शीर्षक:
“26 वर्षों की तपस्विनी न्याययात्रा: पत्नी के संघर्ष से मिटा दिवंगत पति के माथे से रिश्वत का कलंक”
विस्तृत लेख:
नारी शक्ति, दृढ़ संकल्प और न्याय की अंततः जीत हुई, जब छत्तीसगढ़ की एक साधारण महिला ने 26 वर्षों तक एक असाधारण लड़ाई लड़ी और अपने दिवंगत पति के माथे से रिश्वत जैसे गंभीर आरोप का कलंक मिटा दिया।
यह कहानी है गोपीकला कुंडे की, जिनके पति गणेशराम शेंडे को 1990 में एक रिश्वत मामले में फंसाया गया और 1999 में ट्रायल कोर्ट ने उन्हें तीन साल की सजा सुनाई। उसी वर्ष उनका निधन हो गया, लेकिन पत्नी को यह स्वीकार नहीं था कि उनके पति को गुनहगार माना जाए। उन्होंने हार नहीं मानी और न्याय के लिए अपने संघर्ष की मशाल जलाए रखी।
🕰️ मामले की पृष्ठभूमि:
यह घटना 8 अप्रैल 1990 की है, जब छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में नहीं आया था। उस दिन थुरीकौना गांव निवासी जैतराम साहू ने सहनी राम, नकुल साहू और भीमलाल साहू के खिलाफ मारपीट का मामला दर्ज कराया। मामले की जांच तत्कालीन बसना थाना प्रभारी गणेशराम शेंडे ने की।
तीनों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और फिर रिहा कर दिया गया। इसके दो दिन बाद आरोपी भीमलाल साहू ने लोकायुक्त कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई कि थाना प्रभारी ने उसे रिहा करने के एवज में ₹1,000 रिश्वत मांगी।
लोकायुक्त टीम ने ट्रैप रच कर थाना प्रभारी गणेशराम शेंडे को रंगे हाथ पकड़ा और उनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ। 1999 में ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और तीन साल की सजा सुनाई।
💔 पति की मृत्यु और पत्नी का संघर्ष:
उसी साल गणेशराम शेंडे का निधन हो गया, लेकिन उनकी पत्नी गोपीकला कुंडे ने इस निर्णय को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि वे अपने पति को निर्दोष साबित करके रहेंगी।
विधवा होते हुए भी उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और मानसिक संघर्षों को पार करते हुए कानूनी लड़ाई जारी रखी। उन्होंने उच्च न्यायालय में अपील दायर की, जिसमें उन्होंने साबित किया कि ट्रायल कोर्ट के निर्णय में गंभीर त्रुटियाँ थीं और उनके पति को झूठे आरोपों में फंसाया गया था।
⚖️ 26 वर्षों के बाद मिला न्याय:
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने इस मामले की गहराई से समीक्षा की और ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए स्पष्ट किया कि गणेशराम शेंडे निर्दोष थे।
इस निर्णय से न केवल एक मृतक पुलिस अधिकारी की प्रतिष्ठा बहाल हुई, बल्कि यह एक ऐसी नारी की विजयगाथा भी बनी जिसने वर्षों तक न्याय की लौ को बुझने नहीं दिया।
🌸 नारी शक्ति और न्याय का संगम:
गोपीकला कुंडे की यह संघर्षगाथा नारी शक्ति की मिसाल बन गई है। यह दिखाता है कि यदि संकल्प मजबूत हो और विश्वास अटूट हो, तो वर्षों की लंबी लड़ाई के बाद भी न्याय मिल सकता है।
इस फैसले ने यह भी दिखा दिया कि न्यायालय कभी भी देर से सही, पर सच्चाई का साथ देता है।
उपसंहार:
यह घटना भारतीय न्याय व्यवस्था में विश्वास को और मजबूत करती है। साथ ही, यह उन हजारों लोगों को प्रेरणा देती है जो अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। गोपीकला कुंडे की यह कहानी इतिहास में एक ऐसी मिसाल बनकर उभरी है, जिसमें सच्चाई, समर्पण और साहस ने न्याय को पुनः स्थापित किया।