शीर्षक: 2025 में पर्यावरणीय न्याय: सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय और उनके प्रभाव
प्रस्तावना
पर्यावरणीय संकट आज वैश्विक चिंता का विषय बन चुका है। जलवायु परिवर्तन, वायु और जल प्रदूषण, जैव विविधता की हानि, और वनों की कटाई जैसे मुद्दे हमारे अस्तित्व को चुनौती दे रहे हैं। भारत जैसे विकासशील देश में, जहाँ आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण तीव्र गति से हो रहा है, वहाँ पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गया है। ऐसे में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल के वर्षों में पर्यावरणीय संरक्षण और न्याय के क्षेत्र में कई ऐतिहासिक निर्णय देकर पर्यावरणीय कानूनों की व्याख्या और प्रभावशीलता को नई दिशा दी है।
2025 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कुछ निर्णयों ने पर्यावरणीय न्याय की अवधारणा को न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि नैतिक और संवैधानिक मूल्यों के स्तर पर भी सुदृढ़ किया है।
पर्यावरणीय न्याय की अवधारणा
पर्यावरणीय न्याय (Environmental Justice) का अर्थ है:
“ऐसा न्याय जो न केवल वर्तमान पीढ़ी की पर्यावरणीय आवश्यकताओं की रक्षा करे, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी संसाधनों को सुरक्षित रखे।”
यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) के अंतर्गत आता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ‘स्वस्थ पर्यावरण में जीवन के अधिकार’ के रूप में व्याख्यायित किया है।
2025 में सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख पर्यावरणीय निर्णय
1. हिमालयन इको-जोन संरक्षण केस (जनवरी 2025)
मामला: उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों में हो रहे अंधाधुंध निर्माण कार्यों के खिलाफ याचिका।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया कि पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माण कार्य के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (EIA) अनिवार्य किया जाए।
प्रभाव:
- हिमालयी पारिस्थितिकी को सुरक्षा
- भूमि धंसाव (landslides) और जलवायु जोखिमों पर नियंत्रण
- स्थायी पर्यटन और स्थानीय समुदायों की भागीदारी को प्रोत्साहन
2. इंडस्ट्रियल वेस्ट मैनेजमेंट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (फरवरी 2025)
मामला: औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की अनदेखी और दूषित जल निकासी।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर ₹100 करोड़ का जुर्माना लगाया और “Polluter Pays Principle” को फिर से सुदृढ़ किया।
प्रभाव:
- उद्योगों की जिम्मेदारी तय हुई
- पर्यावरणीय नियमों के अनुपालन में सुधार
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को निगरानी की नई शक्तियाँ
3. अरण्य बचाओ आंदोलन बनाम राज्य सरकार (मार्च 2025)
मामला: एक प्रस्तावित एक्सप्रेस-वे परियोजना के लिए 5,000 हेक्टेयर वन भूमि के विनाश के खिलाफ याचिका।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने परियोजना को स्थगित करते हुए ‘पर्यावरण और विकास के संतुलन’ पर ज़ोर दिया।
प्रभाव:
- “पर्यावरणीय लोकहित” की अवधारणा मजबूत
- वन अधिकार कानूनों की रक्षा
- पुनःस्थापना और मुआवजा योजनाओं में पारदर्शिता की अनिवार्यता
4. वायु प्रदूषण पर स्वतः संज्ञान (अप्रैल 2025)
मामला: दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता गंभीर स्तर पर पहुँची।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने निर्माण कार्य, ट्रैफिक, और स्टबल बर्निंग पर अंतरिम प्रतिबंध लगाए और राज्य सरकारों को जवाबदेह ठहराया।
प्रभाव:
- GRAP (Graded Response Action Plan) को कड़ाई से लागू किया गया
- वायु शुद्धिकरण योजनाओं में तेजी
- नागरिकों में जागरूकता और सतर्कता में वृद्धि
5. ‘नदी अधिकार’ निर्णय (मई 2025)
मामला: एक जनहित याचिका में गंगा और यमुना को ‘जीवित संस्था’ (living entity) के रूप में कानूनी अधिकार देने की मांग।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नदियाँ हमारी सभ्यता की आत्मा हैं और इन्हें जीवन और अस्तित्व का अधिकार है।
प्रभाव:
- नदियों को कानूनी व्यक्ति का दर्जा मिला
- अवैध अतिक्रमण और प्रदूषण के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही
- नागरिकों और प्रशासन को “नदी संरक्षक” के रूप में दायित्व
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोहराए गए प्रमुख सिद्धांत
- सतत विकास का सिद्धांत (Principle of Sustainable Development)
- पूर्व-सावधानी सिद्धांत (Precautionary Principle)
- प्रदूषक भुगतान करे सिद्धांत (Polluter Pays Principle)
- पर्यावरणीय लोकहित (Environmental Public Trust Doctrine)
- इंटर-जनरेशनल इक्विटी (Future Generations Rights)
पर्यावरणीय न्यायपालिका की सक्रियता
- सुप्रीम कोर्ट ने NGT (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) के अधिकार क्षेत्र को भी पुनः सुदृढ़ किया।
- NGT को आदेश दिया गया कि वह सभी निर्माण परियोजनाओं की EIA रिपोर्टों की समीक्षा करे।
- कोर्ट ने ‘ग्रीन ट्रिब्यूनल मॉनिटरिंग सेल’ के गठन का सुझाव दिया।
न्यायिक निर्णयों के सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव
क्षेत्र | प्रभाव |
---|---|
प्रशासन | नीति निर्माण में पर्यावरणीय मूल्य अनिवार्य हुए |
उद्योग | पर्यावरण अनुपालन में मजबूती, ESG (Environmental, Social, Governance) रिपोर्टिंग अनिवार्य |
नागरिक समाज | जन जागरूकता, नागरिक अभियानों में तेजी |
स्थानीय समुदाय | पर्यावरणीय निर्णयों में भागीदारी और संरक्षण की भूमिका |
भविष्य की राह: सुझाव और चुनौतियाँ
सुझाव:
- पर्यावरणीय शिक्षा को स्कूल पाठ्यक्रम में अनिवार्य किया जाए
- स्थानीय ग्रीन ट्रिब्यूनल्स का गठन
- ईको-फ्रेंडली इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा
- कॉर्पोरेट पर्यावरण जवाबदेही को कानूनी रूप देना
चुनौतियाँ:
- विकास बनाम संरक्षण की द्वंद्वात्मकता
- सरकारी एजेंसियों की लचर क्रियान्वयन क्षमता
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
- डेटा और तकनीकी संसाधनों की सीमाएँ
निष्कर्ष
2025 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणीय न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि पर्यावरण संरक्षण केवल प्रशासनिक जिम्मेदारी नहीं बल्कि संवैधानिक कर्तव्य भी है। आज जब जलवायु संकट हमारे अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है, तब सुप्रीम कोर्ट के ये निर्णय केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक और मानवीय दृष्टिकोण से भी प्रेरक हैं। भविष्य के लिए, हमें एक ऐसे समाज की आवश्यकता है जो विकास और प्रकृति के बीच संतुलन को समझे और उस पर अमल करे।