2022 का प्रस्तावित संशोधन – CITES के अनुरूप वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की संरचना का आधुनिकीकरण

शीर्षक: 2022 का प्रस्तावित संशोधन – CITES के अनुरूप वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की संरचना का आधुनिकीकरण


परिचय

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत का प्रमुख विधिक उपकरण है, जो देश की जैव विविधता और संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा करता है। समय-समय पर इस अधिनियम में अनेक संशोधन किए गए हैं ताकि वह न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप भी बना रहे। वर्ष 2022 में भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत संशोधन विधेयक (Wildlife Protection (Amendment) Bill, 2022) इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इसका प्रमुख उद्देश्य था – CITES (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) के साथ भारत की प्रतिबद्धताओं को पूर्ण रूप से समाहित करना और अधिनियम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामंजस्यपूर्ण बनाना।


CITES क्या है?

  • पूर्ण नाम: Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora
  • स्थापना: 1973, प्रभावी: 1975
  • भारत की सदस्यता: 1976 से
  • मुख्य उद्देश्य: संकटग्रस्त प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित कर उनकी लुप्त होने की संभावना को कम करना

CITES तीन अनुसूचियों (Appendices I, II, III) के माध्यम से प्रजातियों को वर्गीकृत करता है और उनके व्यापार पर नियंत्रण लागू करता है।


2022 संशोधन का प्रमुख उद्देश्य

भारत के पास CITES के कार्यान्वयन हेतु कोई विशेष सुसंगत घरेलू विधि तंत्र नहीं था। अतः 2022 का संशोधन इस खामी को दूर करने के लिए लाया गया। इसका उद्देश्य था:

  • CITES के सभी दायित्वों को भारतीय कानून में समाहित करना
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिबद्धता को मज़बूत करना
  • वन्यजीवों के व्यापार, अनुसंधान, संरक्षण और प्रबंधन को अधिक पारदर्शी और नियंत्रित बनाना

प्रमुख विशेषताएँ – 2022 प्रस्तावित संशोधन

1. CITES के अनुरूप प्रावधानों को समाहित करना

  • CITES में उल्लिखित प्रजातियों की सूची को भारतीय अनुसूचियों में जोड़ा गया।
  • भारत में इन प्रजातियों के आयात, निर्यात और पुनःनिर्यात के लिए सरकारी अनुमति अनिवार्य कर दी गई।

2. नए अनुसूचियों की संरचना

  • अधिनियम में अलग-अलग अनुसूचियों (Schedules) की संख्या कम करके उन्हें सुव्यवस्थित किया गया:
    • Schedule I: उच्चतम संरक्षण वाली प्रजातियाँ
    • Schedule II: अन्य संरक्षित प्रजातियाँ
    • Schedule III: CITES में सूचीबद्ध विदेशी प्रजातियाँ

3. विदेशी प्रजातियों को विनियमित करना

  • अधिनियम में पहली बार विदेशी प्रजातियों (exotic species) को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया और उनके व्यापार व स्वामित्व हेतु अनुमति की व्यवस्था की गई।
  • यह विशेष रूप से विदेशी कछुए, पक्षी, सरीसृप आदि के गैरकानूनी व्यापार को नियंत्रित करने के लिए किया गया।

4. लाइसेंस प्रणाली और पंजीकरण की प्रक्रिया

  • संरक्षित प्रजातियों के साथ व्यापार या प्रदर्शन के लिए लाइसेंस प्रणाली को सुदृढ़ किया गया।
  • निजी संग्रहकर्ता या व्यापारी जो संरक्षित या विदेशी प्रजातियाँ रखते हैं, उन्हें सरकार के समक्ष पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।

5. बाघ और अन्य करिश्माई प्रजातियों के संरक्षण के लिए सख्त नियम

  • बाघ और अन्य अनुसूची-I प्रजातियों के अवशेष (derivatives) के व्यापार पर पूर्ण प्रतिबंध को और स्पष्ट किया गया।

संशोधन के लाभ

  1. अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं की पूर्ति:
    यह संशोधन CITES के अनुपालन को वैधानिक रूप देता है, जिससे भारत की वैश्विक छवि मजबूत होती है।
  2. वन्यजीवों के व्यापार पर नियंत्रण:
    आयात-निर्यात और देश के भीतर व्यापार पर कठोर नियंत्रण से अवैध व्यापार पर अंकुश लगता है।
  3. विदेशी प्रजातियों की सुरक्षा:
    अब विदेशी प्रजातियों का भारत में अवैध कब्ज़ा या व्यापार दंडनीय होगा।
  4. डिजिटल निगरानी और पारदर्शिता:
    पंजीकरण और लाइसेंस प्रक्रिया से प्रणाली पारदर्शी बनती है और ट्रैकिंग आसान होती है।

चुनौतियाँ और आलोचना

  1. विदेशी प्रजातियों की परिभाषा अस्पष्ट:
    कुछ विशेषज्ञों का मानना था कि विदेशी प्रजातियों की परिभाषा अधूरी है और इसमें सुधार की आवश्यकता है।
  2. केंद्र को अधिक शक्तियाँ:
    राज्यों ने यह आपत्ति जताई कि प्रस्तावित संशोधन में केंद्र सरकार को अत्यधिक अधिकार दिए गए हैं, जिससे संघीय ढांचे में असंतुलन आ सकता है।
  3. व्यवहारिक कार्यान्वयन की चुनौती:
    पंजीकरण और लाइसेंस प्रणाली को स्थानीय स्तर पर लागू करना प्रशासनिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

निष्कर्ष

2022 का प्रस्तावित संशोधन वन्यजीव संरक्षण अधिनियम को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक कदम है। CITES के अनुरूप भारत का कानूनी ढांचा अब न केवल वन्यजीव व्यापार पर अंकुश लगाने में सक्षम होगा, बल्कि इससे वैश्विक सहयोग और वैज्ञानिक अध्ययन को भी बढ़ावा मिलेगा। हालाँकि, इसके सशक्त और न्यायपूर्ण क्रियान्वयन के लिए प्रशासन, विशेषज्ञों और आम नागरिकों – सभी की साझा भागीदारी आवश्यक होगी।