“संशोधन-कानून 2018: क्या वास्तव में प्रतिगामी है? सुप्रीम कोर्ट की स्पष्टता व न्याय-विचार”
प्रस्तावना
भारत में अनुबंध एवं निष्पादन (specific performance) के क्षेत्र में लंबे समय से यह समस्या बनी रही है कि अनुबंध का उल्लंघन होने पर वादी को केवल हर्जाना (damages) प्राप्त होता रहा, जबकि वस्तु-निर्वहन (specific performance) जिसे “जहाँ अधिकार वहाँ उपचार (ubi jus ibi remedium)” के सिद्धांत से जुड़ा हुआ माना जाता है, वह सदैव उपलब्ध नहीं होता था। इस दृष्टि से 1 अक्टूबर 2018 से लागू हुए संशोधन-कानून ने अनुबंध के निष्पादन को अपेक्षित रूप से एक प्रमुख तथा आसान उपचार-विकल्प बनाने का प्रयत्न किया।
परंतु इस संशोधन-कानून के लागू होने के पश्चात् एक महत्वपूर्ण विवाद यह उत्पन्न हुआ कि यह कानून पूर्व की अनुबंधों या चल रही मुकदमों पर (i.e., उनकी प्रकृति के कारण 01.10.2018 से पूर्व हुई) लागू होगा या नहीं—यानी यह प्रतिगामी (retrospective) है या अग्रगामी (prospective)।
इस विवाद का निपटारा सुप्रीम कोर्ट ने किया है। निम्नलिखित खण्डों में हम संवैधानिक-विधिपरक, न्यायशास्त्रीय और व्यावहारिक दृष्टियों से इस विवाद का विश्लेषण करेंगे।
संशोधन-कानून 2018 : मुख्य परिवर्तन
संक्षिप्त रूप से, 2018 के संशोधन-कानून ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण बदलाव किए:
- पहले, Specific Relief Act, 1963 की धारा 10 के तहत “विशिष्ट निष्पादन” (specific performance) एक न्यायालय की विवेक-धारा (discretion) के अधीन थी — कि क्या वादी को विशिष्ट निष्पादन दिया जाए या क्या हर्जाना प्रदत्त होना पर्याप्त है।
- संशोधन के बाद धारा 10 (उपधारा (1) ) इस तरह लिखी गई कि “अनुबंध की विशिष्ट निष्पादन न्यायालय द्वारा निम्नलिखित प्रावधानों के अधीन प्रवर्तित की जाएगी …” (i.e., ‘shall be enforced … subject to sub-section (2) of section 11, section 14 and section 16’). इस रूप में वादी का विशिष्ट निष्पादन प्राप्त करने का अधिकार – यदि पासेके आवश्यक समुचित तत्व उपस्थित हों (जैसे कि अनुबंध, तैयार-ता व willingness व समय-बद्ध निष्ठा) – अधिक सुनिश्चित हुआ।
- संशोधन ने यह स्पष्ट किया कि हर्जाना (damages) अब विशिष्ट निष्पादन की बजाय प्राथमिक उपचार नहीं रहेगा (i.e., विशिष्ट निष्पादन को प्राथमिकता) तथा न्यायालय की विवेक-धारा को कुछ हद तक सीमित किया गया।
- यह भी कहा गया कि यदि अनुबंध निष्पादन योग्य हो, वादी तैयार-उत्सुक हो और defendant ने कोई ठोस रक्षा-दलील न दी हो, तो विशिष्ट निष्पादन का आदेश देना मुख्य प्रवृत्ति होगी। (हालाँकि न्यायालय पूर्व विवेक से पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ है)।
इन बदलावों के कारण यह संशोधन-कानून व्यापक व्यावसायिक व अनुबंध-उद्योगिक उपयोगिता के लिए मानी गई है।
समय-प्रभाव (Retrospective vs Prospective) का विवाद
(१) विवाद की प्रकृति
हालाँकि संशोधन-कानून ने अनेक सुधार किये हैं, परंतु मुख्य विवाद था: क्या यह कानून उन अनुबंधों पर लागू होगी जो 01.10.2018 से पहले संपन्न हुए, या उन मामलों पर जहाँ मुकदमे चल रहे थे? अर्थात्, क्या यह कानून प्रतिगामी रूप से लागू होगी या आगे (प्रोस्पेक्टिव) से ही?
इस संदर्भ में विभिन्न न्यायालयों में मतभेद आए: कुछ उच्च न्यायालयों ने इसे प्रतिगामी माना, कुछ ने प्रोस्पेक्टिव माना। उदाहरण के लिए, एक उच्च न्यायालय ने यह माना कि क्योंकि यह धारा 10 का “स्थानांतरण” (substitution) है, तो स्वाभाविक रूप से प्रतिगामी प्रभाव कर सकती है।
(२) सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सबसे महत्वपूर्ण निर्णय था Katta Sujatha Reddy v. Siddamsetty Infra Projects Pvt Ltd. (Civil Appeal No. 5822 of 2022) जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त 2022 के निर्णय में यह कहा कि यह संशोधन-कानून “प्रोस्पेक्टिव” रूप से लागू होगी, अर्थात् 01.10.2018 के बाद के अनुबंधों/मुकदमों पर ही। कोर्ट ने कहा कि क्योंकि संशोधन से नए अधिकार-औपचारिकताएँ और दायित्व उत्पन्न हुए हैं, यह ‘साधारण विवेक-नियम (procedural law)’ नहीं है, बल्कि ‘मूलाधिकार/उपकरणात्मक अधिकार’ (substantive rights) को प्रभावित करता है, इसलिए इसके प्रतिगामी होने को अनुमति नहीं है।
परंतु इसके बाद, 08 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने उस निर्णय को समीक्षा (review) के लिए स्वीकार किया और 2022 के निर्णय को recall (पुनः खारिज) कर लिया। इस प्रकार, अब यह स्थिति उत्पन्न हुई है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2022 दृष्टिकोण को बदल दिया है।
(३) सुप्रीम कोर्ट द्वारा recall का अर्थ
कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि 2022 के निर्णय में केवल मुकदमे की विषय-वस्तु (on merits) को ही पुनः देखा गया, किंतु उस निर्णय में ‘समय-प्रभाव’ (applicability) के विषय में जो निष्कर्ष था — अर्थात् प्रोस्पेक्टिव प्रभाव — उसे विशेष रूप से संशोधित नहीं किया गया। बावजूद इसके विभिन्न लेखों में उल्लेख हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट अब प्रतिगामी प्रभाव को स्वीकार कर सकती है।
इसलिए वर्तमान स्थिति यह है — सुप्रीम कोर्ट ने 2022 के निर्णय को formally recall कर लिया है, लेकिन अभी तक (अक्टुबर 2025 तक) यह स्पष्ट नहीं कि नए निर्णय में क्या समय-प्रभाव निर्धारित किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा कि यह ‘साधारण प्रक्रिया’ का कानून नहीं, बल्कि ‘मूलाधिकार/उपकरणात्मक अधिकार’ का कानून है?
यहाँ इस विवेचना को समझना महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट ने क्यों यह कहा कि यह कानून प्रतिगामी नहीं हो सकती। निम्नलिखित तर्क दिए गए:
- नए अधिकार-दायित्व का सृजन – संशोधन-कानून के तहत धारा 10, धारा 14 व धारा 16 में ऐसे परिवर्तन किए गए जिनसे पहले न थे। उदाहरणस्वरूप, पहले न्यायालय के पास विशिष्ट निष्पादन की अनुमति देने-अस्वीकार करने का विवेक था (डिस्क्रेशन) — पर अब “शाल” (shall) शब्द प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार वादी को विशिष्ट निष्पादन का एक नया अधिकार मिला है।
- विवेक-धारा में कमी – पूर्व कानून में लाभार्थी (वादी) को यह दिखाना पड़ता था कि हर्जाना पर्याप्त नहीं होगा, और न्यायालय को विचार करना था कि क्या विशिष्ट निष्पादन देना उचित है। पर अब यह विवेक-धारा काफी हद तक सीमित कर दी गई है—इसका अर्थ है कि यह परिवर्तन “साधारण प्रक्रिया” नहीं बल्कि “मूलाधिकार/उपकरण” से जुड़ा है।
- नियमित बदलाव का स्वरूप – सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि जब किसी संशोधन द्वारा पहले से मौजूद अधिकारों को छीन लिया जाए या नए अधिकार बनाए जाएँ, तो प्रतिगामी प्रभाव का अनुमान नहीं लगाया जा सकता; इसके लिए स्पष्ट विधान होना चाहिए कि संशोधन प्रतिगामी तौर पर लागू होगी।
- समय-प्रभाव निर्दिष्ट नहीं किया गया – संशोधन-कानून में स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा गया कि यह पुराने अनुबंधों पर या प्रचलित मुकदमों पर भी लागू होगी। ऐसे में न्यायशास्त्र के अनुसार इसे प्रोस्पेक्टिव माना जाना अधिक न्यायसंगत था।
इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने मिलकर यह तर्क दिया कि यह कानून “प्रोस्पेक्टिव” है।
व्यावहारिक प्रभाव एवं समस्याएँ
(१) पुराने अनुबंधों पर प्रभाव
यदि यह कानून प्रोस्पेक्टिव ही मानी जाए, तो ऐसे अनुबंध जो 01.10.2018 से पूर्व हुए, उनके प्रति वादी अब नए ढाँचे (rehabilitated right of specific performance) का लाभ नहीं उठा पाएँगे। उदाहरणस्वरूप, यदि एक विक्रेता ने अनुबंध किया 2015 में, और वादी ने भुगतान कर दिया था, पर विक्रेता ने रजिस्ट्री नहीं की — तो संशोधन-कानून के तहत विशिष्ट निष्पादन का नया पथ उपलब्ध नहीं होगा। इससे वादी को वह लाभ नहीं मिलेगा जिसे आज के नियम में दिया गया है।
(२) चल रहे मुकदमों पर अनिश्चितता
बहुत से मामले अदालतों में 2018 से पहले से लंबित थे। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठता था कि क्या पेंडिंग केस-स्थिति में संशोधित धारा लागू होगी या नहीं? इस अनिश्चितता ने वकील-पक्षकारों के लिए रणनीति निर्धारण कठिन बना दिया था।
(३) न्यायिक अभिप्राय व वाणिज्यिक वातावरण
संशोधन-कानून का मकसद संक्षिप्त रूप से यह था कि भारत में “अनुबंध निष्पादन योग्य होना चाहिए” इस सिद्धांत को मजबूती मिले – जिससे व्यावसायिक व्यवहार, निवेश व कॉन्ट्रैक्ट-विश्वास को बल मिले। यदि यह कानून पुराने अनुबंधों पर लागू न हो, तो वाणिज्यिक दृष्टि से वह एक अवसर गँवा सकता था।
(४) भविष्य-दृष्टि से सुझाव
अगर पुरानी अनुबंधों पर लाभ नहीं मिले, तो पक्षकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे 01.10.2018 के बाद हुए अनुबंधों में नई व्यवस्था का लाभ ले सकें। इसके अतिरिक्त, जिन पुराने मामले अभी लंबित हैं, उन्हें यह विश्लेषण करना होगा कि संशोधन-कानून का लाभ लेने योग्य हैं या नहीं।
नवीनतम स्थिति & समीक्षा-विचार
जैसा कि ऊपर बताया गया, सुप्रीम कोर्ट ने 08 नवम्बर 2024 को 2022 के उस निर्णय को समीक्षा के लिए स्वीकार कर लिया है और उसे recall कर लिया है। इस प्रकार यह संकेत मिलता है कि भविष्य में समय-प्रभाव के संबंध में पुनरावलोकन संभव है। कुछ कानूनी लेख यह सुझाव दे रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट अब प्रतिगामी प्रभाव स्वीकार कर सकती है।
परंतु, अभी तक कोई नया निर्णायक निर्णय नहीं आया है जो स्पष्ट रूप से कहे कि संशोधन-कानून प्रतिगामी लागू होगी। इस अनिश्चितता के चलते प्रैक्टिशनर्स के लिए सावधानी महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
संक्षिप्त में कहें तो — 2018 में लागू हुए Specific Relief Amendment Act ने विशिष्ट निष्पादन के अधिकार को सुदृढ़ और सुलभ बनाने का प्रयास किया है। सुप्रीम कोर्ट ने 2022 तक यह स्पष्ट किया था कि यह कानून केवल प्रोस्पेक्टिव रूप से लागू होगी क्योंकि इसमें नए अधिकार-दायित्व निर्माण हुए थे। पर नवीनतम स्थिति में सुप्रीम कोर्ट ने उस निर्णय को समीक्षा के लिए लिया है और इसे recall कर लिया है, जिससे यह पूरी तरह स्थिर नहीं हुआ कि पुरानी अनुबंधों पर यह लागू होगी या नहीं।
यदि मुझे यहाँ अब तक उपलब्ध निर्णय-पाठ, लेख-विचार और विश्लेषण के आधार पर स्पष्ट राय देनी हो, तो मैं इस प्रकार कहूँगा — वर्तमान में सुरक्षित पूर्वानुमान यह है कि यह कानून प्रोस्पेक्टिव रूप से प्रभावी है; परंतु अधिनिर्णय की दिशा में न्यायालय द्वारा पुनः विचार चल रहा है, अतः प्रैक्टिशनर व पक्षकारों को पुरानी अनुबंधों व लंबित मामलों में सावधानीपूर्वक रणनीति बनानी होगी।