधिक फर्जी GSTIN रद्द
इनमें से अधिकांश का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं था।
(3) 1,200 से अधिक गिरफ्तारियाँ
साल 2017 के बाद से अभी तक कई राज्यों में बड़े रैकेट पकड़े गए।
(4) GSTR सिस्टम को अपडेट किया
GSTR-1 और GSTR-3B में क्रॉस–वैरिफिकेशन को और मजबूत किया गया है।
(5) आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित निगरानी
डेटा एनालिटिक्स अब असामान्य लेन–देन की पहचान तेजी से करने लगा है।
8. इस घोटाले का व्यापक प्रभाव
(i) सरकारी राजस्व को भारी नुकसान
41,664 करोड़ रुपये का गणना किया गया नुकसान भविष्य में और बढ़ सकता है।
(ii) ईमानदार व्यापारियों पर बोझ
फर्जी कंपनियों के कारण genuine कारोबारियों पर compliance का दबाव बढ़ जाता है।
(iii) टैक्स रेट बढ़ने का खतरा
यदि राजस्व संग्रह कम होता रहा तो कर दरें बढ़ाने का दबाव बन सकता है।
(iv) देश की अर्थव्यवस्था और बिजनेस वातावरण पर असर
अवैध कारोबार प्रतिस्पर्धा को असंतुलित करता है।
9. GST प्रणाली में भावी सुधार क्या होने चाहिए?
विशेषज्ञों के अनुसार निम्नलिखित सुधार अत्यंत आवश्यक हैं:
(1) रियल–टाइम बिलिंग मॉनिटरिंग
हर बिल रियल टाइम में क्रॉस–चेक होना चाहिए।
(2) रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में कड़े नियम
भौतिक सत्यापन अनिवार्य हो।
(3) ITC को चरणबद्ध जारी करना
पूर्ण ITC तभी मिले जब सप्लायर टैक्स जमा कर दे।
(4) बैंकिंग लेन–देन की अनिवार्यता
बिना बैंक रिकॉर्ड के बिल अमान्य माने जाएँ।
(5) राज्यों के बीच डेटा–शेयरिंग बढ़े
फर्जी कंपनियाँ अक्सर कई राज्यों में काम करती हैं।
10. राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
कुछ विपक्षी दलों ने कहा कि:
- सरकार GST प्रणाली को पूरी तरह सुरक्षित करने में विफल रही है,
- छोटे व्यवसाय compliance में उलझे हैं जबकि बड़े रैकेट खुलकर काम कर रहे हैं,
- ITC फ्रॉड की रोकथाम के लिए ज़मीनी स्तर पर और कठोर सुधार जरूरी हैं।
वहीं सरकार का जवाब है कि:
- पिछले पाँच वर्षों में सबसे व्यापक ITC जांच अभियान चलाया गया है,
- अब सिस्टम AI–driven हो चुका है,
- आने वाले समय में ऐसे घोटाले लगभग असंभव हो जाएंगे।
11. निष्कर्ष
41,664 करोड़ रुपये का आईटीसी घोटाला सिर्फ एक संख्या नहीं—यह जीएसटी व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती और सुधार का अवसर है। फर्जी कंपनियाँ, नकली बिल और आईटीसी का दुरुपयोग बताता है कि आर्थिक अपराध कितनी गहराई तक जड़े जमा चुका है। लेकिन यह भी सत्य है कि सरकार की जांच गतिविधियों और तकनीकी सुधारों से ऐसे रैकेट लगातार सामने आ रहे हैं।
आगे का रास्ता स्पष्ट है—सख़्त निगरानी, तकनीक आधारित नियंत्रण, और घोटाले करने वालों पर त्वरित दंड। केवल कानून से नहीं, बल्कि बेहतर प्रशासनिक व्यवस्थाओं से ही ऐसे फर्जीवाड़े रोके जा सकते हैं।